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हरियाणा सरकार ने संविदाकर्मियों की दिवाली काली कर दी
रोडवेज कर्मचारी 18 दिनों की हड़ताल को खत्म कर वापस अपने काम पर लौट आए हैं, जिसके बाद तीन महीने की संविदा पर नौकरी पर रखे गए कर्मचारियों को सरकार ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
मुकुंद झा
07 Nov 2018
Haryana roadways
Image Courtesy: NDTV

हरियाणा में अभी कुछ दिन पहले ही सरकार व उसके मंत्री कह रहे थे कि हरियाणा रोडवेज में पहली महिला कंडक्टर बनी है, लेकिन अब उस पहली महिला कंडक्टर ने अपनी  नौकरी खो दी है। और ऐसी वो अकेली कर्मचारी नहीं हैं।

दरअसल रोडवेज कर्मचारी 18 दिनों की हड़ताल को खत्म कर वापस अपने काम पर लौट आए हैं, जिसके बाद तीन महीने की संविदा पर नौकरी पर रखे गए कर्मचारियों को सरकार ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

32 वर्षीय रेवाड़ी निवासी शर्मिला, जो दो बेटियों की मां हैं, उन्हें  सरकार द्वारा तीन महीने की संविदा पर रोडवेज कंडक्टर पद पर उस समय रखा गया था जब हड़ताल के कारण राज्य की सार्वजनिक परिवहन सेवा पूरी तरह से चरमरा गई थी।  तब इनके जैसे ही सैकड़ों लोगों ने रोडवेज की कमान को संभला था। लेकिन हड़ताली कर्मचारियों के काम पर लौटने के एक दिन बाद ही, शर्मिला के साथ ही सैकड़ों अन्य कर्मचारी जिन्हें इस हड़ताल के दौरान सरकार ने काम पर रखा था को काम से बर्खास्त कर दिया, जिससे यह साफ हो गया है कि हरियाणा सरकार ने इन लोगों को केवल कर्मचारियों के आंदोलन को तोड़ने के लिए एक हथियार की तरह प्रयोग करके छोड़ दिया।

शर्मिला जो अपने पांव से 40% विकलांग हैं के हिंदुस्तान टाइम्स में छपे बयान के अनुसार, उन्होंने कहा "सरकार ने मेरी दिवाली बर्बाद कर दी है। मैं ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के बारे में सरकार द्वारा बड़ी बड़ी बाते करने के बाद से स्थायी नौकरी पाने की उम्मीद कर रही थी। मेरे बाद दो और महिलाएं रोडवेज में कंडक्टर के रूप में शामिल हुईं। सरकार हमें एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकती थी और हम तीनों की नौकरियों को बचा सकती थी। लेकिन इस सरकार ने तो हमें तीन महीने तक भी काम नहीं करने दिया। हमने संकट के समय में सरकार की मदद की। लेकिन सरकार ने हमारे जीवन में संकट के लिए कोई ध्यान नहीं दिया और हमें दूध में से मक्खी की तरह निकाल दिया।"

शर्मिला ने कहा कि वह एक गरीब पृष्ठभूमि से आती है और पिछले आठ सालों से अपने परिवार का समर्थन करने के लिए नौकरी तलाश कर  रही थी। "जब मैंने यहां रिक्ति देखी, तो मैंने आवेदन किया और नौकरी मिल गई। मैंने काम सीखा था और बिना किसी समस्या के इसे करने में सक्षम थी। मैंने सोचा कि मैं अपने परिवार के भविष्य को सुरक्षित कर सकती हूं। लेकिन अब सब कुछ बिखरा हुआ दिखता है।”

सरकार का कहना है कि " नए कर्मचारियों को अनुबंध के आधार पर लिया गया था और यह उनके कार्य पर रखने से पूर्व ही स्पष्ट कर दिया गया था उन्हें जरूरत खत्म होने के बाद हटा दिया जाएगा।

इसके बाद भी सैकड़ों बेरोजगार युवाओं ने रोडवेज में कार्य करना शुरू किया क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। शायद उन्हें यह उम्मीद नहीं थी की सरकार उन्हें सप्ताह भर के भीतर ही खदेड़ देगी। 

एक ऐसे ही नवनियुक्त कंडक्टर ने बताया कि उसके सामने एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि वो क्या करेगा, वो कहते हैं कि उसने कभी नहीं सोचा था की वो मध्यरात्रि में लाइनों में खड़ा इसलिए हो रहा की उसे केवल एक सप्ताह में भगा दिया जाएगा |

अब ये हटाए गए  कर्मचारी राज्य के कई स्थानों पर, बर्खास्तगी के खिलाफ धरना दे रहे हैं और सरकार के इस रवैये की निंदा कर रहे हैं।

कुछ प्रदर्शनकारियों ने कहना है कि उन्होंने सड़क मार्गों के लिए आवेदन करने के लिए अपनी नियमित नौकरियां छोड़ दी क्योंकि तीन महीनों के बाद संभावित स्थायी नौकरी का उल्लेख किया गया था। लेकिन उन्होंने हमें एक सप्ताह तक काम नहीं करने दिया। अब हम पूरी तरह से बेरोजगार हैं।

रोडवेज कर्मचारियों ने भी इन संविदा कर्मियों के प्रति सहानुभूति जताई हैं। उनका कहना है कि वे पहले से जानते थे कि ये सरकार इन युवाओं का इस्तेमाल सिर्फ हमारा आंदोलन कमजोर करने के लिए कर रही है। ये बात ये युवा भी अच्छी तरह जानते थे। इसलिए इन्हें अपने ही कर्मचारियों के खिलाफ सरकार की ऐसी चालों में नहीं फंसना चाहिए। हालांकि बेरोजगारी इतनी है कि युवा भी मजबूर हैं। इसलिए अब युवाओं को सरकार के हाथों इस्तेमाल होने की बजाय रोजगार की मांग को लेकर मजबूत आंदोलन करना चाहिए। इसमें हम भी इनका साथ देंगे।

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