NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गुजरात में आदिवासी क्यों भजपा के विरुद्ध वोट कर सकते हैं
हाल के वर्षों में, भाजपा सरकार के विरुद्ध असंतोष उभर रहा है.
पृथ्वीराज रूपावत
20 Nov 2017
Translated by महेश कुमार
आदिवासी

बावजूद इसके कि गुजरात में आदिवासी जनसँख्या 14.8 प्रतिशत है, यह तबका राज्य में एक अपेक्षित सामाजिक हिस्सा के रूप में रहता है. आदिवासी मामलों के मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2016-2017 के अनुसार, भील, चरण, चौधरी, चोधरा, ढोडिया, गमित, गोंड, राबड़ी और अन्य जनजातियों से संबंधित 35% से अधिक अनुसूचित जनजातियां गरीबी रेखा के नीचे हैं. (2011- 12 के अंतिम उपलब्ध आधिकारिक डेटा पर आधारित). आदिवासियों में साक्षरता दर राज्य की औसत दर से 15.5% कम है. राज्य में आदिवासी युवाओं को भीषण बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. राज्य में हुए  तीन सर्वेक्षणों में पाया गया कि राज्य में आदिवासी क्षेत्रों में से 94 प्रतिशत बच्चे अविकसित या कुपोषित हैं.

दिसंबर में आने वाले आगामी विधानसभा चुनावों का चरित्र पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा जाति-केंद्रित हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए आज जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं उसके मुताबिक़ यह जानना जरूरी है कि आखिर आदिवासी किस तरफ जा रहे हैं? क्योंकि राज्य की कुल 182 सीटों में से 27, आदिवासी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा 11 अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से जीतने में सफल रही थी. विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयरों में अंतर कम देखा हुआ है, जबकि 2002 के बाद से भाजपा की सीटों में लगातार गिरावट आई है.

अगर ऐतिहासिक रूप से देखा जाए, तो भाजपा और विभिन्न आदिवासी समुदायों के बीच संबंध हमेशा से टकरावपूर्ण रहे हैं. वास्तव में, गुजरात में भाजपा सरकार में पहली बड़ी सांप्रदायिक हिंसा आदिवासी लोगों के खिलाफ की गयी थी. 1999 में, बीजेपी के सहयोगी संगठनों ने आदिवासियों के विरुद्ध इसलिए हिंसा की क्योंकि डांग जिले के आदिवासियों ने ईसाई धर्म को अपने धर्म के रूप में अपना लिया था, इस हिन्दा के विरुद्ध आवाज़ उठी और भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार की बर्खास्तगी की मांग के लिए आखिरकार राष्ट्रव्यापी विरोध किया गया. यह भी प्रकाश में आया कि गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी व उसकी समर्थक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके द्वारा नियंत्रित सांस्कृतिक सहयोगियों/संगठनों ने पिछले दिसंबर के बाद से आदिवासियों में अपने आधार को बढाने के लिए काम तेज कर दिया है.

हाल के घटनाक्रम में दक्षिणी गुजरात जिलों में आदिवासी आक्रोश बढ़ रहा है और उससे  आंतरायिक विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो गयी हैं, जो एक विपरीत ही समझ पेश करती हैं. बेहद औद्योगिक और समृद्ध तटीय क्षेत्रों में गरीब आदिवासियों की स्थिति बेहद खराब है. इस क्षेत्र में आदिवासियों और अन्य लोगों के बीच की बड़ी खायी ने भूमि अधिग्रहण, बेरोज़गारी और गरीबी के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं.

हाल ही में, नरेंद्र मोदी द्वारा मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन और मुंबई-वडोदरा एक्सप्रेसवे जैसी प्रस्तावित फ़िजूल ख़र्च वाली परियोजनाओं की घोषणाओं का विरोध आदिवासी और किसानों ने महाराष्ट्र और गुजरात में बड़ी ही मजबूती से किया था. ये प्रस्तावित रेल लाइन गुजरात के नवसारी और वलसाड जिलों के आदिवासी इलाकों से गुजरती है.

आदिवासी संगठनों द्वारा प्रतिरोध की गूँज राज्य में लगातार सुनाई दे रही है. आरक्षण संबंधी अधिसूचनाओं पर मिली सूचनाओं के अनुसार आदिवासी संगठनों ने सरकार-विरोधी विरोध प्रदर्शन किये, जबकि जनता दल (संयुक्त) से संबद्ध भिलिस्तान टाइगर सेना के सदस्य यह मांग कर रहे हैं कि गुजरात की पूर्वी सीमा पर आदिवासी बेल्ट को एक अलग राज्य घोषित किया जाएगा और जिसे भिलस्तान नाम दिया जाए, दूसरी ओर, 26 अक्टूबर को, भाजपा सरकार के विरोध किया गया और पिछले तीन वर्षों से बलसाड जिले में सृसोल फैक्ट्री द्वारा भूजल को दूषित करने के विरोध में  सोसोवाड़ और रोला गांवों के आदिवासी मतदाताओं ने चुनाव के बहिष्कार करने का आह्वान किया है.

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सी.ए.जी.) की हालिया रिपोर्टों में गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में जारी परियोजनाओं के सम्बन्ध में चौंकाने वाले ब्योरे सामने आये है. जल संसाधन विभाग द्वारा 4 उच्चस्तरीय नहरों (एच.एल.सी.) के निर्माण में, जो कि महियासगर, पंचमहल, सूरत और भरूच जिले के पहाड़ी इलाकों में स्थित हैं, और आदिवासियों की यहाँ बड़ी तादाद हैं, वहां नहर का निर्माण लक्ष्य से केवल लगभग 4% तक ही पूरा हुआ गए हैं. सी.ए.जी. द्वारा वर्ष 2010 और 2015 के बीच कौशल विकास पर किए गए एक निष्पादन लेखापरीक्षा में, यह पाया गया कि आदिवासी उप-योजना के तहत स्थापित व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र (वी.टी.सी.) जिसे 44, 354 आदिवासी युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करना था, लेकिन वह लक्ष्य का मात्र 35% ही पूरा कर पाया है.

आदिवासी नेताओं ने एक अन्य गंभीर चिंता का विषय उठाया है कि राज्य की जेलों में बंद कैदियों में आदिवासी लोगों की संख्या कितनी है. 2015 के अंत तक, सज़ायाफ्ता कैदियों में से 18% आदिवासी थे, जोकि मुसलामानों से दूसरे नंबर पर हैं और जिनके सज़ायाफ्ता कैदियों की संख्या 22% है लेकिन एन.सी.आर.बी. के अनुसार आदिवासी दोषियों की संख्या 22% है.

विभिन्न संगठनों के नेतृत्व में बीजेपी सरकार के खिलाफ आदिवासियों द्वारा कई प्रतिरोध आंदोलन हुए हैं. 2015 में, जब सनपेंशन वन्यजीव अभ्यारण्य और इसके आस-पास के लगभग सात किलोमीटर के दायरे के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया तो, दक्षिण गुजरात के 121 गांवों से हजारों आदिवासियों ने केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ भारी विरोध रैली में भाग लिया.

आने वाले चुनावों के संदर्भ में आदिवासी समुदायों की राजनीतिक कार्रवाइयों पर निर्णय लेने के लिए, तापी जिले के व्यारा में 18 नवंबर को आदिवासी समूहों के एक आदिवासी सम्मेलन का आह्वान किया गया है. आप जिस भी नजरिये से इसे देखें, लेकिन लगता है कि आदिवासी मतदाताओं ने चुनाव के लिए अपना एक अलग रास्ता तय कर लिया है.

tribal communities
BJP
Congress
Vote
gujarat elections 2017

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • समीना खान
    विज्ञान: समुद्री मूंगे में वैज्ञानिकों की 'एंटी-कैंसर' कम्पाउंड की तलाश पूरी हुई
    31 May 2022
    आख़िरकार चौथाई सदी की मेहनत रंग लायी और  वैज्ञानिक उस अणु (molecule) को तलाशने में कामयाब  हुए जिससे कैंसर पर जीत हासिल करने में मदद मिल सकेगी।
  • cartoon
    रवि शंकर दुबे
    राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास
    31 May 2022
    10 जून को देश की 57 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी पार्टियों ने अपने बेस्ट उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। हालांकि कुछ दिग्गजों को टिकट नहीं मिलने से वे नाराज़ भी हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 
    31 May 2022
    रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाना, पहले की कल्पना से कहीं अधिक जटिल कार्य साबित हुआ है।
  • अब्दुल रहमान
    पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन
    31 May 2022
    फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर एकतरफा प्रतिबंध लगाए हैं। इन देशों ने रूस पर यूक्रेन से खाद्यान्न और उर्वरक के निर्यात को रोकने का भी आरोप लगाया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट
    31 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,338 नए मामले सामने आए हैं। जबकि 30 मई को कोरोना के 2,706 मामले सामने आए थे। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License