NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
2020 : सरकार के दमन के बावजूद जन आंदोलनों का साल
यह साल इस सुरक्षा के भाव के साथ बीत रहा है, कि किसान सड़कों पर डटे हुए हैं और सरकार को कड़ी टक्कर देते हुए कह रहे हैं, कि ‘हम पीछे नहीं हटेंगे!’
सत्यम् तिवारी
29 Dec 2020
2020 : सरकार के दमन के बावजूद जन आंदोलनों का साल

मोदी सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ देश भर के किसान पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। राजधानी दिल्ली में पिछले एक महीने से पंजाब, हरियाणा, यूपी समेत देश के कई राज्यों के हज़ारों-लाखों किसान, सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, ग़ाज़ीपुर बॉर्डर, शाहजहांपुर बॉर्डर पर जमा हैं। किसानों का यह प्रदर्शन दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि सरकार से कई दौर में हुई बातचीत के बावजूद अभी तक कृषि क़ानून वापस लेने की स्थिति नहीं बनी है।

किसानों का यह प्रदर्शन 2020 के शुरूआत की याद दिलाता है जब देश भर में मोदी सरकार के एक और क़ानून के ख़िलाफ़ आंदोलन हो रहे थे। नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे आंदोलन का नेतृत्व शाहीन बाग़ की महिलाओं ने किया था। जैसा प्रदर्शन शाहीन बाग़ में 3 महीने से ज़्यादा चला था, वैसा ही अभी सिंघु बॉर्डर और अन्य जगहों पर देखने को मिल रहा है।

साल 2020 एक मायूस करने वाला साल रहा है। सारी दुनिया अभी भी कोरोना वायरस महामारी से जूझ ही रही है। किसी भी महामारी से लड़ते हुए मुश्किलें तब और बढ़ जाती हैं, जब किसी देश की सरकार नागरिकों के बजाय अपना हित सोच रही हो। भारत देश की मोदी सरकार ने इस 'आपदा को अपने लिए अवसर में बदलने का काम किया।'

हम आज नज़र डाल रहे हैं कि राजनीतिक गतिविधियों के मामले में साल 2020 कैसा रहा है।

सरकारी दमन, और जन आंदोलन

इतिहास गवाह है कि कोई भी सरकार बिना विरोध के नहीं चल सकती। भारत में भी 2014 से हर एक साल जन आंदोलन का ही साल रहा है, क्योंकि मोदी सरकार की नई नई नीतियों के ख़िलाफ़ लोगों में लगातार ग़ुस्सा बढ़ा है। चाहे वो नोटबन्दी का सवाल हो, या लेबर क़ानून, या सीएए, या हालिया कृषि क़ानून; समाज के अलग-अलग वर्ग ने लगातार सरकार का विरोध किया है। 2020 की शुरुआत में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ सारे देश में आंदोलन जारी थे। भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से आंदोलन को ख़त्म करने की कोशिश कर रही थी। सरकारी बयानों, मीडिया चैनलों के माध्यम से उस वक़्त भी विरोध प्रदर्शनों को अमानवीय साबित करने की कोशिश जारी थी। शाहीन बाग़ में आंदोलन कर रही महिलाओं को एक से ज़्यादा बार आतंकवादी, पाकिस्तानी जैसी बातें कहीं गईं। बीजेपी के प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा ने लगातार हेट स्पीच के ज़रिये आंदोलन कर रही जनता पर तरह तरह के हमले किये।

फिर फ़रवरी के महीने में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफ़राबाद इलाक़े में कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषण हुआ, और फिर वो हुआ जिसकी कोशिश शायद बीजेपी शुरू से ही कर रही थी। कपिल मिश्रा ने फ़रवरी में एक भाषण देते हुए 'धमकी' दी कि अगर पुलिस सड़क ख़ाली नहीं कराएगी तो वो ख़ुद ख़ाली कर देंगे। उसके बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई। ज़ाहिर तौर पर इसमें बड़ी संख्या मुसलमानों की ही थी।

कोरोना की आड़ में

22 मार्च को कोरोना वायरस महामारी की वजह से देश भर लॉकडाउन लगा दिया गया। ट्रेन, बस, विमान सब बंद हो गए। इसका सबसे बड़ा खामियाज़ा देश के प्रवासी मज़दूरों को उठाना पड़ा, जो उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से दिल्ली मुम्बई जैसे बड़े शहरों में काम की वजह से रह रहे थे। सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान नोटबन्दी स्टाइल में ही किया। प्रधानमंत्री टीवी पर आए, और ऐलानिया भाषण दे दिया। इसके 2 महीने बाद तक बड़े शहरों से प्रवासी मज़दूर पैदल अपने गांव कस्बों तक जाने को मजबूर हुए, और सैकड़ों मज़दूरों की मौत हुई।

जब मज़दूर सड़कों पर थे, तब सरकार पुलिस की मदद से दिल्ली दंगों के मामले में अवैध गिरफ्तारियां कर रही थी। दिल्ली दंगों में यूपी पुलिस-दिल्ली पुलिस की सवालिया भूमिका पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यूपी पुलिस पर आरोप है कि उसने नागरिकता क़ानून के विरोध के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क़रीब 30 लोगों की जान ली। दिल्ली पुलिस का हिंसक रवैया तो हम 2019 के दिसंबर से ही देख रहे हैं। जब जामिया की लाइब्रेरी में पुलिस ने घुस कर पढ़ाई कर रहे छात्रों पर बेरहमी से वार किया। इसके बाद नए साल में 5 जनवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में क़रीब 50 नकाबपोश गुंडों ने हॉस्टल में घुस कर छात्रों पर हमले किये, और दिल्ली पुलिस ने उस मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की। दरियागंज, जामिया, दिल्ली गेट में नागरिकता क़ानून के विरोध के दौरान पुलिस रिहायशी इलाक़ों में घुस कर लोगों को पीट रही थी। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों के दौरान भी पुलिस पर यही इल्ज़ाम लगे कि वह मूक दर्शक बन कर देखती रही। कोरोना वायरस महामारी की आड़ में पुलिस ने छात्रों, शिक्षकों, बुद्धिजीवियों, नेताओं को गिरफ़्तार भी किया और उनके नाम भी चार्जशीट में शामिल किए। उमर ख़ालिद, नताशा नरवाल, ख़ालिद सैफ़ी जैसे दर्जनों छात्र-सामाजिक कार्यकर्ता आज भी जेलों में बंद हैं और पुलिस उनके ख़िलाफ़ कोई भी सबूत पेश करने में नाकाम साबित हुई है।

संसद में क्या हुआ

जब सारा देश कोरोना वायरस महामारी, बेरोज़गारी से जूझ रहा था, तब मोदी सरकार कोरोना की आड़ में संसद में क़ानून पास करवाने में लगी थी। संसदीय कार्य मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार साल 2020 में 40 से ज़्यादा बिल दोनों सदनों में पास किये जा चुके हैं। इन बिलों पर न उचित चर्चा हो सकी, न कोई बहस की गई। इसमें सबसे विवादित बिल तीनों कृषि क़ानून हैं। इन क़ानूनों को पास करते हुए सरकार ने न किसानों से चर्चा की, और न ही सदन में कोई बहस की गई। सरकार विरोध प्रदर्शनों को भी नज़रअंदाज़ करने का ही काम करती रही।

शाहीन बाग़ और किसान आंदोलन

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहा शाहीन बाग़, जिसे सरकार ने, मीडिया ने ‘पाकिस्तान परस्त’ तक कह दिया। वैसा ही कुछ किसान आंदोलन के दौरान देखने को मिला है। प्रदर्शन कर रहे किसानों में सिखों की संख्या ज़्यादा होने की वजह से उन्हें ‘ख़ालिस्तानी’ तक कह दिया गया। मगर यह ओछी राजनीति का नज़ारा भर ही था, जिसे किसानों ने और ज़्यादातर जनता ने सिरे से ख़ारिज कर दिया। आज शाहीन बाग़ की तरह ही, सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, ग़ाज़ीपुर बॉर्डर और देश भर में जहाँ भी किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, वहाँ समाज के हर वर्ग के लोग यानी डॉक्टर, लेखक, कलाकार, शिक्षक आदि वहाँ पहुँच रहे हैं और किसानों के साथ अपनी एकजुटता ज़ाहिर करते हुए कृषि क़ानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

2020 में कोरोना वायरस महामारी ने जितनी गुंजाइश छोड़ी, उसके हिसाब से सरकार की जन विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ विरोध के स्वर लगातार उठे। हालांकि मोदी सरकार की नीतियों को भी इस साल ज़्यादा और ज़्यादा दमनकारी बताया गया। इस साल राम मंदिर की भी नींव रख दी गई, और कोर्ट ने अपने फ़ैसले में बाबरी विध्वंस मामले में बीजेपी के सभी आरोपितों को बरी भी कर दिया।

हमारे देश ने इस साल पुरुष प्रधान होने की सीमा को भी पार कर दिया जब सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद उनकी प्रेमिका रिया चक्रवर्ती पर ‘काला जादू’ करने, सुशांत को ड्रग्स देने के इल्ज़ाम लगाए गए और देश की मीडिया ने घटिया पत्रकारिता के गड्ढे में एक छलांग और लगा ली।

इन सब चीज़ों से आगे बढ़ते हुए आज देश के अन्नदाता किसानों ने अपने कंधे में देश भर के विरोध को अपने विरोध के साथ शामिल किया है, जब वह सिंघु बॉर्डर से आवाज़ उठाते हुए अपने हक़ों के साथ-साथ बेरोज़गारी, साम्प्रदायिकता, अवैध गिरफ़्तारी और मोदी सरकार की तमाम नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं।

यह साल इस सुरक्षा के भाव के साथ बीत रहा है, कि किसान सड़कों पर डटे हुए हैं और सरकार को कड़ी टक्कर देते हुए कह रहे हैं, कि ‘हम पीछे नहीं हटेंगे!’

Year 2020
Indian constitution
Indian democracy
Fundamental Rights
Anti government protest
BJP
Narendra modi
Amit Shah
Coronavirus
CAA
Shaheen Bagh
farmers protest
Farm Bills

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

शाहीन बाग से खरगोन : मुस्लिम महिलाओं का शांतिपूर्ण संघर्ष !

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License