NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
पुस्तकें
कला
भारत
"हमारी मनुष्यता को समृद्ध कर चली गईं कृष्णा सोबती"
“आख़िरी सलाम, कृष्णा सोबती। एक बड़ी लेखक और उतनी ही बड़ी इंसान... तीसरी दुनिया के सच्चे लेखक को ऐसा ही होना चाहिए था।”
मुकुल सरल
25 Jan 2019
Krishna Sobti

हिंदी की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती का आज शुक्रवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे 93 वर्ष की थीं और पिछले काफी समय से बीमारी से जूझ रहीं थीं।

उनकी रिश्तेदार अभिनेत्री एकावली खन्ना ने समाचर एजेंसी आईएएनएस को बताया, "आज यहां एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। पिछले कुछ महीनों में उनकी तबीयत खराब चल रही थी और अक्सर अस्पताल उन्हें आना-जाना पड़ता था।" 

खन्ना ने कहा, "उन्होंने पिछले महीने अस्पताल में अपनी नई किताब लॉन्च की थी। अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद वह हमेशा कला, रचनात्मक प्रक्रियाओं और जीवन पर चर्चा करती रहती थी।"

कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात में 18 फरवरी 1925 को हुआ था। भारत के विभाजन के बाद गुजरात का वह हिस्सा पाकिस्तान में चला गया है। विभाजन के बाद वे दिल्ली में आकर बस गयीं और तब से यहीं रहकर साहित्य-सेवा कर रही थीं। उन्हें 1980 में 'ज़िन्दगीनामा' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया जो अकादमी का सर्वोच्च सम्मान है। 2017 में इन्हें भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान "ज्ञानपीठ पुरस्कार" से सम्मानित किया गया है।

सोबती को उनके 1966 के उपन्यास 'मित्रो मरजानी' से ज्यादा लोकप्रियता मिली। उनकी अन्य प्रशंसित रचनाओं में ‘ऐ लड़की’ 'सूरजमुखी अंधेरे के', 'यारों के यार' और 'डार से बिछुड़ी' शामिल हैं।

कृष्णा सोबती के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर फैल गई है। सभी लेखक और पाठक विभिन्न माध्यमों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। 

वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल लिखते हैं :

“आख़िरी सलाम, कृष्णा सोबती। एक बड़ी लेखक और उतनी ही बड़ी इंसान। हिंदी की पहली नारीवादी। आप एक अनुकरणीय खुद्दारी के साथ दुनिया में रहीं और पूरे दमखम के साथ लिखती रहीं और लोकतंत्र के मूल्यों के लिए बीमारी के दौरान भी डटी रहीं। तीसरी दुनिया के सच्चे लेखक को ऐसा ही होना चाहिए था।” 

लेखक और शिक्षक संजीव कौशल ने कहा :

“कोई लेखक कितना साहसी हो सकता है इसकी मिसाल है कृष्णा सोबती का लेखन और जीवन। विभाजन की त्रासदी भी उन्हें तोड़ नहीं पायी। उनका पूरा जीवन विभाजन की राजनीति के खिलाफ़ संघर्ष की एक मिसाल है। उन्हें पढ़ते हुए लगता है कि आप आश्चर्य की किसी नदी में तैर रहे हैं। जहाँ हरवक्त कुछ नया सामने आता रहता है। मौलिक चमत्कार और गहरी मानवीय समझ से भरे लेखक का चले जाना सालों चुभता रहेगा हमारी आंखों में। अलविदा कृष्णा जी!

लेखक-संस्कृतिकर्मी रामजी राय लिखते हैं :

“…अपनी रचनाओं से उन्होंने हमारी मनुष्यता को जितना समृद्ध किया, मानवी संवेदनाओं के जिन अदेखे पहलुओं से हमारे अंतर्जगत को जितना विस्तृत किया और जिन अर्थ छवियों, नई संवेदनाओं को वहन करने वाली भाषा संपदा से हिंदी को वैभवशाली बनाया वैसा हमारे समय में बहुत कम लोग ही कर पाए।” 

कहानीकार योगेंद्र आहूजा ने हमसे बात करते हुए कहा :  

“ सोबती जी हमारी ऐसी अग्रणीय लेखिकाओं में थीं जिनमें स्वतंत्र नारी यानी खुद निर्णय लेने की क्षमता लेने वाली नारियों की छवियां पहली बार मिलती हैं। इस मायने में वो एक युग प्रवर्तक कही जा सकती हैं क्योंकि मुक्ति और आज़ादी की बात और यौनिकता के स्तर पर भी मुक्ति और आज़ादी की बात हमने सबसे पहले उन्हीं के लेखन में पढ़ी, लेकिन वे केवल इन्हीं अर्थों में स्त्रीवादी लेखिका नहीं थीं, उनके सरोकारों का दायरा बहुत बड़ा था जिसमें तत्कालीन राजनीति से लेकर पूरा जहान समाया रहता था। वे केवल अपने वक्त तक ही सीमित नहीं रहती थीं, वे अतीत में, इतिहास में भी आवाजाही करती थीं। इसलिए उनके साहित्य का वितान बेहद विस्तृत है। उन्होंने कहानी के संकीर्ण फॉर्म को भी बेहद लचीला बनाया, उसकी चौहद्दियों को उन्होंने विस्तारित किया। फॉर्म को भी और कन्टेंट को भी। इस मायने में वे हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण लेखिका थीं और आख़ीर तक वे जिस तरह सक्रिय रहीं, ज़िंदादिल जीवन जीती रहीं और अपने सरोकारों में हमेशा स्पष्ट रहीं वो बेमिसाल है। वे हमारे समय की प्रखर आवाज़ थीं।”

लखनऊ से वरिष्ठ कवि-लेखक अजय सिंह ने फोन पर अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह दी:  

“भरपूर ज़िंदगी, भरपूर बेधड़कपना और बेबाकी, भरपूर हिम्मत, भरपूर शोहरत, भरपूर विवाद और बदनामी- यह कृष्ण सोबती की जिंदगी रही। और उन्होंने हर पल का भरपूर लुत्फ उठाया। वह अपने लेखन और विचार में मुखर व प्रखर थीं। हिन्दुत्व फासीवाद व नरेंद्र मोदी-अमित शाह के खिलाफ और देश में बढ़ती असहिष्णुता व हिंसा के खिलाफ उन्होंने पुरज़ोर आवाज़ उठायी। इस लड़ाई में साहित्य अकादमी द्वारा दिए गए सम्मान को लौटाने में उन्होंने ज़रा भी परहेज़ नहीं किया। कृष्णा सोबती के जज्बे को सलाम!”

वरिष्ठ कवि-लेखक अशोक वाजपेयी कृष्णा सोबती को याद करते हुए कहते हैं :

“वह हिंदी साहित्य जगत के उम्दा लेखकों में से एक थीं। बेख़ौफ़ और बेबाक, कृष्णा सोबती लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखने में विश्वास करती थीं। वह ऐसी लेखिका थी जिनके लेखन में बहुत अधिक गीतात्मकता और मानवीयता के भाव के साथ महाकाव्यत्मक दृष्टि थी। वह एक दरियादिल महिला थीं जो खुद की सख्ती से आलोचना करती थीं।”

वरिष्ठ लेखिका गीता हरिहरन कृष्णा सोबती से अपनी मुलाकात को याद करते हुए बताती हैं :

“उस दिन अस्पताल में जब मैं उनसे मिली, हालाँकि उनकी आँखें बंद थीं, मुझे ऐसा एहसास हुआ कि वो मेरी बातें सुन रहीं थीं। मेरे कहे पर वो मुस्कुरायी थीं। लेकिन मैं उस मुस्कान को उनकी अलविदा नहीं मानती। मैं तो उस शाम को याद करुँगी, जब मैं उनके घर पर थी और उन्होंने अचानक मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर जोश और हैरत के साथ कहा था, "ज़िन्दगी बहुत अद्भुत है। इसे जियो!” कृष्णा सोबती, आपने जिन लोगों को प्रेरित किया, अपनी मित्रता से नवाज़ा, वे ज़िन्दगी से हार नहीं मानेंगे। हम आवाज़ उठाएंगे और लिखेंगे—उतनी ही निडरता से, जितनी निडरता से आपने किया।”

कृष्णा सोबती ने कहानियां और उपन्यास तो लिखे ही। उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखीं। ऐसी ही एक कविता को दोहराते हुए उन्हें आख़िरी सलाम!

तर्ज़ बदलिए

गुमशुदा घोड़े पर सवार

हमारी सरकार

नागरिकों की तानाशाही

से

लामबंदी क्यूँ करती है

और फिर

दौलतमंदों की

सलामबंदी क्यों करती है

सरकारें

क्यूँ भूल जाती हैं

कि हमारा राष्ट्र एक लोकतंत्र है

और यहाँ का नागरिक

गुलाम दास नहीं

वो लोकतान्त्रिक राष्ट्र भारत महादेश का

स्वाभिमानी नागरिक है                      

सियासत की यह तर्ज़ बदलिए

Krishna Sobti
literature
hindi literature
Hindi fiction writer
साहित्य
हिन्दी साहित्य
हिन्दी कहानी-उपन्यास

Related Stories

समीक्षा: तीन किताबों पर संक्षेप में

इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में 9 से 11 जनवरी तक अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन

नामवर सिंह : एक युग का अवसान

"खाऊंगा, और खूब खाऊंगा" और डकार भी नहीं लूंगा !

गोरख पाण्डेय : रौशनी के औजारों के जीवंत शिल्पी

कृष्णा सोबती : मध्यवर्गीय नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाली कथाकार

आज़ादी हमारा पैदाइशी हक़ है : कृष्णा सोबती

तिरछी नज़र : कराची हलवा और जिह्वा का राष्ट्रवाद

हिन्दी कभी भी शोषकों की भाषा नहीं रही

भोपाल में विश्व हिन्दी पंचायत [सम्मेलन]


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License