NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
“70 सालों में कुछ नहीं हुआ” का शोर मचाने वालों ने 7 सालों में यह हालत बना दी कि लोग फुटपाथों पर दम तोड़ रहे
आरएसएस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मार्फत राजनीति करता है। भाजपा के नेता आरएसएस के स्वयंसेवक होते हैं। वाजपेयी के समय तक कुछ हद तक ऐसा लगता था कि आरएसएस का राजनीतिक नेतृत्व हिंदुत्ववादी पूर्वाग्रहों के बावजूद संविधान और संसदीय लोकतंत्र के सांचे में अपने को ढालने की दिशा में अग्रसर है।
हस्तक्षेप
01 May 2021
modi

महामारी : आरएसएस के बयान के निहितार्थ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में छह साल तक आंशिक रूप से सत्ता में हिस्सेदारी का अनुभव मिला था। अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उसे सात साल पूर्ण रूप से सत्ता में रहने का अनुभव हो चुका है। आरएसएस कांग्रेस की एक कांख में पला है। लिहाजा, उसे आजादी के बाद से ही सत्ता में हिस्सेदारी का कुछ न कुछ अनुभव होता रहा। इतना लंबा समय पर्याप्त था कि आरएसएस संविधान को आत्मसात कर, संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करते हुए, जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ शासन चलाने की रीति सीख लेता। 

आरएसएस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मार्फत राजनीति करता है। भाजपा के नेता आरएसएस के स्वयंसेवक होते हैं। वाजपेयी के समय तक कुछ हद तक ऐसा लगता था कि आरएसएस का राजनीतिक नेतृत्व हिंदुत्ववादी पूर्वाग्रहों के बावजूद संविधान और संसदीय लोकतंत्र के सांचे में अपने को ढालने की दिशा में अग्रसर है।

एक राजनीतिक पार्टी के रूप में भाजपा पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के मामले में धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिशीलता और सामाजिक न्याय की पक्षधर कही जाने वाली पार्टियों से हमेशा काफी आगे रही है। इससे आशा बंधती थी कि एक दिन आरएसएस और उसका राजनीतिक नेतृत्व संविधान और संसदीय लोकतंत्र में वैसी ही भली-बुरी आस्था जमा लेगा, जैसी देश की अन्य राजनीतिक पार्टियों की है।

इस तरह वह सत्ता अथवा विपक्ष में रहते हुए समावेशी परिप्रेक्ष्य के साथ अच्छे, जिम्मेदार और जवाबदेह शासन के अपने कर्तव्य को निष्ठा और ईमानदारी से निभाने का प्रयास करेगा। लेकिन नरेंद्र मोदी-भागवत-शाह के आरएसएस/भाजपा नेतृत्व ने उस आशा को झूठा सिद्ध कर दिया है। बल्कि उसने वे सभी पाठ भुला  दिए हैं जो वाजपेयी-काल तक सीखे थे।

संविधान के सम्मान की हवाई बातें करते हुए आरएसएस/भाजपा का मौजूदा नेतृत्व राष्ट्र और धर्म की ठेकेदारी के बल पर सत्ता हथियाने और सरकार चलाने की कवायद में लगा है।

भाजपा सरकार के कार्यकलापों, नीतियों, निर्णयों आदि की आलोचना अथवा विरोध होने पर यह नेतृत्व समुचित उत्तर अथवा समाधान देने के बजाय राष्ट्र अथवा धर्म, जब जैसा मौका हो, की दुहाई देकर भ्रम की स्थिति पैदा कर देता है। लोकतंत्र में जनता, विपक्ष और प्रेस के साथ स्वस्थ संवाद बनाने की वह जरूरत ही नहीं समझता। 

ताज़ा उदाहरण आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसाबेल का कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बनी आपदायी स्थिति पर दिया गया बयान है।

बयान में आपदा की आड़ में ‘भारत को अस्थिर करने वाली’, ‘नकारात्मक’ ‘षड्यंत्रकारी’ ‘संदेह’ (मिसट्रस्ट) पैदा करने वाली, ‘विध्वंसकारी’ शक्तियों/तत्वों से सावधान रहने को कहा गया है।

आरएसएस से पूछा जा सकता है क्या जो लोग बिस्तर, दवाई, आक्सीजन, वेंटिलेटर, एम्बुलेंस  के अभाव में धक्के खाते हुए मौत का शिकार हो रहे हैं, उनके व्यथित परिजनों की शासन से शिकायत राष्ट्र को अस्थिर करने की साजिश है? क्या जो व्यक्ति/संस्थाएं विपत्ति में पड़े लोगों की मदद कर रहे हैं, वे भारत को अस्थिर करने में लगे हैं? राजनीतिक विपक्ष या नागरिक समाज से जो लोग सरकार की लापरवाही और बदइंतजामी का खुलासा कर रहे हैं, भारत को अस्थिर करने वाले तत्व हैं? महामारी पर सुनवाई करते हुए देश की कुछ अदालतों ने सरकारों और उनके तहत संस्थाओं की नाकामी पर जो कहा है, क्या वह राष्ट्र को अस्थिर करने लिए कहा है? क्या महामारी की रिपोर्टिंग करने वाले भारत से बाहर के मीडिया की रुचि अचानक भारत को अस्थिर करने में हो गई है?

आरएसएस को राष्ट्र को अस्थिर करने वाली सामने पड़ी असली वजहें और स्थितियां छिपानी होती हैं, इसीलिए वह झूठ का आख्यान गढ़ने में लगा रहता है। उसके लिए यह जरूरी है, क्योंकि राष्ट्र को अस्थिर करने वाली ताकतों में वह फिलहाल अव्वल चल रहा है। इस संदर्भ में कुछ हाल के प्रकरण देखे जा सकते हैं, जिनका सीधा संबंध आरएसएस/भाजपा से है : सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं परिसंपत्तियों को अभी तक की सबसे महंगी सरकार चलाने के लिए बेचना; प्रधानमंत्री के विदेश दौरों और प्रचार पर अरबों रुपये खर्च करना; राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की यात्रा के लिए अमेरिका से करीब 5 हजार करोड़ रुपये के विशेष विमान खरीदना; 20 हजार करोड़ की लागत से नई संसद और केंद्रीय विस्ता बनाना; महामारी को अवसर बनाते हुए मजदूर व किसान विरोधी श्रम और कृषि कानून थोपना; शिक्षा को ज्ञान की धुरी से उतार कर बाजारवाद और अंधकरवाद की धुरी पर रखना; भारतीय संविधान और संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों की पूर्ण अवहेलना कर अल्पसंख्यकों को निरंतर भय के वातावरण में जीने के लिए अभिशप्त करना। यह सूची काफी लंबी हो सकती है। पिछले एक साल से सीमा पर चीन ने भारत को अस्थिर किया हुआ है। दत्तात्रेय ने उस राष्ट्रीय अपमान के प्रसंग पर कुछ नहीं कहा।

हम आरएसएस को एक बार फिर बताना चाहते हैं कि एक स्वतंत्र, संप्रभु और स्वावलंबी राष्ट्र के रूप में आधुनिक भारत तभी अस्थिर होना शुरू हो गया था जब 1991 में देश के नीति-निर्माण का काम संविधान की धुरी से उतार कर वैश्विक पूंजीवादी संस्थाओं की धुरी पर रख दिया गया था। अटलबिहारी वाजपेयी ने उस वक्त खुशी जाहिर करते हुए कहा था कि कांग्रेस ने अब उनका यानि आरएसएस/भाजपा का काम हाथ में ले लिया है। यह उसी धुरी-परिवर्तन का सीधा नतीजा है कि महामारी की चपेट में आने वाले लोग बिस्तर, दवाई, आक्सीजन, वेंटिलेटर, वैक्सीन, एम्बुलेंस के लिए मारे-मारे फिरते हैं; परिजन मृतकों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं; और ऊपर से उन्हें आरएसएस/भाजपा द्वारा गढ़े गए सरकारी झूठों की बरसात झेलनी पड़ रही है!

महामारी से मौत होना नई बात नहीं है। पूरी दुनिया में लोग मर रहे हैं। यह कतई जरूरी नहीं है कि मौत पर मातम मनाया जाए या शोक प्रकट किया जाए। दुर्गति भुगत कर मरने वाला देखने नहीं आ रहा है, और परिजनों की पीड़ा कम नहीं होने जा रही है। लेकिन यह सवाल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि “70 सालों में कुछ नहीं हुआ” का शोर मचाने वालों ने 7 सालों में यह हालत बना दी है कि महामारी से संक्रमित लोग फुटपाथों पर दम तोड़ रहे हैं। परिजन, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं, भिखारियों की तरह जिस-तिस के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं। कालाबाजारियों और भ्रष्टाचारियों की बन आई है।  

आरएसएस का यह बयान बताता है कि सरकार की प्राथमिकता आपदा से निपटने की नहीं, आलोचकों को निपटाने की है। वह अपनी इस टेक पर अड़ा हुआ है कि पूरा देश और विश्व यह माने कि प्रधानमंत्री समेत आरएसएस/भाजपा ही राष्ट्र हैं।

बयान में कहा गया है कि उनके प्रति हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। विकटतम स्थिति में भी उनकी आलोचना करना साजिश है।

कहने की जरूरत नहीं कि आरएसएस की यह नितांत लोकतंत्र-विरोधी मानसिकता तो है ही, इससे यह सच्चाई भी पता चलती है कि कट्टरतावादी विचारधाराओं/संगठनों में मानवीय करुणा का स्रोत अवरुद्ध करके रखा जाता है।

साभार : हस्तक्षेप 

BJP
RSS
Narendra modi
Congress
COVID-19

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License