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भारत
राजनीति
जीएचएमसी चुनाव और भाजपा : कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना!
जिस तरह के ज़हरीले पैटर्न को चुनावी प्रचार में भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने अपनाया वो इस बात की ज़मानत है कि निगम के आड़ में भाजपा का एजेंडा बहुत विस्तृत है।
फ़र्रह शकेब
30 Nov 2020
भाजपा
चुनाव प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह। फोटो साभार: सोशल मीडिया

बिहार चुनाव के बाद इस वक़्त राष्ट्रीय चर्चा और विमर्श का स्थान ले चुका ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (जीएचएमसी) के चुनाव के लिए रविवार शाम प्रचार समाप्त हो गया। मतदान कल यानी एक दिसम्बर को सुबह 7 बजे से होगा और शाम 6 बजे तक वोट डाले जा सकेंगे। 

150 वार्डों के लिए होने वाले चुनाव में 1,122 उम्मीदवार मैदान में हैं। मतगणना चार दिसम्बर को होनी है। आपको बता दें कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है जिसका विस्तार तेलंगाना के 4 ज़िलों में है जिनमें हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल-मलकजगिरी और संगारेड्डी आते हैं। नगर निगम के इस पूरे इलाके में तेलंगाना की 24 विधानसभा सीटें शामिल हैं और 5 लोकसभा सीटें आती हैं। नगर निगम में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 74.67 लाख से अधिक है।

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम  में 150 पार्षद चुने जाने हैं जिन पर शहर में प्रशासन और आधारभूत ढांचे के निर्माण एवं रख रखाव की ज़िम्मेदारी होती है। इमारत व सड़क निर्माण, कूड़े का निपटारा, सरकारी स्कूल, स्ट्रीट लाइट, शहर योजना, साफ-सफाई और स्वास्थ्य ऐसे मसले हैं जो नगर निगम संभालता है। आम तौर पर देश के तमाम बड़े शहरों के अंदर नगर निगमों और स्थानीय निकायों की यही ज़िम्मेदारी होती है।

जीएचएमसी में BJP ने पिछली बार सिर्फ चार सीट ही जीती थीं, जबकि TRS ने 99 और AIMIM ने 44 सीट जीतीं थीं।

परन्तु यहां मुद्दे की बात करें तो कहने को ये एक स्थानीय निकाय या नगर निगम का चुनाव है लेकिन हैरतअंगेज़ ढंग से एक सुनियोजित मंसूबे के तहत भाजपा, उसके आईटी सेल, निजी प्रचारतंत्र और अब आरएसएस एवं भाजपा के हित मे खुल कर काम करने वाली गोदी मीडिया ने इस नगर  निगम के चुनाव राष्ट्रीय विमर्श का विषय बना दिया है।

भाजपा ने अपने राष्ट्रीय स्तर के नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों,और कई पूर्व एवं वर्तमान मुख्यमंत्रियों को वार्ड पार्षद पद के प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार में उतारा।

आपत्ति इस बात से नहीं है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय नेताओं की सेना एक निगम चुनाव के लिए प्रचार में क्यों लगी। ये उनका संवैधानिक मौलिक अधिकार है लेकिन जिस तरह के ज़हरीले पैटर्न को चुनावी प्रचार में भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने अपनाया वो इस बात की ज़मानत है कि निगम के आड़ में भाजपा का एजेंडा बहुत विस्तृत है।

एक आम आदमी भी इस बात को समझता है के लोकसभा के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे और हित पर चुनावी मुहिम केंद्रित रहती है। विधानसभा के चुनावों में प्रादेशिक समस्याओं और समाधान की बात होती है और स्थानीय निकायों के चुनावों में स्थानीय एवं प्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन को प्रभावित करने वाले विषयों और मुद्दों को चर्चा में रखा जाता है। चुनावी मैदान में उतरने वाले प्रत्याशी भी अपना जनसम्पर्क अभियान और प्रचार प्रसार उन्ही मुद्दों और उनके समाधान के इर्द गिर्द रखते हैं।

लेकिन भाजपा का पूरा प्रचार तन्त्र इस स्तर तक सम्प्रदायिक उन्माद घृणा और द्वेष से भरा है कि अतीत में इसकी कोई मिसाल नही मिलती। भाजपाइयों का चुनाव प्रचार अकबर, बाबर मुग़ल, जिन्ना,पाकिस्तान,रोहिंग्या बंगलादेशी, लव जिहाद, सर्जिकल स्ट्राइक और उग्र हिंदुत्व पर टिका है। आरएसएस और भाजपा ने इस चुनाव को इस हद तक ज़हरीला कर दिया कि देश भर में ये बात लोगों के लिए गम्भीर चिंतन का विषय होना चाहिए के भाजपा भारतीय राजनीति और उसके गौरवशाली अतीत को घटियापन के किस चरम तक ले जा कर छोड़ेगी।

निकाय के चुनावों में सड़क, बिजली, पानी, स्ट्रीट लाइट, स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,कूड़ा और सड़कों, नालियों-नालों के रख रखाव की बात और विषयों पर चर्चा के बजाये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैदराबाद का नाम बदलने और भाग्यनगर कर देने की बात कर रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह हैदराबाद को निज़ाम संस्कृति से पाक करने की बात कर रहे हैं तो दूसरी भाजपा के सांसद और तेलंगाना भाजपा प्रमुख संजय बांदी कह रहे हैं कि जीएमसीएच में भाजपा सत्ता में आती है तो पुराने हैदराबाद के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सर्जिकल स्ट्राइक करेगी। बेंगलुरु से भाजपा एमपी तेजस्वी सूर्या ने तो यहां तक कह दिया है के ओवैसी को वोट देने वाले देशद्रोही हैं केवल भाजपा को वोट देने वाले ही राष्ट्रभक्त हो सकते हैं।

वास्तव में इस पूरे खेल को समझने की ज़रूरत है।

भाजपा इस निगम चुनाव के सहारे 2023 में तेलंगाना विधानसभा के लिए होने वाले चुनावों के लिए माहौल बना रही है। देश का हर संवेदनशील नागरिक इस बात को समझता है कि सामाजिक विभाजन की खाई जितनी गहरी होगी भाजपा को उतना लाभ मिलेगा। समाज में घृणा और उन्माद का ग्राफ़ जितना ऊंचा होगा भाजपा के पक्ष में माहौल उतना अनुकूल होगा।

दूसरी सबसे बड़ी बात ये है के भाजपा, उसका पालनहार गोदी मीडिया एवं तमाम फ़ासीवादी प्रोपोगंडाबाज़ चाहते हैं कि इस देश में सिर्फ दो पार्टी रहें एक हिंदू पार्टी दूसरी मुस्लिम पार्टी, इसके अलावा कोई पार्टी न रहे। इलाक़ाई पार्टियों को ख़त्म कर दिया जाए। वरिष्ठ पत्रकार वसीम अकरम त्यागी भी कुछ ऐसा ही वक्तव्य लिखते हैं कि हिंदू पार्टी के तौर पर भाजपा स्वयं को स्थापित कर रही है और काफ़ी हद तक वो इसमें सफ़ल भी है और मुस्लिम पार्टी के तौर पर AIMIM को स्थापित करने की क़वायद पूरी शिद्दत के साथ जारी है। संघ, भाजपा, मीडिया और पूंजीवादी शक्तियों के इस गठजोड़ ने हैदराबाद नगर निगम चुनाव को इसी एजेंडे के अधीन ओवैसी बनाम भाजपा यानी अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दू बनाम मुस्लिम का रूप दिया है।

ओवैसी की पार्टी केवल ओल्ड हैदराबाद की 51 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) 150 सीटों पर चुनाव लड़ रही है लेकिन इसके बावजूद भाजपा के जहरीले भाषणों में केवल ओवैसी निशाने पर रहे और उनके उन्मादी और सम्प्रदयायिक वक्तव्यों पर उसी पैटर्न में प्रतक्रिया भी केवल ओवैसी की तरफ़ से आती रही है। ऐसे ही नहीं लगातार भाजपा के नेताओं के बयान को मीडिया में *ओवैसी के गढ़ में गरजे अमित शाह*, *ओवैसी के घर मे घुस कर योगी ने दी चुनौती* जैसी हेडलाइन्स मिल रही हैं!

ये सबकुछ सुनियोजित है। भाजपा तेलंगाना निकायों के ज़रिये दक्षिण भारत मे अपने लिए स्कोप तलाश रही है और हैदराबाद दक्षिण भारत के गेटवे के तौर पर दुनिया भर में प्रचलित है।

सत्ताधारी टीआरएस और उसका पूरा चुनाव प्रचार वास्तविक मुद्दों पर है और उसके कर्ताधर्ता एवं कार्यकर्ता सड़क बिजली पानी स्वास्थ्य स्कूल नाली नाले स्ट्रीट लाइट्स की बात कर रहे हैं।

जो लोग भारतीय राजनीति को विगत कई दशकों से समझ रहे हैं उनका ये मानना है के मजलिस इत्तेहादुल मुस्लेमीन (AIMIM) को तेलंगाना से निकाल कर राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया द्वारा इसी मनसूबे के तहत प्रोजेक्ट भी किया जा रहा है। ओवैसी सीधा सीधा आरएसएस की पिच पर बैटिंग करते हैं उसकी एक बानगी देखनी हो तो इसे समझिए के योगी अगर चुनावी रैलियों में राम मंदिर और जय श्री राम के नारे लगवाते हैं तो ओवैसी हुसैनी परचम और यज़ीदी लश्कर चिल्लाते हैं। योगी ने जब अपनी सभा में कहा कि "जब फैजाबाद अयोध्या बन सकता है तो हैदराबाद भाग्यनगर क्यों नहीं बन सकता"। तो आशा के अनुरूप इस बयान पर सबसे पहले ओवैसी ने पलटवार करते हुए कहा "कि जो शख्स हैदराबाद का नाम बदलना चाहता है उनकी नस्लें तबाह हो जाएंगी। ये हैदराबादियों की अस्मिता को ललकारा गया है।”

गृह मंत्री अमित शाह के रोहिंग्या सम्बंधी बयान पर ओवैसी प्रतक्रिया देते हुए कहते हैं के हैदराबाद में सबसे बड़ा मुद्दा प्रदूषण का है। प्रदूषण की बात करनी चाहिए, शहर में प्रदूषण को नियंत्रित करना है। ये बीजेपी वाले यहां हिन्दू-मुस्लिम का प्रदूषण फैलाना चाहते हैं।

अब चुनावी भाषणों के कंटेंट और मीडिया प्रस्तावित इस खेल को समझिए के ओवैसी जिस तेलंगाना से आते हैं उसी तेलंगाना में कई और दल ओवैसी से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं।

ओवैसी की पार्टी से मात्र दो सांसद देश भर में हैं जबकी टीआरएस ने एक राज्य में 9 सांसद जीते हैं। 119 सीटों वाली तेलगांना विधानसभा में 88 सीटें जीत कर टीआरएस ने बहुमत से अपनी सरकार बनाई है। जब के उसी तेलगांना में ओवैसी के पास केवल 7 विधायक हैं। लेकिन निकाय चुनावों को भाजपा बनाम ओवैसी कर के ही पराजय के बावजूद बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के फैसले, सरकार की नीतियों पर प्रतिक्रिया लेने के लिए मीडिया का माइक सीधे ओवैसी के मुंह के सामने ही क्यों जाता है और तमाम विपक्ष एवं देश भर के क्षेत्रीय पार्टियों और उनके प्रमुखों के नज़रिए और बयान को दरकिनार करते हुए 'मुख्य विपक्ष' के तौर पर ओवैसी को ही ऐसे प्रोजेक्ट नही किया जा रहा है। ओवैसी का मतलब मुसलमान, और मुसलमान मतलब भाजपा और मोदी विरोधी। मोदी विरोधी मतलब राष्ट्र विरोधी पाकिस्तानी बंगलादेशी इत्यादि इत्यादि।

बहुत ही मंसूबाबन्द तरीक़े से इस बात को समाज मे स्थापित करने की कोशिश है के मोदी सरकार के फैसले से पूरा देश सन्तुष्ट और खुश हैं सिवाय एक समुदाय विशेष यानी मुसलमान के और मुसलमान देशद्रोही होता है। दूसरी ओर मुसलमानों को भी यह संदेश दिया जाता है कि अगर इस देश में तुम्हारा कोई खेवनहार है तो वह सिर्फ ओवैसी ही है। ओवैसी के कथित भक्तों को भी यही ख़ुशफ़हमी है के ओवैसी मुसलमानों के अंतिम पालनहार और मसीहा हैं।

भाजपा के पास हैदराबाद में खोने के लिए कुछ नही है, लेकिन बताने को बहुत कुछ है और अगर परिणाम ज़रा भी 4 की जगह 6 या 8 तक पहुँच गए तो वो फ़िलहाल बता कर भी काफ़ी कुछ हासिल कर सकती है 

नाम में कुछ नहीं रखा है लेकिन फैज़ाबाद अयोध्या हैदराबाद भाग्यनगर जैसे शब्द हिन्दू मुस्लिम खेल की असल ऊर्जा हैं।

अब देखना ये है के पिछले चुनाव में केवल चार सीट जीतने वाली भाजपा इस चुनाव में मेयर तक तो शायद ही पहुंच पाए लेकिन अगर वह दहाई का आंकड़ा भी पार करती है तो भाजपा का मीडिया इसे भाजपा की विजय, मोदी मैजिक, अमित शाह के मास्टरस्ट्रोक के तौर पर प्रचारित करेगा। वह बताएगा कि ओवैसी के 'गढ़' में भाजपा जीती है, यानी मुसलमानों की हार हुई है और हिंदुओं की जीत।

जबकि सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित TRS की हार अथवा जीत को शायद ही मीडिया में उस स्तर तक जगह मिल पाए क्योंकि तेलंगाना राष्ट्र समिति भाजपा की हिन्दू हितैषी वाली छवि को लाभान्वित नहीं कर पायेगी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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