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भारत
राजनीति
हरियाणा चुनाव : क्या असली मुद्दे फिर रहेंगे ग़ायब?
भाजपा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने को और कांग्रेस विधानसभा चुनाव में आर्थिक मंदी को चुनावी मुद्दा बनाने में लगी हुई है, इस बीच न्यूज़क्लिक टीम ने गुरुग्राम जा कर हरियाणा के लोगों से बात की और जानने की कोशिश की कि उनके ठोस मुद्दे क्या हैं।
मुकुंद झा
30 Sep 2019
हरियाणा चुनाव : क्या असली मुद्दे फिर रहेंगे ग़ायब?

गुड़गांव यानी गुरुग्राम के कमला नेहरू पार्क दोपहर में उन सभी मज़दूरों से भरा हुआ था, जिन्हें उस दिन काम नहीं मिल पाया था। कुछ पैर फैला कर लेटे थे, कुछ अपनी क़िस्मत ताश के खेल में आज़मा रहे थे, तो कुछ चुनाव की चर्चा में भी मशगूल थे।

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पार्टी के पर्चे और टीवी बहस के शोर से दूर, हरियाणा में मतदाता सोच रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में किस उम्मीदवार को चुनना है। इस चुनावी चर्चा के दौरान एक दिहाड़ी मज़दूर ने अपने वोट और अपनी चुनावी इच्छा को बताते हुए एक सवाल पूछा “धारा 370 ख़त्म हुआ, उससे हमारा क्या फ़ायदा हुआ?”

हरियाणा में 21 अक्टूबर को चुनाव होने हैं और राज्य अब पूरी तरह से इसके लिए तैयार है। यह लड़ाई 90 विधानसभा सीटों पर है और अगली सरकार किस की होगी इसका निर्णय लगभग 1.83 करोड़ योग्य मतदाता तय करेंगे। 'मिशन 75 प्लस' के साथ, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में सत्ता बनाए रखने का लक्ष्य लेकर चल रही है। हालांकि, कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) जैसे प्रमुख विपक्षी दलों के होने से बीजेपी के लिए यह आसान नहीं है, और आम आदमी पार्टी (आप) ने भी पिछले पांच वर्षों में राज्य सरकार की घेरने के लिए कमर कस ली है।

भाजपा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने और हरियाणा में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने को मुद्दा बना रही है। जम्मू-कश्मीर के घटनाक्रम का समर्थन करते हुए एक जन जागरण अभियान (जन जागरूकता अभियान) शुरू किया जाएगा। इस कार्यक्रम में, पार्टी देश भर में 370 छोटी इनडोर बैठकें और 35 बड़ी बैठकों का आयोजन करेगी, जिसमें से 6 बैठकें जम्मू-कश्मीर में होंगी।

दूसरी तरफ़ कांग्रेस विधानसभा चुनाव में देश और राज्य में चल रही आर्थिक मंदी के आसपास टोन सेट करने के लिए लगी हुई है। हरियाणा राज्य में प्रमुख मोटर वाहनों की विनिर्माण इकाइयों का गढ़ है और मंदी की वजह से ऑटो सेक्टर में भारी गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन में कटौती हुई है और लाखों श्रमिक अपनी नौकरी खो रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पार्टी ने मंदी को उजागर करने के लिए देश भर में राज्य स्तर पर 20 से 30 सितंबर तक सम्मेलनों का आयोजन किया है।

क्या हरियाणा राज्य में 'सब कुछ ठीक है'? हरियाणा के लोगों का कोई ठोस मुद्दा नहीं है जो उनके जीवन को प्रभावित करता है? वैसे, इसका उत्तर सभी भारतीय भाषाओं में नकारात्मक ही होगा।

सबसे पहले हम श्रमिकों की बात करते हैं। हरियाणा राज्य में वर्तमान में बड़े पैमाने पर ठेकाकरण और कर्मचारियों का बड़ी संख्या में सामान्यीकरण (casualization) हो रहा है। यह राज्य सरकार के विभिन्न विभागों से संबंधित कर्मचारियों की नौकरियों को नियमित करने के लिए समय-समय पर शुरू की गई पॉलिसी होने के बावजूद है। श्रमिकों के कई विरोध प्रदर्शन हाल ही में हुए हैं जिनके बारे में न्यूज़क्लिक ने आपको बताया भी है, जिसमें से उल्लेखनीय थे कंप्यूटर शिक्षकों का पंचकुला में प्रदर्शन, और वन मज़दूरों के प्रदर्शन के अलावा कई अन्य श्रमिकों के अलग-अलग समस्याओं पर विरोध प्रदर्शन।

इसके अतिरिक्त, राज्य में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा ने भी एक भय का माहौल बनाया हुआ है। इस तरह के कई मामले हुए हैं। ऐसी ही एक घटना टिटौली गांव में हुई थी ,जहाँ सर पर टोपी पहने और दाढ़ी रखने से मुस्लिम समुदाय पर रोक लगाने के लिए एक तुग़लकी फ़रमान जारी किया गया था। जिसके बाद गुरुग्राम के धमसपुर गांव में 20-25 लोगों ने हाथों में हथियार लेकर एक मुस्लिम घर मे घुसकर उनके साथ मारपीट की थी। हाल के दिनों में इस तरह की घटनाओं ने एक भय पैदा किया है, जो हरियाणा में मुसलमानों के रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित कर रहा है।


सरकार के किसान विरोधी दृष्टिकोण के वजह से, हरियाणा की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। राज्य के 40,000 से अधिक किसान अपनी उत्पादक कृषि भूमि को रोज़मार्ग निर्माण प्रक्रिया में खोने जा रहे हैं। जिसके लिए किसानों ने कई विरोध प्रदर्शनों किये हैं और लगातार कर रहे हैं।

इन सभी के अलावा, राज्य में प्राथमिक और उच्च शिक्षा की बदतर हालत, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा, और जातिगत संघर्ष जैसे ज्वलंत मुद्दे अभी इस चुनाव में राजनीतिक दलों की चर्चाओं से बाहर हैं।
इस बीच जैसे-जैसे शाम क़रीब आ रही थी, एक कार्यकर्ता के एक बयान ने उन तमाम आवाज़ों के बीच ध्यान आकर्षित किया, जो मौजूदा मनोहर लाल खट्टर के साथ अपनी शिकायतों के बारे में बात कर रहे थे।
उन्होंने घोषणा की "मेरा वोट अभी भी मोदी को जाता है!" इस वाक्य ने मोदी लहर की मौजूदगी की ओर संकेत किया, जिस पर सवार होकर, बीजेपी ने अपने ख़राब प्रदर्शन के बावजूद, कई राज्य के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है।
2014 में उसी मोदी लहर की पृष्ठभूमि में, भाजपा सरकार ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में बंपर जीत दर्ज की थी। तब 90 में से 47 सीटें जीती थी। हालाँकि हाल ही में संपन्न चुनावों में, पार्टी राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों को जीतकर काफ़ी आश्वस्त दिख रही है। लेकिन अब यह देखना है कि विपक्ष इस बार हवा का रुख बदल सकता है या नहीं।


राजनीतिक दलों का समीकरण
2014 के विधानसभा चुनाव में 90 सीटों में से भाजपा ने 47 सीट जीतकर हरियाणा के इतिहास में पहली बार अकेले सरकार बनाई थी। सीएम मनोहर लाल मुख्यमंत्री चुने गए थे। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) 19 सीट जीतकर सबसे बड़ा विपक्षी दल बना था। कांग्रेस केवल 15 सीटें जीत पाई, जबकि अन्य उम्मीदवारों ने 9 सीटें जीती थीं।
2019 के लोकसभा चुनावो में बीजेपी ने एकतरफ़ा चुनाव जीता और लोकसभा में 10 की 10 सीटें जीत दर्ज की। जबकि कांग्रेस 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी।
इस बार हरियाणा में बीजेपी, कांग्रेस, इनेलो, जेजेपी, आप, बसपा सहित सभी मुख्य राजनीतिक दलों ने बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है।


बीजेपी एक बार फिर राष्ट्रवाद की नाव पर सवार

एकतरफ़ा राष्ट्रवाद उसका मुख्य मुद्दा है तो दूसरी तरफ़ भाजपा में सेलिब्रिटीज़ का आना जारी है। पार्टी को उम्मीद है उनसे भी चुनाव में फ़ायदा मिलेगा। लेकिन यह भी सच है कि कई लोग इससे नाराज़ हैं कि पार्टी के पुराने नेताओं की जगह सेलिब्रिटीज़ को अधिक महत्व दिया जा रहा है।

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कांग्रेस को हुड्डा से उम्मीद

लोकसभा चुनाव में क़रारी हार हुई थी लेकिन कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन किया था। जिसमें हिसार सीट को छोड़ दें तो कांग्रेस 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। पार्टी ने लोकसभा में हार के बाद अंदरूनी गुटबाज़ी से निपटने के लिए संगठन में बदलाव किये। सैलजा कुमारी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है और हुड्डा को सीएलपी लीडर का पद दिया है। हुड्डा के आ जाने से कांग्रेस लड़ाई में वापस आती दिख रही है।
 

इनेलो से बेहतर स्थिति में जेजेपी
इनेलो अब बिल्कुल बिखर चुकी है। चौटाला परिवार के टूटने के बाद जननायक जनता पार्टी का गठन हुआ था। जेजेपी ने सबसे ज़्यादा इनेलो को नुक़सान पहुंचाया है। जेजेपी मौजूदा समय में इनेलो से मज़बूत नज़र आ रही है।
आप और बसपा ने भी इस बार अकेले मैदान में उतरने का फ़ैसला किया है।

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