NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
हज़ारों रोहिंग्या ‘नरसंहार’ को याद करने के लिए जमा हुए
लगभग 20,000 रोहिंग्या शरणार्थियों ने म्यांमार से हुए पलायन की दूसरी सालगिरह के मौक़े पर एक रैली में भाग लिया। यह समुदाय 2017 में सेना द्वारा जातीय आधार पर सफ़ाई अभियान के निशाने पर था।
पीपुल्स डिस्पैच
29 Aug 2019
Translated by महेश कुमार
Rohingya refugees in Bangladesh
बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार से अपने जबरन पलायन की दूसरी वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए एक प्रदर्शन करते हैं (Photo: Shah Hossain)

25 अगस्त को बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार में 'नरसंहार दिवस’ की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर हज़ारों रोहिंग्या शरणार्थियों ने एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला। यह घटना, प्रतीकात्मक रूप से म्यांमार से रोहिंग्याओं के पलायन को संदर्भित करती है, जिसे कि एक सैन्य अभियान के तहत म्यांमार में अंजाम दिया गया था, जिसमें बांग्लादेश में तैनात संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने भी भाग लिया है। यह विरोध रैली इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह म्यांमार में स्वदेश आगमन के विफल प्रयासों की याद दिलाती है, जिस वजह से एक भी शरणार्थी बांग्लादेश छोड़ने में सफल नहीं हुआ है।

प्रदर्शनकारियों ने सेना विरोधी नारे लगाए और ज़ोर दिया कि दुनिया को रोहिंग्याओं के संकट को सुनने की ज़रूरत है। शरणार्थी इस चिलचिलाती धूप में "लॉन्ग लिव रोहिंग्या", "नेवर अगेन!" और "हम अपने अधिकार चाहते हैं, हमारी नागरिकता बहाल करें" की तख्तियाँ लिए हुए थे।

रैली में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को लेकर साझा करने के लिए कोई न कोई दर्दनाक कहानी थी जो 2017 में राज्य प्रायोजित हिंसा में उनके साथ हुआ था, जिसमें अनुमानित 10,000 या उससे अधिक लोगों की मौतें हुई थीं और लगभग 800,000 लोग बेघर हो गए थे, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की 2018 की रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक़ करती है।

ज़्यादातर शरणार्थियों ने बांग्लादेश, मलेशिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में शरण ली है। हाल ही के महीनों में, बांग्लादेश, सऊदी अरब और भारत ने उन्हें स्वदेश भेजने की समयावधि का मसौदा तैयार करने की कोशिश की है, बावजूद इसके कि म्यांमार में शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निंदा की जा रही है, जहां स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण है। मानवाधिकार समूहों की इसके प्रति नाराज़गी इन देशों की सरकारों को प्रभावित करने में असमर्थ रही है।

हज़ारों रोहिंग्या कुटुपोलंग शिविर से रैली में शामिल हुए, जो देश की सबसे बड़ी शरणार्थी बस्ती है, जिसमें 600,000 से अधिक लोग रहते हैं। इतनी बड़ी संख्या में प्रदर्शन के पीछे की मंशा "अपने समुदाय के हुए अत्याचार और अपमान की याद" को बनाए रखना था। इस विरोध के ज़रिये शरणार्थियों ने विश्व समुदाय को एक संदेश भेजने की कोशिश की है कि वह इस दर्दनाक जातीय सफाई के अपराधियों को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभाए।

संयुक्त राष्ट्र के फ़ैक्ट फाइंडिंग मिशन ने उत्तरी राखीन में हुए नरसंहार और अन्य अत्याचारों के लिए पांच शीर्ष सैन्य अधिकारियों और जनरलों के नामों का हवाला दिया है। यूएनएचआरसी के नवीनतम स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय तथ्य खोज मिशन ने यह भी बताया है कि म्यांमार सशस्त्र बल (टाटमाड) ने महिलाओं, लड़कियों, लड़कों, पुरुषों और ट्रांसजेंडर लोगों के ख़िलाफ़ घ्रिनित हमले किए और उनके साथ "बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, और अन्य हिंसक और जबरन यौन शोषण जैसे अपराध किए।”

इस हिंसा की चश्मदीद गवाह पचास वर्षीय तैयबा ख़ातून ने बताया कि उनके दो बेटे 2017 की जातीय सफ़ाई में मारे गए थे, इस हमले को सेना द्वारा अंजाम दिया गया था। इन हत्याओं के लिए न्याय की मांग करते हुए, उन्होंने कहा, "मैं अपनी आखिरी सांस तक अपने दोनों बेटों के लिए न्याय की लड़ाई जारी रखूंगी।"

रैली के आयोजकों में से एक, मोहिबुल्लाह ने दावा किया कि हर रोहिंग्या घर वापस लौटने की कामना करता है। हालांकि, जिन देशों से शरण मांगी गई है, उन्हें म्यांमार में नागरिकता और सुरक्षा का अधिकार दिए जाने के आश्वासन के बिना, उन्हें बलपूर्वक देश निकाला देने की कोशिश की गई है।

Courtesy: Peoples Dispatch

‘Genocide Day’
Bangladesh
ethnic cleansing of Rohingyas
Myanmar armed forces
Rohingya
Rohingya repatriation deal

Related Stories

किसान आंदोलन के 4 महीने पर भारत बंद, चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला और अन्य ख़बरें

बांग्लादेश में गारमेंट फैक्ट्री के कर्मचारियों ने बकाया के समय से भुगतान की मांग को लेकर धरना दिया 

भारत की पड़ोसी को प्रथम मानने वाली नीति अपने अवसान कि ओर

कपड़ा उद्योग के कर्मचारी से रेप के विरोध में बांग्लादेश में प्रदर्शन तेज़


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License