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कोविड-19
स्वास्थ्य
भारत
20 बातें जिन्हें कोरोना से लड़ने के लिए अपना लिया जाए तो बेहतर!
न लापरवाह रहिए, न एकदम घबराइए। न बीमारी से डरिए, न सरकार से। जहां जब जो ज़रूरी हो वो सवाल पूछिए, वो एहतियात बरतिये।
अजय कुमार
20 Apr 2021
corona

कवि-पत्रकार मुकुल सरल बड़े मार्के की बात कहते हैं कि कोरोना की लड़ाई के दौरान दो अतियों से भी बचना है। पहली अति है कि कोरोना कोई बीमारी ही नहीं है। या है, तो नजला-जुकाम जैसी केवल सीजनल बीमारी। कोई गंभीर बीमारी नहीं है। केवल हौवा खड़ा किया जा रहा है। यह सिर्फ कुछ देशों और कुछ दवा कंपनियों की साजिश है। दूसरी अति यह है कि कोरोना बेहद गंभीर और जानलेवा बीमारी है। बस आप इसकी चपेट में आए नहीं कि उल्टी गिनती शुरू।

कोरोना का सच इन दोनों अतियों के बीच है। अगर इस बिंदु को ध्यान में रखकर कोरोना के बारे में सोचें तो हम इससे बचने की कोशिश में जरूरी रास्तों की तरफ चल सकते हैं। अन्यथा डर और अफवाह के चक्कर में हम अपने साथ-साथ दूसरों का भी बेड़ा गर्क़ करेंगे।

सरकार को जिम्मेदार ठहराना बिल्कुल वाजिब है। उसे टोकना, रोकना, सवाल पूछना बेहद ज़रूरी। लेकिन कोरोना की प्रकृति ऐसी है कि उससे लड़ने/बचने की जिम्मेदारी हमारी भी बनती है। इसलिए कई सारे वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और जानकारों  की तरफ से नागरिकों को दिए गए जरूरी सुझावों को यहां बिंदुवार दर्ज कर रहा हूं।

 

1. पहली और सबसे बेसिक बात कि मास्क पहनिए। हर जगह जहां एक से अधिक लोग हैं। यानी घर के अंदर और घर के बाहर भी मास्क पहनना जरूरी है। जहां संभव हो सके वहां फिजिकल डिस्टेंसिंग अपनाइए। अपने हाथ धोते रहिए। यह पिछले साल भी कहा गया था। चूंकि यह बुनियादी बात है इसलिए इसे हर बार कहा जाना जरूरी है। बार-बार कहा जाना जरूरी है। क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि हाल फिलहाल कोरोना हमारे जीवन से जल्दी नहीं जाने वाला। यह हमारी स्वभाविक आदत ही बन जाए तो बहुत अच्छी बात होगी।

 2. मास्क को लेकर बहुत सारे वैज्ञानिको के बीच सहमति होने के बावजूद कुछ वैज्ञानिकों के बीच कुछ मतभेद है। इस पर वैज्ञानिक आपस में चर्चा करते रहें, सहमति असहमति के रास्ते को चुनते हुए सही निष्कर्ष पर पहुंचे यह उनका काम है। अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी तक के अध्ययन से पता चला है कि एरोसॉल के जरिए कोरोना फैल रहा है इसलिए कोरोना से एक हद तक बचे रहने में मास्क कारगर है। इसका इस्तेमाल नहीं रुकना चाहिए। जानकारों को मंथन करने दिया जाए और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम अपना कर्तव्य निभाते रहे। यह जरूरी है।

3. मुमकिन हो तो 6 फीट की दूरी एक दूसरे से बना कर रखनी है। 6 फिट नहीं तो कम से कम 3 फीट की दूरी बनाकर जरूर रखिए। भीड़-भाड़ वाली जगहों पर बिल्कुल मत जाइए। बहुत अधिक जरूरत हो तभी जाइए। एक छत के नीचे कई लोगों का जमावड़ा कभी मत बनाइए। ऑनलाइन काम करने वाले लोग घर से ही काम करें, तो सबसे बेहतर।

 4. कार का इस्तेमाल कम से कम करें। जहां बहुत अधिक जरूरत हो तभी कार का इस्तेमाल करें। कार का इस्तेमाल होने से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। कार का कम इस्तेमाल होने से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बनी रहेगी। ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे लोगों को थोड़ी कम परेशानी झेलनी पड़ेगी। अध्ययन बताते हैं कि पिछली बार लॉकडाउन में यह बहुत अधिक कारगर साबित हुआ था।

5. प्रतिष्ठित पत्रिका लैंसेट की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस इनडोर में ज्यादा और आउटडोर में कम फैलता है। अगर इनडोर में भी पर्याप्त हवा की व्यवस्था हो और वेंटिलेशन हो तो इन्फेक्शन फैलने का डर कम हो जाता है। लेकिन शहरों के अधिकतर घरों में ऐसी व्यवस्था नहीं होती। लोग अपनी जिंदगी चलाने के लिए माचिसनुमा घरों के अंदर रहने के लिए मजबूर होते हैं। इसलिए अगर प्रशासन इजाजत दे तो पार्कों और जगहों पर समय बिताना ज्यादा कारगर हो सकता है।

6. 1 मई के बाद से 18 साल से उम्र के सभी लोग वैक्सीन लगवा सकते हैं। जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी वैक्सीन लगवा ले तो अच्छा है। वैक्सीन लगवाने के बाद 70 से 80 फ़ीसदी संक्रमित ना होने की संभावना बनती है। 90 फ़ीसदी गंभीर बीमारी से बच जाने की संभावना बनती है।

 7. वैक्सीन को लेकर बहुत सारा हो हल्ला है कि कौन सा वैक्सीन लगाया जाए? वैज्ञानिकों की तरफ से अभी तक ऐसी कोई स्टडी नहीं है जो बताती हो कि कौन सा वैक्सीन बेहतर है और कौन सा वैक्सीन कमतर। इसलिए जो सरकार उपलब्ध करा रही है उसे लगवा लेना जरूरी है। यह सब हमारे जीवन में बाजारवाद के हथकंडे हैं। इनसे बचने की जरूरत है।

 8. वैक्सीन लेने के बाद रक्त का थक्का जम जाने की बात सुनाई दे रही है। ऐसा हुआ है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन बहुत ही कम और असाधारण मामलों में हुआ है। इसकी संख्या बहुत कम है। इसलिए इस पर गौर करने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।

 9. घर पर कुछ उपकरणों को रखने की जरूरत है। जैसे थर्मामीटर और पल्स ऑक्सीमीटर। अगर संक्रमित होने का शक लगे तो थर्मामीटर से तापमान माप लीजिए। ऑक्सीमीटर से शरीर में ऑक्सीजन का स्तर माप लीजिए। अगर शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम लगे तो जहां पर हैं, वहीं पर तेजी से 5- 6 मिनट टहल लीजिए। पानी पी लीजिए। इससे शरीर के अंदर तरलता बनी रहती है और शरीर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने की कोशिश करता रहता है।

 10. अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के मुताबिक जब एक मिनट में 30 बार से अधिक सांस लेने के लिए मजबूर होना पड़े, ऑक्सीमीटर में ऑक्सीजन का स्तर 94% से कम दिखने लगे, 5 मिनट टहलने के बाद भी ऑक्सीजन लेवल में कोई सुधार ना हो तो यह संकेत है के डॉक्टर से मिला जाए। मेडिकल मदद ली जाए।

 11. अगर ऑक्सीजन का स्तर बढ़िया है। कोरोना के किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिख रहे हैं। हल्का फुल्का फीवर है तो पेरासिटामोल की एक सामान्य सी गोली लेकर काम चलाया जा सकता है।

 12. दुर्भाग्यवश कोविड- 19 की बीमारी से बचने के लिए बहुत ही कम दवा है। जो हल्के-फुल्के तौर पर कारगर हैं। इसलिए बाजार में मौजूद किसी भी दवा की तरफ तब तक ध्यान नहीं देना है, जब तक डॉक्टर ने कहा ना हो।

 13. फेसबुक स्क्रॉल करते ही रेमडेसिवर दवा की जरूरत से जुड़ी हुई एक दो पोस्ट जरूर दिख जाएगी। लेकिन जानकारों का कहना है कि यह दवा बहुत ही कम मामलों में किफायती है। आसपास के लोगों और रिश्तेदारों के दबाव के चलते बहुत सारे डॉक्टरों ने यह दवा लिख दी। जहां जरूरत नहीं भी थी, वहां यह दवा दी गई। यह भी एक वजह है कि बाजार में इस दवा की कमी हो गई। इसलिए जरूरी बात यह है कि डॉक्टर पर भरोसा किया जाए और उन्हें स्वतंत्र होकर दबाव मुक्त होकर सोचने दिया जाए। उसकी सलाह पर ही कोई दवा ली जाए।

 14. यही हाल प्लाज्मा का भी है। प्लाज्मा से भी कोरोना से मुक्ति मिल जाती हो, ऐसा दावा करने वाला कोई अध्ययन नहीं आया है। इसलिए प्लाज्मा डोनर के फेर में भी बहुत अधिक समय गंवाने की जरूरत नहीं है। यह भी डॉक्टर के ऊपर छोड़ देना चाहिए कि वह क्या फैसला ले रहा है?

15. सबसे बड़ी और जरूरी बात कोविड की पॉजिटिव रिपोर्ट आ जाने के बाद भी घबराने की कोई जरूरत नहीं है। 98 फ़ीसदी मामलों में संक्रमित व्यक्ति इससे निजात पा लेते हैं। इसलिए डरना बिल्कुल नहीं है। मजबूती बनाए रखनी है।

 16. लोग भले यह कहे कि संकट का समय है सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत नहीं है। बल्कि मिलकर काम करना चाहिए। तो सरकार से जायज सवाल पूछना भी सरकार के जरिए होने वाले जनकल्याण की मदद करना ही है। इसलिए जरूरी है कि सरकार के कामकाज को पढ़ते रहिए। पिछले साल से लेकर अब तक का अनुभव आप देख चुके हैं। बीच में केवल सरकार ही शिथिल नहीं पड़ी बल्कि हम सब भी शिथिल पड़ चुके थे। हमें भी लगने लगा था कि कोरोना से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोरोना एक वायरस है। हाल फिलहाल हमारे समाज में बहुत लंबे समय तक रहने वाला है।

 18. पिछले साल जब लॉकडाउन लगा था तब वैज्ञानिक और जानकारों का तर्क हुआ करता था कि इससे कोरोना जाएगा नहीं बल्कि शासन प्रशासन को बहुत समय मिल जाएगा ताकि वह स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत कर पाए। शासन प्रशासन ने ऐसा बिल्कुल नहीं किया। धीरे-धीरे शासन-प्रशासन फिर से लॉकडाउन लगाएगा। तो जब भी लॉकडाउन लगे तो सरकार से यह भी मांगने की जरूरत है कि वह तालाबंदी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारा जाए। अगर नहीं सुधारा जा रहा है तो इसका मतलब है कि सरकार हमें धीमी धीमी गति से मारने के लिए छोड़ रही है।

 19. एक मई के बाद 18 साल से ऊपर सबको टीका लगेगा। यह नियम निकल चुका है। लेकिन दिक्कत यह है कि यह मुफ्त नहीं मिलेगा। दूसरे देशों में टीका भारतीय रुपये के मुताबिक 1 हजार से अधिक कीमत में बिक रहा है। तो यहां यह भी सोचने वाली बात है कि सरकार क्यों यह कदम उठा रही है? लोग पहले से यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि बीमारी है। लोग गरीब हैं। ऐसी परिस्थिति में कैसे संभव है कि भारत के हर एक व्यक्ति को टीका लग पाएगा?

 20. यह लड़ाई बिना डाटा के नहीं जीती जा सकती है। वायरोलॉजी की दुनिया में काम करने वाले वैज्ञानिक किसी नए वायरस से पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर ही नए वायरस की प्रकृति समझते हैं और जरूरी उपाय सुझाते हैं। इसलिए सरकार द्वारा सही आंकड़े जारी करना बहुत जरूरी है। अपनी प्रशासनिक क्षमता को छिपाने के लिए अपारदर्शी व्यवस्था बनाए रखना कारगर हो सकता है लेकिन कोरोना के मामले में यह बहुत ही घातक साबित हो सकता है। वैज्ञानिक तभी सही अनुमान लगा पाएंगे जब आंकड़े सही होंगे। जैसे कोरोना मयुटेट हो रहा है,सरल भाषा में कहें तो करोना अपनी प्रकृति बदल रहा है। इस म्यूटेशन का प्रभाव क्या पड़ेगा? यह कितनी बड़ी मात्रा में हो रहा है? इन सब सवालों का जवाब केवल डेटा से मिल सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा संभव है कि कोरोना कि प्रकृति इतनी अधिक बदल जाए कि उस पर मौजूदा वैक्सीन काम ही ना करें। इसलिए डाटा की बहुत जरूरत है।

 

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