NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
शिक्षा
भारत
राजनीति
इलाहाबाद विश्वविद्यालय: छात्रसंघ भंग करने की तैयारी
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल की बैठक में छात्रसंघ के स्थान पर छात्र परिषद के गठन का निर्णय लिया गया। इसे अंतिम मंजूरी 29 जून को प्रस्ताविक कार्य परिषद की बैठक में दी जाएगी। 

अमित सिंह
26 Jun 2019
फाइल फोटो
फोटो साभार:collegedunia.com

पूरब के ऑक्सफोर्ड के नाम से मशहूर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की परंपरा संभवत: इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल की बैठक में छात्रसंघ के स्थान पर छात्र परिषद के गठन का निर्णय लिया गया है। हालांकि इसे अंतिम मंजूरी 29 जून को प्रस्ताविक कार्य परिषद की बैठक में दी जाएगी।
 
अगर कार्य परिषद की बैठक में छात्र परिषद के गठन को मंजूरी मिल जाती है तो 96 साल पुराना विश्वविद्यालय छात्रसंघ समाप्त हो जाएगा। विश्वविद्यालय प्रशासन की दलील है कि छात्रसंघ की वजह से कैंपस में आए दिन अराजकता का माहौल रहता था इसलिए इसे खत्म किया जा रहा है। हालांकि छात्रों ने इस फैसले का खुलकर विरोध किया है। 

आपको बता दें कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अकादमिक परंपरा और छात्रसंघ का बेहद गौरवशाली इतिहास रहा है। युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर, सामाजिक न्याय के पुरोधा वीपी सिंह, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और गुलजारी लाल नंदा जैसे तमाम बड़े नेताओं ने राजनीति की एबीसीडी इसी यूनिवर्सिटी से सीखी थी। 

हाईकोर्ट में दिया जा चुका है हलफनामा 

गौरतलब है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पीसीबी हॉस्टल में 14 अप्रैल को छात्रनेता रोहित शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए विवि प्रशासन, जिला प्रशासन समेत उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया। 

दैनिक जागरण के मुताबिक मामले में विश्वविद्यालय की ओर से गत शुक्रवार को रजिस्ट्रार प्रो. एनके शुक्ला पक्ष रखने पहुंचे थे। रजिस्ट्रार ने कोर्ट को हलफनामा देकर लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला देते हुए बताया कि कमेटी ने दो तरीके से चुनाव कराने की बात कही थी। पहला यह कि छोटे विश्वविद्यालय कैंपस जैसे जेएनयू, हैदाबाद विश्वविद्यालय में तो प्रत्यक्ष मतदान कराया जाए। लेकिन जहां विश्वविद्यालय परिसर बड़ा है, छात्रों की संख्या काफी अधिक है और चुनाव कराने का माहौल नहीं है, वहां छात्र परिषद का गठन किया जाए।

रजिस्ट्रार ने कोर्ट को बताया कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों में साफ उल्लेख है कि विपरीत और अराजक माहौल पर छात्रसंघ चुनाव की जगह छात्र परिषद का मॉडल लागू किया जाना चाहिए। 

कोर्ट ने विश्वविद्यालय का पक्ष सुना और विश्वविद्यालय को स्पष्ट निर्देश दिया कि परिसर में शांत वातावरण और पठन-पाठन बहाल करने के लिए जो भी ठोस कदम उठाना पड़े, वह उसके लिए उचित कार्रवाई करे। साथ ही विवि में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को सख्ती से लागू कराया जाए।

आपको बता दें कि विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव कराए जाएं या नहीं, इसे लेकर यूपीए सरकार ने पूर्व चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। 2006 में लिंगदोह कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें कई तरह के दिशा-निर्देश और सिफारिशें थीं। कमेटी ने छात्रसंघ उम्मीदवारों की आयु, क्लास में उपस्थिति, शैक्षणिक रिकॉर्ड और धनबल-बाहुबल के इस्तेमाल आदि की समीक्षा करते हुए कई सिफारिशें की थीं।

2011 में भी छात्र परिषद की थी तैयारी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ पर लगाम लगाने की कोशिश कई बार हुई है। अगर हम हाल के वर्षों की बात करें तो वर्ष 2005 में छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहे महामंत्री पद के प्रत्याशी कमलेश यादव की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद से छात्रसंघ चुनाव पर बैन लगा दिया गया था। 22 दिसंबर 2011 को छात्रसंघ चुनाव फिर से बहाल हो गया था। इसके बाद 2012-2013 में छात्रसंघ चुनाव हुआ। 

हालांकि पांच दिसंबर 2011 को छात्र परिषद के गठन का फैसला लिया गया था, लेकिन तब छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया था। छात्रों ने काउंसिल के सदस्यों को वीसी दफ्तर में जबरिया रोक दिया था। उसके बाद छात्रों पर लाठीचार्ज किया गया था और बड़ी संख्या में नेता गिरफ्तार किए गए थे। लेकिन बाद में 22 दिसंबर को छात्रसंघ की बहाली कर दी गई थी। 

आपको बता दें कि छात्रसंघ प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली है जिसमें छात्र अपने मत का इस्तेमाल कर सीधे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महामंत्री आदि का चुनाव करते हैं, जबकि छात्र परिषद अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली है। इसमें पहले कक्षावार प्रतिनिधि चुने जाते हैं और यही प्रतिनिधि पदाधिकारियों का चुनाव करते हैं।

हालांकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र परिषद का मॉडल क्या होगा और इसे किस तरह से लागू किया जाएगा इसका निर्धारण करने के लिए डीन आर्ट्स प्रो केएस मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है। 

पूर्व छात्रसंघ अध्यक्षों ने दी आंदोलन की चेतावनी 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्षों ने इसे यूनिवर्सिटी प्रशासन की साजिश बताया है। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी नाकामी छिपाने के लिए छात्रसंघ को बदनाम कर रहा है। 

allahabad.jpg

इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह ने कहा, 'छात्रसंघ पर बैन का फैसला संविधान द्वारा मूलभूत अधिकारों के अंतर्गत आर्टिकल 19 (1सी) के तहत यूनियन बनाने के मूलभूत अधिकार का हनन है। यह राजनीति की नर्सरी को खत्म करने का प्रयास है। छात्रसंघ चुनावों के लिये न्यायपालिका द्वारा लिंगदोह सिफारिशों का उल्लेख है, अगर इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन लिंगदोह को लागू नहीं करा पता है तो उसकी अपनी नाकामी का उदाहरण है। रही अराजकता की बात तो विश्वविद्यालय प्रशासन स्वयं अराजक तत्वों को संरक्षण और अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए संरक्षण देकर चुनाव लड़ने की अनुमति देता है। वो लिंगदोह के आधार पर अराजक तत्वों को रोक भी सकता है।'

वो आगे कहती हैं,'जब शिक्षक यूनियन, डॉक्टर्स यूनियन, कर्मचारी यूनियन, आईएएस- पीसीएस यूनियन, अधिवक्ता यूनियन हो सकती है, क्योंकि यह फंडामेंटल राइट्स के अंतर्गत आता है तो छात्र यूनियन क्यों नहीं? छात्र यूनियन को अराजकता से जोड़ना पूरी तरह निराधार है। उदाहरण अभी पिछले दिनों ही न्याय के मंदिर के बीचोबीच बार काउंसिल की अध्यक्ष की गोली मारकर हत्या कर दी गयी तो क्या बार एसोसिएशन के चुनावों पर रोक लगा दी जायेगी? बल्कि समाज में अपराध की रोकथाम के लिये क़दम उठाये जायेंगे, सरकारों को अपनी नाकामी की ज़िम्मेदारी तय करनी होगी। सिर्फ आईएएस, पीसीएस, डॉक्टर, इंजीनियर, संविधानविद, लॉयर, लेखक, कलाकार देने की ज़िम्मेदारी ही विश्वविद्यालयों की नहीं है, बल्कि समाज और राजनीति के लिये आंदोलनकारी और नेता देने की भी ज़िम्मेदारी विश्वविद्यालयों की है। हम इस तानाशाही और असंवैधानिक फैसले के खिलाफ सड़क से न्यायालय तक संघर्ष करेंगे।'

वहीं, इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रोहित मिश्र कहते हैं, 'विवि के शिक्षक कुलपति के संरक्षण में स्वयं अराजकता का माहौल बनाना चाहते हैं। साथ ही भ्रष्टाचार को शह देते हैं। इनका विवि के गौरवमयी छात्रसंघ से कोई सरोकार नहीं हैं। यही वजह है कि वह ऐसा कर रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो छात्र आंदोलन के लिए विवश होंगे और इसकी पूरी जिम्मेदारी विवि प्रशासन की होगी।'

पूर्व छात्रसंघ अध्यक्षों ने तय किया है कि इसका विरोध किया जाएगा और इसके लिए संघर्ष की रूपरेख तय की जाएगी।
 
छात्रों से डरती हैं सरकारें?

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता के बाद के सालों में जितने भी बड़े आंदोलन हुए, उनमें छात्रों की सक्रिय भागीदारी रही है। यही कारण है कि जो भी पार्टी सत्ता में होती है वह छात्रों को दबाने का प्रयास करती रहती है। 

अगर कुछ उल्लेखनीय आंदोलन की बात करें तो पहली बार 1905 के स्वदेशी आंदोलन में युवाओं ने बड़े पैमाने पर भागीदारी की। 1920 में महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन शुरू किया तो देश भर के युवा इसमें कूद पड़े। पहले महीने में ही 90,000 छात्र स्कूल-कॉलेज छोड़कर आंदोलन में शामिल हो गए थे। इसके बाद आजादी के पहले तक लगभग हर बड़े आंदोलनों में छात्रों की सक्रिय भागीदारी रही। 

आजादी के बाद 1969 के पूरे तेलंगाना आंदोलन के दौरान पुलिस की गोली से 369 लोगों की जान गई थी। मारे गए लोगों में ज्यादातर उस्मानिया विश्वविद्यालय के छात्र थे। फिर 70 के दशक में छात्र आंदोलन की सबसे मुखर भूमिका देखने को मिली। 1974 में गुजरात से शुरू हुए छात्र आंदोलन ने तत्कालीन इंदिरा सरकार की चूलें हिला दी थी। बाद में असम में हुए छात्र आंदोलन से लेकर दिल्ली में निर्भया गैंगरेप के बाद हुए प्रदर्शन में छात्रों की भूमिका ने तत्कालीन सरकारों को परेशान करने का काम किया। 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता रमेश यादव कहते हैं, 'जब से केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार आई है तब से प्रदेश और खासकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र किसी भी जनवादी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन दर्ज कराने में सबसे आगे रहे हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद सत्ताधारी दल पूरी तरह से छात्रसंघ यूनियन पर कब्जा जमा पाने में असफल भी रहा है। अब छात्र परिषद का गठन करके छात्रों की आवाज को दबाने की कोशिश सरकार द्वारा की जा रही है।'

वहीं, पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह इस रोक को दलित, पिछड़ों, महिलाओं और अल्पसंख्यक छात्रों पर भी हमला बताती हैं। वो कहती हैं, 'छात्रसंघ चुनाव दलित, पिछड़ों, महिलाओं और अल्पसंख्यक छात्रों को राजनीति में इंट्री करने का मौका देते हैं। अगर सरकार इन्हें ही बंद कर देगी तो सिर्फ नेताओं के बेटे ही राजनीति में एंट्री लेंगे। अगर मुझे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला होता तो मैं शायद ही राजनीति में प्रवेश करती। सरकार के इस रोक का खामियाजा आम परिवार से आए लोगों को भुगतना पड़ेगा।'

 

Allahabad University
Allahabad University students union
student council
AUSU
Lyngdoh committee
Allahabad High Court

Related Stories

इलाहाबाद विश्वविद्यालय: लाइब्रेरी खुलवाने के लिए धरने पर बैठे छात्रों को बल प्रयोग कर हटाया

कार्टून क्लिक : आंखों पर पट्टी बंधी है, लेकिन...

इलाहाबाद हाईकोर्ट सख़्त, योगी सरकार को हटाने ही होंगे सीएए हिंसा आरोपियों के होर्डिंग्स

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी: कुलपति के इस्तीफे और छात्राओं की जीत की पूरी कहानी

अब कैंपस बन रहे हैं प्रतिरोध के गढ़!

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अब छात्रसंघ खत्म

इलाहाबाद विश्वविद्यालय: छात्रसंघ से किसे डर लगता है?


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License