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राजनीति
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होर्मुज जल संधि में गनबोट कूटनीति
अमेरिका की योजना के तहत होर्मुज में नौसैनिक जहाजों का बेड़ा लगाना समुद्र के कानून और क्षेत्रीय जल पर ईरान की संप्रभुता के खिलाफ जाता है। अब हम भयंकर विनाशकारी परिणामों वाले क्षेत्र में एक नए युद्ध में प्रवेश कर रहे हैं।
प्रबीर पुरुकायास्थ
30 Jul 2019
Translated by महेश कुमार
होर्मुज जल संधि

अब अमेरिका-ब्रिटेन की नौसेनाओं और ईरान के बीच होम्रुज़ जल के व्यस्त मार्ग में एक विनाशकारी टकराव के लिए मंच सज गया है। यह स्ट्रेट्स फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता हैं और दुनिया का  एक प्रमुख तेल का चोक पॉइंट हैं जो कुल तेल के कारोबार का लगभग 30-35 प्रतिशत है। अमेरिका-ब्रिटेन के नए कदम के तहत– स्ट्रेट ऑफ होर्मुज में व्यापारी जहाजों को अपने युद्धपोतों द्वारा "सुरक्षा" प्रदान करना -- ईरान के क्षेत्रीय जल पर साम्राज्यवादी   अधिकारों की तरह काम करना है। दूसरे शब्दों में कहा जाए यह पहले जमाने वाले गनबोट कूटनीति की तरह है लेकिन ईरान इसे स्वीकार नहीं करेगा।

 तनाव को बढ़ाने के इस दौर की शुरुआत टैंकरों की जब्ती के साथ शुरू हुई, पहले ब्रिटेन द्वारा  और बाद में ईरान ने ऐसा ही किया। दोनों तरफ से टैंकरों बरामदगी इतने संकरे जलमार्ग में हुई कि वे सीमा से लगे देशों के क्षेत्रीय जल के मात्र 12-समुद्री मील की सीमा के भीतर थे। जिब्राल्टर का स्ट्रेट (जल मार्ग) केवल 7 समुद्री मील चौड़ा है, जबकिस्ट्रेट्स ऑफ होर्मुज 21 समुद्री मील चौड़ा है। यदि जहाजों को केवल अंतर्राष्ट्रीय जल मार्ग का उपयोग करके रास्ता पार करना है, तो एक जलमार्ग की चौड़ाई कम से कम 24 समुद्री मील की दूरी होनी चाहिए और इसके साथ अतिरिक्त 6 मील भी होनी चाहिए. अतिरिक्त 6 समुद्री मील प्रत्येक लेन को दोनो तरफ ट्रेफिक के लिए दो लेन प्रदान करवानी चाहिए, जिसमें प्रत्येक लेन 2 समुद्री मील चौड़ी होनी चाहिए, और अन्य 2 समुद्री मील चैनल जो दो लेन को अलग करता है।

  यदि होर्मुज का जलमार्ग जोकि इतना संकरा हैं और जहाजों के मार्ग के लिए अंतर्राष्ट्रीय जल नहीं प्रदान करता है तो क्या होगा? क्या ईरान तब एक तटीय राज्य के रूप में अपना दावा पेश कर सकता है, कि उसे यह तय करने का अधिकार है कि समुद्री जल जो उसके देश के अंतर्गत आता है उस स्ट्रेट् का इस्तेमाल कौन करेगा कौन नहीं? एकसंयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑफ सीज़ (UNCLOS) (समुंद्र के बारे में एक सन्युक्त राष्ट्र की संधी) को 1982 में अपनाया गया था और 1994 में लागु किया गया था। यह संधी इस तरह के स्ट्रेट से सैन्य और असैन्य दोनों तरह के जहाजों को पार करने की अनुमति देता है। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा "निर्दोष मार्ग" है, जैसा कि अनुच्छेद 19 (2) में परिभाषित किया गया है। यदि ईरान मानता है कि अमेरिका-ब्रिटेन युद्धपोत क्र "सुरक्षा" टैंकर, वास्तव में, ईरान को धमकी हैं, या यह मिशन जासूसी करने में शामिल हैं, या उसकी संचार प्रणालियों में हस्तक्षेप कर रहा हैं, तो इसे उनके जल मार्ग से पास होने पर रोक लगाने का अधिकार है।

 ईरान यूएनसीएलओएस (UNCLOS) में इस बात के साथ हस्ताक्षरकर्ता है कि वह गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं को संधि के तहत अधिकारों का इस्तेमाल नहीं करने देगा। हालांकि, अमेरिका पूरी तरह से इस बातचीत में शामिल है, लेकिन वह यूएनसीएलओएस (UNCLOS) पर हस्ताक्षर या पुष्टि करने से इनकार कर रहा है। पेरिस क्लाइमेट चेंज एग्रीमेंट और जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JPOA) केवल ऐसी संधियाँ नहीं हैं जिनमें अमेरिका बातचीत का भागी होते हुए भी उनसे बाहर चले जाने की कवायद की है।

 तो अमेरिका अपने नौपरिवहन अधिकारों के रूप में क्या स्वीकार करता है? अमरीका यूएनसीएलओएस (UNCLOS)के मामले में केवल बुद्बुदाता है। लेकिन 1982 में, उसी वर्ष यूएनसीएलओएस (UNCLOS) पर हस्ताक्षर किए गए,अमेरिका ने प्रथागत अधिकारों के आधार पर एक अधिकारों का एक समूह तैयार किया। यह इन्हे फ्रीडम ऑफ नेविगेशन (FON) प्रोग्राम के तहत "लागू करता है" और दुनिया के किसी भी हिस्से में संचालन (FONOPS) करता है जो इसके फिट बैठता है। इससे ऐसा लगता है जैसे अमेरिका अपने "अधिकार" का दावा दुनिया में प्रचलित नौसैनिक शक्ति के रूप में कर रहा है, और इस अपार ताकत के तहत वह जो चाहे वह कर सकता है। औपनिवेशिक काल में, साम्राजी शक्तियों द्वारा ऐसे अधिकारों को ज़बरन "लागू करने" को गनबोट कूटनीति कहा जाता था। अब इसे FONOPS कहा जाता है।

 अमेरिका और ब्रिटेन अपने युद्धपोतों के साथ स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को नियंत्रित करने का प्रयास, स्ट्रैट ओफ होर्मुज पर ईरान के अधिकारों को चुनौती देता है। यूएनसीएलओएस (UNCLOS) के तहत, ईरान दावा कर सकता है कि अमेरिका और ब्रिटेन के युद्धपोत व्यापारी जहाजों को सुरक्षा प्रदान करने के नाम पर स्ट्रेट्स के माध्यम से निर्दोष मार्ग के अधिकार का उपयोग नहीं कर सकते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो कोई भी देश ईरान के जहाजों को जब्त नहीं कर सकता है, उसके तेल निर्यात को नहीं रोक सकता है, और फिर भी यह दावा करे कि वह निर्दोष मार्ग की आड़ में ईरान के क्षेत्रीय जल में एक नौसैनिक बेड़े को लगा रहा है।

 बेशक, रूहानी द्वारा व्यक्त ईरान का बड़ा तर्क काफी सरल है: या तो सभी देशों के पास स्ट्रेट्स के माध्यम से अपने तेल निर्यात की सुरक्षा हो, या किसी देश को ऐसा नहीं करने दिया जाए।

 यह हमें नए टैंकर युद्ध की तरफ वापस ले जाता है। इसकी शुरुआत यूके द्वारा टैंकर ग्रेस 1 से हुई थी, जब स्ट्रेट ऑफ जिब्राल्टर में 2 मिलियन बैरल कच्चे तेल के साथ इसे पकड़ लिया था, यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का दावा किया गया था। ईरान ने समुद्री कानून के उल्लंघन का दावा करते हुए, स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज में एक यूके-ध्वज वाले टैंकर,स्टेना इम्पेरो पर कब्जा करके जवाब दिया।

 ब्रिटेन का दावा है कि उसने सीरिया पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के तहत ग्रेस 1 को जब्त किया था, यह वही यूरोपीय संघ है जो जल्दबाजी में ब्रेक्सिट कर रहा है। अब अधिकांश टिप्पणीकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि ब्रिटेन ने ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लागू करवाने के लिए काम किया है, न कि यूरोपीय संघ के प्रतिबंध को। स्ट्रेट ऑफ जिब्राल्टर के माध्यम से गुजरने वाले जहाजों या सामानों को जब्त करना ब्रिटेन का कानूनी अधिकार अत्यधिक बहस योग्य है। यह ईरान का तेल है; और यहां तक कि अगर यह ब्रिटेन के दावे के अनुसार सीरिया भी जा रहा था, तो सीरिया संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के तहत नहीं है, जो अकेला कानून है जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की गणना में आता है।

 यूरोपीय विदेश कार्यवाही सेवा, जो यूरोपीय संघ की अपनी विदेश नीति के लिए जिम्मेदार है, ब्रिटेन की कार्रवाई पर चुप्पी साधे हुए है, माना जा रहा है कि इसके जरीए यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों को भी लागू करने की कोशिश है। यहां तक कि विदेशी संबंधों पर यूरोपीय परिषद के उपाध्यक्ष कार्ल बिल्ड्ट को ट्वीट करने के लिए विवश होना पड़ा, "...जो सीरिया के खिलाफ यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों को संदर्भित करता है, लेकिन ईरान यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है। और यूरोपीय संघ एक सिद्धांत के रूप में दूसरों पर अपने प्रतिबंध नहीं लगा सकता है। लेकिन अमेरिका ऐसी बदतमीजी करता है।"

 ईरान ने दावा किया है कि ब्रिटिश टैंकर - स्टेना इम्पेरो को इसलिए जब्त कर लिया गया क्योंकि इसने मछली पकड़ने वाली नाव को टक्कर मार दी थी, गंभीर रूप से घायल मछुआरों और नाव की संकटपूर्ण कॉलों को नजरअंदाज कर दिया था। जब ईरानी गश्ती नौकाओं ने उनसे वजह जाननी चाही, तो स्टेना इम्पेरो ने अवैध रूप से अपने ट्रांसपोंडर को बंद कर दिया, और अन्य जहाजों को खतरे में डालते हुए, यू-टर्न लेने का प्रयास किया। इसलिए ईरानी गार्ड ने जलडमरूमध्य में समुद्री कानून और पारगमन के नियमों के उल्लंघन के लिए उसे जब्त किया ताकि ईरानी अदालतों में आरोपों का सामना कर सके।

 क्या ईरानी दावे विश्वसनीय हैं? या तथ्यों को ब्रिटेन को जैसा को तैसा जवाब देने के लिए "निर्मित" किया गया है? कम से कम यह ईरान के अधिकार क्षेत्र में है अगर वहाँ वास्तव में स्ट्रेट (जलडमरू) में समुद्री उल्लंघन हुआ है। जबकि ब्रिटेन द्वारा ग्रेस 1 को जब्त करना ब्रिटेन का अधिकार क्षेत्र कहीं अधिक कठिन आधार पेश करता है।

 ईरान परमाणु समझौते से ट्रम्प के बाहर जाने से ईरान के मौजूदा संकट की शुरुआत होती है। लेकिन अमरिका का सौदे से बाहर जाने का कारण न तो ईरान की परमाणु क्षमता है और न ही उसका परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम है। ट्रम्प का मानना है कि अमेरिका, "अधिकतम दबाव" के माध्यम से – जिसे आर्थिक युद्ध कहा जाना चाहिए - ईरान को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर सकता है। ट्रम्प-पोम्पेओ की बारह मांगों के मूल में तीन मुख्य मांगें हैं: i)परमाणु प्रौद्योगिकी को छोड़ना ii) मिसाइल बनाने की क्षमता छोड़ना iii) अपनी सीमाओं के बाहर के देशों या समूहों से समर्थन वापस लेना। कुल मिलाकर ईरान को निरस्त्र बनने के लिए कहा जा रहा है; जिसका मतलब है कि ईरान किसी भी उन्नत तकनीक को विकसित न करें क्योंकि वह परमाणु और मिसाइल प्रौद्योगिकी दोनों के दोहरे उपयोग की प्रौद्योगिकियां हैं; और एक स्वतंत्र विदेश नीति के संचालन के अपने अधिकार का भी समर्पण कर दे। दूसरे शब्दों में कहे तो, उपरोक्त मांगें एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में ईरान की मौत की दस्तक हैं।

 अमेरिका ने स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को नियंत्रित करने के लिए नौसैनिक जहाजों का बेड़ा लगाने के लिए एक नए "गठबंधन के इच्छुक" होने का प्रस्ताव दिया है। इसके यूरोपीय सहयोगी - यहां तक कि यूके - भी इस तरह के बेडे में शामिल होने से सावधान हैं। हालाँकि, ब्रिटेन अमेरिका से अलग अपने जहाजों की सुरक्षा के बारे में बात कर रहा है, लेकिन आज भी उसकी नौसेना इस कार्य को करने के लिए बहुत कमजोर है: यह ईरानी जल में ईरान की मारक क्षमता से मेल नहीं खाती है। हालाँकि, ब्रिटेन का प्रतीकात्मक मूल्य है अगर वह अमेरिकी नौसेना के अभियानों में शामिल होता है। एक कठिन ब्रेक्सिट क्षितिज पर मंडराने की वजह से, यूके को एक अनुकूल अमेरिकी व्यापार सौदे की सख्त आवश्यकता है; यह उसे स्ट्रेट् ऑफ होम्रुज़ में अमेरिकी नौसैनिक दुर्व्यवहार में शामिल होने के लिए मजबूर कर सकता है।

 मैं इसे नौसैनिक कुशासन क्यों कहता हूं? मुझे विश्वास नहीं है कि अमेरिका, एक पारंपरिक युद्ध में, ईरानी मिसाइल बैटरियों, पनडुब्बियों और नौसैनिक नौकाओं को पूरी तरह से बेअसर कर सकता है और स्ट्रेट्स पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर सकता है। ईरान एक असममित युद्ध लड़ सकता है - जिसमें इसका एकमात्र उद्देश्य स्ट्रेट्स को बंद करना होगा, न कि उस पर "जीत" दर्ज़ करना। अमेरिका को न केवल स्ट्रेट्स को खुला रखना होगा, बल्कि 15 विषम अति विशाल क्रूड कैरियर्स (वीएलसीसी) सहित सभी जहाजों की रक्षा भी करनी होगी जो स्ट्रेट्स को हर दिन पार करते हैं। यहां तक कि अगर इन टैंकरों में से एक पर भी हमला होता है, तो इसका प्रभाव विनाशकारी होगा - न केवल समुद्री पर्यावरण पर, बल्कि माल ढोने वाले जहाजों और उनके बीमा पर भी। गनबोट कूटनीति केवल अमेरिका को कुछ दुर ले जा सकती है। लेकिन आज की स्वतंत्र दुनिया में, एकमात्र सहारा वास्तविक कूटनीति है।

 क्या हम यूएस-ईरान टकराव को देखते हुए युद्ध के करीब हैं? अगर हम परमाणु वैज्ञानिकों के डूमसडे क्लॉक का पालन करते हैं तो जाओ तेल के लिए भी एक समान हैं, तो हम युद्ध में शायद एक मिनट से आधी रात की दुरी पर हैं। दुनिया के लिए, विशेष रूप से दक्षिण, दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया, के क्षेत्र में एक युद्ध, दुनिया को तेल थोक में मुहैया कराता है विनाशकारी होगा। फिर हम वहां होने वाले दूसरे युद्ध की नीद में क्यों चल रहे हैं?

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