NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
हिन्दू राष्ट्र बनाम अम्बेडकरवादी राज्य
देश में आज हिन्दू राष्ट्र के अधीन राज्य और अंबेडकरवादी प्रजातांत्रिक राज्य के बीच मुकाबला, आप किस तरफ हैं?
इरफान इंजीनियर
14 Feb 2018
Translated by अमरीश हरदेनिया
अम्बेडकर और आरएसएस

अब से कुछ माह बाद, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र की एनडीए सरकार अपने कार्यकाल के चार वर्ष पूरे कर लेगी। स्वतंत्रता के बाद यह पहली बार है जब हिन्दू राष्ट्रवादी विचारधारा में आस्था रखने वाली किसी दक्षिणपंथी पार्टी को लोकसभा में अपने बल पर बहुमत प्राप्त हुआ हो। लोकसभा में भाजपा की 273 सीटें हैं। अगर हम लोकसभा अध्यक्ष और दो नामांकित सदस्यों को भी शामिल कर लें, तो लोकसभा में भाजपा सांसदों की संख्या 276 हो जाती है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) - जो भाजपा के नेतृत्व वाला कई पार्टियों का समूह है - के लोकसभा में 333 सदस्य हैं। यह लोकसभा की कुल सदस्य संख्या का 60 प्रतिशत से अधिक और दो-तिहाई बहुमत से कुछ ही कम है।

भाजपा ने आम चुनाव 2014 में यह शानदार विजय इस वायदे पर हासिल की थी कि वह समाज के सभी तबकों का विकास करेगी। उसका नारा था, ‘सबका साथ, सबका विकास‘। समाज के अन्य तबकों को आकर्षित करने के लिए भाजपा ने और भी कई वायदे किए थे। यह कहा गया था कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा और इससे हर भारतीय नागरिक के बैंक खाते में 15 लाख रूपये जमा होंगे। महिलाओं के विरूद्ध अपराधों पर नियंत्रण कर उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाएगी। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कृषि उपज की कीमत, उसकी उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना हो व हर वर्ष रोजगार के दो करोड़ नए अवसर सृजित हों। इन सभी वायदों ने मतदाताओं को भाजपा-नीत गठबंधन की ओर आकर्षित किया।

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की छवि एक चमत्कारिक नेता के रूप में गढ़ने के लिए और गुजरात को देश का सबसे विकसित राज्य साबित करने हेतु प्रचार अभियान चलाया गया, जिस पर अरबों रूपये खर्च हुए। नरेन्द्र मोदी को पहले से ही हिन्दू राष्ट्रवादियों का समर्थन हासिल था। बड़े उद्योगपति उनके साथ थे क्योंकि उन्होंने गुजरात में निवेश आकर्षित करने के लिए सरकारी खजाने का भरपूर उपयोग करते हुए औद्योगिक घरानों को भारी मात्रा में अनुदान और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाईं थीं। बड़े औद्योगिक घरानों को ऐसा लग रहा था कि नरेन्द्र मोदी, आर्थिक सुधारों के अगले दौर को लागू करने में सबसे अधिक सक्षम होंगे। कुबेरपतियों का यह ख्याल था कि इन सुधारों से उनकी पूंजी व व्यवसाय में वृद्धि होगी। उन्होंने सन् 2013 की जनवरी में आयोजित ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट‘ में यह घोषणा कर दी थी कि श्री मोदी ही एक ऐसे नेता हैं जिनकी सोच व्यापक और दूरदर्शी है। दूसरे शब्दों में, उन्होंने मोदी के प्रधानमंत्री बनने के प्रयासों को अपना पूरा समर्थन देने की बात अपरोक्ष रूप से कह दी थी। समाज के अन्य तबकों को आकर्षित करने के लिए ऊपर वर्णित वायदे किए गए।

भाजपा ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत‘ का नारा दिया। इसका उद्देश्य मोदी को एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत करना था जिसे कोई चुनौती न दे सकता हो और जो राजनीति के क्षेत्र में अपना एकाधिकार स्थापित कर ‘नए भारत‘ का निर्माण कर सके। जिस ‘नए भारत‘ की बात की जा रही थी, वह असहिष्णु भारत था, जो उत्तर भारतीय ऊँची जाति के हिन्दुओं की पितृसत्तात्मक सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित होता और ऐसी नीतियां लागू करता, जिनसे ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों और किसानों की कीमत पर बड़े औद्योगिक घरानों की संपत्ति और मुनाफे में जबरदस्त वृद्धि होती।

भाजपा का यह दावा है कि उसने इस तरह के दूरगामी और आधारभूत नीतिगत परिवर्तन किए हैं जिनसे देश की अंतराष्ट्रीय साख में वृद्धि हुई है। पार्टी इस बात पर गर्व महसूस करती है कि ‘ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस‘ में भारत की रैंकिग बेहतर हुई है और इस बात पर भी कि श्रम कानूनों में इस तरह के ‘सुधार‘ किए गए हैं, जिनसे बड़ी कंपनियों के लिए छंटनी करना आसान हो गया है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को देश की जनता की गाढ़ी कमाई का धन सौंप दिया गया है ताकि वे अपने ऐसे कर्जों की भरपाई कर सकें, जो बड़े उद्योगपति जानबूझ कर नहीं चुका रहे हैं। जीएसटी लागू करने को एक क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है। पुरानी कल्याणकारी योजनाओं को नए नाम देकर उन्हें एनडीए सरकार की पहल निरूपित किया जा रहा है। इनमें शामिल हैं गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम, फसल बीमा और ग्रामीण गरीबों का जीवन बीमा। दोनों ही बीमा योजनाओं ने बीमा कंपनियों को एक बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध करवाया है। उन्हें बंधुआ ग्राहक मिल गए हैं। गरीबों के आर्थिक समावेशीकरण के लिए जनधन योजना के अंतर्गत जीरो बेलेंस बैंक खाते खोले गए। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत जो कुछ किया जा रहा है, उसमें कुछ भी नया नहीं है। शौचालयों के निर्माण का काम पहले भी किया जाता रहा है, अब केवल इस कार्यक्रम को एक नया नाम दे दिया गया है।

प्रश्न यह है कि क्या एनडीए के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार, मूलतः, नई बोतल में पुरानी शराब पेश कर रही है। क्या उसकी नीतियां वही हैं जो पिछली सरकारों की थीं और उनमें केवल दिखावे के लिए कुछ परिवर्तन किए गए हैं? देश का दक्षिणपंथी तबका और मोदी समर्थक यह मानते हैं कि मोदी सरकार के चार सालों में देश में ऐसे मूलभूत परिवर्तन आए हैं जिनसे देश मजबूत हुआ है और नागरिकों का जीवन पहले से कहीं अधिक समृद्ध और सुखी है। वामपंथियों के एक तबके का विचार है कि मोदी सरकार ने देश को केवल बर्बादी की ओर ढकेला है और वह प्रजातांत्रिक संस्थाओं के लिए एक बड़ा खतरा है। उदारवादियों में इस मुद्दे को लेकर मतभेद हैं।

आधारभूत परिवर्तन   

हिन्दुत्व की विचारधारा, जिसमें भाजपा की पूर्ण आस्था है, की दृष्टि में राज्य की जो भूमिका है, वह उस भूमिका से एकदम अलग है जो हमारे देष के संविधान निर्माताओं, विशेषकर डॉ बाबासाहेब अंबेडकर, ने निर्धारित की थी। डॉ अंबेडकर को यह आशा थी कि उन्होंने जिस राज्य की परिकल्पना की है वह देश की सामंती संस्कृति और समाज - जो लैंगिक, जातिगत और वर्गीय असमानताओं से ग्रस्त था - को पूरी तरह बदल डालेगा। देश के सभी नागरिकों को प्रदान की गई राजनैतिक समानता यह सुनिश्चित करेगी कि एक ऐसे भारत का उदय हो, जिसमें सभी नागरिकों को राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक न्याय सुलभ हो और सभी को समान दर्जा मिले। राज्य को यह अधिकार दिया गया (अनुच्छेद 25) कि वह नागरिकों की समानता की राह में बाधक होने पर, धार्मिक मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकता है। मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दलितों को प्रदान कर यह सुनिश्चित किया गया कि उन्हें हिन्दू आराधना स्थलों तक पहुंच मिले। इन सभी कानूनों और प्रावधानों को अदालतों में दी गईं चुनौतियां असफल हो गईं और उच्चतम न्यायालय ने इन्हें वैध और संवैधानिक ठहराया। हाल में महिलाओं के कुछ संगठनों ने एक लंबी अदालती लड़ाई के बाद शनि सिगनापुर मंदिर के गर्भगृह और हाजी अली दरगाह में प्रवेश का अधिकार हासिल किया। उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तलाक शब्द का तीन बार उच्चारण कर विवाह विच्छेद की शरियत प्रथा को गैर-कानूनी करार दिया। मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने से सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को ‘सकारात्मक भेदभाव‘ की नीति का लाभ मिला। यद्यपि भूसुधार कार्यक्रम पूरी तरह से लागू नहीं किए गए फिर भी इस दिशा में राज्य ने जो कुछ भी किया, उससे कुछ हद तक खेती करने वालों को उनकी जमीनों पर मालिकाना हक मिला और वे जमींदारों के चंगुल से मुक्त हो सके। भारत का संप्रभुता संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक राज्य, देश में समानता ला रहा था, यद्यपि यह प्रक्रिया बहुत धीमी थी। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि पूंजीपति वर्ग को उसके हिस्से से कहीं ज्यादा लाभ मिले।

हिन्दू श्रेष्ठतावादी, जिनका नेतृत्व आरएसएस के हाथों में है और जिन्हें संघ परिवार कहा जाता है, मानते हैं कि राज्य को हिन्दू राष्ट्र के निर्माण का उपकरण बनना चाहिए। हिन्दुत्व, अर्थात वह राजनैतिक विचारधारा जो संघ परिवार को एक सूत्र में बांधती है, यह प्रतिपादित करती है कि राज्य को हिन्दू राष्ट्र के नियमों और परंपराओं को लागू करना चाहिए। ये नियम और परंपराएं क्या हैं, इनका वर्णन उनके प्राचीन धर्मग्रंथों में पहले से ही मौजूद है। एक गुरू (जो चुना नहीं जाएगा और जो लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं होगा) यह तय करेगा कि हिन्दू राष्ट्र में क्या होना चाहिए और क्या नहीं और जनता से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह बिना कोई चूं-चपड़ किए इन नियमों का पालन करे। हिन्दू राष्ट्र में सत्ता एक सर्वोच्च गुरू या नेता के हाथ में होगी, जिसकी आज्ञा का पालन बिना कोई प्रश्न पूछे सबको करना होगा। राज्य केवल हिंदू राष्ट्र की क्रियान्वयन एजेंसी होगा। वे लोग प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता को पश्चिमी और विदेशी अवधारणा बताते हैं क्योंकि वह राज्य को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाती है, किसी गुरू के प्रति नहीं।

यह आईएस द्वारा स्थापित खलीफा मडल से कुछ अलग नहीं है और ना ही ईरान में अयातुल्ला के राज से भिन्न है। इन दोनों व्यवस्थाओं में खलीफा या अयातुल्ला को यह अधिकार है कि वे किसी भी कानून को इस आधार पर रद्द कर दें कि वह इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है। अयातुल्ला विशेष सशस्त्र बलों के कमांडर हैं, उनके कामकाज की पड़ताल विधायिका नहीं कर सकती और वे ईरान के लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। ऐसा कहा जाता है कि उनकी जवाबदेही केवल ईश्वर के प्रति है।

प्रजातंत्र में राज्य, जनता के अधीन और लोगों के प्रति जवाबदेह होता है। हिन्दू राष्ट्र में राज्य एक सर्वोच्च सत्ता के अधीन रहता है। संघ परिवार, सरसंघचालक को ऐसी ही सर्वोच्च सत्ता मानता है। केन्द्र सरकार के केबिनेट मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में सरसंघचालक को दंडवत करने जाते रहते हैं।

जिन लोगों को राज्य का यह माडल स्वीकार्य नहीं है उन्हें हिन्दू राष्ट्र का शत्रु बताया जाता है। इनमें मुसलमान, ईसाई और साम्यवादी शामिल हैं। अंग्रेजी पढ़ने-लिखने वाले ‘पाश्चात्य’ उदारवादियों पर भी कटु हमले किए जाते हैं और यह कहा जाता है कि वे अपनी जड़ों से कटे हुए हैं। केन्द्रीय मंत्री अनंत हेगड़े ने हाल में इस आशय का बयान भी जारी किया था।

करणी सेनाएं

गौरक्षक के नाम से जाने जाने वाले हत्यारों के समूह और वे लोग जो अंतर्धामिक विवाह करने वाले जोड़ों पर हमले करते हैं या अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को जबरन हिन्दू बनाने का प्रयास करते हैं या इस झूठे आरोप में कि वे धर्मपरिवर्तन करवा रहे हैं, अल्पसंख्यकों के धार्मिक कार्यक्रमों के बाधित करते हैं या जो इस आधार पर किसी फिल्म का प्रदर्शन प्रतिबंधित करने की मांग करते हैं क्योंकि वह उनकी भावनाओं को चोट पहुंचाती है - वे सभी हिन्दू राष्ट्र की सेना के सिपाही हैं और अंबेडकरवादी प्रजातांत्रिक राज्य की जड़ों पर प्रहार कर रहे हैं।

करणी सेना, खाप और अन्य जाति-आधारित पंचायतें और बाबाओं का वह तबका, जो हिन्दू श्रेष्ठतावादी विचारधारा में यकीन रखता है, प्रजातंत्र के ताबूत में कीलें ठोंक रहे हैं। परंतु अभी तक वे प्रजातंत्र का गला घोंटने के अपने लक्ष्य से बहुत दूर हैं। वे पौराणिक कथाओं को इतिहास और विज्ञान का दर्जा देना चाहते हैं और उनके अनुसार, पौराणिक कथाओं में दिया गया विवरण न केवल ऐतिहासिक सच है बल्कि उस पर कोई विवाद या संदेह करने की गुंजाइश भी नहीं है। जहां खाप पंचायतें और खून की प्यासी भीड़ें अपना काम कर रही हैं, वहीं भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार उनके खिलाफ कार्यवाही न कर या अप्रभावी कार्यवाही कर, हिन्दू राष्ट्र के निर्माण की राह प्रशस्त कर रही है। हिन्दू राष्ट्र के सिपाही अपने वैचारिक गुरू आरएसएस से शिक्षा और प्रेरणा ग्रहण कर रहे हैं। सच यह है कि भाजपा के नियंत्रण वाला राज्य, हिन्दू राष्ट्र के पैरोकारों को कुछ भी और सब कुछ करने की छूट दे रहा है। यह ठीक वैसा ही है जैसा कि हिन्दू राष्ट्र में होना चाहिए अर्थात राज्य को हिन्दू राष्ट्र के अधीन रहकर काम करना चाहिए।

करणी सेना जैसे संगठन, जिन्हें राज्य का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन हासिल है, इतिहास के केवल उस संस्करण को मान्यता देना चाहते हैं जिसमें उनकी जाति को नायक सिद्ध किया गया हो और यह बताया गया हो कि उसके सदस्यों ने ‘शत्रुओं‘ से वीरतापूर्वक मुकाबला किया। ऐसा कर वे न केवल हिन्दू राष्ट्र के निर्माण में सहयोग कर रहे हैं वरन् वे अपनी जाति के वर्चस्व को बनाए रखने का प्रयास भी कर रहे हैं। वे अपनी राजनैतिक शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं और दलितों व अन्य कमजोर वर्गों को अपने अधीन रखना चाहते हैं।

अंबेडकरवादी प्रजातांत्रिक राज्य, सभी कमजोर वर्गों के साथ ‘सकारात्मक‘ भेदभाव करने का हामी है। इनमें शामिल हैं एससी, एसटी, ओबीसी, महिलाएं व बच्चे (अनुच्छेद 15 व 16) एवं श्रमिक, किसान व सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से कमजोर सभी वर्ग (राज्य के नीति निदेशक तत्व संबंधी अध्याय)। इसके विपरीत, हिन्दू राष्ट्र केवल जाति-आधारित पदक्रम को बनाए रखना चाहता है और ऊँची जातियों को प्राप्त विशेषाधिकारों को स्थायी बनाना चाहता है। उसकी नीतियां पूंजीवादी वर्ग की समर्थक हैं।

आक्सफेम की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है। जहां सन् 2014 में सबसे धनी एक प्रतिशत भारतीय, 58 प्रतिशत संपत्ति के स्वामी थे, वहीं अब वे 73 प्रतिशत संपत्ति के मालिक हैं। गाय का जीवन, दलितों और मुसलमानों के जीवन से अधिक कीमती है। किसानों की बदहाली दूर करने के लिए कुछ किया जाए या नहीं परंतु गाय की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए। बेरोजगारों को काम मिले या नहीं परंतु अयोध्या में दिवाली मनाने पर लाखों रूपये खर्च किए जाने चाहिए। शिक्षा के लिए बजट हो न हो परंतु शिवाजी, भगवान राम और आदि शंकराचार्य की विशाल मूर्तियों के निर्माण पर अरबों रूपये व्यय किए जाने चाहिए। बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिले न मिले बाबाओं के लिए लंबी विदेशी गाड़ियों की व्यवस्था होनी चाहिए। महिलाएं सुरक्षित हों न हों, समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए और अल्पसंख्यकों का ‘राष्ट्रीयकरण‘ किया जाना चाहिए।

देश में आज हिन्दू राष्ट्र के अधीन राज्य और अंबेडकरवादी प्रजातांत्रिक राज्य के बीच मुकाबला चल रहा है। आप किस तरफ हैं?

Courtesy: हस्तक्षेप ,
Original published date:
14 Feb 2018
हिन्दू राष्ट्र
अम्बेडकरवाद
आरएसएस

Related Stories

बढ़ते हुए वैश्विक संप्रदायवाद का मुकाबला ज़रुरी

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी बोगस निकला, आप फिर उल्लू बने

एमरजेंसी काल: लामबंदी की जगह हथियार डाल दिये आरएसएस ने

हामिद अंसारी, जिन्ना की तस्वीर और एएमयू में हंगामा

जेईजेएए NDA सरकार के ख़िलाफ 16 मई से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएगा

बिहार: इस्लामोफ़ोबिक नारों और आक्रामक तेवरों ने 7 ज़िलों में सांप्रदायिक दंगे करवाए

इन दो पिताओं को सुन लें, इससे पहले कि नेता आपको दंगाई बना दे

तमिलनाडु के विपक्षी दलों ने 'राम राज्य रथ यात्रा’ को अनुमति देने का विरोध किया

तेरी मेरी सबकी बात ,कन्हैया कुमार के साथ: राजनीतिक विकल्प की बात-2

"बीजेपी-RSS त्रिपुरा की एक तिहाई जनता पर हमला कर रही है "


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License