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इन्डोनेशिया : बच्चों के सुधार और पुनर्वास की कोशिशें जारी
धार्मिक कट्टरपंथ के शिकार मानव बम बनाए गए बच्चों को सुधारने और उनका पुनर्वास करने की कोशिशें जारी हैं और अब उन्हें समाज में एक बेहतर ज़िंदगी गुज़ारने के लिए परवरिश की जा रही है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
12 Jul 2019
इन्डोनेशिया
Image Courtesy: theworldnews.net

इन्डोनेशिया में नौ साल की मीला को कट्टरपंथ की पकड़ से जुदा करके अब पूरी तरह से नयी जिंदगी जीने के लिए तैयार किया जा रहा है जहां दुनिया के प्रति सिर्फ और सिर्फ प्रेम की भावना होगी।

इंडोनेशिया बच्चों समेत परिवार द्वारा आत्मघाती धमाकों से दहल गया है। बता दें कि मीला के माता-पिता ने खुद को बम से उड़ाने से पहले उसे मोटरसाइकिल से फेंक दिया था। वह आत्मघाती हमले करने वाले परिवार में जीवित बची अकेली लड़की है। 

अनाथ और कट्टर बना दी गई मीला के भविष्य को लेकर चिंताएं पैदा हो गई थी लेकिन पुनर्वास के प्रयासों से मीला और उसके जैसे अन्य बच्चों को सामान्य जिंदगी जीने का मौका दिया गया है। बच्ची को मीला नाम एएफपी ने दिया है।

वह उस छोटे-से दिखने वाले समूह की सदस्य है जिनका जकार्ता में एक अनोखी योजना के तहत इलाज चल रहा है जहां उसकी मनोवैज्ञानिक और सामाजिक देखरेख की जा रही है। यह आतंकवादी साज़िशों में शामिल आत्मघाती हमलावरों या बच्चों को सही राह पर लाने की योजना है।

दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश ‘परिवार हमलों’ के बढ़ते वैश्विक हमलों से जूझ रहा है और इस समस्या से जूझ रहा है कि आईएस से लौटे जिहादियों को फिर से कैसे मुख्यधारा में शामिल किया जाए।

पुनर्वास केंद्र की प्रमुख नेनेंग हेर्यानी ने कहा, ‘‘बच्चों से निपटना आसान नहीं रहा क्योंकि वे चरमपंथ में विश्वास रखते हैं और मानते हैं कि धमाके करना अच्छी चीज़ है।’’

उन्होंने बताया, ‘‘उन्हें सिखाया गया है कि जन्नत जाने के लिए जिहाद जरूरी है और तुम्हें चरमपंथ में भरोसा ना रखने वालों को मारना होगा। उनकी मानसिकता बदलना बहुत मुश्किल है।’’

सामाजिक कार्यकर्ता और मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग के ज़रिये उन्हें फिर से समाज की मुख्यधारा में शामिल कर रहे हैं और दिन-प्रतिदिन के कामों में उन्हें शामिल कर रहे हैं जिनमें मस्जिद में जाना और रोज़ा खेलना शामिल है।

पिछले साल सुराबाया में आत्मघाती हमलों से जुड़े आतंकवादी संदिग्धों के अन्य बच्चों का भी यहां उपचार चल रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता मुस्फिया हांडयानी ने कहा, ‘‘हम अब भी उन्हें पढ़ाते हैं कि कुरान हर चीज की नींव है और उन्हें इसमें भरोसा करना होगा। लेकिन अगर आप दूसरे लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करेंगे तो यह ठीक नहीं है।’’

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) के चरमपंथी परिवारों की विशेषज्ञ हौला नूर ने कहा, ‘‘हमें इन बच्चों को पीड़ितों के साथ-साथ संभावित हमलावरों के तौर पर देखना चाहिए।’’

पिछले दशक में इंडोनेशिया में बढ़े इस्लामिक हमलों से देश की धार्मिक सहिष्णुता की छवि धूमिल हुई है।

मीला अपने माता-पिता के साथ मोटरसाइकिल पर बैठी थी जब उन्होंने गत मई में सुराबाया पुलिस चौकी पर खुद को उड़ाया।

हांडयानी ने बताया कि मीला में अच्छा-खासा बदलाव देखा गया है। अब वह लोगों से बातचीत कर सकती है।

(भाषा से इनपुट के साथ)

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