NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
मुश्किलों से जूझ रहे किसानों का भारत बंद आज
किसान पिछले साल से ही, मोदी सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृषि क़ानूनों को वापस कराने का संघर्ष लड़ रहे हैं।
सुबोध वर्मा
27 Sep 2021
Translated by महेश कुमार
 Farmers
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: PTI

हाल ही में प्रकाशित एक सरकारी सर्वेक्षण रिपोर्ट ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भारत में खेती अत्यधिक मुनाफ़ाविहीन हो गई है, देश में फसल उत्पादन से होने वाली किसानों की मासिक आय का अनुमान केवल 3221 रुपये ही बैठता है। 16 राज्यों के किसान तो इस औसत से भी कम कमाते हैं। इस स्थिति ने अधिकतर किसानों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों को मजदूरी या छोटे गैर-कृषि कार्य करके अपनी आय को पूरा करने पर मजबूर कर दिया है। इसका एक और गमगीन पहलू ये है किसान कर्ज़ की खाई में डूब रहे हैं - रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के आधे से ज्यादा किसान गहरे कर्ज़ में धसे हुए हैं।

इन बुरे हालात में, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा इन कानूनों को आगे बढ़ाने की हठ से किसानों की आय को और कम हो जाएगी और किसानों को कॉर्पोरेट घरानों की गुलामी करने पर मजबूर करेगी, जो स्वाभाविक रूप से आज इतने व्यापक विरोध का कारण बना हुआ है। वैकल्पिक नीतियों की मांगों को लेकर सरकार से भिड़ने के लिए किसान, श्रमिकों और कर्मचारी एकजुट हो हैं। संघर्षों और हड़तालों की इस जंग को आगे बढ़ाने के लिए 400 से अधिक किसान संगठन और दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के एक शक्तिशाली गठबंधन ने 27 सितंबर को 'भारत बंद' या आम हड़ताल का फ़ैसला लिया है।

एक किसान कितना कमाता है?

पिछले एक साल से किसान 'काले कृषि क़ानूनों' की वापसी की अपनी लड़ाई को जारी रखते हुए दमन और कठोर गर्मी और सर्दी को झेल रहे हैं, जबकि सरकार या सत्ताधारी पार्टी के नेता और सरकार के समर्थक बुद्धिजीवी यह दिखाने की कोशिश करते रहे हैं कि किसान इतनी भी बुरी स्थिति में नहीं हैं जितना कि दर्शाया जा रहा है, और यह कि केवल कुछ निहित स्वार्थ हैं जो उनके संघर्ष की आग को भड़का रहे हैं।

केंद्र सरकार के तहत काम करने वाला राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी कर इस मिथक को तोड़ दिया है। 2018-19 में किए गया यह सर्वेक्षण विभिन्न राज्यों में फसल उत्पादन से किसानों को मिले लाभ या कमाई की तस्वीर पेश करता है, नीचे दिए गए चार्ट को गौर से देखें। 

सात छोटे उत्तर-पूर्वी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्पष्टता न होने के मद्देनजर चार्ट में शामिल नहीं किया गया है। केवल पंजाब और कुछ हद तक हरियाणा ने किसानों की आय की जानकारी दी जो आय न्यूनतम मजदूरी के स्तर की मानी जाएगी। बाकी राज्यों में जीने लायक कमाई मानी जाएगी, अन्य कुछ सबसे गरीब राज्यों जैसे कि झारखंड, ओडिशा बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और अन्य की कमाई मुश्किल से 3000 रुपये प्रति माह तक ही पहुंचती है। 

ये औसत मासिक आय हैं, जिनकी गणना कुल प्राप्तियों में से फसल उत्पादन पर होने वाले खर्च को घटाकर की जाती है। इस खर्च में (जैसे बीज, उर्वरक, श्रम, आदि) के साथ-साथ अन्य आने वाले खर्च (जैसे पारिवारिक श्रम, ऋण पर ब्याज आदि) पर किया गया भुगतान शामिल हैं। चूंकि ये वार्षिक औसत हैं, इसलिए ये किसानों द्वारा की जाने वाली पूरे वर्ष के सभी फसल के चक्रों को कवर करते हैं।

एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि किसान कितनी जमीन जोत रहा है, उसके आधार पर आय में तेजी से अंतर होता है। 83 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, यानी वे दो हेक्टेयर से कम भूमि पर काम करते हैं, जिसमें 70 प्रतिशत से अधिक के पास एक हेक्टेयर से भी कम ज़मीन है। उनकी आय उन लोगों की तुलना में बहुत कम है जिनके पास बड़ी जोत है। ये औसत, हमेशा की तरह, अभाव के बहुत गहरे स्तर को छिपाते नज़र आते हैं।

यहां इस बात पर भी जोर देने की जरूरत है कि पंजाब और हरियाणा में भी, किसानों की आय का स्तर बहुत कम है, हालांकि उनकी आय गरीब राज्यों की तुलना में बहुत अधिक हैं। इस प्रकार, पंजाब में लगभग 15,000 रुपये प्रति माह या हरियाणा में 10,000 रुपये प्रति माह इन राज्यों में मिल रहे अकुशल औद्योगिक श्रमिकों या अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के न्यूनतम वेतन के स्तर के बराबर है। सरकार के खुद के सातवें वेतन आयोग ने 2016 में सिफारिश की थी कि उसके सबसे कम वेतन वाले कर्मचारियों को न्यूनतम 18,000 रुपये प्रति माह मिलना चाहिए।

यही कारण है कि किसान अपनी उपज़ के लिए बेहतर पारिश्रमिक मूल्य की मांग कर रहे हैं, जिसका अर्थ है कि सरकार को एक समर्थन मूल्य तय करने की जरूरत है जो उन्हें सभी खर्चों को पूरा करने के बाद एक अच्छा लाभ दे सके। 2004 में एमएस स्वामीनाथन के नेतृत्व वाले किसान आयोग द्वारा इस तरह के एक फार्मूले की सिफारिश की गई थी, लेकिन इसे अभी तक सख्ती से लागू नहीं किया गया है।

तो, किसान कैसे गुज़ारा कर रहे हैं?

तब इससे जो स्पष्ट प्रश्न उठता है, वह यह है कि भारत में किसान इतनी कम कमाई के साथ कैसे गुज़ारा करते रहे हैं? एनएसएस रिपोर्ट इस प्रश्न का भी उत्तर दे देती है - परिवार अपनी खेती की आय को अन्य गैर-कृषि काम करने पूरा करने की कोशिश करते हैं। 

देश में औसतन, कृषि पर निर्भर एक परिवार वास्तव में अपनी आय का केवल 37 प्रतिशत फसल उत्पादन या खेती से हासिल कर रहा है, जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है। इसकी आय का बड़ा हिस्सा - कुल मिलाकर 48 प्रतिशत - मजदूरी के जरिए हासिल होता है। इसमें मजदूरी कमाने के लिए दूसरों के खेतों में काम करना भी शामिल है।

लगभग 5 प्रतिशत आय खेती में लगे पशुओं/जानवरों से होती है और 8 प्रतिशत कुछ गैर-कृषि व्यवसाय जैसे खुदरा दुकानों आदि से होती है।

जो यह दिखाता है उसके मुताबिक यह एक ऐसी प्रणाली है जो अपने आखिरी पैरों पर लड़खड़ा रही है। चूंकि बड़े पैमाने पर बेरोजगारी है, इसलिए गैर-कृषि कार्यों जैसे औद्योगिक या सेवा क्षेत्रों में नौकरियों से पर्याप्त आय कमाने की बहुत अधिक गुंजाइश भी नहीं है। यह स्थिति अधिक से अधिक लोगों को कम और कम आय वाले कृषि में काम करने पर मजबूर करती है। यह गरीबी और दुखों बोझ टूटना है।

बढ़ता क़र्ज़ 

चूंकि इस प्रकार की आय के समर्थन से नियमित कृषि के काम को अंजाम देना असंभव है, इसलिए किसान ज़िंदा रहने के लिए कर्ज़ पर निर्भर रहने को मजबूर हो गए हैं। एनएसएस रिपोर्ट, कहानी के इस हिस्से को भी उज़ागर करती है: वर्तमान में करीब 50 प्रतिशत से अधिक किसान कर्जदार हैं, और प्रति परिवार पर औसत कर्ज 74,121 रुपये है। हमेशा की तरह, ये औसत भी कहीं अधिक गंभीर तस्वीर को छिपाते हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा जैसे तथाकथित अधिक समृद्ध कृषि प्रधान राज्यों में, प्रत्येक कृषि परिवार द्वारा लिया गया औसत बकाया कर्ज़ 2 लाख रुपये और 1.8 लाख रुपये तक का है। प्रति किसान परिवार उच्च औसत कर्ज वाले अन्य राज्य तमिलनाडु (1 लाख रुपये), राजस्थान (1.13 लाख रुपये), कर्नाटक (1.26 लाख रुपये) और केरल (2.4 लाख रुपये) हैं।

इसी तरह, कुछ राज्यों में बहुत अधिक ऋणग्रस्तता है: जैसे कि आंध्र प्रदेश में 93 प्रतिशत किसान कर्जदार हैं, तेलंगाना में लगभग 92 प्रतिशत, कर्नाटक में 68 प्रतिशत और तमिलनाडु में 65 प्रतिशत किसान कर्जे में हैं। संयोग से, यह उस लोकप्रिय मिथक को तोड़ देता है कि किसान केवल कुछ राज्यों में संकट में हैं, और किसान आंदोलन केवल उन तक ही सीमित है। दरअसल देश में हर जगह किसान संकट में हैं।

नए कृषि क़ानून घातक साबित होंगे

मोदी सरकार ने पूरे कृषि क्षेत्र को घरेलू और विदेशी दोनों कॉर्पोरेट संस्थाओं को सौंपकर इस संकट के 'समाधान' का रास्ता ख़ोजा है। नए कानून, निजी व्यापारिक घरानों को यह तय करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे कि आखिर किसान क्या बोएंगे, वे अपनी उपज कहाँ बेचेंगे, किस कीमत पर इसे खरीदा जाएगा, व्यापारियों द्वारा कितना स्टॉक या निर्यात किया जाएगा, और यहाँ तक कि इन व्यवसायों की कीमतें भी उपभोक्ताओं से वही वसूलेंगे। न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं होगी। दरअसल, सरकारी खरीद की कोई गारंटी नहीं होगी, जिसका मतलब है कि राशन कार्ड प्रणाली तबाह हो जाएगी। संक्षेप में, यह एक भयावह नीति है जो आम लोगों के बड़े हिस्से को बड़े पैमाने की गरीबी और कर्ज़ में धकेल देगी।

इस प्रकार आज 27 सितंबर का भारत बंद देश के मेहनतकश लोगों को कॉरपोरेट घरानों की गुलामी से बचाने का एक ऐतिहासिक संघर्ष है।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Ground Down by Hardship, Farmers Ready for Historic Bandh on Sept 27

farmers protest
Farm Laws
Farmers Earnings
Farm Debt
minimum support price
Labour Laws
Bharat Bandh

Related Stories

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

देशव्यापी हड़ताल: दिल्ली में भी देखने को मिला व्यापक असर

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ भारत बंद का दिखा दम !

क्यों मिला मजदूरों की हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा का समर्थन

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

ख़बर भी-नज़र भी: किसानों ने कहा- गो बैक मोदी!

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

2021 : जन प्रतिरोध और जीत का साल


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    बीमार लालू फिर निशाने पर क्यों, दो दलित प्रोफेसरों पर हिन्दुत्व का कोप
    21 May 2022
    पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद और उनके परिवार के दर्जन भर से अधिक ठिकानों पर सीबीआई छापेमारी का राजनीतिक निहितार्थ क्य है? दिल्ली के दो लोगों ने अपनी धार्मिक भावना को ठेस लगने की शिकायत की और दिल्ली…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी पर फेसबुक पर टिप्पणी के मामले में डीयू के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को ज़मानत मिली
    21 May 2022
    अदालत ने लाल को 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही जमानत राशि जमा करने पर राहत दी।
  • सोनिया यादव
    यूपी: बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच करोड़ों की दवाएं बेकार, कौन है ज़िम्मेदार?
    21 May 2022
    प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक खुद औचक निरीक्षण कर राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। हाल ही में मंत्री जी एक सरकारी दवा गोदाम पहुंचें, जहां उन्होंने 16.40 करोड़…
  • असद रिज़वी
    उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव का समीकरण
    21 May 2022
    भारत निर्वाचन आयोग राज्यसभा सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा  करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश समेत 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों के लिए 10 जून को मतदान होना है। मतदान 10 जून को…
  • सुभाष गाताडे
    अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !
    21 May 2022
    ‘धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं। वे हमारे रास्ते के रोड़े साबित हुए हैं। और उनसे हमें हर हाल में छुटकारा पा लेना चाहिए। जो चीज़ आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License