NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
भारत
राजनीति
कैसे संशोधित भूमि क़ानूनों ने जम्मू-कश्मीर के ऐतिहासिक सुधारों को ख़त्म कर दिया है
केंद्र द्वारा पूर्व जम्मू-कश्मीर के भूमि क़ानूनों में आमूलचूल बदलाव किए गए हैं। यह संशोधन मौजूदा राजनीतिक सत्ता के जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नागरिकों के अधिकारों को ख़त्म करने वाले एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं।
साक़िब ख़ान
03 Nov 2020
जम्मू-कश्मीर
Image Courtesy: The Indian Express

26 अक्टूबर को केंद्रीय गृहमंत्री ने दो ऑर्डर जारी किए। पहला, "केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (केंद्रीय क़ानूनों का अनुकूलन) तीसरा आदेश 2020" था। दूसरा, "केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (प्रदेश क़ानूनों का अनुकूलन) पांचवा आदेश, 2020" था।

तीसरे आदेश के साथ केंद्र के "स्थिर संपत्ति कानून", राज्य के "स्थिर संपत्ति कानूनों (रियल एस्टेट लॉ)" पर लागू हो गए। वहीं पांचवे आदेश के ज़रिए पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य के "भूमि कानूनों" में आमूलचूल बदलाव किए गए हैं। पांचवे आदेश से कश्मीर के पुराने 12 राज्य क़ानूनों को निरस्त कर दिया गया है। इनमें ऐतिहासिक भूमि सुधार कानून समेत जम्मू-कश्मीर में भूमि ख़रीद-बिक्री के पुराने कानून थे।

इन संशोधन के ज़रिए संविधान के अनुच्छेद 35A में दिए गए भूमि अधिकारों की सुरक्षा आधिकारिक तरीके से खत्म कर दी गई है, इनका निरसन 5 अगस्त, 2019 को ही कर दिया गया था। यह याद रखना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर भारत के उन चुनिंदा राज्यों में से एक है, जहां भूमि सुधार हुए और जोतदारों को ज़मीन दी गई। इन सुधारों के ज़रिए सामंती जागीरदारी व्यवस्था को खत्म किया गया था।

गृहमंत्रालय के इन हालिया आदेशों से जम्मू कश्मीर के लोगों के विशेष हितों और उनकी पहचान को बनाए रखने के लिए बनाए गए भूमि सुधारों का पूरी तरह खात्मा कर दिया गया है। नए आदेश के बाद अब ऐसे लोग भी वहां ज़मीन खरीद सकते हैं, जो केंद्रशासित प्रदेश के स्थायी निवासी नहीं हैं। अब सभी कानूनों से "स्थायी निवासी" शब्द हटा दिया गया है। 

किसानों और स्थायी निवासियों के अधिकारों का ख़ात्मा

विशेष ऐतिहासिक परिस्थितियों के चलते जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसे संवैधानिक प्रावधान थे, जो विशेष अधिकारों और क्षेत्र के स्थायी-स्थानीय रहवासियों की पहचान की रक्षा करते थे। कुछ ऐसे बड़े भूमि क़ानून, जिन्होंने किसानों के अधिकारों की स्थापना की और स्थायी निवासियों के हाथ में ज़मीन सुनिश्चित की, उनके नाम हैं: "जम्मू एंड कश्मीर एलिएनेशन ऑफ लैंड एक्ट, 1938",  "जम्मू एंड कश्मीर बिग लैंडेड एस्टेट एबॉ़लिशन एक्ट, 1950","द जम्मू एंड कश्मीर कॉमन लैंड्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1956","द जम्मू एंड कश्मीर लैंड ग्रांट्स एक्ट, 1960" और "द जम्मू एंड कश्मीर एग्रेरियन रिफॉर्म्स एक्ट, 1976"।

"जम्मू एंड कश्मीर एलिएनेशन ऑफ लैंड एक्ट, 1938" का लक्ष्य ज़मीन हस्तांतरण के कानूनों का एक जगह समावेश करना था। "द बिग लैंडेड एस्टेट एबॉलिशन एक्ट, 1950" के ज़रिए बड़े एस्टेट को खत्म कर उसकी ज़मीनों को वास्तविक जोतदारों में बांटा गया। इस कानून के तहत कोई ज़मींदार ज़्यादा से ज़्यादा 182 कनाल (22.75 एकड़) ज़मीन रख सकता था। यह एक ऐतिहासिक कानून था, क्योंकि इससे अधिशेष ज़मीन का जरूरतमंदों को दोबारा वितरण संभव हो सका।

इसी तरह "जम्मू एंड कश्मीर कॉमन लैंड (रेगुलेशन) एक्ट, 1956" से जनता को सार्वजनिक संपत्तियों में अधिकार मिला। इससे स्थानीय भूस्वामियों को गांव की सार्वजनिक संपत्तियों के प्रबंधन में अपना मत देने का अधिकार मिला। "द जम्मू एंड कश्मीर एग्रेरियन रिफॉर्म्स एक्ट, 1976" के ज़रिए जोतदारों के मालिकाना हक़ में ज़मीन स्थानांतरण का अधिकार शामिल कर दिया गया। साथ ही अधिकतम ज़मीन रखने की प्रति व्यक्ति सीमा को भी और घटाकर 100 कनाल (12.5 एकड़) कर दिया गया। इस तरह ज़मीदारी का पूरी तरह खात्मा कर दिया गया।

MHA के पांचवे आदेश ने "जम्मू एंड कश्मीर एलिएनेशन ऑफ लैंड एक्ट, 1938", "द जम्मू एंड कश्मीर बिग लैंडेड एस्टेट एबॉलिशन एक्ट, 1950" और "द जम्मू एंड कश्मीर कॉमन्स लैंड्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1956" को पूरी तरह निरसित कर दिया। साथ ही "जम्मू एंड कश्मीर लैंड ग्रांट्स एक्ट, 1960" और "जम्मू एंड कश्मीर एग्रेरियन रिफॉर्म्स एक्ट, 1976" में से "स्थायी निवासियों" के उपबंध हटा दिए।

दूसरे सबसे बड़े कृषिगत बदलाव "जम्मू एंड कश्मीर लैंड रेवेन्यू एक्ट, 1996" में किए गए हैं। कृषि भूमि को अब भी राज्य के बाहरी लोगों को नहीं बेचा जा सकता। लेकिन संशोधन के ज़रिए ज़मीन हस्तांतरण से संबंधित कानूनों और 'ज़मीन के तय उपयोग में बदलाव पर प्रतिबंधों' को आसान कर दिया गया है।

संशोधित भू राजस्व कानून, कृषि भूमि का गैर-कृषक को हस्तातंरण प्रतिबंधित करता है। लेकिन यह सरकार या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी को "किसी कृषक को बिक्री, उपहार, कर्ज़ अदायगी या ऐसी ही उल्लेखित स्थितियों में अपनी ज़मीन गैर-कृषक उपयोग के लिए देने" की अनुमति प्रदान करने का अधिकार देता है। गैर कृषक गतिविधियों में लगे व्यक्ति को ज़मीन खरीदने के लिए स्थानीय मूलनिवासी प्रमाणपत्र की भी जरूरत नहीं होगी। संशोधित कानून सरकार को कृषि भूमि को 'कृषि कार्य और इससे जुड़ी गतिविधियों' के लिए लीज का उपयोग करने का भी अधिकार देता है।

संशोधन के ज़रिए सरकार के लिए एक तंत्र बनाया गया है, ताकि वो कृषि भूमि को दूसरे गैर-कृषि कार्यों के लिए हस्तांतरित कर सके। इन गैर-कृषि उद्देश्यों में दान पुण्य संबंधी उद्देश्य, व्यवसायिक या रिहायशी उद्देश्य, स्वास्थ्य या शैक्षणिक सुविधाएं स्थापित करने का उद्देश्य और पब्लिक ट्रस्ट शामिल हैं। कृषि भूमि, किसी व्यक्ति या सरकार द्वारा किसी भूमहीन या गांव के कलाकार को हस्तांतरित की जा सकती है। कृषि भूमि को किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए सरकार, किसी दूसरी सरकार या कंपनीज़ एक्ट, 2013 में बताए गए किसी कॉरपोरेशन या कंपनी को भी हस्तांतरित कर सकती है।

इन संशोधनों के ज़रिए किसी कार्य के लिए निश्चित की गई ज़मीन के दूसरे उपयोग और ग्रामीण सार्वजनिक संपत्तियों के उपयोग करने की अनुमति देने की ताकत, चुने हुए प्रतिनिधियों (सरकार के राजस्व मंत्री) से जिला कलेक्टर के पास पहुंच गई है।

निजी निवेश को बढ़ावा

तीसरे और चौथे आदेश के ज़रिए केंद्रशासित जम्मू और कश्मीर को खोलने की मंशा है, ताकि इसकी कृषि ज़मीन को निवेश के लिए खोला जा सके और निजी निवेश को बढ़ावा दिया जा सके। "विकास क्षेत्र" को शुरुआती कानूनों से दी गई छूट, केंद्रीय कानून के तहत ज़मीन अधिग्रहण की सरलता, केंद्रीय स्थिर संपत्ति कानून का बिना स्थायी निवासी उपबंध के लागू किया जाना, कृषि भूमि का प्रशासन करने वाले कानून, जिनसे बाहर के लोगों को कई तरह के गैर-कृषि उद्देश्य के लिए ज़मीन दी जाने की अनुमति दी गई है और 'जम्मू एंड कश्मीर इंडस्ट्रियल डिवेल्पमेंट कॉरपोरेशन' के गठन जैसी चीजों से हमें निजी निवेश को बढ़ाने वाली प्रवृत्ति का संकेत मिलता है।

ऊपर से जम्मू एंड कश्मीर एग्रेरियन रिफॉर्म्स एक्ट, 1976 में संशोधन कर कांट्रेक्ट फार्मिंग को लागू करने के लिए दबाव भी बनाया जा रहा है। पहले इस कानून के तहत मालिकाना हक़ वाले लोग सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर सरकार को ही अपनी ज़मीन हस्तांतरित कर सकते थे। अब इस ज़मीन हस्तांतरण का दायरा बढ़ाकर "सरकार, उसकी एजेंसियां या किसी विशेष काम के लिए बनाई गई संस्थाओं" तक किया जा रहा है। पहले इस तरह की ज़मीन का स्वामित्व सिर्फ कर्ज़ के तौर पर गिरवी रखने के लिए हस्तांतरित किया जा सकता था। लेकिन अब यह गिरवी के साथ-साथ कांट्रेक्ट फार्मिंग और लीज़ के लिए भी हस्तांतरित की जा सकती है।

जनसांख्यकीय बदलाव: लंबे वक़्त का एजेंडा

गृहमंत्रालय के आदेश, जो जम्मू एंड कश्मीर के भूमि कानूनों में आमूलचूल बदलाव लाते हैं, उन्हें मौजूदा राजनीतिक एजेंडे की पृष्ठभूमि में देखा जाना जरूरी है। जरूरी है कि हम उन कोशिशों को ध्यान में रखते हुए इन कानूनों के बदलाव को देखें, जिनमें जम्मू-कश्मीर के भूगोल में मात्रात्मक और गुणात्मक बदलाव लाने की मंशा है, जिनसे स्थानीय निवासियों को उनके अधिकारों से हाथ धोने होंगे। यह संशोधन पिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे के खात्मे वाले कदमों के समानांतर ही हैं।

इन संशोधनों के ज़रिए किसानों और स्थानीय निवासियों के अधिकारों को खत्म करने का लक्ष्य है। यह अधिकार ऐतिहासिक भूमि सुधार कानूनों से मिले थे। इन संशोधनों के ज़रिए कृषि भूमि को खोलने और निजी निवेश को बढ़ाने का उद्देश्य है। इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि इन संशोधनों के ज़रिए, जो विशेष दर्जे के ख़ात्मे के तौर पर देखे गए, उनसे इस क्षेत्र में लंबे वक़्त में जनसांख्यकीय बदलाव लाने की मंशा है।

लेखक दिल्ली स्थित स्वतंत्र शोधार्थी हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

How Amended Land Laws Undo Historic Reforms in J&K

Jammu and Kashmir
Land reform Kashmir
Article 370
Kashmir Demography
Kashmir investment

Related Stories

जम्मू-कश्मीर में केंद्र के दो एजेंडे: लैंड यूज पर नियंत्रण और खाद्य सुरक्षा का खात्मा


बाकी खबरें

  • अनिंदा डे
    मैक्रों की जीत ‘जोशीली’ नहीं रही, क्योंकि धुर-दक्षिणपंथियों ने की थी मज़बूत मोर्चाबंदी
    28 Apr 2022
    मरीन ले पेन को 2017 के चुनावों में मिले मतों में तीन मिलियन मत और जुड़ गए हैं, जो  दर्शाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद धुर-दक्षिणपंथी फिर से सत्ता के कितने क़रीब आ गए थे।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली : नौकरी से निकाले गए कोरोना योद्धाओं ने किया प्रदर्शन, सरकार से कहा अपने बरसाये फूल वापस ले और उनकी नौकरी वापस दे
    28 Apr 2022
    महामारी के भयंकर प्रकोप के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर 100 दिन की 'कोविड ड्यूटी' पूरा करने वाले कर्मचारियों को 'पक्की नौकरी' की बात कही थी। आज के प्रदर्शन में मौजूद सभी कर्मचारियों…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में आज 3 हज़ार से भी ज्यादा नए मामले सामने आए 
    28 Apr 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,303 नए मामले सामने आए हैं | देश में एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 0.04 फ़ीसदी यानी 16 हज़ार 980 हो गयी है।
  • aaj hi baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    न्यायिक हस्तक्षेप से रुड़की में धर्म संसद रद्द और जिग्नेश मेवानी पर केस दर केस
    28 Apr 2022
    न्यायपालिका संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में जरूरी हस्तक्षेप करे तो लोकतंत्र पर मंडराते गंभीर खतरों से देश और उसके संविधान को बचाना कठिन नही है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कथित धर्म-संसदो के…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान
    28 Apr 2022
    आजकल भारत की राजनीति में तीन ही विषय महत्वपूर्ण हैं, या कहें कि महत्वपूर्ण बना दिए गए हैं- जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र। रात-दिन इन्हीं की चर्चा है, प्राइम टाइम बहस है। इन तीनों पर ही मुकुल सरल ने…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License