NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गरीबों ने लड़ाई लड़ी, सरकार पीछे हटी
“लम्बे समय के बाद लोगों की आवाज़ सुनी गयीI इस निराशाजनक माहौल में जनता के लोकतंत्र के लिए यह छोटी ही सही, मगर जीत हैI पता नहीं क्यों यह निर्णय लेने में चार माह लग गएI हमारा अनुरोध है कि सरकार फिर कोई नया प्रयोग करने की बजाय सिस्टम को मजबूत करे...”
अनिल अंशुमन
14 Aug 2018
jharkhand

 

“लम्बे समय के बाद लोगों की आवाज़ सुनी गयीI इस निराशाजनक माहौल में जनता के लोकतंत्र के लिए यह छोटी ही सही, मगर जीत हैI पता नहीं क्यों यह निर्णय लेने में चार माह लग गएI हमारा अनुरोध है कि सरकार फिर कोई नया प्रयोग करने की बजाय सिस्टम को मजबूत करे...” जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने इसी 8 अगस्त को ये बातें उस समय कहीं, जब राजधानी राँची से सटे नगड़ी प्रखंड के गरीब-गुरबों द्वारा राशन के अधिकार के लिए किये गये विरोध आन्दोलन के सामने झुकते हुए सरकार को अपना फैसला वापस लेने की घोषणा करनी पड़ीI मामला था केंद्र सरकार द्वारा जबरन डिजिटल इंडिया बनाने के लिए ग्रामीण गरीबों को सीधे बैंक–खातों से ऑनलाईन डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) प्रणाली द्वारा राशन–सब्सिडी देने काI जिसकी प्रयोगशाला झारखण्ड प्रदेश के नगड़ी प्रखंड को बनाया गया थाI भूख, तंगहाली और बेकारी से जूझते गाँव के गरीबों के लिए यह योजना ऐसा सरदर्द बनी कि सारे गरीब सड़क पर खड़े हो गएI वर्ष 2017 के अक्टूबर महीने से, योजना के लागू होने की घोषणा की गयी थी, इसका विरोध शुरू हो गयाI जिसे राज्य के सभी विपक्षी तथा वाम दलों के साथ-साथ एआईपीएफ़ व अन्य कई जन संगठनों ने पुरज़ोर समर्थन देकर एक बड़ा जन मुद्दा बना दिया थाI

सन 2017 के अक्टूबर माह से भारत सरकार ने जब देश के गाँव को जबरन डिजिटल इंडिया बनाने के लिए एकतरफा फैसला लिया कि अब से गाँव के गरीबों को हर महीने दी जानेवाली राशन सब्सिडी डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) व्यवस्था के तहत बैंक खातों के ज़रिये दी जायेगीI तो झारखण्ड के मुखिया जी ने बिना आगे–पीछे विचार किये, आननफानन इसे लागू करने के लिए उतर पड़ेI 4 अक्तूबर को स्वयं नगड़ी पहुँच कर इस पायलट योजना का उद्घाटन कर डालाI ठीक वैसे ही, जैसे नोटबंदी के समय प्रधानमन्त्री द्वारा ‘कैशलेस इंडिया’ स्कीम को लागू करने के लिए इसी प्रखंड को ‘कैशलेस प्रखंड’ बनाने की कवायद की थीI परिणामस्वरुप जिन्हें दो जून का खाना जुटाना मुश्किल हो रहा हो, गाँव के वैसे सभी गरीबों पर मानो संकटों का पहाड़-सा टूट पड़ाI सबसे बड़ा संकट हुआ बैंक में खाता खुलवाने और पैसा निकलवाने का और बैंकों–प्रज्ञा केन्द्रों के आगे सुबह से वैसी ही भीड़ जमा होने लगी जैसी नोटबंदी के समय हुई थीI जिनका किसी तरह खाता खुल भी गया, उन्हें केवल ये जानने में कई दिन लग गए कि खाता में कितना पैसा कब पहुँचा या नहीं उस पर से कई बार बैंक का लिंक ही फेल मिलाI सबसे अधिक दुर्दशा हुई उन बुजुर्ग–विधवा और विकलांगों की हुई जिनके घरों में उनके अलावे कोई और सक्षम सदस्य नहीं थाI फलतः भूख से छुटकारा दिलानेवाली सरकार की ‘डीबीटी योजना’ उन्हें भूखों मारने लगी और वे चाहकर भी हर महीने मिलने वाले सरकारी राशन से वंचित होने लगेI इन परीस्थितियों ने राशन की कालाबाज़ारी–बिचौलियों के संगठित मनमाने दामों पर राशन बेचने को और अधिक बढ़ा दियाI कई बार तो लोगों को उन्हें मुफ्त मिलनेवाले सरकारी राशन भी क़र्ज़ लेकर खरीदने पड़ रहे थेI

ग्रामीण गरीबों की इस दुर्दशा को देखकर राज्य में भोजन के अधिकार व अन्य ग्रामीण सवालों पर काम कर रहे सामाजिक संगठनों व जन संगठनों ने इस मुद्दे को उठाना शुरू कियाI फिर तो ‘डीबीटी हटाओ, राशन बचाओ’ अभियान के तहत गाँव–गाँव में बैठकों का सिलसिला शुरू हो गयाI मनरेगा व अन्य ग्रामीण सवालों पर सक्रिय रहनेवाले जाने-माने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्त्ता ज्यां द्रेज़ की सक्रिय पहल व अपील पर राज्य के सभी विपक्षी व वाम दलों ने भी मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सरकार पर डीबीटी व्यवस्था हटाने का दबाव देना शुरू कियाI गौरतलब है कि उसी दौरान राज्य में सरकारी राशन देने कि प्रक्रिया में सरकार द्वारा आये-दिन किये जा रहे अजीबो-गरीब प्रयोगों ने आधा दर्जन गरीबों की जान ले लीI हालांकि, मेडिकल रिपोर्ट में इनकी मौत की वजह बीमारी बतायी गयीI इस मुद्दे पर भी सरकार बचती हुई नज़र आईI हालाँकि इस बीच डीबीटी व्यवस्था लागू करने के कुछेक बिन्दुओं पर विभागीय मंत्री सरयू राय भी सरकार के फैसले से असहमत नज़र आये और उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपना बयान भी दे डालाI क्योंकि डीबीटी-व्यवस्था से हो रही ग्रामीण गरीबों की दुर्दशा किसी से भी छुपी हुई नहीं रह गयी थीI

खुद सरकार के सोशल ऑडिट रिपोर्ट में भी इसकी व्यावहारिकता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए थेI ‘डीबीटी हटाओ, राशन बचाओ’ अभियान नगड़ी व आसपास के इलाके के सभी ग्रामीण गरीबों के एक बड़े जन आन्दोलन की शक्ल ले चुका थाI जिसकी परिणति हुई 26 फ़रवरी 2018 को “मुख्यमंत्री के आवास तक सामूहिक पदयात्रा” के आह्वान केकिया गयाI जिसमें नगड़ी समेत कई इलाकों के ग्रामीण गरीबों के साथ कई सामाजिक जनसंगठनों के लोग और राज्य के सभी विपक्षी व वाम दल भी सक्रिय तौर पर शामिल हुएI भारी पुलिस व्यवस्था को धता बताते हुए नगड़ी से सैकड़ों की संख्या से शुरू हुई ‘पदयात्रा’ में राजधानी पहुँचते–पहुँचते हज़ारों लोग शामिल हो गयेI पुलिस ने जब इसे मुख्यमंत्री आवास तक नहीं जाने दिया तो सभी राजभवन के समक्ष विरोध कार्यक्रम में बैठ गए I ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वेश-भूषा और पारम्परिक तीर-धनुष के साथ वहाँ आये गाँव के गरीबों ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि सरकार जल्द से जल्द डीबीटी-व्यवस्था वापस नहीं लेती है तो मजबूरन वे आन्दोलन को और बड़ा करने के लिए विवश हो जायेंगे और इसकी सारी ज़िम्मेदारी सरकार की होगीI

आखिरकार राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार को यह लिखना पड़ा कि डीबीटी-व्यवस्था लागू करने में कठिनाई और इससे लोगों को भी परेशानी हो रही है, इसलिए योजना को वापस ले लेना चाहिएI 9 अगस्त 18 को खबर छपी कि केंद्र ने नगड़ी से योजना वापस ले ली हैI

गाँव के गरीबों की इस जीत से तिलमिलाए राज्य सरकार मंत्री अपनी राजनीति करने से बाज़ नहीं आये और कह डाला कि – “डीबीटी स्कीम फेल नहीं हुआ, सिर्फ नगड़ी से वापस हुआ है, विरोधी भ्रामक प्रचार कर रहें हैंI ये वही लोग हैं जो– सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकानों में बायोमैट्रिक सिस्टम से अनाज देने और आधार लिंक करने का विरोध कर राष्ट्र के विकास में बाधा डाल रहें हैंI”

नगड़ी–प्रकरण स्पष्ट दिखता है कि विकास के नाम पर वर्तमान केंद्र की सरकार, जो गाँव और गरीबों को महज “प्रयोग का जंतु” मान रही है, व्यापक लोग इससे सहमत नहीं हैं और ‘अच्छे दिन’ का ज़मीनी स्वरुप कहीं नहीं दिख रहाI  

Jharkhand
Adivasi

Related Stories

झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

झारखंड की खान सचिव पूजा सिंघल जेल भेजी गयीं

झारखंडः आईएएस पूजा सिंघल के ठिकानों पर छापेमारी दूसरे दिन भी जारी, क़रीबी सीए के घर से 19.31 करोड़ कैश बरामद

खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं

आदिवासियों के विकास के लिए अलग धर्म संहिता की ज़रूरत- जनगणना के पहले जनजातीय नेता

‘मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूँ’, फ़ादर स्टैन स्वामी लिखित पुस्तक का हुआ लोकार्पण

झारखंड: पंचायत चुनावों को लेकर आदिवासी संगठनों का विरोध, जानिए क्या है पूरा मामला

झारखंड : हेमंत सोरेन शासन में भी पुलिस अत्याचार बदस्तूर जारी, डोमचांच में ढिबरा व्यवसायी की पीट-पीटकर हत्या 

झारखंड रोपवे दुर्घटना: वायुसेना के हेलिकॉप्टरों ने 10 और लोगों को सुरक्षित निकाला


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License