NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
‘हर घर से हमारा नाता है, हमें सरकार बदलना आता है’
एमपी सरकार के खिलाफ स्थायी रोजगार और वेतन वृद्धि की मांग को लेकर अपने विद्रोही तेवर के साथ सशक्त आशा और उषा (युसएए) कार्यकर्ता इस साल के अप्रैल से विरोध कर रहे हैं।
तारिक़ अनवर
13 Oct 2018
Translated by महेश कुमार
asha workers

 

वे हर गांव में मौजूद हैं, हर घर में जाते हैं, हर मां और हर बच्चे को जानते हैं। वे परिवार की  किसी भी बीमारी या परेशानी में परिवारों की मदद के लिए पहली पंक्ति में खड़े नज़र आते हैं। फिर भी, पूरे हफ्ते 24 घंटे काम करने के बावजूद उन्हें बहुत ही कम वेतन मिलता है।
ये आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) हैं और उषा (शहरी सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता है जो मध्यप्रदेश में इस साल के अप्रैल के बाद से विरोध कर रहे हैं। 2 और 3 अक्टूबर को भोपाल के पॉलिटेक्निक चौक पर ये मज़दूर इकट्ठा हुए सरकार से स्थायी रोज़गार और वेतन में बढ़ोतरी की मांग की। राज्य भर में 16 जिलों से आए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के घर से 200 मीटर की दूरी पर 11 अक्टूबर प्रदर्शन के एवज में लाठियों और गिरफ्तारियो का सामना करना पड़ा। आशा श्रमिकों में से एक ममता राजवत  पुलिस की मार से गंभीर रूप से घायल हो गयी थी।

उसे अस्पताल ले जाया गया और वह तब तक वहां रही जब तक कि उन्हें होश नहीं आ गया। "हम मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं और समाज में हमारा काफी सम्मान हैं, लेकिन सरकार हमें बदस्तूर अपमानित कर रही है। गर्भावस्था से निपटने की बड़ी ज़िम्मेदारी होने के बावजूद, हमें कोई वेतन नहीं मिलता है। हम प्रोत्साहनों (काफी कम पैसे) पर काम करते हैं – जिसके लिए 25 दिनों के काम के लिए मात्र 6,200 रुपये मिलते है। "पूजा कन्नौजीया ने न्यूज़क्लिक को विरोध प्रदर्शन के दौरान बताया। उन्होंने कहा कि, "हमने शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर के लिए साल दर साल घटती  दर में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, और यहां तक ​​कि घटती प्रजनन दर में भी। फिर भी, हमें कुछ नहीं मिलता है। हमें पूरे हफ्ते और 24 घंटे काम करने और हर समय तैयार रहने के लिए  कहा जाता है।

इसके अलावा, नौकरशाही हमें कई अन्य कार्यो के अलावा खाना पकाने और त्योहारों के आयोजन से जुड़े सर्वेक्षण करने का काम भी देती है। "मीरा काशिय, डिण्डोरी जिले की एक आशा कार्यकर्ता, ने कहा कि वे (आशा कार्यकर्ताओं) एक मिनट के लिए भी खाली नहीं है हर दिन हर समय वे महिलाओं का घर- घर जाकर दौरा करती हैं, उनके बच्चों की जांच करते हैं  हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि हर कोई ठीक रहे। "इसके बाद, हम चार्ट भरते हैं और सारी कागजी कार्यवाही पूरी करते हैं। हम अक्सर आधी रात को अस्पतालों में महिलाओं को प्रसूति के दौरान ले जाते हैं। लेकिन बदले में हमें सरकार से क्या मिलता हैं? कुछ भी नहीं। चेहरे पर क्रोध और विद्रोही तेवर में उन्होंने कहा कि प्रोत्साहन/वेतन से घर का खर्चा नही चलता है त्यौहार मनाना तो दुर की बात " 

आशा ने सरकार बदालने की धमकी दी 

विरोध प्रदर्शन के दौरान महिलाएँ इतना उत्तेजित थी कि वे 'अभी करो जल्दी करो, हमको स्थायी करो, हमारे काम को नियमित करो के बड़े पैमाने पर नारे लगा रही थी और इन्ही गगनभेदी नारों ने साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के संबंध में वे बीजेपी की सरकार को भी धमकी दे रहे थे कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो "हर घर से हमारा नाता है, हमें सरकार बदलना आता है' और' मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बारे में कहा, ‘मामा नही क़साई है, कंस का छोटा भाई है’। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री चौहान को लोकप्रिय रूप से मामा कहा जाता है। लक्ष्मी कौरव और अमृता आनंद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पुलिस ने आशा श्रमिक लक्षमी और पांच अन्य के खिलाफ थाने में मामला दर्ज किया है। उन्हें केवल शिकायत संख्या दी गयी है लेकिन उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति के बारे में नही बताया गया है। कई आशा और यूएसएचए कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे मुख्यमंत्री से मिली थी, जिन्होंने वादा किया था कि सरकार उनकी मांगों को पूरा करने के लिए कुछ करेगी। "सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली हमारे बिना औंधे मुँह गिर जाएगी क्योंकि हम ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में काम करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे काम के दम पर ही दावा करते हैं। फिर भी, हमारे साथ खराब व्यवहार हो रहा हैं। हम सम्मान का जीवन और जीने लायक वेतन चाहते हैं, जिसे संविधान में सुनिश्चित किया गया है। " मध्य प्रदेश में, एक आशा कार्यकर्ता ने कहा कि उन्हे  800 और 1000 रुपये प्रति माह मिलते है चूंकि यह भुगतान उनकी गतिविधियों से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, उन्हे नौ महीने कई 'प्रसव पूर्व की देखभाल, और संस्थागत प्रसव के लिए 250 रुपये का भुगतान किया जाता है। अधिकांश अन्य राज्य एक निश्चित मानदंड प्रदान करते हैं जिससे इन प्रोत्साहन के जरीए कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन सुनिश्चित किया जा सके।

बुरी दशा 
आशा और यूएसएचए को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है। वे आशा और उषा मज़दूर  (जो की निगरानी और स्वास्थ्य क्षेत्र में आशा कार्यकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराई गई सेवाओं के समन्वय का काम करती हैं) उनके लिए प्रति माह 10,000 रुपए और 25,000 आशा सह्योगिनी के लिए मांग की है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमएचएफडब्ल्यू) यह भी स्वीकार करता है कि आशा श्रमिक कई गांवों में लोगों के लिए चिकित्सा देखभाल के लिए संपर्क का पहला टापू है। और, इसलिए, उन्हें इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि वे बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। खराब संचार व्यवस्था, बढ़ती पेट्रोल की कीमतें और महंगा परिवहन आशा श्रमिकों के लिए एक चुनौती है क्योंकि उन्हे गाँव- गाँव घूमना पड़ता है। एमएचएफडब्ल्यू की यह रिपोर्ट जुलाई 2017 में प्रकाशित हुई है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता को के बारे में रिपोर्ट कहती है कि उन्हे बैंक खातों को खोलने में और पैसा निकालने में बैंकिंग सेवाओं की खराब पहुंच के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। "आधार कार्ड केवल जिला मुख्यालय में उपलब्ध कराए गए हैं, और इन्हे पाने के लिए वे शहर में यात्रा करने में वे सक्षम नहीं हैं। आधार के साथ बैंक खातों द्वारा भुगतान जोड़ने के हालिया नियम से, "आशा मज़दूरों को समय पर भुगतान प्राप्त करना मुश्किल हो गया है,"। मध्य प्रदेश 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने जा रहा है, और उत्तेजित आशा / उषा कार्यकर्ताओं ने राज्य भर में अपनी व्यापक पहुंच के साथ, चौहान सरकार के लिए एक गंभीर सिर दर्द बन सकता है।
 
 

asha wokers
Madhya Pradesh
usha workers
Shivraj Singh Chauhan

Related Stories

परिक्रमा वासियों की नज़र से नर्मदा

कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

एमपी ग़ज़ब है: अब दहेज ग़ैर क़ानूनी और वर्जित शब्द नहीं रह गया

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौर में फूड फ़ार्मा ऑयल और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने जमकर कमाई की।
  • परमजीत सिंह जज
    ‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप
    26 May 2022
    पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
  • virus
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या मंकी पॉक्स का इलाज संभव है?
    25 May 2022
    अफ्रीका के बाद यूरोपीय देशों में इन दिनों मंकी पॉक्स का फैलना जारी है, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मामले मिलने के बाद कई देशों की सरकार अलर्ट हो गई है। वहीं भारत की सरकार ने भी सख्ती बरतनी शुरु कर दी है…
  • भाषा
    आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद
    25 May 2022
    विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"
    25 May 2022
    हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License