NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
 पाप चुनाव लड़ना नहीं, पाप अपनी सरकारी नौकरी को चुनावी अभियान में बदल देना है गुप्तेश्वर बाबू!
गुप्तेश्वर पांडेय का पूरा मामला एक सीनियर पुलिस अधिकारी द्वारा अपनी नौकरी के जरिये अपने राजनीतिक कैरियर को चमकाने और फिर नौकरी से महज पांच महीने पहले वीआरएस लेकर चुनावी तैयारी करने का है।
पुष्यमित्र
24 Sep 2020
gp

"जिनके खिलाफ कई मुकदमे हैं जब वह चुनाव लड़ सकता है तो एक किसान का बेटा क्यों नहीं लड़ सकता जिसका 34 साल का कैरियर बेदाग हो। चुनाव लड़ना कोई पाप है क्या? अनैतिक है क्या? असंवैधानिक है क्या?"

ये बातें मंगलवार 22 सितंबर, 2020 तक बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडेय ने बुधवार की शाम लंबे फेसबुक लाइव के दौरान अपनी कहानी सुनाते हुए कहीं। उन्होंने 22 सितंबर को ही वीआरएस के लिए आवेदन किया था और देर शाम उनका आवेदन स्वीकृत भी हो गया।

यह एक रेयर मामला था, क्योंकि अमूमन सरकारी सेवा से वीआरएस लेने वाले अधिकारियों और कर्मियों को आवेदन स्वीकृति के लिए तीन माह तक इंतजार करना पड़ता है। इस दौरान उसके आवेदन की स्क्रूटनी की जाती है। यह पता लगाया जाता है कि आखिर वे वीआरएस लेकर क्या करना चाहते हैं। मगर पांडेय जी का मामला रेयर ऑफ द रेयरेस्ट साबित हुआ और 24 घंटे से पहले ही उन्हें वीआरएस मिल गया।

उनके वीआरएस का यह मामला कई तरह से रेयर ऑफ द रेयरेस्ट रहा। अभी उनकी नौकरी के सिर्फ पांच महीने बचे थे। जो व्यक्ति पांच महीने बाद रिटायर होने वाला था वह भला स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति क्यों ले? इसके जवाब में बुधवार की फेसबुक लाइव में गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि उनकी निष्पक्षता पर संदेह किया जा रहा था, इसलिए उन्हें यह कदम उठाना पड़ा। वैसे निष्पक्षता पर संदेह होने या आरोप लगने की स्थिति में इस्तीफे की परंपरा रही है, वीआरएस की परंपरा नहीं।

मगर गुप्तेश्वर पांडेय संभवतः वीआरएस की पंरपरा को मानने वालों में से हैं। 2009 में भी उन्होंने वीआरएस लिया था और वे नौ महीने से अधिक अपनी नौकरी से दूर रहे थे। इस दौरान वे राजनीति में किस्मत आजमाते रहे, मगर उन्हें टिकट नहीं मिला। नौ महीने बाद उन्होंने सरकार से फिर आवेदन किया कि उन्हें सेवा वापसी का मौका दें। सरकार ने उन्हें यह मौका झटपट दे दिया।

दो-दो बार वीआरएस लेना, वीआरएस लेकर फिर सेवा में वापसी करना, एक दिन के आवेदन पर वीआरएस मिल जाना। रिटायरमेंट से महज पांच महीने पहले वीआरएस मिल जाना। वीआरएस के दूसरे आवेदन पर पहले मामले का विचार नहीं करना। ऐसे संयोग अमूमन किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी के साथ नहीं होते। मगर बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को यह सुविधा सरकार मिली।

और ऐसा हर कोई मानकर चल रहा है कि गुप्तेश्वर पांडेय को यह सुविधा इसलिए मिली कि वे सत्ताधारी दल से चुनाव लड़ना चाह रहे हैं। अपने फेसबुक लाइव में भी उन्होंने इस संभावना से इनकार नहीं किया, सच तो यह है कि वे इसके पक्ष में माहौल बनाते ही नजर आये। हालांकि उन्होंने यह कहा कि उनका मूल मकसद समाजसेवा करना है।

2009 में जब उन्होंने वीआरएस लिया था तो उस वक्त भी वे चुनाव ही लड़ना चाहते थे। उन्होंने एक साक्षात्कार में यह स्वीकार भी किया कि वे चुनाव लड़ना चाहते थे, मगर बीजेपी से नहीं। इस बार भी उनके बाल्मिकीनगर लोकसभा उपचुनाव में जदयू की तरफ से खड़े होने की संभावना जतायी जा रही है। हालांकि बक्सर के विधानसभा सीट से भी उनके खड़े होने की खबर है। ऐसे में यह सवाल बहुत वाजिब है कि क्या किसी अधिकारी के चुनावी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए सरकारी तंत्र उस पर इतना मेहरबान हो सकता है।

उन पर आरोप है कि 2009 से राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले गुप्तेश्वर पांडेय ने अपनी पिछले दस साल की नौकरी लगभग इसी तरह की कि जिससे वे अपना राजनीतिक कैरियर स्थापित कर सकें। नीतीश कुमार की सरकार द्वारा शराबबंदी लागू किये जाने के बाद वे सोशल पुलिसिंग के जरिये इस अभियान का प्रचार प्रसार करते रहे।

हालांकि यह कानूनन बिल्कुल सही है, मगर वे इन अभियानों में किसी पुलिस अधिकारी या किसी सामाजिक कार्यकर्ता से अधिक किसी राजनेता की तरह पेश आते थे। पिछले साल जब वे बिहार के डीजीपी बने तब से उन्होंने इस अभियान के अलावा लगातार ऐसे बयान दिये और करतबें की कि मीडिया में उनकी छवि एक दबंग पुलिस प्रशासक के रूप में बने।

एक बार तो वे एक केस सुलझाने के चक्कर में नदी में भी कूद गये, जबकि उसकी कोई जरूरत नहीं थी। उनके वीआरएस से ठीक पहले इंडियन आयडल फेम गायक दीपक ठाकुर ने  उनके साथ उनके दबंग पुलिस अधिकारी की छवि को लेकर एक म्यूजिकल वीडियो भी तैयार किया।

डीजीपी बनने के साथ ही उन्होंने मीडिया में अपनी छवि चमकाने की ऐसी कोशिशें शुरू कर दीं कि खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन्हें नसीहत देनी पड़ी- डीजीपी साहब, मीडिया के लाइमलाइट से बचकर रहिये। आजकल आप फ्रंट पेज पर बने हुए हैं। लेकिन याद रखिये यही मीडिया एक दिन फ्रंट पेज पर चढ़ाती है तो बाद में ध्वस्त भी कर देती है।

हालांकि इस नसीहत के बावजूद गुप्तेश्वर पांडेय अमूमन हर हफ्ते किसी न किसी सामाजिक या अन्य आयोजनों में मुख्य अतिथि या विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होते और अलग-अलग शहरों में जाकर पत्रकारों को इंटरव्यू देते। उनका फेसबुक पर अपना पेज है, जिस पर उनके आयोजनों की लाइव प्रस्तुति होती रही है।

अपनी नौकरी के आखिरी दिनों में उन्होंने अभिनेता सुशांत सिंह की मृत्यु के मामले में इसे बिहार के प्राइड से जोड़ना शुरू कर दिया और पोलिटिकल बयान देने लगे। उन्होंने अभिनेत्री रिया से यह भी कह दिया कि नीतीश जी पर आरोप लगाने की उसकी औकात नहीं है।

हालांकि उनके पूरे कार्यकाल में बिहार में लगातार आपराधिक घटनाएं होती रहीं। बैंक लूट की घटनाएं आम हो गयीं। यहां तक कि राजधानी पटना में बिहार पुलिस के सिपाहियों को शराब माफिया ने घेर कर पीटा। वे इन तमाम घटनाओं पर रोक लगाने में विफल रहे। वे खुद अपनी ही पुलिस के खिलाफ बयान जारी करते रहे। मगर अब वे अपने कार्यकाल को राम राज्य बता रहे हैं।

इस तरह देखें तो गुप्तेश्वर पांडेय का पूरा मामला एक सीनियर पुलिस अधिकारी द्वारा अपनी नौकरी के जरिये अपने राजनीतिक कैरियर को चमकाने और फिर नौकरी से महज पांच महीने पहले वीआरएस लेकर चुनावी तैयारी करने का है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में बिहार सरकार द्वारा उन्हें निर्वाध सहयोग मिलता रहा। जब और जिन शर्तों पर उन्हें वीआरएस चाहिए था, वह मिला। जब उन्होंने चाहा फिर से सेवा में वापसी की।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं)

gupteshwar pandey
gupteshwar pandey and election
gupteshwar pandey retirement
gupteshwar pandey and bihar election

Related Stories


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License