NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गुजरात में संभव है बीजेपी की हार
2015 में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों से पता चलता है कि भाजपा अपना ग्रामीण जनाधार खो रही है – और उसके बाद हालात और भी खराब हुए हैं.
सुबोध वर्मा
27 Nov 2017
Translated by महेश कुमार
gujarat elections 2017

आम धारणा है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा को गुजरात में कोई हरा नहीं सकता. लेकिन इस मान्यता के निर्माण में भ्रामक प्रचार का एक मजबूत तत्व भी शामिल है. गुजरात में पिछले कई चुनावों में वोट शेयरों का चुनावी रुझान बताता है कि भाजपा का यह तिलस्म टूट रहा है और यह निश्चित नहीं है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव जीतेंगे.

राज्य में 2007 से छह चुनाव हुए हैं: दो स्थानीय निकायों के चुनाव (2010 और 2015), दो विधानसभा (2007 और 2012), दो लोक सभा (2009 और 2014). 2014 तक गुजरात में भाजपा और उसे एकमात्र चुनौती देने वाली कांग्रेस के बीच का अंतर लगतार बढ़ रहा है. 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को लगभग 48% वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 39%. 2014 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने राज्य में सभी 26 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल की और उसे 59% वोट मिले. इतना विशाल वोट कि जिसने इस प्रथा को बढ़ावा दिया कि वे अजेय है.

लेकिन राज्य में हुए अंतिम चुनावों में – खासकर 2015 में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में - सभी समीकरण बदलना शुरू हो गए. एक दशक में पहली बार, सत्तारूढ़ भाजपा ने ग्रामीण स्थानीय निकायों के चुनावों में कांग्रेस से मात खायी, जबकि शहरी स्थानीय निकायों में अभी भी भाजपा की जीत हुई, लेकिन बहुत कम अंतर के साथ. कांग्रेस ने 31 जिला पंचायतों में से 24 और 230 तालुका पंचायतों में से 134 सीटें जीत ली. जबकि 2010 में कांग्रेस ने केवल 6 जिला पंचायत और 67 तालुका पंचायतें ही जीती थीं.


table

वोट शेयर के संदर्भ में, कांग्रेस ने 2010 में जिला पंचायतों में अपने वोट के हिस्से (शेयर) को 44% से बढ़ाकर लगभग 48% कर लिया था; और तालुका पंचायतों में यह बढ़कर 42.4% से 46% तक हो गया. दूसरी ओर, जिला पंचायतों में भाजपा का वोट शेयर 50% से घटकर 44% हो गया और तालुका पंचायतों में 48.5% से घटकर 42.3% हो गया.

जाहिर है, ग्रामीण क्षेत्र, जोकि एक गहरे कृषि संकट से गुजर रहा है, वह भाजपा के खिलाफ हो गया है. इस परिवर्तन का वाहक हार्दिक पटेल की अगुवायी वाला पाटिदार आंदोलन था, जो 2015 के प्रारंभ में शुरू हुआ था, इसके पहले स्थानीय निकायों के चुनाव उस वर्ष के अगस्त में हुए थे. पटेल समुदाय भाजपा को कई सालों से समर्थन दे रहा था, लेकिन नौकरी के लिए आरक्षण के लिए हुए आंदोलन पर पुलिस की हिंसक कार्यवाही के बाद जनता खासकर पटेल समुदाय सरकार के विरुद्ध हो गए क्योंकि इस पुलिस हिंसा में पटेलों के 14 युवाओं को अपनी जान गँवानी पडी.

शहरी क्षेत्रों के स्थानीय निकायों में, भाजपा ने 2015 के चुनाव में अपनी पकड़ बनाए रखी यह अलग बात है कि उनके वोट शेयर में पहले के मुकाबले कमी आई. भाजपा ने सभी 56 नगरपालिकाएं और सभी 6 नगर निगमों पर कब्ज़ा पर अपनी जीत बरकरार रखीं, लेकिन पहले वाले चुनाव में वोट शेयर 48% से घटाकर 45% रह गया और दुसरे में में 52% से 50% हो गया.

2015 के चुनावों में भाजपा के वोट आधार में ग्रामीण-शहरी विभाजन स्पष्ट हुआ. और अब दो सालों के बाद यह विश्वास करने में कतई हर्ज़ नहीं है कि भाजपा के बारे में जनता पुनर्विचार कर सकती है. दरअसल,  चूँकि अब अन्य दरारें भी उभर कर सामने आ रही हैं जिससे भाजपा की स्थिति और भी नाजुक हो सकती है, साथ ही उसकी छवी को भी अधिक नुकसान पहुँचा रही हैं. इसके समर्थन का आधार भी कम हो रहा है. अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों ने भाजपा के विरोध में अपने अधिकारों के लिए लड़ना शुरू कर दिया है. ऊना की घटनाओं ने जिसमें दलितों को नंगा कर पिटाई की गयी और विडियो बना कर सोशल मीडिया पर डालने से आंदोलित हुए दलितों ने अत्याचारों के विरुद्ध निरंतर आवाज़ उठाई है, उन्होंने साथ ही अपने पारंपरिक कामों जैसे पशु शवों को उठाना और उनकी ख़ाल उतारने से मना कर दिया. भाजपा सरकार द्वारा जारी उपेक्षा के विरोध में आदिवासी क्षेत्रों में भी असंतोष का रूख बढ़ रहा है.

संक्षेप में कहें तो, 2002 की सांप्रदायिक हिंसा एवं दमन के बाद भाजपा ने जो सामाजिक गठजोड़ आरोपित हिंदुत्व के आधार पर विभिन्न जातियों और सामाजिक पहचान को सीमित कर बनाया था वह अब गहरे कृषि एवं आर्थिक संकट की वजह से टूटता नज़र आ रहा है. पिछले एक दशक में खाद्यान्नों और तिलहन का उत्पादन स्थिर है और आर.बी.आई. के उत्पादन के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 6-7 वर्षों से कपास का उत्पादन कुछ उतार-चढ़ाव के साथ स्थिर है. किसानों का कर्ज बढ़ रहा है जबकि उनकी आय स्थिर है. यह सब विभिन्न जातियों आधारित आंदोलनों में तो अभिव्यक्ति हो रहा है, लेकिन साथ ही उनके मुद्दों को किसान आंदोलन भी उठा रहा है. बेरोजगारी आम तौर पर बढ़ रही है क्योंकि औद्योगिक उत्पादन ढलान पर है.

इसलिए, हो सकता है कि आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को एक करारा झटका लगे.

gujarat elections 2017
modi sarkar
Narendra modi

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • CARTOON
    आज का कार्टून
    प्रधानमंत्री जी... पक्का ये भाषण राजनीतिक नहीं था?
    27 Apr 2022
    मुख्यमंत्रियों संग संवाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से पेट्रोल-डीज़ल के दामों पर टैक्स कम करने की बात कही।
  • JAHANGEERPURI
    नाज़मा ख़ान
    जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी
    27 Apr 2022
    अकबरी को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था न ही ये विश्वास कि सब ठीक हो जाएगा और न ही ये कि मैं उनको मुआवज़ा दिलाने की हैसियत रखती हूं। मुझे उनकी डबडबाई आँखों से नज़र चुरा कर चले जाना था।
  • बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    27 Apr 2022
    वाहनों में महिलाओं को बेहतर सुरक्षा देने के उद्देश्य से निर्भया सेफ्टी मॉडल तैयार किया गया है। इस ख़ास मॉडल से सार्वजनिक वाहनों से यात्रा करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होगी।
  • श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    प्रभात पटनायक
    श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    27 Apr 2022
    श्रीलंका के संकट की सारी की सारी व्याख्याओं की समस्या यह है कि उनमें, श्रीलंका के संकट को भड़काने में नवउदारवाद की भूमिका को पूरी तरह से अनदेखा ही कर दिया जाता है।
  • israel
    एम के भद्रकुमार
    अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात
    27 Apr 2022
    रविवार को इज़राइली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के साथ जो बाइडेन की फोन पर हुई बातचीत के गहरे मायने हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License