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असम : बड़े-बड़े चाय बागानों वाले “बेहाली” में ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
बेहाली के पास ज़िला अस्पताल की सुविधा तक नहीं है। बेहाली असम के कमज़ोर स्वास्थ्य तंत्र की गवाही देता है। यहां की कमज़ोर स्वास्थ्य सुविधाओं, खासतौर पर कोविड महामारी के दौर में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट खड़ा कर दिया है।
संदीपन तालुकदार
13 Jan 2022
Berang goodrick
असम के बेहाली में बारगांग टी एस्टेट। इस चाय बागान की मालिक गुडरिक है।

असम की चाय बागानों की अर्थव्यवस्था में बेहाली एक अहम जगह है और यहां बड़ी संख्या बागानों में काम करने वाले मज़दूर रहते हैं। लेकिन अब भी, जब पिछले दो सालों से पूरे देश में महामारी तबाही मचा रही है, तब भी बेहाली की स्वास्थ्य सुविधाएं खस्ताहाल हैं। कोविड सुविधाओं की तो बात छोड़िए, यहां मरीज़ों के बुनियादी इलाज़ की सुविधाएं मुश्किल हो जाती हैं।

राज्य के मध्य में स्थित, बिश्वानाथ जिले में आने वाले बेहाली में बड़े-बड़े चाय बागान हैं। बल्कि यहां असम का सबसे बड़ा चाय बागान मोनाबाड़ी टी एस्टेट भी मौजूद है। इस बागान की मालिक मैक्लियोड रसेल हैं और यह विलियमसन मैगोर समूह का हिस्सा है। मोनाबाड़ी टी एस्सेट ना केवल असम का सबसे बड़ा चाय बागान होने का दावा करता है, बल्कि एस्टेट का कहना है कि वो दुनिया का सबसे बड़ा चाय बागान है। बेहाली में बोरगांग टी एस्टेट (गुडरिक कंपनी के स्वामित्व वाला), बेहाली टी एस्टेट (विलियमसन मेगर), केटल टी एस्टेट, गिंजिया टी एस्टेट समेत कई दूसरे चाय बागान भी मौजूद हैं। बड़े उद्यमियों द्वारा चलाए जाने वाले चाय बागानों के अलावा यहां कई छोटे चाय उत्पादनकर्ता भी मौजूद हैं।

बेहाली की इस अर्थव्यवस्था के चलते यहां असम के चाय कामग़ारों की एक बड़ी संख्या रहती है। मुख्यत: झारखंड और ओडिशा के आदिवासियों को अंग्रेजों के दौर में यहां काम करने के लिए जबरदस्ती लाया गया था। लेकिन आज भी कामग़ारों का यह ज़्यादातर समुदाय बेहद बदहाल स्थिति में जी रहा है, जबकि विलियमसन मेगर और मैक्लियोड रसेल जैसी कंपनियां उनके श्रम का फायदा उठाकर जबरदस्त मुनाफ़ा कमा रही हैं। बेहाली में असम के मूल आदिवासियों की भी बड़ी आबादी है, साथ ही असम के गैर-आदिवासी लोग भी यहां रहते हैं। लेकिन आर्थिक अहमियत के बावजूद, इस जगह में अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी बुनियादी सेवाओं की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। 

इन चीजों को देखने के लिए न्यूज़क्लिक बेहाली पहुंचा, जहां हमने ना केवल टी एस्टेट, बल्कि बाहर की सुविधाओं का भी जायजा लिया। बागान के भीतर सिर्फ़ इतनी ही सुविधाएं होती हैं कि जिससे कामग़ार किसी तरह जिंदा रह सकें। लेकिन बाहर भी सरकार ने तंगहाली में जी रहे कामग़ारों के लिए जीवन आसान नहीं बनाया है। 

बेहाली, बिश्वनाथ जिले में एक ब्लॉक है। बिश्वनाथ जिले को 2015 में सोनितपुर से अलग कर जिला बनाया गया था। जिला प्रशासन का वेब पेज बताया है कि जिले में 6 लाख से ज़्यादा की आबादी है। इसके मुताबिक़, जिले में दो सब-डिवीज़नल सिविल हॉस्पिटल हैं, मतलब जिले में कोई भी सर्व सुविधा संपन्न सिविल हॉस्पिटल या जिला अस्पताल अब तक नहीं है।

फिर जिले में कुछ मॉडल हॉस्पिटल भी हैं, साथ में कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) भी यहां मौजूद हैं। इसके अलावा 100 से ज़्यादा स्वास्थ्य उपकेंद्र हैं। गौर करने वाली बात है कि जिला अस्पताल और मॉडल हॉस्पिटल में मरीज़ों को भर्ती करने की सुविधाएं हैं; जबकि दूसरे स्वास्थय सुविधा केंद्रों पर सिर्फ़ बुनियादी सुविधाए हैं, हालांकि इनमें से कुछ में मरीज़ों को भर्ती करने की बहुत थोड़ी सी सुविधाएं भी हैं। 

बोरगांग मॉडल हॉस्पिटल बेहाली में राष्ट्रीय राजमार्ग-15 पर स्थित है, जो बेहाली से बिश्वनाथ को जोड़ता है। दोपहर तीन बजे वहां पहुंचने पर न्यूज़क्लिक ने पाया कि हॉस्पिटल पूरी तरह खाली पड़ा हुआ है। वहां हमने डॉ सुजित शांडिल्य से बात की, जो आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं। उस दिन उन्हीं की ड्यूटी थी। 

हमने पूरे असम में डॉक्टरों की कमी को पाया, इस मुद्दे पर बात करते हुए शांडिल्य ने हमें बताया कि यहां स्थानांतरण होने के बाद कुछ डॉक्टर दूसरे अस्पतालों में अटैचमैंट करवा लेते हैं। मतलब नियुक्ति इस अस्पताल में होने के बावजूद, सेवाएं दूसरे अस्पताल परिसर में देते हैं।" बता दें स्वास्थ्य सुविधाओं को कमज़ोर करने वाली प्रक्रिया पूरी असम में हमने देखी। 

असम में मॉ़डल हॉस्पिटल की शुरुआत शहर से दूर रहने वाली आबादी को आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लक्ष्य के साथ हुई थी। मॉडल हॉस्पिटल में ओटी (ऑपरेशन थिएटर) होता है, ज़्यादातर में एक्स-रे, सोनोग्राफी जैसे अन्य उपकरण भी मौजूद होते हैं। आमतौर पर यह अस्पताल दूसरे भार से मुक्त होते हैं, जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को उठाने होते हैं। लेकिन न्यूज़क्लिक ने पाया कि अच्छी भवन-संरचना होने के बावजूद श्रम की बड़ी कमी के चलते मॉडल हॉस्पिटल अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। डॉ शांडिल्य भी इस चीज से कुछ हद तक सहमत हैं। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन थिएटर और सोनोग्राफी उपकरण मॉडल हॉस्पिटल में सुचारू नहीं हैं, क्योंकि यहां उन्हें चलाने वाले डॉक्टर नहीं हैं। 

बोरगांग मॉडल हॉस्पिटल 50 बिस्तरों वाला अस्पताल है। लेकिन डॉ शांडिल्य ने बताया कि वास्तविकता में हॉस्पिटल आईपीडी (इन-पेशेंट डिपार्टमेंट) पूरी तरह चालू नहीं है, क्योंकि परिसर में किचन की कमी है। मॉडल हॉस्पिटल में सात जीएनएम नर्स (जनरल नर्सिंग मिडवाइफ) हैं। एक एनजीओ द्वारा उपलब्ध कराई गई एंबुलेंस भी है, लेकिन वह भी नियमित सेवा नहीं देती। 108 इमरजेंसी सर्विस ही एकमात्र एंबुलेंस सेवा है, जिससे गंभीर मरीज़ों को दूसरे उच्च स्तर के अस्पतालों तक पहुंचाया जाता है। 

लेकिन अस्पताल को फिर भी कोविड-19 के इलाज़ की जिम्मेदारी दी गई थी। महामारी के चरम के दौरान अस्पताल में 40 मरीज़ भर्ती हो सकते थे। तब खाने की व्यवस्था जिला प्रशासन कर रहा था। तब एंटी-पायरेटिक और एंटी-बॉयोटिक जैसी बुनियादी दवाएं अच्छी मात्रा में उपलब्ध थीं। लेकिन खून के थक्कों से पीड़ित लोगों के इलाज़ के लिए हर्पिन नहीं थी। जब हमने रेमडेसिविर के बारे में पूछा तो डॉ शांडिल्य ने इस संबंध में किसी भी तरह की जानकारी न होने की बात कही। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा कि किसी भी दौर में ऑक्सीजन की कमी महसूस नहीं की गई। डॉ शांडिल्य कहते हैं, "जिला प्रशासन ने दूसरी जगहों से बुलाकर इस अस्पताल में डॉक्टरों की तैनाती करवा दी थी, फिर आसपास भी कोविड सुविधा केंद्र मौजूद थे, जहां हम मरीज़ों को स्थानांतरित कर सकते थे।"

लेकिन डॉ शांडिल्य ने कुछ बहुत दिलचस्प चीज बताई। उन्होंने बताया कि इस अस्पताल के कोविड सुविधा केंद्र बनने से पहले, या यूं कहें कि महामारी से पहले अस्पताल में औसत तौर पर 200 मरीज़ आते थे। लेकिन अब यह आंकड़ा गिरकर 20-25 हो गया है। इसके पीछे मुख्य वज़ह लोगों में कोविड-19 की जांच का डर हो सकता है।

यहां आने वाले ज़्यादातर मरीज़ चाय बागानों में काम करने वाले समुदाय से आते हैं। यहां टीबी के अलावा एनीमिया के मरीज़ बड़ी संख्या में आते हैं। इसमें पुरुष और स्त्री दोनों शामिल हैं। डॉ शांडिल्य ने कहा कि इसकी वज़ह पोषण की कमी हो सकती है, जो चाय बागान में काम करने वाली आबादी में बड़े पैमाने पर मौजूद है। 

बोरगांग मॉडल हॉस्पिटल से कुछ दूरी पर जिंजिया पीएचसी है। यहां एक डॉक्टर (एक दूसरा डॉक्टर बोरगांग मॉ़डल हॉस्पिटल में सेवाएं दे रहे हैं), 2 एएनएम और 2 जीएनएम नर्से हैं। हमारी यात्रा के दौरान डॉ बबूल केओट ने बताया कि इस स्वास्थ्य केंद्र को 56,456 लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करानी होती हैं। डॉ केओट ने कहा कि इतनी अंदरूनी पीएचसी में डॉक्टर सुविधाएं देने के लिए आना पसंद नहीं करते। इसलिए यहां सकट बड़ा हो गया है। 

इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) को मोनाबाड़ी और जिंजिया टी एस्सेट की निगरानी भी करनी पड़ती है, खासकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत दवा आपूर्ति पर नज़र रखनी पड़ती है। डॉ केओट कहते हैं, "हम टी-एस्टेट में बने अस्पतालों में जाते हैं, कई बार जब वे हमें बुलाते हैं, तब हम जाते हैं।"

जिंजिया पीएचसी में एक एंबुलेंस है। डॉ केओट के मुताबिक़ इसका इस्तेमाल बहुत ज़्यादा गंभीर मामलों में किया जाता है। इस स्वास्थ्य केंद्र के आसपास चाय बागान में काम करने वाले कामग़ारों के समुदाय के अलावा दूसरी जनजातीय आबादी भी रहती है। गर्मियों में, बीमारियों के चरम दौर में मरीज़ों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि डॉक्टर को एक दिन में 100 मरीज़ तक देखने पड़ते हैं। टीपी, एनीमिया, श्वसन संक्रमण, एलिफेंटियासिस (हाथीपांव) इन समुदायों में होने वाले कुछ नियमित रोग हैं।

कोरोना के चरम दौर में पीएचसी ने लक्षित जांच की थी, जिसमें निम्न से औसत कोविड पॉजिटिविटी पाई गई थी। लेकिन इन लोगों को मरीज़ों को पास के कोविड सुविधा केंद्र (जो स्कूलों या किसी सार्वजनिक भवन में बनाए जाते थे) या जिला अस्पताल भेजना होता था। 

बेहाली बीपीएचसी (ब्लॉक पीएचसी) कई मायनों में अहम है। बेहाली में यह अस्पताल सबसे ज़्यादा व्यस्त दिखाई पड़ता है। जब न्यूज़क्लिक ने स्थानीय लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि वे मॉडल हॉस्पिटल के ऊपर बीपीएचसी को प्राथमिकता देते हैं। एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, "ऐसा दवाईयों और सुविधाओं में मौजूद अंतर की वज़ह से है।" लेकिन बीपीएचसी तक, मॉडल हॉस्पिटल की तरह आसानी से पहुंच उपलब्ध नहीं है। बीपीएचसी तक पहुंचने के लिए आपको कई गांवों से होकर जाना पड़ता है। 

बीपीएचसी के एसडीएम व एचओ (सब डिवीज़नल मेडिकल व स्वास्थ्य अधिकारी) डॉ जगन चंद्र बे ने बताया कि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र में श्रमशक्ति बहुत अहम होती है। उन्होने बताया कि अस्पताल में दो एसएमओ (सीनियर मेडिकल ऑफ़िसर, जो डॉक्टर होते हैं) और एक आयुर्वेदिक डॉक्टर के पद रिक्त हैं। डॉ बे और अनिवार्य ग्रामीण पद नियुक्ति के तहत आए एक डॉक्टर अस्पताल में तब मौजूद थे। बीपीएचसी में 2 एएनएम और 4 जीएनएम हैं। डॉ चंद्र बे ने बताया, "एसडीएम-एचओ को प्रशासनिक कार्यों और मरीजों दोनों को देखना होता है। इतने कम डॉक्टरों के साथ इस सबका प्रबंधन हमारे ऊपर बहुत दबाव बना देता है।" 

बेहाली बीपीएचसी में नियमित आधार पर टीबी का "डॉट ट्रीटमेंट", गर्भवती महिलाओं की जांच, मलेरिया का इलाज़, एचाईवी की थेरेपी, प्रसव सेवा और पोस्ट मार्टम जैसे काम होते हैं। बेहाली बीपीएचसी जिले का पोस्टमार्टम केंद्र है। यह अस्पताल एक माइक्रोस्कोपिक सेंटर भी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सरकार की संवेदनहीनता है कि इतने व्यस्त स्वास्थ्य केंद्र को इतने कम डॉक्टरों के साथ चलाया जा रहा है।  

डॉ बे कहते हैं कि पोस्टमार्टम करने के लिए कोई पूर्णकालिक डॉक्टर नहीं है, ऐसे में सीधे उन्हीं के पास समन आता है और उन्हें अकसर कोर्ट के सामने पेश होना पड़ता है। न्यूज़क्लिक से 45 मिनट तक बातचीत के बीच में ही डॉक्टर बे के पास दो समन आ गए। उन्होंने कहा कि औसत तौर पर बीपीएचसी में पोस्टमार्टम के 25 केस आते हैं और जबकि यहां सिर्फ़ एक ही डॉक्टर की नियुक्ति है। स्थायी सफाईकर्मी के आभाव में भी ठीक से साफ़-सफाई नहीं रह पाती। 

बीमारियों के चरम दौर (अक्सर गर्मियों में) अस्पताल को रोजाना करीब़ 150-200 मरीज़ देखने पड़ते हैं। इसके साथ ही बीपीएचसी में प्रसव की दर भी ज़्यादा है। बे याद करते हैं कि एक बार एक महीने में 100 प्रसव हुए थे। वे कहते हैं, "अब हमारे पास तीन स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र हैं, जो खासतौर पर प्रसव सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं। वहां सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी और नर्स अपनी सेवाएं देते हैं।"

बे ने यह भी कहा कि इलाके में टीबी भी बहुत ज़्यादा फैलती है। खासकर चाय बागान के मज़दूरों में यह ज़्यादा समस्या पैदा करती है। इसके चलते उनकी प्रतिरोधक क्षमता भी कमज़ोर होती है, वे कुपोषण के शिकार होते हैं। उन्होंने कहा कि एक बाद कुछ चाय बागानों में फिलारियासिस का बड़ा संक्रमण फैला था। "जिंजिया चाय बागान में उस वक़्त में संक्रमण दर 50 फ़ीसदी पहुंच गई थी। चाय बागानों में यह बीमारी बहुत आम है।"

बेहाली बीपीएचसी में एक टीबी यूनिट है, जिसमें एक सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइज़र की तैनाती है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए यहां तैनात अभिजीत बरुआ ने बताा कि 2021 में टीबी के 167 मामले आए। लेकिन लॉकडाउन और महामारी ने टीबी निगरानी के काम को करना मुश्किल बना दिया। यहां एंटीबॉयोटिक्स के खिलाफ़ प्रतिरोधक टीबी पर किए जाने वाला CBNAAT (कार्टिरिज बेस्ड न्यूक्लिक एसिड टेस्ट) टेस्ट की व्यवस्था भी है। पर बरुआ बताते हैं, "कार्टिरिज की कमी के चलते पिछले 6 महीनों में कोई भी CBNAAT टेस्ट नहीं हो पाया है।"

हम बेहाली बीपीएचसी से आगे बढ़े और बेहाली के अंदरूनी इलाकों में पहुंचे। यहां हम बिहमारी और बोंगांव प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पहुंचे। यह स्वास्थ्य केंद्र बेहद अंदरूनी इलाकों में चावल के खेतों के बीच बना है। इस अस्पताल के गेट तक जाने वाली सड़क इतनी पतली है कि एंबुलेंस उसका उपयोग नहीं कर सकती। 

बिहमारी पीएचसी की स्थापना 2013 में की गई थी। चार साल तक यह सुचारू नहीं हो पाई। 2018 में ही यह पीएचसी काम शुरू कर पाई थी। डॉ हिराकज्यप्ती तालुकदार यहां अनिवार्य ग्रामीण नियुक्ति के तहत तैनात हैं। उनके साथ यहां दो नर्स और एक फार्मासिस्ट हैं। इस केंद्र के पास एंबुलेंस सेवा उपलब्ध नहीं है। जबकि इस पीएचसी से 25,000 लोगों को स्वास्थ्य सेवा दी जाती है। 

बेहाली के मुख्य केंद्र से कई किलोमीटर दूर स्थित इस पीएचसी को अपने आसपास की आबादी को सुविधाएं देनी होती हैं। डॉ तालुकदार कहते हैं कि अस्पताल को बिजली और पानी आपूर्ति के साथ-साथ खुद के लिए रहवास उपलब्ध कराने के लिए उन्हें बहुत कुछ करना पड़ा था। उन्होंने कहा, "मैं खुद सिविल हॉस्पिटल जाकर जरूरी दवाईयों की सूची देता हूं, जो हमारी पीएचसी के लिए जरूरी होती हैं।" डॉ तालुकदार ने बताया कि फिलहाल इस क्षेत्र में ज़्यादातर त्वचा संबंधी बीमारियां फैलती हैं। ऐसा सफाई की खराब स्थितियों और जागरुकता की कमी के चलते होता है। 

नहाराजन गांव का दिलचस्प मामला

बिहमारी पीएचसी जाते हुए न्यूज़क्लिक को नहराजन गांव के बारे में पचा चला। इस गांव का एक हिस्सा अब अरुणाचल प्रदेश के खाते में चला गया है। यह बेहाली आरक्षित वनों के बाहरी इलाके में बसा है। इस गांव की सीमा अरुणाचल प्रदेश से लगती है। नहराजन गांव के रहने वाले प्रांजल कुतुंब ने फोन पर न्यूज़क्लिक को बताया, "वहां के लोगों को बिजली, पानी, यातायात और स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है। ऊपर से असम पुलिस और वन विभाग कई बार गांव वालों को परेशान करते हैं। नहराजन गांव में रहने वाले लोगों ने अपना मत स्थल अरुणाचल प्रदेश करवा लिया है। इसलिए वे अपने पते में अब अरुणाचल प्रदेश लिखते हैं। उन्हें तभी बिजली, पानी, स्वास्थ्य और स्कूल की सेवाएं मिलती हैं, जब वे पते में बदलाव करवा लेते हैं।"

इस बीच नहराजन गांव में असम की तरफ रहने वाले लोगों को अब भी अच्छे दिनों की दरकार है। कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) के बिबेक दास ने न्यूज़क्लिक को बताया, "असम की तरफ अब भी रहने वाले गांव वालों का अक्सर पुलिस और वन विभाग से विवाद होता है। उन्हें सभी तरह की बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है।"

विभाजन के पहले भी नहराजन में टकराव होता था। दास ने हमें इस गांव के विवाद के बारे में बताया। दास ने बताया, "बेहाली आरक्षित वन में असम की ज़मीन पर अरुणाचल प्रदेश के कुछ प्रभावी लोगों ने लगातार कब्जा किया है। इन लोगों में उच्च अधिकारी, मंत्री, लकड़ी माफिया और ऐसे ही लोग शामिल हैं। फिर अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर रहने वाले कुछ भूमिहीन लोग भी असम में जंगल के किनारे आ गए और यहीं रहने लगे। अरुणाचल प्रदेश की प्रभावशाली लोगों की गुटबंदी ने इन लोगों और असम पुलिस को बहुत उत्पीड़ित किया। पुलिस फायरिंद के चलते इलाके में मौतें तक हुई हैं। हमने अरुणाचल प्रदेश के अतिक्रमण का विरोध किया और असम सरकार से मामले के समाधान की की, ताकि भूमिहीन और गरीब़ लोगों को यहां बचाया जा सके। लेकिन ऐसा कभी नहीं हो पाया। फिर अरुणाचल प्रदेश की तरफ से कई लोगों को अपना पता अरुणाचल प्रदेश में स्थानांतरित करवाने का लालच भी दिया जाता है।" दास ने यह भी कहा कि वे अतीत को भूल चुके हैं और जिन लोगों ने अपने पते बदलवाए, उनसे उनकी कोई शिकायत नहीं है। 

जब किसी को बेहाली की यह असलियत पता चलती है तो हरे-भरे चाय बागान सिर्फ़ बेहद मुश्किलों में रह रहे यहां के लोगों के ऊपर डाला गया मुखौटा भर नज़र आते हैं। यह ऐसे लोग हैं, जिनके ऊपर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।

रिपोर्टर के शोध को 'ठाकुर फैमिली फाउंडेशन" से अनुदान प्राप्त है। लेकिन फाउंडेशन का इस शोध की सामग्री पर कोई भी संपादकीय नियंत्रण नहीं है। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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