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भारत
राजनीति
घृणा के भारत का ‘नया’ विचार काम कर रहा है
यदि आप "राष्ट्रवाद" के नाम पर जघन्य अपराध करते हैं और राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं तो आपके सात खून भी माफ़
गौतम नवलखा
13 Apr 2018
Translated by महेश कुमार
आशिफा केस

असीफा के अपहरण, बलात्कार और गला घोटकर मारने से के खिलाफ  एक विशेष रूप से भयंकर अपराध के विरुद्ध जम्मू हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और कथुआ बार ने "हिंदू लोगों की भावनाओं" को ठेस पहुंचाने के नाम पर एक जबरदस्त प्रतिक्रिया पैदा की है इसने  एक ऐसी घटना पर ध्यान आकर्षित किया जो लंबे समय से वहां चल रही थी लेकिन शायद ही कभी इसे स्वीकार किया। जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय द्वारा गठित और निगरानी में एसआईटी ने इस मामले की जांच की जांच उस वक्त की जब, जब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने चार्जशीट के मुताबिक पैसे के एवज में शुरुआती जांच शुरू कर दी थी। कथुआ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट  चार्जशीट को स्वीकार करने के लिए भी अनिच्छुक थे और जब उनके वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा आदेश जारी किए गया तो वे झुके। इस सम्बन्ध में हिंदू एकता मंच के समर्थकों ने न्यायालय के परिसर में एक दिन का प्रदर्शन किया, जो जम्मू-कश्मीर पुलिस से जांच के नतीजों से नाराज़ थे। कश्मीर में इन प्रदर्शनों के विरुद्ध कोई हिरासत, लाठी चार्ज, आंसू गैस, गोली और छर्रे नहीं चलाये गए। और अब खबर आती है कि अधिकारियों ने सिख अभियोजकों को नियुक्त करने का फैंसला लिया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हिंदू-मुस्लिमों में विभाजन न बढे। दूसरे शब्दों में, 23 जनवरी से आर.एस.एस. समर्थकों एचईएम का गठन किया गया था, इसलिए इस भ्रामक अभियान को चलाने की अनुमति दी गई थी। पुलिस बल अत्याचार और उत्पीड़न का विरोध करने वाले लोगों की ओर उदारता दिखाता है क्योंकि वे ''पीड़ित''  होते हैं लेकिन कट्टर हिंदुत्ववादियों के लिए काम करते हैं।

उच्च न्यायालय और स्थानीय बार ने इस मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग पर तर्क दिया गया कि 8 वर्षीय असिफा की भयावह अपहरण, बलात्कार और हत्या की हिंदू पुलिस कर्मियों द्वारा जांच की जानी चाहिए क्योंकि एसआईटी की विश्वसनीयता संदेह में है और टीम में अधिक मुस्लिम कर्मियों शामिल हैं, एक मुस्लिम पुलिस अधिकारी ने इस जांच का नेतृत्व किया था और इसके बाद आठ आरोपियों पर आरोप लगाया गया था जोकि सभी हिंदू हैं, जिसमें चार पुलिस कर्मी भी शामिल है। उच्च न्यायालय और स्थानीय बार एसोसिएशन उनके भर्त्सनात्मक अभियान, हड़ताल, बंद 'आदि' के लिए जम्मू-भाजपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय पैंथर्स पार्टी के साथ-साथ राज्य में भाजपा के मंत्रियों के संरक्षण का आनंद उठा रह थे। केंद्र, विशेषकर प्रधानमंत्री कार्यालय में जितेंद्र सिंह पीएमओ में मंत्री सीबीआई जांच की मांग को वैधता देने के लिए 22 फरवरी को ब्यान में कहा कि "यदि लोग मानते हैं कि उन्हें पुलिस या अपराध शाखा की जांच में विश्वास नहीं है और इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाए, लगता है कि इस मामले को सीबीआई को सौंपने में कोई समस्या नहीं है? " उल्लेखनीय रूप से, जब चार्जशीट दर्ज की गई तो विरोध  बढा और एसआईटी द्वारा प्रस्तुत सबूत की सत्यता परीक्षण के दौरान निर्धारित की जाएगी। स्क्रोल.इन [12/04/2018] में समर हल्लनकर लिखते हैं, और कहते हैं कि भारत को "एक रंगभेद राज्य, र  हिंदू राष्ट्र की तरफ धकेला जा रहा है जहां हिंदू पहले सब कुछ का दावा करता है"  और जाहिर है ऐसा कर वे कि आपराधिक न्याय प्रणाली से फैंसला अपने हक में चाहते हैं।

निराश 'हिंदुत्ववादियों' ने तिरंगा झंडा लहराते हुए और दुर्व्यवहार से भरपूर और उत्तेजक नारे लगाते हुए, 'गौ माता' या 'भारत माता' के नाम पर क़त्ल करते हैं और '' पीड़ित'' होने के नाम पर आग लगाने, लूट, छेड़छाड़ और यहां तक ​​कि निर्दोष को फंसाने में भी शामिल है, 'संघ परिवार' के छद्म-देशभक्तों द्वारा निर्मित 'सामान्य' कथुआ में हिंदुत्व के इन दिग्गजों ने राष्ट्रीय ध्वज का इस्तेमाल करते हुए अपने अपराधों को छिपाया है जो मुसलमानों को कथुआ जिले से भगा कर  जातीय आधार पर सफाया चाहते हैं, इसे बढ़ावा देने के लिए अपराधियों के पक्ष में आंदोलन कर रहे हैं (जिसमें चार पुलिस कर्मियों को शामिल किया गया था) के खिलाफ जघन्य अपराध का आरोप शामिल है। उनकी हत्याकारी राजनीति, आधिकारिक संरक्षण और ताकत का सबूत है जिसका वे भरपूर फायदा उठाते हैं यह सत्य है कि केंद्र सरकार और उसके सुरक्षा तंत्र अब भी कश्मीर के मुसलमानों पर उंगली उठाते हैं और हिंदुत्ववादियों बरपाए गए खतरे को नजरअंदाज करते हैं, यह दर्शाता है कि धार्मिक कट्टरपंथी भारतीय सरकार के आसरे पर पर ध्यान केंद्रित करता है और हिंदुओं के कट्टरवाद और भारत में जुड़ी हुई गन्दी राजनीति को बढ़ता है विशेष रूप से जम्मू पर।

1947-48 में सत्ता में नेशनल कांफ्रेंस नेतृत्व करने वाले शेख अब्दुल्ला के उद्भव से पहले आरएसएस और अकाली दल द्वारा समर्थित डोगरा महाराजा के सैनिकों द्वारा 1947 में जम्मू के मुस्लिमों का नरसंहार किया गया था, इसके लिए प्रजा परिषद और फिर जनसंघ द्वारा किया गया आंदोलन, डोगरा शासन (1846-19 47) के तहत जिम्मेदार था और पुराने शासक वर्ग के खात्मे के बाद जो कुछ खो गया था, उसे प्राप्त करने के लिए एक छिपी प्रच्छन्न प्रयास था। इस प्रक्रिया में, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक फॉल्ट लाइन को जीवित रखने के लिए "राष्ट्रवादी बल" का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया।

1990 के दशक के मध्य में ये दोषपूर्णताएं बढ़ीं, जब डोडा और किश्तवार में ग्राम रक्षा समितियों की स्थापना हुई थी जिसमें 95 प्रतिशत हिंदुओं को विशेष पुलिस अधिकारियों के रूप में बजरंग दल और शिवसेना से शामिल किया गया। वे अभी भी काम करते हैं और अपने पास खुले हथियार रखते हैं। अगर हम पूरे जम्मू और कश्मीर डिवीजन को एकबार भूल जाए तो इसे "अशांति" घोषित किया गया है, जिसमें एएफएसपीए और पुलिस बल के तहत सैनिकों को प्रदान की जाने वाली असाधारण शक्तियां हैं। कथुआ मामले में दाखिल आरोप पत्र में मुसलमानों को कथुआ से खदेड़ने के लिए आतंकित करने के अपराध की बात है, जो एक "अशांत" क्षेत्र में असाधारण कानूनों को आमंत्रित करता है।

2008 में भी, जम्मू ने खुद को पीछे छोड़ते हुए उसने न केवल नेशनल हाइवे के किसी भी व्यक्ति पर लक्षित आर्थिक बंधन (अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के तहत युद्ध का कार्य) लगाए, और कश्मीरी मुसलमानों के प्रति नफरत और शत्रुता को बढ़ावा दिया। वे कश्मीरी मुस्लिम होने पर उनपर संदेह करते हैं। और, हिंदुत्ववादियों ने राष्ट्रीय झंडे को हाथ में लेकर बनाये अपराध किये और उन्हें कुछ नहीं हुआ। हम केवल भूल जाते हैं कि 2008 में लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एस के सिन्हा और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के लिए एकमात्र मानदंड, जम्मू "राष्ट्रवादी" होना और घाटी में एक "राष्ट्रविरोधी" के रूप में होना था, क्योंकि जम्मू में "आंदोलनकारी राष्ट्रीय झंडा उठाते हैं और " जबकि कश्मीर में "वे पाकिस्तानी (वास्तव में वे हरे रंग की) हैं का झंडा उठाते हैं।" तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने कहा कि सुरक्षा बल कश्मीर में आंदोलनकर्ताओं द्वारा भारतीय फ्लैग का  दुर्व्यवहार स्वीकार नहीं कर सकते हैं। सुरक्षा बलों की भावनाएं को और न ही सरकार की बह्व्नाओं को जाहिरा तौर पर "चोट लगी है" जब बलात्कार, दंड और लूट की जाती है और वह तब जब यज कृत्या तिरंगा खानदा उठाने वाले अपराधियों द्वारा किया जाता है। तो हिंदुओं को सूक्ष्म संदेश यह है कि यदि वे "राष्ट्रवाद" के नाम पर किए गए जघन्य अपराधों को करें और अगर वे तिरंगा उठाते हैं तो उनके सारे पाप धुल जायेंगे। अफसोस की बात है कि, तिरंगा के इस विघटन को कोई भी समझ नहीं पाया है। एक बड़ा ही आश्चर्य है कि जो 'संघ परिवार' हमेशा तिरंगा का मज़ाक उड़ाता रहा है और राष्ट्रीय ध्वज के रूप में भगवा रंग की मांग करता रहा है वह चाहता है कि लोग अब लोगों को आतंकित करने के लिए तिरंगा ध्वज उठायें और अपने रैंक और फाइल को इसके लिए प्रोत्साहित करता है, जबकि वे तिरंगे को कभी भी नहीं चाहते थे यह जनता को तोड़ने का एक चतुर तरीका है? मुझे आश्चर्य है

2008 में भी, अधिकारियों ने हिंदुत्व समूहों के आंदोलन का सामना काफी धेर्य से किया है। सुरक्षा बल हमेशा दावा करते हैं कि वे उत्तेजना के पैमाने के अनुसार बल का उपयोग करते हैं। वे क्या नहीं कहते कि जब वे कश्मीर में प्रदर्शनकारी नागरिकों पर जीवित बुलेट और छर्रों का इस्तेमाल करते हैं, तो वे जम्मू में दंगाइयों को बड़े प्यार से संभालते हैं। ध्यान रहे कि हिन्दू एकता मंच के नेताओं में से कोई भी लोक आदेश की अवज्ञा में गिरफ्तार नहीं हुआ है और स्पष्ट रूप से न्याय के रास्ते पर रोक लगाने का लक्ष्य रखता है। वे उग्र प्रदर्शन करते हैं जो अपनी  गिरफ्तारी को आमंत्रित करते थे। कश्मीर के साथ यह विपरीत स्थिति है जहाँ, एक छोटी से घटना पर कश्मीरी प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया जाता है, या गोलियों, छर्रे, आंसू गैस, लाठीचार्ज, हिरासत, या अत्याचार किया जाता है, और खतरे में पडी सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के नाम पर अत्याचार किया जाता है। इस पक्षपात के चलते जम्मू में क्या हो रहा है, इसके बारे में कुछ भी आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए, जहां हिंदुत्ववादियों के पास कुछ भी करके लाइसेंस है।

तो बात यह है कि हम इनकार की स्थिति में रहना जारी रखे हुए हैं और नाटक करते हैं कि जम्मू-कश्मीर में भारत का सामना करने वाली समस्या पाकिस्तान से प्रेरित मुसलमानों का कट्टरपंथ है, जबकि हमें हिंदुत्व के बढ़ते आकार में हमारे बीच से राक्षस को बार-बार याद दिलाया जाता है। यह आधिकारिक रूप से एक 'दुःस्वप्न' है जो कि भारत की सच्ची तस्वीर है, जिसे ऐसा बनने में लंबे समय लगा है। तो हमारे पास दोषारोपण के लिए और कोई नहीं बचा है, लेकिन खुद को बहुत ज्यादा लंबे समय तक इस की अनदेखी करने के लिए खुद को जिम्मेदार मानना है। अब जब यह सब 'नग्न महिमा' को देखने के लिए सबके सामने है, तो यह समय है कि हम उने बिंदुओं को जोड़े और वास्तविकता को देखें कि इसे किस तरह से ढला जा रहा है।

 

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