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स्वास्थ्य
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NDHM: स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्ण निजीकरण के लिए एक मुहिम
डाटा के गलत इस्तेमाल के अलावा ऐसा डर है कि NDHM से सरकार की भूमिका सेवादाता से अब निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ब्रोकर की हो जाएगी।
जे एस मजूमदार
22 Aug 2020
NDHM
फोटो साभार: Oneindia

इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने एक बड़ी घोषणा में नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन (NDHM) की घोषणा की। प्रधानमंत्री ने कहा, "आज से एक बड़ा कैंपेन शुरू किया जा रहा है, जिसमें तकनीक बेहद अहम भूमिका निभाएगी। आज नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की शुरुआत की जा रही है। यह भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में नई क्रांति लेकर आएगा और तकनीक की मदद से यह कार्यक्रम इलाज़ मिलने में मदद करेगा।"

तो NDHM से नागरिकों की स्वास्थ्य सेवाओं पर क्या अंतर आएगा?

AB-PMJAY (आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना) की नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (NHA) द्वारा जारी एक स्टेटमेंट के मुताबिक़, NDHM डॉक्टर, हॉस्पिटल और दूसरे स्वास्थ्यसेवा प्रदान करने वालों, फॉर्मेसी, बीमा कंपनियों और नागरिकों के बीच अंतर को कम करेगा। इन्हें एक समग्र डिजिटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ेगा। NHA, NDHM की रूपरेखा तय करने और इसे प्रोत्साहित करने के लिए मुख्य एजेंसी है। सरकारी थिंकटैंक NITI आयोग ने NHA को इस मिशन में यह ज़िम्मेदारी दिए जाने का सुझाव दिया था।

NDHM को पहले 6 केंद्रशासित प्रदेशों- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पुडुचेरी, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, लक्ष्यद्वीप, चंडीगढ़ और लद्दाख में लागू किए जाने की योजना है।

इस स्वास्थ्य मिशन में डिजिटल इंटरफेस के 6 हिस्से हैं। इसमें डिजिटल तरीके से मरीज़ को देखना, उसको सुनना और उससे बात करना, उससे संबंधित किसी व्यक्ति के साथ भी यही प्रक्रियाएं करना शामिल हैं। हर नागरिक के दो मॉड्यूल- स्वास्थ्य ID और निजी स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स, होंगे। दूसरे मॉड्यूल में स्वास्थ्य सेवाओं में लगे दूसरे लोग होंगे, जैसे- डिजिडॉक्टर, स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री, ई-फॉर्मेसी और टेलिमेडिसिन।

एक तरफ जहां निजी ID, डॉक्टर और इलाज़ सुविधा का चयन का विकल्प सरकार के पास होगा, वहीं दूसरे तीन- निजी स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स, टेलिमेडिसिन (ऑनलाइन डॉयग्नोसिस और दवाएं लिखने संबंधी) और ई फॉर्मेसी (दवाईयों की ऑनलाइन आपूर्ति, निजी क्षेत्र) को इन मॉड्यूल को बनाने और चलाने के लिए आपस में जोड़ा जाएगा।

NHA के प्रमुख और इसके CEO इंदु भूषण ने मिशन के शुरू होने पर कहा, "निजी क्षेत्र के दावेदारों को इन चीजों से जुड़ने के पूरे मौके मिलेंगे और बाज़ार के हिसाब से अपने उत्पाद को बनाने का मौका मिलेगा।"

एक अहम बात आपको जानना जरूरी है, जिससे आप अलग-अलग बिंदुओं को जोड़ सकते हैं और यह मिशन भविष्य में किस दिशा में जाएगा, इस बारे में अंदाजा लगा सकते हैं। NDHM की घोषणा के चार दिन पहले मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्री ने ई फॉर्मेसी कंपनी नेटमेड्स में 60 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी, इसके एवज में 620 करोड़ रुपये चुकाए गए हैं। मनीकंट्रोल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इस अधिग्रहण से RIL के रिटेल यूनिट रिलायंस रिटेल को अपने ऑनलाइन ग्रोसरी मार्केट जियोमॉर्ट के अलावा अब “वर्टिकल ई-कॉमर्स’ में भी जगह मिल गई है। यह उन चंद उद्योगों में शामिल है, जिनमें कोरोना महामारी के दौरान भी बढ़ोत्तरी हुई है।’

अब हम NDHM पर वापस लौटते हैं, इसके आसपास मुख्यधारा की मीडिया द्वारा जो सनसनी पैदा की जा रही है, वह गोएबल्स के उन तौर-तरीकों जिनमें मुख्य भावना छुपाई जाती थी, उनके भी परे जाती है। जैसे पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने आयुष्मान भारत प्रोजेक्ट के बारे में कहा था कि इसके ज़रिए सरकार का लक्ष्य सेवादाता से वित्तपोषक बनना है। लेकिन इस प्रोजेक्ट से बीमा कंपनियों को मुनाफ़े की मंशा से स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निवेश करने का रास्ता बन गया। यह प्रोजेक्ट प्राथमिक और तृतीयक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर उसका इस्तेमाल मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं देने के अपने उद्देश्य में नाकामयाब रहा है।

इसी तरह डर जताया जा रहा है कि NDHM से सरकार की भूमिका को सेवादाता से बदलकर निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ब्रोकर में बदल दिया जाएगा।

कुल मिलाकर NDHM एक स्कीम है:

1) सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को हटाकर स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के लिए, 2) निजी क्षेत्र के फायदे के लिए ई-फॉर्मेसी को प्रोत्साहन देने के लिए, जिसके तहत दवाओं की ऑनलाइन आपूर्ति की जाएगी और ऑनलाइन डॉयग्नोसिस कर सलाह दी जाएगी।, 3) किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य इतिहास और दूसरी जानकारियों को सरकारी नियंत्रण में रखने के लिए, जिनका इस्तेमाल निजी क्षेत्र द्वारा व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए भी हो सकता है। इस इस्तेमाल के तहत बहुराष्ट्रीय ड्रग कंपनियों द्वारा नई दवाओं के ट्रॉयल भी शामिल हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्यतंत्र और निजीकरण की कवायद

AB-PMJMY को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2018 के स्वतंत्रता दिवस भाषण में उद्घोषित किया गया था। इसे 25 सितंबर, 2018 को लॉन्च किया गया था। यह एक बड़ा नीतिगत बदलाव था, जिससे केंद्र सरकार की स्वास्थ्य नीतियों को पूरी तरह बदल दिया गया। यह नीतियां स्वतंत्रता के बाद से जारी थीं।

भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में विकास हुआ है और यह स्वतंत्रता के बाद से ही योजनागत् प्रक्रियाओं का अहम हिस्सा रहा है। स्वास्थ्य योजना हमेशा से ही सामुदायिक विकास कार्यक्रम का अंतर्निहित हिस्सा रही है। 1978 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अल्मा-ऐटा डिक्लेरेशन हेल्थ फॉर ऑल बाय 2000 AD पर आधारित, भारत ने 1983 में अपनी पहली राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति अपनाई, जिसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2002 द्वारा बाद में बदल दिया गया। इसमें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, 2005 और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन, 2013 जोड़ा गया, जिनका NHM 2013 में विलय कर दिया गया। समग्र शिशु विकास योजना (ICDS) और आशा (मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य कार्यकर्ता) का भी सार्वजनिक स्वास्थ्यतंत्र में अहम किरदार रहा है।

लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने NHP-2002 को NHP-2017 से बदल दिया। इसके ज़रिए स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया गया, इसके ज़रिए निजी ‘तेजतर्रार स्वास्थ्य सेवा उद्योग’ के उभार और उसके दो अंकों में वृद्धि और ‘निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के विकास का सार्वजनिक स्वास्थ्य लक्ष्यों से एकरूपता’ के लिए इसकी की प्रशंसा की गई। कहा गया कि इससे ‘निजी क्षेत्र अपने योगदान के ज़रिए स्वास्थ्य सेवा ढांचे को ज़्यादा प्रभावी, तार्किक, सुरक्षित और सस्ता बनाएगा।”

डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि निजी अस्पताल और डॉयग्नोस्टिक सेंटर में 2000 से लेकर 2017 के बीच 4.83 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ।

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-3 के मुताबिक़, निजी स्वास्थ्य क्षेत्र, शहरों में 70 फ़ीसदी फ़ीसदी परिवारों से ज़्यादा का स्वास्थ्य सेवा स्रोत है, वहीं ग्रामीण इलाकों के परिवारों के लिए यह आंकड़ा 63 फ़ीसदी है।

AB-PMJAY को सार्वजनिक स्वास्थ्यसेवा ढांचे और बीमा आधारित तंत्र की जगह लेनी थी। इस बीमा का प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भरा जाता है। कम शब्दों में कहें तो स्वास्थ्य सेवा में लगी बीमा कंपनियों के मुनाफ़े का लालच, कॉरपोरेट से चलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ जोड़ दिया गया है, इन स्वास्थ्य सेवाओं में हॉस्पिटल, नर्सिंग होम्स, डॉयग्नोस्टिक सेंटर और निजी मेडिसिन कंपनियां आदि शामिल हैं।

इस पृष्ठभूमि में NDHM आई है। यह मुख्य तौर पर उन लोगों को साधती है, जो PMJAY से बाहर हैं। यह निजी डॉक्टरों, कॉरपोरेट हॉस्पिटल और डॉयग्नोस्टिक सेंटर, फॉर्मेसीज़, इंश्योरेंस कंपनियों जैसी दूसरी सुविधाओं को अपने मंच के ज़रिए एकसाथ लाती है।

नीति आयोग के सुझाव

पहले हम बता चुके हैं कि कैसे नीति आयोग ने महामारी में स्थिति का विश्लेषण कर, इन चीजों को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई थी- 1) वर्क फ्रॉम होम 2) चीन से होने वाली आपूर्ति को तोड़ना और श्रम कानून में बदलाव, FDI की शर्तों को बदला जा सके और कॉरपोरेटाइज़ेशन और निजीकरण में तेजी लाई जा सके। 3) इस बात पर भी नतीजे पर पहुंचे हैं कि कोरोना महामारी के बढ़ने के चलते टेलीमेडिसिन में भी बहुत उछाल आएगा। मरीज़ों-डॉक्टर का नया सलाहकारी संबंध बनेगा, जिसका आधार आईटी होगा, आखिरकार यह तंत्र सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा ढांचे की जगह लेगा। 4) संपर्क रहित पहुंच व्यवस्था जैसे, ई-कॉमर्स और ई फॉर्मेसी को बढ़ावा देना।

निजी ID और स्वास्थ्य डाटा

NDHM में दो मॉड्यूल हैं- निजी स्वास्थ्य ID और निजी स्वास्थ्य डाटा। निजी स्वास्थ्य डाटा निजी कंपनियों को उपलब्ध रहेगा, जबकि सरकार निजी ID डाटा पर नियंत्रण रखेगी। इस बात की घोषणा की जाएगी। इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य इतिहास और दूसरी जानकारियां निजी कंपनियों को उपलब्ध रहेगी और यह सार्वजनिक तौर पर भी मौजूद रहेंगी। इसके नतीज़े बहुत हानिकारक होंगे, इसमें इस डाटा का व्यवसायिक उपयोग और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नई दवाईयों (जैसे कोरोना वैक्सीन) के इस्तेमाल में इसका उपयोग शामिल है।

दूसरी तरफ हेल्थ आईडी जैसे तरीकों से नागरिकों के डाटा पर सरकार के नियंत्रण से खराब वक्त में उसका गलत इस्तेमाल हो सकता है।

लेखक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं और सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन के नेता हैं। यह उनके निजी विचार हैं। इस लेख को CITU के फ़ेसबुक पेज पर पहले प्रकाशित किया गया था, इसमें थोड़ा संपादन भी किया गया है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

NDHM: An All-Out Drive for Privatisation of Healthcare

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