NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
हाशिये से आदिम जनजाति समाज की हुंकार : सुविधा नहीं तो वोट नहीं!
झारखंड के संथाल परगना स्थित दुमका ज़िले के पहाड़िया आदिम जनजाति बाहुल्य इलाके के अधिकांश लोग उनके नाम पर चलायी जा रही सरकारी सुविधाओं से लगातार वंचित हैं।
अनिल अंशुमन
15 Mar 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Hindustan

वर्तमान के चुनावी मौसम में... प्रचार के हर संभव माध्यमों से ये बात जितनी भी चीख चीख कर फैलायी जाय कि “नामुमकिन अब मुमकिन है ....!” लेकिन झारखंड प्रदेश के आदिम जन जातियों की अमानवीय जीवन स्थितियों को बदलने के संदर्भ में तो कहीं भी नहीं ही दीखता। जो अबतक की सभी सरकारों और विशेषकर वर्तमान सरकार के ‘अच्छे दिनी’ शासन के उपेक्षापूर्ण रवैये से हताश और क्षुब्ध होकर कह रहीं हैं कि – अबकी बार, सुविधा नहीं तो वोट नहीं!

झारखंड प्रदेश के संथाल परगना स्थित दुमका ज़िले के पहाड़िया आदिम जनजाति बाहुल्य इलाके के अधिकांश लोग उनके नाम पर चलायी जा रही सरकारी सुविधाओं से लगातार वंचित हैं। ग्रामीण पेंशन, राशन कार्ड, पहाड़ पर अनाज पहुंचाने वाली ‘डाकिया सेवा’, बिरसा आवास, प्रधानमंत्री आवास तथा उज्ज्वला योजना इत्यादि किसी भी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिससे कई परिवारों को जीवन यापन के घोर संकटों का सामना करना पड़ रहा है। 5 मार्च को खरौनी बाज़ार पंचायत के नामोडीह में ‘सिद्धो–कान्हु सामाजिक एकता मंच’ के बैनर तले जुटे सैकड़ों पहाड़िया समुदाय लोगों ने ये फैसला लिया है कि सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं दिये जाने के सवाल पर धरना–प्रदर्शन–रैली से लेकर 2019 के संसदीय चुनाव में “वोट बहिष्कार” करेंगे।  

आ ज जा 1.PNG

निस्संदेह हमारी लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में लोकतन्त्र के महापर्व के समय इनका ‘वोट बहिष्कार’ कुछ उचित नहीं लगता। लेकिन सवाल है कि ऐसी स्थिति आखिर क्यों बनी? आज सरकार और चुनाव आयोग द्वारा पूरे ज़ोर शोर से चलाये जा रहे प्रचार के जरिये लोगों से मतदान प्रक्रिया में अधिक से अधिक शामिल होने की अपील की जा रही है। ऐसे में जब लोग वोट नहीं देने की घोषणा कर रहे हैं तो कहीं न कहीं से मामला विचारणीय हो जाता है। विशेषकर जब यह देश की आदिम जनजाति समुदाय के लोगों से जुड़ा हो तो गंभीर के साथ साथ संवेदनशील भी हो जाता है, क्योंकि इनके विशेष संरक्षण और विकास के लिए हमारे संविधान में सरकार और उसके शासन–प्रशासन के लिए कई विशेष दायित्व सुनिश्चित किए गए हैं।

विडम्बना है कि दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों और कुछेक मैदानी इलाकों में निवास करनेवाली आदिम जनजातियाँ आज सरकार और प्रशासनिक असंवेदनशीलता-उपेक्षा से विलुप्ति की कगार पहुँचतीं जा रही हैं। जिनके संरक्षण और विकास के सारे ज़रूरी कार्य ठप से हैं और अगर कहीं कुछ हो भी रहा है तो वह फंड के बंदरबाँट व रस्म अदायगी मात्र के लिए।

साभार सोशल साईट.jpg

झारखंड में तो ये स्थिति और भी गंभीर बनी हुई है। जहां वर्तमान सरकार के ‘सबसे तेज़ विकास’ के सभी दावा–दलीलों के बावजूद प्रदेश में निवास करनेवाली पहाड़िया समेत अन्य सभी आदिम जनजातियाँ भयावह अस्तित्व संकटों का सामना कर रहीं हैं। जिनके आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य की नित गहराती समस्याओं से लेकर जीवकोपार्जन के लिए रोजगार व कृषि इत्यादी ज़रूरी बुनियादी मसले सरकार की प्राथमिकता के एजेंडे में ही नहीं हैं। यहाँ तक कि सरकार की ओर से निर्धारित अनाज भी सही ढंग से नहीं मिलने के कारण पिछले वर्ष कुछ लोग भूख से मौत का शिकार भी हो चुके हैं। जिस पर गंभीर होने की बजाय सरकार ने ‘बीमारी से मौत’ कहकर मामला ही रफा दफा कर दिया। साल के बारहों महीने पीने का स्वच्छ पानी तक नहीं मिल पाने की खबर अक्सर सुर्खियों में आतीं रहतीं हैं लेकिन कहीं कोई संज्ञान नहीं लिया जाता। इन आदिम जनजातियों के जीवन और उनके बसावट क्षेत्रों को बाहरी हस्तक्षेप रोकने के सभी संवैधानिक व कानूनी प्रावधानों को धता बताकर तथाकथित विकास का बुलडोजर चलाने में वर्तमान सरकार ही सबसे अधिक तत्पर दिख रही है। आज तक स्थायी निवास हेतु आवश्यक वन–भूमि का पट्टा नहीं दिये जाने के कारण सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान फैसले से इनकी एक बड़ी आबादी के उजड़ने का खतरा पैदा हो गया है।

वर्तमान सरकार के सुशासन में देश की आदिम जनजातियाँ कबतक और कितनी सुरक्षित-संरक्षित रह पाएँगी, इसका नमूना सरकार द्वारा इनके विकास की बजट राशि में की जा रही कटौती से ही पता चलता है। वर्ष 2016–17 के मुक़ाबले 2017–18 में 35.5% की कटौती की जा चुकी है। दूसरा और सबसे अहम पहलू ये है कि वर्तमान डिजिटल इंडिया विकास की जिस हाइटेक रेस में पूरे देश-समाज को धकेला जा रहा है, उसकी सबसे अधिक क़ीमत आदिवासी व किसानों के साथ साथ आदिम जन जातियों को ही चुकानी पड़ रही है। क्योंकि इस विकास के नाम पर खनन का बुलडोजर सबसे अधिक उन्हीं इलाकों में चलाया जा है जहां इनका आज भी मुख्य निवास है। आंकड़े बताते हैं कि इससे पूर्व में ऐसे ही विकास से हुए भयावह विस्थापन और पलायान ने कैसे इनकी विशाल आबादी के अस्तित्व को आज इतिहास बना डाला है। आज फिर इनके निवास के बचे खुचे जंगल क्षेत्र और वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों व खनिज पर देश–विदेश की अनेकों बड़ी निजी–कॉर्पोरेट कंपनियों व मुनाफाखोर घरानों की गिद्ध नज़रें लगीं हुईं हैं । जिसे संभव बनाने में जब वर्तमान सरकार ही हर नियम और क़ायदों को ध्वस्त करने की जी तोड़ कवायद में लगी हुई है तो ऐसे में इनके अस्तित्व के बचाव का रास्ता क्या होगा ? यह बेहद विचारणीय है!

Jharkhand
Raghubar Das
Narendra modi
BJP government
tribal communities
General elections2019
2019 आम चुनाव

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस से लेकर पंजाब के नए राजनीतिक युग तक

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License