NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
2018 : दलित गुस्सा, किसान संघर्ष और बीजेपी की चुनावी शिकस्त
इस वर्ष को किसान आंदोलनों की आंधी, मज़दूरों के बढ़ते संघर्ष और दलितों के बढ़ते गुस्से तथा लोगों के बीच से मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के बढ़ते अलगाव लिए याद किया जाएगा जैसा कि विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है। यह मोदी शासन के अंत की शुरुआत भी हो सकती है।
सुबोध वर्मा
31 Dec 2018
Translated by महेश कुमार
2018... सांकेतिक तस्वीर

वर्ष 2018 मोदी के लिए बुरे ख्वाब जैसा रहा, हालांकि वह और उनकी पार्टी इस बात को चुपचाप मानते चल रहे थे कि जैसे वे अजेय अमर विश्व गुरु हैं। मोदी सरकार के तहत पिछले कुछ वर्षों में अपनायी गयी विनाशकारी आर्थिक नीतियों के लागू करने से और बड़े पूंजिपतियों को, विशेष रूप से कुछ चुने हुए पूंजिपतियों के पक्ष में एक अनैतिक प्रतिबद्धता दिखाने के कारण भारतीय समाज के प्रत्येक वर्ग का भाजपा के शासन से मोहभंग हो गया है। जैसे कि यह पर्याप्त नहीं था, संघ परिवार ने इसके उपर हिंदुत्व के उच्च जाति ब्रांड को आक्रामक ढंग से प्रचारित किया जिसने जाति और धार्मिक स्तर पर सामाजिक तनाव को बढ़ा दिया है। इस तमाम उठा-पठक के बाद भी, हर तरह के गुर का इस्तेमाल कर सत्ता से चिपके रहे और लोकतांत्रिक संस्थानों को धता बता दिया और सभी मानदंडों धकेलते हुए व्यक्तिगत अधिकारों और संस्थानों की आज़ादी पर हमला किया इससे भाजपा की सत्ता में रहने की हताशा की जनता के सामने पोल खुल गयी।

बीता साल शायद मोदी और उनकी जहरीली राजनीति के ब्रांड, उनके भ्रामक जुमलों, उनकी चुप्पी और उनकी नकली गड़गड़ाहट के अंत की शुरुआत है जो हर किसी के सिर चढ़कर बोल रही थी। 2018 की कुछ प्रमुख विशेषताएं और घटनाएं संक्षेप में मोदी की गिरावट को दर्शाती हैं।

दलित क्रोध: भीमा कोरेगांव और उसके बाद

2018 के पहले दिन, महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगाँव गाँव में दलितों ने पेशवाई पर जीत की खुशी में कार्यक्रम किया जिसपर हिन्दुत्ववादी ताकतों के षड्यंत्रकारियों ने हमले और हिंसा की। आगजनी की। इसके विरोध में 250 से अधिक दलित और अन्य लोकतांत्रिक संगठनों ने महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया। एक ही झटके में, इस घटना ने आक्रामक हिंदुत्व और दलित विरोधी दोनों ही स्वभाव को दिखाया, साथ ही मोदी शासन के तहत बढ़ते अत्याचारों के कारण दलित समुदायों के बीच गुस्सा भी खूब था। बाद में, संघ परिवार ने भाजपा राज्य सरकार के माध्यम से पुणे में एल्गर परिषद में भाग लेने वाले कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और हिंसा के बीच एक मजबूत संबंध बनाने के लिए हेरफेर किया। पूरी बात उसके सिर पर आ गई थी – इसलिए इन कार्यकर्ताओं को ‘अर्बन (शहरी) नक्सल’ घोषित कर दिया गया, और आरोप लगाया कि इन्होंने पीएम मोदी की हत्या की साजिश रची थी और इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया गया है जबकि भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़काने वाले- संभाजी भिडे और मिलन एकबोटे खुले घूम रहे हैं। यह पूरा कांड सनातन संस्था की जानलेवा गतिविधियों से ध्यान हटाने के लिए रचा गया था, जो कि एक हिंसात्मक हिंदू संगठन है और जो तर्कवादियों और प्रगतिशील विचारकों की हत्या के लिए जिम्मेदार है।

बाद में, उच्चतम न्यायालय के फैसले पर भाजपा के ढुलमुल रवैये जिसमें कि एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम को कमजोर कर दिया गया था, जिसके कारण देश भर में दलित और आदिवासी समुदाय विरोध में उठ खड़े हुए थे। फिर से, अप्रैल में एक बंद का आह्वान किया गया था, और फिर से उच्च जाति की दलितों के खिलाफ हिंसा हुई थी। इस प्रकार, यह सिलसिला जारी रहा और भाजपा हर कदम पर अलग-थलग होती गई।

किसानों का संघर्ष

किसान पिछले कुछ वर्षों से अपनी उपज की बेहतर कीमतों और कर्ज से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे थे। ये संघर्ष कम से कम 13 राज्यों में फैले हुए थे। 2017 में, इन मुद्दों पर कानून बनाने की मांग के लिए दिल्ली में तीन दिवसीय किसान मुक्ति संसद का आयोजन किया गया था। मार्च 2018 में, 50,000 से अधिक किसानों ने मुंबई में मार्च किया, जिसे लोंग मार्च के रूप में जाना गया, इनकी भी बेहतर कीमतों और मजदूरी की मांग थी। बाद में, संघर्षों ने ज़ोर पकड़ा, और एक बहुत बड़ा आंदोलन बन गया जो पूरे देश में फैल गया। इसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि उनके संघर्ष औद्योगिक श्रमिकों के साथ अधिक एकजुट हो गए। 5 सितंबर को दिल्ली में इस एकजुट मोर्चे पर किसानों और श्रमिकों की एक विशाल संयुक्त रैली हुई। किसानों के संघर्ष की एक और विशेषता यह थी कि वे मोदी सरकार से मांग को पूरा करवाने की ओर अग्रसर थे। 30 नवंबर को, देश भर के किसानों ने दिल्ली में फिर से इकट्ठा हुए और किसानों के ज्वलंत मुद्दों पर विचार करने और उन्हें हल करने के लिए एक विशेष संसद सत्र की मांग की। मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने की मांग को इन आंदोलनों ने पकड़ लिया और देश के सभी हिस्सों में इसे दोहराया जाने लगा और इसने आंदोलनों को मजबूत किया। विधानसभा चुनावों में, यह भाजपा की हार में प्रदर्शित हुआ।

विधानसभा चुनावों में मोदी की हार

बीजेपी ने 2018 में कई विधानसभा चुनावों में हार दर्ज़ की जिसने इस बात की शानदार ढंग से पुष्टि की कि मोदी का शासन जनता के असंतोष से बिखरना शुरू हो गया है। सबसे पहले, कर्नाटक में बीजेपी ने सत्ता में आने के लिए कोशिश की और इसके लिए उसने धन और बाहुबल का बड़ा प्रदर्शन किया और मोदी-शाह के उच्च स्तरीय अभियान के बावजूद बीजेपी हार गयी। लेकिन मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी का सफाया इस बात का असली संकेत है कि उसकी जमीन खिसक रही है। उसे एक अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां वह 15 वर्षों से लगातार शासन कर रही थी। बीजेपी के खिलाफ वोट आंशिक रूप से जनता पर डाली नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी आपदाओं के कारण भी पड़ा, लेकिन मुख्य रूप से भगवा पार्टी के खिलाफ किसानों का गुस्सा और दलित-आदिवासी अलगाव था।

इस हार ने बता दिया कि लोग मोदी के साढ़े चार साल के शासन से थक चुके हैं। वे बढ़ती बेरोजगारी, किसानों की उपेक्षा, दलितों और आदिवासियों पर अत्याचारों से परेशान हैं,  मूल्य वृद्धि और मजदूरी में ठहराव से बर्बाद हो चुके हैं। यह एक तरह से, नव-उदारवादी नीतियों के पूरे पैकेज की अस्वीकृति है, जो कॉर्पोरेट कार्यक्रमों के लिए सुपर प्रॉफिट बनाती है, जो निजीकरण को बढ़ावा देती है, कल्याणकारी कार्यक्रमों से सरकार के समर्थन को वापस खींचती हैं। नतीजों ने बीजेपी और संघ परिवार की इस उम्मीद को भी खत्म कर दिया कि हिंसक सांप्रदायिकता और अति-राष्ट्रवाद के नाम पर हिंदू गोलबंदी से चुनावी लाभ मिलेगा। आखिरकार, राम मंदिर इतना बड़ा मुद्दा था जिसे भाजपा के मुख्य प्रचारक योगी आदित्यनाथ द्वारा उठाया गया, जो कि यूपी के मुख्यमंत्री हैं। फिर भी, भाजपा हार गई।

BJP
BJP government
Narendra modi
Modi government
Assembly elections 2018
Karnataka Assembly Elections 2018
madhya pradesh elections
Chhattisgarh elections 2018
rajasthan Assembly elections
Bhima Koregaon
The Battle of Bhima Koregaon
Dalits Protest
Dalit movement
kisan andolan
kisan mukti yatra
Kisan Long March
Mazdoor-Kisan rally
farmers protest

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License