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गुजरात चुनावः ये 25 सीट गुजरात के भाग्य का फ़ैसला कर सकता है
पाटीदारों की आबादी क़रीब 12% है जो गुजरता की लगभग 6 करोड़ की आबादी का आठवां हिस्सा है। 25 सीटों पर 20 प्रतिशत से अधिक पटेल मतदाता हैं।
न्यूज़क्लिक प्रोडक्शन
24 Nov 2017
गुजरात

कांग्रेस द्वारा "विशेष श्रेणी" में पटेल समुदाय को आरक्षण देने की मांग स्वीकार करने के बाद आरक्षण की मांग करने वाले नेता हार्दिक पटेल ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए औपचारिक रूप से विपक्षी दल को बुधवार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया।

पाटीदार अनातम आंदोलन समिति (पीएएएस) के नेताओं ने कहा कि कांग्रेस द्वारा उनके समुदाय के लिए आरक्षण फार्मूला अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के 50 प्रतिशत कोटा से ऊपर और अतिरिक्त होगा।

उन्होंने कहा कि "गुजरात में मेरी लड़ाई भाजपा के ख़िलाफ़ है और यही वजह है कि हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस (चुनावों में) का समर्थन करेंगे क्योंकि उसने आरक्षण की हमारी मांग स्वीकार कर ली है।"

यह प्रगति राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों में सबसे पुरानी पार्टी को उपहार के रूप में मिला है। और यह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए निश्चित रूप से बुरी खबर है जो पाटीदारों के वोटों को गंवा सकता है। पाटीदार वोट वर्ष 1995 से राज्य में भगवा पार्टी के लिए रीढ़ की हड्डी साबित हुई है। पार्टी ने राज्य में पहली बार चुनावों में जीत दर्ज की थी। हार्दिक की रैलियों में भारी भीड़ इस तथ्य की गवाही देते हैं कि बीजेपी को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

इसके अलावा युवा पटेलों के बीच हार्दिक की लोकप्रियता इस चुनाव में बीजेपी के लिए और अधिक चिंता का विषय है कि जहां आधे से अधिक मतदाताओं की आयु 40 वर्ष से कम है।

पाटीदारों की आबादी क़रीब 12% है जो गुजरता की लगभग 6 करोड़ की आबादी का आठवां हिस्सा है। राज्य के 182 सीटों में से 71 सीटों पर करीब 15%मतदाता हैं जो फैसले को मोड़ सकते हैं यदि उनमें से ज्यादातर एक ही पार्टी को वोट देते हैं।

कांग्रेस को पीएएएस नेता का समर्थन कम से कम 25 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी को प्रभावित कर सकता है जहां पटेलों की 20% या उससे ज़्यादा आबादी है और ये समाज तय करेगा कि सीट कौन जीतेगा। ये निर्वाचन क्षेत्र नीचे दिए गए हैं(घटते क्रम में पटेल समुदाय की जनसंख्या की हिस्सेदारी):


वराछा (ज़िला-सूरत)

लेउवा पटेल: 60%

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में 20,359 मतों से कांग्रेस के धीरूभाई गजेरा को पराजित करने वाले मौजूदा बीजेपी विधायक कुमार कनानी एक बार फिर चुनौती देंगे। वर्ष 2008 में सीमांकन के बाद सूरत जिले में स्थित यह क्षेत्र अस्तित्व में आया।

यहां उन पटेलों की ज़्यादातर आबादी हो जो सौराष्ट्र से पलायन कर आए हैं। ये लोग हीरे काटने और पॉलिश करने के कारोबार में संलग्न हैं।

कामरेज (ज़िला- सूरत)

लेउवा पटेलः 51%

बीजेपी ने वर्ष 2002 के बाद से इस सीट पर लगातार जीत दर्ज की है। 2012 के चुनावों में भगवा पार्टी के प्रफुल्लभाई पंसेरिया ने कांग्रेस के भागीरथभाई पिथावदिवाला को 61,371 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से मध्यम वर्ग का प्रभुत्व है।

उंझा (ज़िला-मेहसाना)

कडवा पटेलः 42%

इस निर्वाचन क्षेत्र ने वर्ष 1995 से किसी कांग्रेस विधायक को नहीं चुना है। बीजेपी के नारायणभाई पटेल पिछले पांच बार से गुजरात विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म स्थान वाडनगर इसी लोकसभा क्षेत्र में है।

मेहसाना ज़िला को हर्दिक पटेल का मज़बूत गढ़ माना जाता है।

गोंडल (ज़िला- राजकोट)

लेउवा पटेलः 41%

इस क्षेत्र में हमेशा विधायक बदलते रहे। वर्ष 2007 में कांग्रेस के चंदूभाई वाघसिया ने जीत दर्ज की जबकि बीजेपी के जयराजसिंह जडेजा ने 2012 में यह सीट जीत कर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

टंकारा (ज़िला- मोरबी)

कडवा पटेलः 36%

कांग्रेस ने 1967 और 1985 के चुनावों में यानी केवल दो बार ही इस विधानसभा क्षेत्र को जीता। लेकिन वर्ष1990 के बाद से बीजेपी लगातार यह सीट जीत रही है। यहां तक कि वर्ष 2014 के उपचुनाव में भी जब तत्कालीन विधायक मोहन कुंदरिया, जो अब राज्य मंत्री हैं, ने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सीट खाली कर दी थी, यह सीट फिर से भगवा पार्टी के पास ही चला गया और बावंजीभाई मेताल्या ने एक शानदार जीत दर्ज की।

जेतपुर (ज़िला- राजकोट)

लेउवा पटेलः 33%

बीजेपी के जसूबेन कोरट ने वर्ष 2007 में यह सीट जीती थी। लेकिन मतदाताओं ने वर्ष 2012 में कांग्रेस के जयेश रददिया को एक मौका दिया था। कांग्रेस छोड़ने के बाद, जयेश ने 2013 में इस सीट से भाजपा के टिकट पर लगभग 53,000 मतों के विशाल अंतर उपचुनाव जीत लिया था।।

हार्दिक के नेतृत्व में पाटीदार आंदोलन के दौरान क्षेत्र में भारी विरोध हुआ था। पटेलों के बीच बीजेपी के ख़िलाफ़ सशक्त विरोधी लहर और असंतोष होने वाले चुनावों में भगवा पार्टी की संभावना को इस क्षेत्र में नुकसान पहुंचा सकता है।

सूरत उत्तर (उत्तर)

लेउवा पटेलः 32%

वर्ष 1990 से बीजेपी इस सीट पर लगातार जीत हासिल कर रही है। सूरत टेक्सटाइल इंडस्ट्री का यह डाइंग हब है। पटेल यहां एकजुट नहीं हैं। सूरत में रहने वालों और सौराष्ट्र से प्रवास करने वाले लोगों के बीच यहां क्षेत्रीय गुटबंदी है।

इस क्षेत्र में बीजेपी द्वारा विकास के काम न किए जाने के कारण पार्टी के ख़िलाफ़ सशक्त विरोधी लहर है। वायु प्रदूषण क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों में से एक है।

विजापुर (ज़िला- मेहसाना)

कडवा पटेलः 31%

हालांकि बीजेपी के कांतिभाई पटेल ने वर्ष 2007 में ये सीट जीता था, फिर भी कांग्रेस के प्रहलादभाई पटेल ने उन्हें अगले विधानसभा चुनावों में 8,759 मतों केमामूली अंतर से हराया था। दोनों पार्टियों ने वर्ष 1980 के बाद से चार-चार बार सीट जीती है।

पटेलों के अलावा इस निर्वाचन क्षेत्र में ठाकुरों की मज़बूत पकड़ भी है। मेहसाना जिले के अधिकांश सीटों पर पटेलों और ठाकुरों की ज़बरदस्त मौजूदगी है।

सूरत पश्मिम (पश्चिम)

लेउवा पटेलः 29%

बीजेपी वर्ष 1990 से यहां जीत दर्ज कर रही है। वर्ष2012 में पार्टी के उम्मीदवार किशोर वनकावाला ने 69,000 मतों के विशाल अंतर से राज्य में जीत दर्ज किया था। वर्ष 2013 में वनकावाला का निधन हो गया।

विसनगर (ज़िला- मेहसाना)

कडवा पटेलः 29%

यह बीजेपी का गढ़ माना जाता था। कांग्रेस ने वर्ष 1967 के बाद से इस सीट पर जीत नहीं दर्ज की है। ये निर्वाचन क्षेत्र 1995 से बीजेपी विधायक का चुनाव कर रहा है।

यह वह क्षेत्र है जहां पाटीदार 2015 में अपने आरक्षण की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर हुई पुलिस की कार्रवाई के बाद बेहद नाराज़ हैं। वर्ष 2016 में क्षेत्र के मौजूदा विधायक रुशीकेश पटेल पर पाटीदार प्रदर्शनकारियों द्वारा कथित तौर पर हमला किया गया। उनके कार्यालय पर 2015 में हमला किया गया था और हर्दिक पटेल को हाल ही में इस घटना से जुड़े होने के मामले में जमानत दी गई थी।

 

करंज (ज़िला- सूरत)

लेउवा पटेलः 29%

इस शहरी निर्वाचन क्षेत्र का सृजन वर्ष 2008 में सीमांकन के बाद किया गया। बीजेपी के जनकभाई कछाडिया ने वर्ष 2012 में 49,000 से ज्यादा मतों से सीट जीता थ। मौजूदा विधायक को हाल ही में पाटीदारों के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा जब वह यहां एक घर-घर अभियान चला रहे थे।

मानवादार (ज़िला- जूनागढ़)

कडवा पटेलः 26%

कांग्रेस के जवाहरभाई चावड़ा एक प्रभावशाली अहिर नेता हैं जो लगातार दो चुनावों (2007 और 2012) में ये सीट जीत रहे हैं। वर्ष 2012 में उन्होंने 4400 वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल की थी, शायद केशुभाई पटेल के गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) के उम्मीदवार ने कुछ मदद की थी। 

बेचाराजी (ज़िला- मेहसाना)

कडवा पटेलः 25%

यह निर्वाचन क्षेत्र बहुचरा माता के प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र में पटेलों और ठाकुरों की एक ज़बरदस्त उपस्थिति है। बीजेपी के रजनीकांत पटेल ने वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में 18,000 वोटों से अपने कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी राजेंद्रसिंह दरबार को हराया था।

मेहसाना (ज़िला- मेहसाना)

कडवा पटेलः 25%

कांग्रेस ने ये सीट छह बार जीता (1962 में और 1972 से 1985 तक)। लेकिन 1990 के बाद से बीजेपी इस सीट को जीत रही है। वर्तमान में उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल राज्य के 182 सदस्यीय सदन में इसी सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

डेयरी सहकारी आंदोलन का यह केंद्र है। पाटीदारों के प्रभुत्व वाले इस क्षेत्र में ठाकुरों का समान अनुपात है।


मोरबी (ज़िला- मोरबी)

कडवा पटेलः 25%

वर्ष 1990 से बीजेपी यह सीट जीत रही है। यह सिरेमिक उद्योग के लिए जाना जाता है। यह 1980 के दशक में आरक्षण विरोधी प्रदर्शनों और 2015 के पाटीदार विरोध प्रदर्शनों का केंद्र था।

धारी (ज़िला- अमरेली)

लेउवा पटेलः 24%

धारी पाटीदारों के सौराष्ट्र के मध्य में स्थित है। वर्ष 1970 के दशक में कांग्रेस उस वक्त हार गई जब पटेल जनता पार्टी की तरफ चले गए। 1990 तक यह जनता पार्टी का गढ़ बना रहा। बीजेपी ने 1998, 2002 और 2007 में यह सीट जीती। वर्ष 2012 में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल का जीपीपी मामूली अंतर से सीट जीता और बीजेपी तीसरे स्थान पर रहा।

मनसा (ज़िला- गांधीनगर)

कडवा पटेलः 24%

वर्ष 2008 में सीमांकन के बाद यह सीट अस्तित्व में आया। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का यह मूल स्थान है, इस निर्वाचन क्षेत्र में भगवा पार्टी ने 1995 से2007 तक जीत हासिल की। लेकिन वर्ष 2012 में कांग्रेस ने 8000 वोटों से यह सीट जीत ली। 

दाभोइ (ज़िला- वडोदरा)

लेउवा पटेलः 23%

इस सीट ने 1995 के बाद से बीजेपी और कांग्रेस को उचित मौका दिया है। दिलचस्प बात यह है कि इस सीट ने पिछले 50 सालों में एक पार्टी को दोबारा नहीं चुना है। वर्ष 2012 में बीजेपी 5000 वोटों से जीती।

यह सीट सिद्धार्थ पटेल जो कि पाटीदार समुदाय के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के बेटे की है। उन्होंने 1998 और 2007 में यह सीट जीती।

कडी (ज़िला- खेड़ा)

कडवा पटेलः 23%

अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए एक आरक्षित सीट बनने से पहले कडी उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल का निर्वाचन क्षेत्र था। कांग्रेस ने 2002 और 2012 में यह सीट जीता था। यहां बड़ी संख्या में पटेल और ठाकुरों की आबादी है। यहां आदिवासी भी बड़ी संख्या में हैं। वे बीजेपी के "उपेक्षा" के चलते नाराज़ हैं। पटेल यहां आम तौर पर किसान हैं जो कि क़ीमतों में वृद्धि और बाज़ार में अपनी फ़सल के कम लाभ मिलने के शिकार हैं।


धोराजी (ज़िला- राजकोट)

कडवा पटेलः 23%

इस क्षेत्र में लेउवा पटेल की 21% आबादी भी है। यह बीजेपी के सशक्त नेता विठ्ठल रडडिया का क्षेत्र है। उन्होंने पहली बार वर्ष 1990 में बीजेपी के टिकट पर यह सीट जीता था और वर्ष2012 तक कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में अपराजित थे।

पाटीदार-प्रधान सीट होने के अलावा यहां लगभग 19% मुस्लिम मतदाताओं का भी बड़ा हिस्सा है।


कलावद (ज़िला- जामनगर)

लेउवा पटेलः 23%

यह सीट अनुसूचित जाति के सदस्य के लिए आरक्षित हैI आख़िरी बार 1972 में यहां से कांग्रेस के विधायक चुने गए थें। इस सीट से विधानसभा में बीजेपी के प्रमुख नेता चुने गए: 1985 में केशुभाई पटेल, 1998, 2002 और 2007 में आरसी फल्दू। राघवजी पटेल 1990 और 1995 में सीट से बीजेपी विधायक रहे। वे कांग्रेस में चले गए लेकिन वह इस साल सितंबर में फिर बीजेपी में लौट आए।

लाठी (ज़िला- अमरेली)

लेउवा पटेलः 22%

बीजेपी ने 1995 से 2007 तक यह सीट जीता। जीपीपी द्वारा बीजेपी के वोटों में विभाजन के चलते कांग्रेस ने 2012 में इस सीट को हासिल कर लिया। लेकिन कांग्रेस विधायक बावकूभाई अंधद बीजेपी में शामिल हुए और 2014 में उप-चुनाव में फिर से निर्वाचित हुए। हालांकि उनकी जीत का अंतर सिर्फ 2600 वोट था।

अमरेली (ज़िला- अमरेली)

लेउवा पटेल: 21%

इस सीट ने कांग्रेस और भाजपा को भी मौका दिया है लेकिन सबसे पुरानी पार्टी ने 1967 से 2002 तक निर्वाचन क्षेत्र में जीत नहीं हासिल की। 2002 में परेश धनानी ने वरिष्ठ बीजेपी नेता परशोत्तम रूपाला के ख़िलाफ़ चौंकाने वाली जीत हासिल की थी तब से इस क्षेत्र से वह तीन बार विधायक रहे।

धनानी कांग्रेस के एक प्रमुख पाटीदार चेहरा हैं। चार बार लोकसभा के लिए अमरेली से सांसद रहे बीजेपी के दिलीप संघानी ने भी तीन बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। दिलचस्प बात यह है कि यह बीजेपी का गढ़ था, लेकिन मोदी शासन में पार्टी की पकड़ कमज़ोर हुई।

लुनावाडा (ज़िला- माहिसागर)

लेउवा पटेल: 20%

कांग्रेस लगातार दो बार (2007 और 2012) से यह सीट जीत रही है, लेकिन ये कड़ी संघर्ष वाली लड़ाई रही है। कांग्रेस के हीराभाई पटेल ने वर्ष 2007 में सिर्फ़84 वोटों और 2012 में 4000 से कम वोटों से जीता था। इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण क्षत्रिय जनसंख्या भी है।

हिमत्तनगर (ज़िला- सबरकांठा)

कडवा पटेलः 20%

वर्ष 2012 में कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की थी, जिसमें राजेंद्रसिंह चावड़ा ने वरिष्ठ मंत्री प्रफुल्ल पटेल को हराया था। लेकिन चावड़ा बीजेपी से जुड़े और2500 मतों के मामूली अंतर से 2014 में उपचुनाव जीत गए। इस सीट पर ठाकुर मतदाताओं की बड़ी संख्या है। चावड़ा ठाकुर है।

पटेल आबादी की हिस्सेदारियों से संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का आंकड़ा द इंडियन एक्सप्रेस और कैच न्यूज़ की रिपोर्टों पर आधारित है।

 

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