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भारत
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2020 : मोदी सरकार ने कैसे भारत को रिकॉर्ड बेरोज़गारी में धकेला
वर्ष समाप्त होते-होते देश में बेरोज़गारी की दर 9 प्रतिशत से अधिक हो गई है और तथाकथित आर्थिक सुधार मृगतृष्णा बन कर रह गए हैं। 
सुबोध वर्मा
01 Jan 2021
Translated by महेश कुमार
बेरोज़गारी

भारत के आम जनमानस के लिए, इतिहास में वर्ष 2020 को आजीविका कमाने और आय के मामले में सबसे खराब वर्ष के रूप दर्ज़ किया जाएगा। बेरोजगारी का स्तर काफी भयंकर स्तर पर पहुँच गया है, आय में कमी और अभाव इस हद पहुँच गया था कि हजारों परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गए थे। दुख की बात है कि इसका नतीजा केवल महामारी नहीं थी। अचानक लॉकडाउन, आम जनता को आय सहायता प्रदान करने में विफलता, सरकार की सार्वजनिक खर्च पर लगाम लगाने की जिद और कॉर्पोरेट घरानों की डूबती अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने की वजह से था। लेकिन, सबसे निराशाजनक पहलू यह है कि बुरे दिन अभी भी खत्म नहीं हुए हैं।

सरकारी प्रचार के बुलबुले के असर में रहने वालों के लिए, भारत की विनाशकारी अर्थव्यवस्था "वी-आकार की रिकवरी" से गुजरने वाली है। वे हर जगह "हरी टहनी" के लहराने यानि अर्थव्यवस्था की रिकवरी के सुखद एहसास की ढपली बजाते नज़र आ रहे हैं। कॉर्पोरेट धनाडय तबके के संकट को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी प्रसन्न दिखाई दिए कि जैसे अर्थव्यवस्था अपेक्षा से अधिक तेजी से ठीक हो रही थी। इसके लिए बेहतर जीएसटी संग्रह, माल ढुलाई और बंदरगाह यातायात में वृद्धि, और सबसे मोहक- रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंचने वाले शेयर बाजार की गाथा को पानी पी-पी कर सुनाया जा रहा हैं।

जबकि वास्तविक दुनिया में, चीजें इसके काफी उलट हैं। किसी भी आर्थिक संकट के हल की सबसे बड़ी शर्त या महत्वपूर्ण उपाय है रोजगार होता है। कितने लोग काम पर हैं? बेरोजगारी दर कितनी है? और, आबादी का कौन सा हिस्सा काम कर रहा है? इन सब बातों पर ध्यान न देने से हालात चिंताजनक नज़र आते हैं।

नीचे दिए चार्ट में सीएमआईई डेटा के आधार पर दिसंबर 2018 से शुरू होने वाले पिछले दो वर्षों की मासिक बेरोजगारी दर को दर्शाता है। मार्च 2020 तक यानि लॉकडाउन तक, बेरोजगारी की दर 7-8 प्रतिशत के इर्द-गिर्द मँडरा रही थी, जो एक तरह से बहुत खुशहाल स्थिति नहीं थी। फिर लॉकडाउन का विनाशकारी झटका आया जिसने देश की विशाल अर्थव्यवस्था को प्रभावी रूप से बंद कर दिया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इससे बेरोजगारी की दर बढ़ गई- जोकि अप्रैल माह में लगभग 24 प्रतिशत हो गई थी और इस वर्ष मई में आते-आते लगभग 22 प्रतिशत रह गई थी। जैस-जैसे आर्थिक गतिविधि धीरे-धीरे शुरू हुई, लोग अपने अस्थाई काम पर वापस चले गए और उन्हे जो भी कमाई की दर मिली उस पर काम करने लगे थे। इससे बेरोजगारी की दर में गिरावट आई, हालांकि इसने अर्थव्यवस्था को बहुत बेहतर नहीं किया क्योंकि आय अभी भी पहले की तुलना में बहुत कम थी।

लेकिन अब, निम्नलिखित महीनों पर नज़र डालें- जुलाई के से बाद, दिसंबर तक।

खरीफ की कटाई समाप्त होते ही और रबी की बुवाई की तैयारी से पहले अक्टूबर में एक छोटी सी उठापटक हुई और नवंबर में बेरोजगारी की दर में 6.5 प्रतिशत तक गिरावट आ गई थी। इसने सरकार समर्थक अर्थशास्त्रियों और टीवी शो विशेषज्ञों के बीच बहुत उत्साह पैदा किया, जिन्होंने लगे हाथ इस बात की घोषणा कर दी कि अब सबसे बुरा वक़्त बीत गया। लेकिन, दिसंबर से सीएमआईई के सबसे नए और साप्ताहिक आंकड़ों से पता चलता है कि 27 दिसंबर तक बेरोजगारी की दर 9 प्रतिशत से भी अधिक थी। वास्तव में, ऐसा लगता है कि लॉकडाउन  के बाद की अवधि में बेरोजगारी 8-9 प्रतिशत के नए 'सामान्य' स्तर पर ठहर गई थी। यह तथ्य 'रिकवरी’ के बारे में सत्तारूढ़ समर्थकों की सभी हसरतों की धज्जी उड़ा देता है।

रोज़गार में ठहराव   

अब, इस संकट के दूसरे पहलू को देखें जो दूर जाने से इनकार कर रहा है- जो वास्तव में काम कर रहे हैं। सीएमआईई सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर पिछले दो वर्षों के रुझान नीचे दिए गए चार्ट में दिखाए गए है। आपके जहन जो सबसे पहली बात आएगी कि- दिसंबर 2018 में कम करने वाले व्यक्तियों की संख्या लगभग 39.7 करोड़ थी, और यह संख्या नवंबर 2020 में 39.4 करोड़ थी। इस पर लॉकडाउन का प्रभाव स्पष्ट रूप देखा जा सकता है क्योंकि अप्रैल में यह  संख्या 31.4 करोड़ रोजगार से मई में केवल 28.2 करोड़ तक रह गई थी। लेकिन इसके बाद यह उसी स्थान पर वापस आ गई थी। 

इसका मतलब क्या है? यानि हर दिन जनसंख्या बढ़ रही है, और अनुमान है कि हर साल लगभग 12 करोड़ लोग कामकाजी उम्र की आबादी में प्रवेश कर जाते हैं। ये सभी नौकरियों की तलाश में नहीं रहते हैं। कुछ अभी भी पढ़ रहे हैं, महिलाओं को आमतौर पर जल्दी शादी करने के लिए कहा जाता है आदि। औसत काम में सहभागिता की दर- आबादी का वह हिस्सा जो काम करने को तैयार है- लॉकडाउन से पहले लगभग 42 प्रतिशत हुआ करता था। इसका मतलब है कि हर साल लगभग पांच करोड़ लोग नौकरी तलाशने वालों की सेना में शामिल हो जाते हैं। फिर भी, दो वर्षों में, काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या समान रहती है। इससे यह बात स्पष्ट होता है कि लोग या तो बेरोजगारों की विशाल सेना में शामिल हो रहे हैं, या पराजित और हतोत्साहित हैं, वे घर बैठे हैं, कुछ समय में एक बार नौकरी करते हैं, कुछ खेती में या अन्य लोग ऐसे परिवार के काम में मदद करते हैं।

वास्तव में, काम में सहभागिता की दर स्पष्ट रूप से नज़र आती है। जो दिसंबर 2018 में 42.5 प्रतिशत से घटकर नवंबर 2020 में लगभग 40 प्रतिशत हो गई थी। 

मोदी सरकार द्वारा बढ़ाया हुआ संकट 

देश के महामारी की चपेट में आने से पहले ही भारत की अर्थव्यवस्था नाजुक तो थी लेकिन संकट की चपेट में भी थी। आर्थिक विकास धीमा हो गया था, बेरोजगारी बढ़ रही थी, उपभोग पर खर्च गिर रहा था- संक्षेप में, लोग अपने जीवन स्तर में गिरावट से काफी पीड़ित थे। इसका असर बढ़ते कुपोषण की चौंकाने वाली सीमा में भी परिलक्षित होता है जैसा कि हाल ही में राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2018-19 के सर्वेक्षण में सामने आया है। मोदी सरकार ने खुद को इस संकट से निपटने में पूरी तरह से असमर्थ पाया, क्योंकि उन्होने अधिकांश कार्यों को  निजी क्षेत्र पर छोड़ दिया, जिनसे अर्थव्यवस्था को चलाने की बड़ी धारणा थी, और सबसे अच्छी उम्मीद भी थी।

लेकिन इस साल आई महामारी, और इसके प्रति सरकार की गलत प्रतिक्रिया और मुक्त बाजार के देवताओं के प्रति निरंतर आज्ञाकारिता ने यह सुनिश्चित कर दिया कि लोगों को एक सुरंग के भीतर धकेल दिया गया है और जिसका कोई अंत नज़र नहीं आता है।

सरकार ने वास्तव में महामारी का इस्तेमाल करके एक खतरनाक दवा का इस्तेमाल करने की कोशिश की, जिसमें तीन कृषि-कानूनों और चार श्रम संहिताओं को लागू किया, जो एक साथ भयंकर बेरोजगारी पैदा करने के साथ आय को कम करेंगे और लोगों को अधिक असुरक्षा प्रदान करेंगे। 

दूसरे शब्दों में कहे तो, आज जो विकट स्थिति देखी जा रही है- बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती कीमतें, गिरती आय- यह इस सब के और अधिक बढ़ाने का इशारा है। यह तर्क से परे की बात है कि नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन की सख्त जरूरत है- या फिर इसके लिए इस सरकार को बदलना होगा।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें। 

2020 – How the Modi Govt Led India into Record Joblessness

India in Crisis 2020
Economic Crisis under Modi Government
COVID Impact under Modi Government
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Joblessness in India
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New Farm Laws
Anti Worker Policies of Modi Government
Anti Farmer Policies of Modi
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