NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
हिमाचल प्रदेश : खेती में अलग तरह का बदलाव बना चिंता का कारण
राज्य में कैंसर के रोगियों में बढ़ोतरी को विभिन्न कारणों से जोड़ा जा सकता है, जिसमें ‘सिंथेटिक कीटनाशकों' (फूंगी और कीट का नाश करने वाला केमिकल) का इस्तेमाल प्रमुख कारण माना जा सकता है।
टिकेंदर सिंह पंवार
06 Nov 2019
Translated by महेश कुमार
himachal
Representational image. | Image Courtesy: Economic Times

हिमाचल प्रदेश, जिसे उसकी प्राचीन प्राकृतिक ख़ूबसूरती, स्वच्छ हवा, बेहतर जलवायु, सेब, पर्यटन आदि के लिए जाना जाता है, वह अब कृषि और बाग़वानी के भीतर आए भारी बदलाव के दौर से गुज़र रहा है। "यह" बदलाव पारंपरिक अनाज और आलू से सेब की बढ़ती अर्थव्यवस्था और अब मुख्य रूप से "ऑफ़ सीज़न सब्ज़ियों" के कृषि-पैटर्न में आए बदलाव से संबंधित नहीं हैं; बल्कि यह बदलाव लगभग 2-3 दशक पुराना है। अब जो बदलाव आ रहा है, वह इस पहले बदलाव के प्रभाव का ही नतीजा है, जो राज्य में "घातक कैंसर के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी" का सबब बन रहा है।

राज्य में कैंसर के रोगियों में हुई बढ़ोतरी के विभिन्न कारण हो सकते हैं, लेकिन 'सिंथेटिक कीटनाशकों' (फूंगी और कीट का नाश करने वाला केमिकल) के प्रमुख इस्तेमाल को मुख्य दोषी माना जा सकता है। इसलिए, मेडिकल कॉलेजों, हिमाचल विश्वविद्यालय के जीव रसायन विभाग, बाग़वानी विश्वविद्यालय और वानिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और उन्हीं की बिरादरी के अन्य महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों को एकजुट कर इस पर एक संयुक्त शोध होना चाहिए। कम से कम यह जानने के लिए कि राज्य एक गहरे संकट के कगार पर खड़ा है जहां हर साल 5,000 से अधिक कैंसर के नए मामले सामने आते हैं और समान संख्या ऐसी भी है जिनको पता ही नहीं चलता है कि वे कैंसर से पीड़ित हैं। हिमाचल जैसे छोटे राज्य के लिए, यह चिंताजनक विषय है!

ठियोग: ग़ैर-मौसम की सब्ज़ियों का चलन 

ठियोग एक ऐसा क्षेत्र है जो पारंपरिक कृषि से ग़ैर-मौसम की सब्ज़ियों की फसल करने की तरफ़ तेज़ी से बढ़ा है। यह एशिया में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति सब्ज़ियाँ उगाने वाला क्षेत्र माना जाता है। यह शिमला ज़िले का एक उपखंड है। यह न केवल सबसे अधिक सब्ज़ी उगाने वाला क्षेत्र है, बल्कि यहाँ बीज के साथ-साथ उर्वरकों और कीटनाशकों की भी सबसे अधिक खपत होती है।

सुमन कुमारी (34 वर्ष), रंजना (33 वर्ष) और ज्योति (17 वर्ष) (सबके नाम बदले गए हैं जिनकी उम्र समान है); पिछले दो वर्षों में इन लड़कियों की मृत्यु हो गई है। ये लड़कियां ठियोग में एक ही समीपवर्ती क्षेत्र से संबंधित थे और गैस-आंत की भयानक (पाचन तंत्र को प्रभावित करने वाली बीमारी) बीमारी से पीड़ित थी। इसी तरह उस क्षेत्र ऐसे बहुत सारे केस हैं सामने आए हैं जो कैंसर की वजह से मारे गए हैं।

इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) के रेडियोथेरेपी विभाग, शिमला से एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि इन सभी वर्षों में इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। यहाँ यह भी उल्लेख करना बेहतर होगा कि उपरोक्त मामले (तीन लड़कियों वाले) आईजीएमसी के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हैं क्योंकि कैंसर का पता चलने के बाद, शिमला में इलाज करने के बजाय वे राज्य के बाहर विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में गए थे। नीचे दी गई तालिका में ठियोग में मौजूद इस तरह के उन मामलों की एक तस्वीर दी गई है, जो रेडियोथेरेपी विभाग, आईजीएमसी शिमला में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी से गुज़रे हैं।

 himachal.PNG

कीटनाशक का छिड़काव: बहुनिगमों का प्रोटोकॉल

एक प्रमुख सब्ज़ी उत्पादक किसान और ठियोग के ज़िला परिषद (ज़िला पंचायत) के पूर्व सदस्य सोहन ठाकुर ने बताया कि इस क्षेत्र में कृषि में बदलाव 1980 के दशक के अंत में तब हुआ जब बड़े पैमाने पर अनाज उगाने के बदले “ग़ैर-मौसम वाली कई सब्ज़ियाँ उगाई जाने लगीं।" ठियोग की जो मुख्य सब्ज़ी की फसलें हैं उनमें गोभी, फूलगोभी, मटर, फ़्रेंच बीन्स और यहां तक कि टमाटर भी शामिल है। कुछ स्थानों पर, सेब एक प्रमुख फसल है।

ठियोग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 600 किलोग्राम फूलगोभी के बीज, 500 किलोग्राम गोभी के बीज, 70 टन फ़्रेंच बीन्स और 280 टन मटर को ठियोग क्षेत्र में बोया जाता है। नीचे दी गई तालिका क्षेत्र में हो रहे कुल उत्पादन को दर्शाती है।

 himachal 1.PNG

तालिका ख़ुद ही क्षेत्र में बोई गई बड़ी मात्रा और क्षेत्र में पैदा हुए उत्पादन की बड़ी तस्वीर पेश करती है।

दिलचस्प बात यह है कि इन सभी बीजों की आपूर्ति बहुराष्ट्रीय निगमों (एमएनसी) द्वारा की जाती है और ये सभी बीज़ मुख्य रूप से हाईब्रीड हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बीज की बिक्री से कमाए गए धन पर एक सरसरी नज़र डालने से पता चल जाएगा की ये कितना मुनाफ़ा कमाते हैं। फूलगोभी के बीज के 10 ग्राम पैकेट की क़ीमत 65,000 रुपये है; गोभी के बीज की 35,000 रुपये, फ़्रेंच बीन्स की क़ीमत 450 रुपये प्रति किलोग्राम और मटर के बीज की क़ीमत 250 रुपये प्रति किलोग्राम है।

एमएनसी बीज कंपनियों ने एक तय प्रोटोकॉल बनाई हुई है कि जिसके मुताबिक़ सब्ज़ी उत्पादकों को सब्ज़ियों पर कीटनाशकों के छिड़काव के पैटर्न का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो फसल बहुत ख़राब गुणवत्ता की होगी। ठियोग क्षेत्र ऊंचाई पर होने के बावजूद वहाँ दो से तीन फसलों की कटाई की जाती है और एक फसल के दौरान कीटनाशकों का छिड़काव 5 से 7 बार किया जाता हैं। इसी तरह, सेब की पैदावार पर भी 8 से 9 बार स्प्रे का एक प्रोटोकॉल है। कीटनाशकों के प्रमुख स्प्रे क्लोरोफ़ायरोफोस, साइपरमेथ्रिन, बाविस्टिन, डिटेन, ब्लाइटॉक्स, नैटिवो आदि हैं।

300 ग्राम बीज से गोभी की बुवाई करने वाले क्षेत्र में औसतन 40 लीटर क्लोरफ़ाइरीफोस और लगभग 10 लीटर साइपरमेथ्रिन का उपयोग किया जाता है। कोई भी इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस पैमाने पर ठियोग में कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है।

सोहन ने खेत में कीटनाशकों के छिड़काव के बाद के वातावरण की व्याख्या करते हुए बताया कि कई बार तो सब्ज़ी के खेत की हवा को सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यह सब यानी कीटनाशकों का स्प्रे हवा, पानी, पौधों आदि में घुल जाता है। मवेशियों के लिए चारा भी इन्ही खेतों से आता है।

सिंथेटिक पेस्टिसाइड्स

राज्य के प्रख्यात वैज्ञानिकों में से एक और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के रसायन विज्ञान विभाग के पूर्व शिक्षक, प्रोफ़ेसर घनश्याम सिंह चौहान ने स्थिति को अत्यधिक चिंतनीय बताया है और कहा कि यदि समय पर उचित क़दम नहीं उठाए गए तो राज्य में जल्द ही स्वास्थ्य को लेकर एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। इस तरह के भय के कारणों की व्याख्या करते हुए, उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के जुड़वा रूप हैं जैसे जैविक और सिंथेटिक आधार वाले कीटनाशक। इस मामले में देखा जाए तो ठियोग और पूरा राज्य सिंथेटिक आधारित कीटनाशकों पर ही निर्भर है, जिसके इस्तेमाल पर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ ज़ोर देती हैं क्योंकि वे किसानों को बीज बेचती हैं। प्रो घनश्याम ने बताया कि सिंथेटिक कीटनाशकों का जीवनकाल बहुत लंबा होता है और इनकी मात्रा भी बहुत अधिक होती है। ये नॉन-बायोडिग्रेडेबल (यानी इनका सर्वनाश या खाद बनना नामुमकिन है) हैं और मानव और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत ही हानिकारक हैं।

इन कीटनाशकों का छिड़काव करते समय "कीटनाशक प्रवाह" नामक एक प्रक्रिया होती है, जो न केवल लक्षित सतह पर मार करती है, बल्कि उससे आगे की परतों को प्रभावित करती है। खाद्य श्रृंखला के माध्यम से ये कीटनाशक मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और न केवल वयस्क मानव बल्कि नवजात शिशुओं में भी जन्मजात दोष के कारण बन जाते हैं।

ये कीटनाशक अंतःस्रावी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं और काफ़ी विनाशकारी होते हैं। प्रोफ़ेसर चौहान उन वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने इनके रासायनिक तत्वों के ख़िलाफ़ और ‘हैल गन’ के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ अभियान चलाया था, जो अत्यधिक कार्सिनोजेनिक (यानी कैंसर पैदा करने वाले है) थे। उन्होंने कहा कि ये कीटनाशक हैल गन से भी बदतर हैं।

प्रोफ़ेसर चौहान उन जैव-उर्वरकों के इस्तेमाल की वकालत करते है जिनमें ओरगेनिक मूल है और वे स्प्रे के ‘प्रवाह प्रबंधन’ के अपने दृष्टिकोण साझा करते हुए कहते हैं कि माइक्रोबियल और कार्बनिक रसायन विज्ञान में मौजूद नई तकनीक के ज़रीये उर्वरक और कीटनाशक के इस्तेमाल या उसकी मात्रा को अनुशासित किया जा सकता है और एक स्प्रे के बजाय इसका इस्तेमाल कैप्सूल के रूप में किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इसका प्रभाव सीधा है।

बहु-अनुशासनिक दृष्टिकोण पर सहमति जताते हुए और इसे सुनिश्चित करने के लिए ठोस हस्तक्षेप करने का तर्क दिया कि राज्य में, ख़ास तौर से सब्ज़ी और फलों के उत्पादन में कीटनाशकों और उर्वरकों के भारी इस्तेमाल और उसके प्रभावों का पता लगाने के लिए एक उचित अध्ययन किया जा सके ख़ासकर कुछ संभावित कमज़ोर क्षेत्रों में ऐसा किया जाना लाज़मी है।

अच्छे शोध की दरकार 

प्रोफ़ेसर मनीष गुप्ता जो वर्तमान में रेडियोथेरेपी विभाग, कैंसर अस्पताल, आईजीएमसी शिमला के प्रमुख हैं, वे अपने विभाग में मौजूद रोगियों का विवरण साझा करते हुए कहते हैं कि हृदय रोगों के बाद हिमाचल में भी कैंसर दूसरा सबसे बड़ा जानलेवा रोग है, और तीव्र गति से बढ़ रहा है। राज्य में कैंसर में हो रही बढ़ोतरी पर कुछ शोध पत्रों को साझा करते हुए वे कहते हैं कि जीआई कैंसर और कीटनाशकों के बड़े पैमाने पर उपयोग के बीच का संबंध एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर ज़्यादा ग़ौर नहीं किया गया है। यह बताते हुए कि अस्पताल में लगभग 60 प्रतिशत कैंसर रोगी फेफड़ों से संक्रमित होते हैं जिसका मूल कारण धूम्रपान है, फिर भी, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस शोध को समन्वित रूप से किया जाना है। वे बताते हैं कि ऐसे अध्ययन मौजूद हैं जो स्पष्ट रूप से बढ़ते कैंसर के मामलों में वृद्धि और सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के बीच परस्पर संबंध को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि इस पर एक अच्छा शोध होना चाहिए जिसे विभिन्न संस्थानों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना चाहिए और सरकार को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।

हिमाचल, एक पर्वतीय राज्य, जिस गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, उस पर रोशनी डालते हुए उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसके शीघ्र निदान से कैंसर के कारण होने वाली मौतों को बड़ी संख्या में रोका जा सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिमाचल प्रदेश और विशेषकर ऐसे क्षेत्र जहां कृषि-पैटर्न में बदलाव आ चुका है, उनमें सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के संपर्क के ख़तरों की अधिक संभावना है। कीटनाशकों और उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल और उसके प्रभावों पर एक ठोस अनुसंधान के लिए एक आवश्यक हस्तक्षेप की ज़रूरत है। पर्वतीय राज्य, जिसमें अपेक्षाकृत स्वच्छ वातावरण है वहाँ की संयमी जीवन शैली एक बहुत ही गंभीर संकट की चपेट में है, जहां लोगों को यह भी मालूम नहीं है कि वे क्या बोते हैं और क्या काटते हैं, फिर चाहे वह लंबे समय में उनके लिए फ़ायदेमंद हो या हानिकारक।

लेखक शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

Himachal Pradesh
Rise of Cancer in Theog
Theog
Effects of Fertilisers
pesticides
Shift in Agriculture
Rising Number of Deaths Due to Cancer

Related Stories

हिमाचल: सेब के उचित दाम न मिलने से गुस्साए किसानों का प्रदेशव्यापी विरोध प्रदर्शन

हिमाचल प्रदेश का मज़दूर आंदोलन शहादत की अनोखी मिसाल है

हिमाचल में हुई पहली किसान महापंचायत, कृषि क़ानूनों के विरोध के साथ स्थानीय मुद्दे भी उठाए गए!

देशभर में मज़दूरों का ज़िला मुख्यालयों पर 'हल्ला बोल'

किसान आंदोलन: हिमाचल प्रदेश में भी गांव, ब्लॉक व जिला मुख्यालयों पर धरने प्रदर्शन

किसान आंदोलन के समर्थन में वाम दलों का देशव्यापी प्रदर्शन

कोरोना के बाद किसानों के सामने एक और खतरा

12 घंटे का कार्यदिवस है आधुनिक युग की बंधुआ मज़दूरी!

हिमाचल: मज़दूरों की जीत, हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देशित किया कि वो सभी की मदद करें

शिमला: हर मज़दूर को मिलेगा राशन; डीसी के आश्वासन पर माकपा विधायक का धरना ख़त्म


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License