NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
200 पॉइंट विभागवार रोस्टर के नाम पर सामाजिक न्याय से खिलवाड़
काश! हमें एंटी नेशनल जैसी बातों की बजाय सामाजिक न्याय, काबिल शिक्षक और विश्वविद्यालयों की प्रासंगिकता जैसी बातें सुनने को मिलतीं तो वंचित तबकों सहित भारत के नागरिकों के साथ ऐसी नाइंसाफी करने से पहले सरकारें एक बार ज़रूर सोचती।
अजय कुमार
21 Jan 2019
डूटा का प्रदर्शन

जहां ‘असर’ की रिपोर्ट शिक्षा के शुरुआती स्तर की बदहाली प्रस्तुत करती है, वहीं दिल्ली की सड़कों पर आए  दिन शिक्षकों का सरकार के खिलाफ विरोध भारत के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की जर्जर होती जा रही व्यवस्था की कहानी बयां करता है। अभी हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने केंद्र सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के खिलाफ सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। इनकी मांग है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कई सालों से काम कर रहे तकरीबन 4500 एडहॉक (तदर्थ) शिक्षकों को जल्द से जल्द स्थायी किया जाए और 5 मार्च 2018 को यूजीसी द्वारा जारी  200 पॉइंट विभागवार रोस्टर के सर्कुलर को खारिज किया जाए। 

आइए इन  दोनों मांगों को समझने की कोशिश करते हैं-

पहली मांग तदर्थ शिक्षकों को जल्द से जल्द स्थायी करने से जुड़ी है। इस पर दिल्ली के  जाकिर हुसैन कॉलेज में कार्यरत तदर्थ शिक्षक लक्ष्मण यादव कहते हैं कि  साल 2007 में दिल्ली विश्वविद्यालय के एग्जीक्यूटिव  कौंसिल ने तदर्थ शिक्षकों के लिए नए नियम बनाए। यह नियम हैं कि किसी शिक्षक के रिटायर होने, बीमार होने और छुट्टी पर जाने पर एडहॉक के तौर पर शिक्षकों की नियुक्ति होगी। इनकी नियुक्ति केवल चार महीने के लिए होगी। उसके बाद इंटरव्यू लेकर इन्हीं की स्थायी शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति की जाएगी। साथ में  इन नियुक्तियों की संख्या फैकल्टी के कुल शिक्षकों की संख्या के 10 फीसदी से अधिक नहीं होगी। मौजूदा हालत यह  कि पिछले कई सालों से दिल्ली विश्वविधायलय में कई सारे लोग एडहॉक के तौर पर काम कर रहे हैं। हर चार महीने पर इनके कार्यकाल की अवधि अगले चार महीने के लिए बढ़ा दी जाती है। इस तरह से दिल्ली में विश्वविद्यालय के कई फैकल्टी में एडहॉक के तौर काम करने वाले शिक्षकों की संख्या निर्धारित नियम 10 फीसदी से कम से बढ़कर 50 फीसदी तक पहुँच चुकी है। विवेकानंद कॉलेज के कुछ फैकल्टी की  हालत ऐसी है कि यहाँ  सारे के सारे शिक्षक एडहॉक पर काम करते हैं। 

एडहॉक  पर काम करने वाले शिक्षकों को स्थायी तौर पर नियुक्त शिक्षकों की तरह सामजिक सुरक्षा और किसी भी तरह की सुविधा से जुड़े किसी भी तरह के लाभ नहीं मिलते हैं। हालत यहां तक खराब है कि महिला एडहॉक शिक्षकों को मैटरनिटी लीव तक नहीं मिलती है। इसलिए हमारी मांग है कि जल्द से जल्द होने वाली प्रक्रिया के तहत एडहॉक शिक्षकों को स्थायी किया जाए। लेकिन सरकार इस मांग पर ध्यान देने के बजाय अब इस तरफ बढ़ चली है कि विश्वविद्यालयों में कॉन्ट्रेक्ट पर टीचरों की बहाली हो। यानी बिना किसी स्थायी नौकरी के दस पंद्रह हजार के मासिक वेतन पर ठेके पर टीचरों को रखा जाएगा। इसका सीधा इशारा इस तरफ है कि हमारे उच्च शिक्षण संस्थान से सरकार अपना हाथ खींचकर इसे बाजार के हवाले कर रही है। 

दूसरी मांग 5 मार्च 2018 को जारी यूजीसी द्वारा जारी  200 पॉइंट विभागवार रोस्टर के सर्कुलर को खारिज करने से जुड़ी है। 5 मार्च 2018 के यूजीसी के सर्कुलर के तहत विश्विद्यालय में  शिक्षकों की नियुक्ति का आधार विश्विद्यालय न होकर विश्विद्यालय का विभाग तय किया गया।  यानी शिक्षकों की नियुक्ति में सामाजिक न्याय को सुचारु ढंग से लागू करने के लिए  रोस्टर की प्रक्रिया  विश्विद्यालय के विभाग को इकाई मानते हुए  काम करेगी। सरकारी नौकरी में  सामाजिक न्याय को स्थापित करने के लिए रोस्टर का उपयोग किया  जाता है। इसके तहत कुछ पॉइंट निर्धारित किये जाते हैं। इन पॉइंट के तहत पदों का बँटवारा किया जाता है। सामाजिक न्याय लागू होने के बाद से रोस्टर में प्रत्येक 7वाँ पद SC को, 14वाँ पद ST को और हर चौथा पद OBC वर्ग के प्रत्याशी के लिए निर्धारित किया गया है।

चूँकि ST के लिए 7.5 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान है जिसे सीटों में तब्दील करने की व्यावहारिकता के कारण DoPT ने रोस्टर को 200 प्वाइंट का निर्धारित किया। जिसमें सीटों का निर्धारण उक्त अनुपात में किया जाता रहा हैI लेकिन विभागवार रोस्टर में पदों की संख्या आमतौर पर बहुत कम होने से आरक्षित पदों का नंबर ही नहीं आएगा और अधिकांश पद सामान्य श्रेणी के लिए आरक्षित हो जाते हैं। विश्वविद्यालय को एक इकाई मानकर 200 प्वाइंट रोस्टर बनाने पर लगभग 50 फ़ीसदी आरक्षण मिलता, जबकि विभागवार रोस्टर में यह आरक्षण लगभग 5 फ़ीसदी मात्र रह गया हैI ऐसा इसलिए है क्योंकि विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में विभाग छोटे होते हैं, जिससे पदों की संख्या अमूमन दर्जन से कम ही होती है। ऐसे में सबसे भयावह है कि ST संवर्ग के लिए सभी विज्ञापन में पदों की संख्या ही समाप्त हो गई है। 

उच्च शिक्षा में SC-ST के लिए आरक्षण 1997 में और OBC के लिए आरक्षण 2007 में लागू हुआ। उसके बाद से ही स्थायी नियुक्तियाँ कमोबेश बंद रही हैं। अब जैसे ही ये आरक्षण विरोधी रोस्टर आया, सभी जगह नियुक्तियाँ की जा रही हैं।  वे सभी आरक्षित पद, जो एक दशक पहले ही सृजित हुए, वे विभागवार रोस्टर से समाप्त हो गए हैं।  शार्टफ़ॉल और बैकलॉग पदों यानी आरक्षित पदों के न भरने  को लेकर कोई नीति नहीं है।  ऐसे में उच्च शिक्षा में वंचित तबके की संवैधानिक हिस्सेदारी (ST- 7.5%, SC- 15%, OBC- 27%) कभी पूरी ही नहीं हो सकेगी। साल 2016-17  के यूजीसी की  वार्षिक रिपोर्ट के तहत देश भर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सरकारी शिक्षकों की संख्या तकरीबन 14.7 लाख है। इसमें से कॉलेजों में नियुक्त शिक्षकों की संख्या तकरीबन 13.08 लाख (89  फीसदी) है  और विश्वविद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों की संख्या तकरीबन 1.62 लाख (9 फीसदी)। 30 विश्वविद्यालयों  के प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसरों की कुल संख्या 31146 है। इसमें से SC,ST,OBC की कुल संख्या 9130 है। यह इन वर्गों के लिए आरक्षित कुल  49.5 फीसदी सीटों में  महज 29.03 फीसदी है।

5 मार्च के सर्कुलर के विरोध में सरकार के मानव संसाधन एवं विकास  मंत्रालय (एमएचआरडी) ने स्वयं सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर किया है। आज तक इस  एसएलपी पर सुनवाई नहीं हुई है। एक RTI के जवाब में यूजीसी ने बताया कि रोस्टर का मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।  न्यायालय में विचाराधीन होने के बावजूद देश भर के विश्वविद्यालय लगातार विभागवार रोस्टर लागू करके विज्ञापन जारी करके नियुक्ति करते जा रहे हैं। न्यायालय में विचाराधीन होने के समय नियुक्ति प्रक्रिया रोकना और यथास्थिति बनाए रखना ही न्यायपालिका व संविधान सम्मत है।  जबकि यहाँ ऐसा नहीं हो रहा है। इस सर्कुलर की वजह से विश्वविद्यालय शिक्षक नियुक्ति की विज्ञप्ति के हालत पर पड़ने वाले वाले प्रभाव का जायज़ा आरटीआई फाइल करके लिया गया। आरटीआई के जवाब में  मिली विज्ञप्तियों की स्थिति  विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में सामाजिक न्याय के खात्में की तरफ  साफ़-साफ़ इशारा करती हैं। संवैधानिक आरक्षण विरोधी सरकारी सर्कुलर के आने के बाद से विज्ञापनों की तिथिवार सूची इस प्रकार है, जिसमें विभागवार रोस्टर की पहली सूची है। दूसरी सूची 200 प्वाइंट रोस्टर की है, अर्थात यदि कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय एक यूनिट होता, तो ये विज्ञापन दूसरी सूची के अनुसार होता।

jpeg.jpg

विभागवार रोस्टर लागू करने के लिए HRD मंत्रालय और यूजीसी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जिस फैसले को आधार बना रहे हैं, वह सलाहकारी है, जबकि पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय आरक्षण के पक्ष में आये हैं, जिनका यहाँ उल्लंघन किया जा रहा है। ऐसे में उच्च शिक्षा के संवैधानिक चरित्र को बचाए रखने के लिए ये ज़रूरी है कि सरकार एक संसदीय अध्यादेश लाकर विभागवार रोस्टर सम्बन्धी फैसले को वापस करे और उच्च शिक्षा तक समाज के वंचित-शोषित तबके के लिए संभावनाएं बचाए रखे। लेकिन सरकार ने इस बार के संसद सत्र में ऐसा कुछ नहीं किया। इस तरह से विभागवार रोस्टर के कारण विश्वविद्यालयों में सामाजिक न्याय का खात्मा साफ-साफ दिख रहा है। इतनी बड़ी धांधली पर कहीं भी बातचीत नहीं है।

दिल्ली विश्वविद्यालय का शिक्षक संघ एक संगठित शिक्षक संघ है। यह तो अपनी लड़ाई लड़ रहा है लेकिन देश के दूसरे विश्वविद्यालय ऐसे मसलों को चुपचाप सहन कर रहे हैं। साथ में ऐसे मसले हमारी मीडिया की बहस का हिस्सा नहीं है। समाज को भी इससे कुछ लेना देना नहीं है क्योंकि यह समाज के पॉपुलर चलन पर धक्का नहीं मारता है। इस दौर के लोकप्रिय संचार माध्यमों ने यह बताया ही नहीं कि सामाजिक न्याय जैसी भी कोई चीज होती है। काश! हमें एंटी नेशनल जैसी बातों की बजाय सामाजिक न्याय, काबिल शिक्षक और  विश्वविद्यालयों की प्रासंगिकता जैसी बातें सुनने को मिलतीं तो वंचित तबकों सहित भारत के नागरिकों  के साथ ऐसी नाइंसाफी करने से पहले सरकारें एक बार ज़रूर सोचती।

DUTA
DUTA protest
teachers protest
add hok teachers
Delhi University
HRD minister
MHRD
Education crises

Related Stories

दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल

दिल्ली: दलित प्रोफेसर मामले में SC आयोग का आदेश, DU रजिस्ट्रार व दौलत राम के प्राचार्य के ख़िलाफ़ केस दर्ज

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

ज्ञानवापी पर फेसबुक पर टिप्पणी के मामले में डीयू के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को ज़मानत मिली

‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार

दिल्ली : पांच महीने से वेतन न मिलने से नाराज़ EDMC के शिक्षकों का प्रदर्शन

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

एमपी : ओबीसी चयनित शिक्षक कोटे के आधार पर नियुक्ति पत्र की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना को क्यों खत्म कर रही है मोदी सरकार?

कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट को लेकर छात्रों में असमंजस, शासन-प्रशासन से लगा रहे हैं गुहार


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License