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भारत
राजनीति
कैसे जहांगीरपुरी हिंसा ने मुस्लिम रेहड़ी वालों को प्रभावित किया
महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन ने मुस्लिम रेहड़ी वालों की आर्थिक गतिविधियों का काफ़ी कम कर दिया है, अब सांप्रदायिक नफ़रत ने उनके ख़िलाफ़ हमले और भेदभाव की घटनाओं में भी इज़ाफ़ा किया है।
शलका चौहान
04 May 2022
कैसे जहांगीरपुरी हिंसा ने मुस्लिम रेहड़ी वालों को प्रभावित किया

महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन के चलते मुस्लिम रेहड़ी वालों की आर्थिक गतिविधियां कम हो गई हैं, वहीं मुस्लिमों के ख़िलाफ़ धार्मिक नफ़रत ने इन रेहड़ी वालों पर हमले और उनके साथ भेदभाव की घटनाओं में इज़ाफ़ा किया है।

यह लेख मज़दूर दिवस 2022 पर हमारी विशेष श्रृंखला का एक हिस्सा है।

——-

उत्तर दिल्ली के जहांगीरपुरी में चाय की दुकान चलाने वाली नज़्मा बीवी* कहती हैं, "हमारा रेहड़ी ही तोड़ दिया, हम बोलते रह गए कि हम समेट कर चले जाएंगे, पर हाथ से रेहड़ी खींचा और वहीं तोड़ दिया।" अब नज़्मा को अपनी आय का एकमात्र साधन- उनकी रेहड़ी चलाने की अनुमति नहीं है। 

20 अप्रैल को जब जहांगीरपुरी में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की घई थी, तो स्थानीय प्रशासन ने उनकी रेहड़ी को टुकड़ों-टुकड़ों में तोड़ दिया था। पिछले साल ही उन्हें पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम 2014 के तहत रेहड़ी लगाने का प्रमाणपत्र जारी किया गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें अतिक्रमणकारी कहा गया, जबकि उन्होंने अपने जीवन के पिछले चालीस साल सड़क पर रेहड़ी लगाकर चलने वाली आजीविका में लगाए हैं। वह कहती हैं, "इतने साल लगते हैं काम को बसाने में, चलाने में, पर पल भर लगे इनको खत्म करने में।"

यहां "इनको" शब्द से नज़्मा का इशारा उत्तर दिल्ली नगर निगम की तरफ है, जो जहांगीरपुरी इलाके में इस ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करने को जिम्मेदार थी। नज़्मा बीवी समेत सैकड़ों मुस्लिम रेहड़ी वालों को जहांगीरपुरी में उनके मूल स्थान से हटाने के दस दिन से ज़्यादा बीत चुके हैं। इस कार्रवाई के चलते इन्हें अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ा।  गाली-गलौज से इनकी रेहड़ियों को बुलडोज़र से कुचलने तक बढ़ी हिंसा की वज़ह 16 अप्रैल को जहांगीरपुरी में हुआ सांप्रदायिक टकराव था।  

इतना क्रूर हमला देखने और झेलने के बाद रेहड़ी लगाने वाले फिलहाल सदमे में हैं। उनके मुताबिक़, दिल्ली में जगह खाली कराया जाना और विस्थापन बहुत ज़्यादा पहले भी होता रहा है, लेकिन अब इसमें सांप्रदायिक राजनीति का तड़का लग गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप और इस तथाकथित अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई पर रोक लगाने से पहले, कई लोगों को अपनी आजीविका के साथ-साथ अपने घरों को भी खोना पड़ा।

सड़क पर रेहड़ी लगाने वालों के संगठन "नेशनल हॉकर फेडरेशन (एनएचएफ) के सदस्य मोहित वलेचा के मुताबिक़, "विस्थापन और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के बाद रेहड़ी लगाने वालों को सरकार से तुरंत कोई राहत और समर्थन नहीं मिला, उन्हें राहत के लिए स्थानीय समुदाय और रेहड़ी वालों के संगठन पर निर्भर रहना पड़ा।"

"विस्थापन और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के बाद रेहड़ी लगाने वालों को सरकार से तुरंत कोई राहत और समर्थन नहीं मिला, उन्हें राहत के लिए स्थानीय समुदाय और रेहड़ी वालों के संगठन पर निर्भर रहना पड़ा।"

रेहड़ी वालों का कहना है कि उन्होंने इसका अनुमान नहीं लगाया था, जिसके चलते वे जगह खाली करने, रेहड़ियों को तोड़े जाने और सामान की ज़ब्ती के लिए तैयार नहीं थे। एनएचएफ के सदस्य मोहम्मद हैदर कहते हैं, "रेहड़ी वाले बेबस महसूस कर रहे हैं कि आगे उनकी ज़िदगी और आजीविका कैसे फिर से चालू होगी। ऐसे सवाल हैं, जो मौजूदा चिंताजनक हालात में उनके अस्तित्व और उनके जुड़ाव की भावना को ख़तरा पैदा कर रहे हैं। बहुत लोगों की चिंताएं हैं कि आगे क्या होगा और मुस्लिम समुदाय व रेहड़ी लगाने से आजीविका चलाने वालों के लिए नया "सामान्य" क्या होगा।

पथ विक्रेता कानून के प्रावधान 

दिल्ली में अकेले ही रेहड़ी लगाकर सामान बेचना करीब़ चार से पांच लाख लोगों के लिए आजीविका का साधन माना जाता है। पथ विक्रेता अधिनियम 2014 को भारत में रेहड़ी लगाने वालों के अधिकारों को सुरक्षित और उन अधिकारों को प्रोत्साहित करने के लिए लाया गया था। यह अधिनियम रेहड़ी वालों को भारतीय शहरों का एक अभिन्न हिस्सा मानता है, और उनसे जबरदस्ती करवाई जाने वाली स्थल-निकासी, उनकी संपत्ति की ज़ब्ती और उनकी प्रताड़ना के खिलाफ़ उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है। यह अधिनियम उन्हें टीवीसी (टॉउन वेंडिंग कमेटी) के ज़रिए अधिनियम से जुड़े मामलों में कार्यकारी फ़ैसले लेने में भागीदार बनाता है। 

यह अधिनियम रेहड़ी लगाने वालों के लिए जगह की व्यवस्था को अहम शहरी गतिविधि मानता है और उनके पंजीकरण, विस्थापन और दूसरे प्रोत्साहन देने वाले तरीकों जैसे- कर्ज व्यवस्था और कौशल विकास की व्यवस्था करता है। लेकिन एक राष्ट्रीय अधिनियम के बावजूद, पूरे देश में नगर पालिकाओं द्वारा रेहड़ी लगाने वालों को प्रताड़ित किया जाता है। रेहड़ी लगाने वालों से संबंधित फ़ैसलों में इस तरह की कार्रवाई से टीवीसी की स्थापना का अपमान हो रहा है, क्योंकि इन समितियों से कोई सलाह ही नहीं ली जाती है।

जहांगीरपुरी में फौरी कार्रवाई करे जाने के मामले में रेहड़ी लगाने वालों को ज़ब्ती का नोटिस नहीं दिया गया, जो अधिनियम के तहत जरूरी है। सबसे अहम, जिन लोगों की संपत्तियों को ध्वस्त किया गया या जिन्हें उनकी जगह से हटाया गया, उन्हें कोई कानूनी नोटिस नहीं दिया गया था। यह कानून का खुलेआम उल्लंघन है, इससे सभी नागरिकों को तुरंत सावधान होना चाहिए।

दिल्ली में ऐसा होना नया नहीं है। वक़्त-वक़्त पर रेहड़ी वालों को अवैधानिक ढंग से निशाना बनाने के लिए प्रशासन ऐसा करता रहा है, खासकर चांदनी चौक, लाजपत नगर, दरियागंज, सरोजिनी नगर और कनॉट प्लेस में ऐसा होता आया है। लेकिन जहांगीरपुरी का मामला बेहद डराने वाला है, क्योंकि यहां कुछ खास समुदाय के रेहड़ी लगाने वालों को ही निशाना बनाया गया, धार्मिक पहचान के आधार पर उन पर हमले किए गए।

मुस्लिम रेहड़ी वालों को झेलनी पड़ रही है दोहरी वंचना

पिछले दो सालों में कोविड महामारी के चलते रेहड़ी लगाने वालों की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति बहुत बदतर हुई है, खासकर दिल्ली में मुस्लिम रेहड़ी वालों की। एक तरफ महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन ने उनकी आर्थिक गतिविधियों को बहुत कम कर दिया है, ऊपर से सांप्रदायिक नफ़रत के चलते उनके खिलाफ़ हिंसा और भेदभाव की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। 

इंदौर, अहमदाबाद, मेरठ, दाहरवाद और बिश्वनाथ चरियाली ऐसे शहर और कस्बे हैं, जहां मुस्लिम रेहड़ी वालों के खिलाफ़ हमलों में इतनी तेजी आई है, जो बेहद चिंताजनक और भारतीय लोकतंत्र के लिए ख़तरा है। रेहड़ी वालों को अतिक्रमणकारी, तस्कर और अवैध बताने का लांछन लगाने वाले प्रचार का मुस्लिमों से घृणा करने वाली सामाजिक मनोस्थिति से संबंध है, इसके चलते रेहड़ी वालों का समुदाय बेहद गरीब़ी, असमानता और वंचना की तरफ बढ़ रहा है।

"रेहड़ी वाले बेबस महसूस कर रहे हैं कि आगे उनकी ज़िदगी और आजीविका कैसे फिर से चालू होगी। ऐसे सवाल हैं, जो मौजूदा चिंताजनक हालात में उनके अस्तित्व और उनके जुड़ाव की भावना को ख़तरा पैदा कर रहे हैं। बहुत लोगों की चिंताएं हैं कि आगे क्या होगा और मुस्लिम समुदाय व रेहड़ी लगाने से आजीविका चलाने वालों के लिए नया "सामान्य" क्या होगा।

दिल्ली की अर्थव्यवस्था के अभिन्न हिस्से रहे मुस्लिम रेहड़ी वाले अब दुख और सदमे से घिरे हुए हैं, जो पिछली कुछ घटनाओं से जुड़ा हुआ है, अब उन्हें आगे भविष्य की चिंता है।

सरकार को इन आपात कदमों को उठाना जरूरी है

फिलहाल जहांगीरपुरी में रेहड़ी वाले प्रशासन से तुरंत राहत पहुंचाने वाले कदम उठाने की मांग कर रहे हैं, जिसमें मुआवज़ा, पुनर्वास और राशन, पानी व आवास जैसी बुनियादी सुविधाएं शामिल हैं। इसके साथ-साथ वेंडिंग सर्टिफिकेट (रेहड़ी लगाने का प्रमाणपत्र) को जारी करने के लिए सर्वेक्षण, पंजीकरण की प्रक्रिया को तेज करना जरूरी है, साथ ही रेहड़ी लगाने के लिए आवंटित किए जाने वाले क्षेत्रों और प्रतिबंधित क्षेत्रों का चिन्हीकरण जरूरी है, जिसकी पहचान पिछले साल जहांगीरपुरी में किए गए सर्वे के आधार पर की जाए। 

दूसरी बात, इस मामले को पूरी गंभीरता से लेने की जरूरत है और जहांगीरपुरी में रेहड़ी लगाने वालों मु्स्लिमों और मुस्लिम समुदाय को न्याय दिलाने के लिए एक गहन जांच की जाए। इसके लिए तुरंत कानूनी उपाय किए जाएं, जिसके ज़रिए उनके ऊपर हमले, उनके अपमान और उन्हें जबरदस्ती विस्थापित किए जाने की घटनाओं पर प्रतिबंध लगाया जाए।

पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम 2014 के बावजूद, पूरे देश में रेहड़ी लगाने वालों को नगर पालिकाओं द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, उन पर हमले किए जाते हैं और जबरदस्ती उनसे जगह खाली करवाई जाती है।

आखिरी बात पथ विक्रेता अधिनियम को संरक्षित, प्रोत्सााहित और हमारी पूरी क्षमता से लागू करवाए जाने की जरूरत है, ताकि रेहड़ी/कामगार के नेतृत्व वाले प्रशासन को साकार करने के लिए अधिकार आधारित कोशिशों को लागू करवाया जा सके। 

*पहचान छुपाने के लिए नाम बदल दिया गया है।

श्लाका चौहान नेशनल हॉकर्स फेडरेशन से जुड़ी हुई हैं और वे "सोशल डिज़ाइनर" हैं।

साभार: द लीफ़लेट

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

How the Jahangirpuri Violence Affected Muslim Street Vendors

 

Jahangirpuri Violence
Muslim street vendors
communal hatred
Discrimination

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