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राजनीति
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2021 : चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका की युद्ध की धमकियों का साल
जो बाइडेन प्रशासन लगातार युद्ध की धमकी देने, निराधार आरोपों और चीन के विरुद्ध बहु-देशीय दृष्टिकोण बनाने के संकल्प को पूरा करने के साथ नए शीत युद्ध को गरमाए रखना जारी रखे हुए है।
मोनिका क्रूज़
24 Dec 2021
modi biden
24 अक्टूबर 2021 को क्वाड शिखर सम्मेलन में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन। सौजन्यः व्हाइट हाउस।

चीन के खिलाफ अमेरिका की अगुवाई वाली आक्रामकता, जिसे कुछ लोग "एक नए शीत युद्ध" का आगाज़ कहते हैं, राष्ट्रपति जो बाइडेन के खास जुझारू पूर्ववर्ती के समान उत्साह के साथ ही बढ़ रही है। इस तरह के चीन के मामलों पर बाइडेन के कार्यकाल को डोनाल्ड ट्रंप का 2.0 तक कहा जाने लगा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बाइडेन ने ट्रंप कार्यकाल में चीन पर थोपे गए विभिन्न करों को यथावत रखा है, दक्षिण चीन सागर में सैन्य अभ्यास जारी रखा है, और पेइचिंग के खिलाफ अत्यधिक परिष्कृत और राजनयिक दृष्टिकोण के जरिए अपने सहयोगियों को प्रेरित कर रहा है तथा उन्हें संगठित कर रहा है। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के दिग्गज प्रतिनिधि चीन के प्रति घोर अविश्वास एवं संदेह के इस पागल अभियान में समान रूप से शामिल हैं, जैसे कि अभी हाल ही में यह जुगलबंदी कथित मानवाधिकारों के हनन के निराधार दावों पर चीन के शिनजियांग क्षेत्र से होने वाले आयात को लक्षित करने वाले बिल के पारित होने में दिखी है।

ऐसा लगता है कि बाइडेन के इस आक्रामक अभियान का चीन के बारे में अमेरिकी जनमत पर सीधा प्रभाव पड़ा है। मार्च में जारी एक गैलप पोल में पाया गया कि 45 फीसदी अमेरिकियों का विश्वास है कि चीन "अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन" है। इसी तरह, एक जुलाई को हुए प्यू रिसर्च पोल ने बताया कि 73 फीसदी अमेरिकी उत्तरदाताओं ने चीन के प्रति अपना नकारात्मक दृष्टिकोण दर्शाया, उनका यह रुख इस विश्वास का नतीजा है कि चीन ही कोरोनो वायरस के प्रकोप के लिए जिम्मेदार है। यह एक और मिथक है, जिसे बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों और दोनों दलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों ने कायम रखा है। 

बाइडेन प्रशासन को कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी के दूसरा वर्ष, बिगड़ती जलवायु आपदा और ऐतिहासिक असमानता जैसे संकट विरासत में मिले हैं, जबकि घरेलू मोर्चों पर समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, बाइडेन ने विदेशों में अपने एक प्रमुख लक्ष्य, चीन के खिलाफ साम्राज्यवादी आक्रमण और दुष्प्रचार के अपने ठोस प्रयास को और तेज कर दिया है। अधिक बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने के मामले में बाइडेन का विन्यास ट्रंप के विपरीत है, लेकिन दोनों का मकसद एक ही रहा है।

यहां पिछले एक साल में चीन के विरुद्ध अमेरिकी नीति के सबसे उल्लेखनीय कवायदों को बिंदुवार समेटा गया है-

1. सैन्य निर्माण के लिए अरबों का बजट

2021 की शुरुआत पेंटागन की $738 डॉलर के भारी-भरकम बजट के साथ हुई। यह सैन्य बजट एक साथ 13 देशों के रक्षा बजट से भी बड़ा है और चीन के रक्षा बजट का चौगुना है। पूर्व एडमिरल फिलिप डेविडसन (जिन्होंने अप्रैल के अंत में अपने पद से इस्तीफा दे दिया) ने इंडो-पैसिफिक कमांड (INDPACOM) के लिए अलग से $27.3 अरबों डॉलर के धन आवंटित करने के लिए कांग्रेस से अनुरोध किया। यह राशि भी ब्राजील के कुल सैन्य बजट से कहीं अधिक है।

डेविडसन को चीन विरोधी एक प्रसिद्ध हॉक माना जाता है। उन्होंने अप्रैल में दिए गए अपने इस्तीफे में इस बात पर जोर देते हुए कहा कि "(अमेरिका) कोई गलती न करे। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी अगुवाई में चीनी विशेषताओं वाले विचार के साथ एक ऐसी अलहदा और खुली नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को रोपना चाहती है, जहां अंतरराष्ट्रीय कायदे-कानून के पालन की बजाए चीनी राष्ट्रीय शक्ति अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है।"

एडमिरल जॉन एक्विलिनो INDPACOM के नए नेता हैं और उन्होंने भी चीन पर इसी कट्टर रुख को जारी रखा है। अभी पिछले महीने ही हैलिफ़ैक्स अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मंच पर उन्होंने अमेरिका के सहयोगी देशों के सैन्य और सुरक्षा बल के प्रमुखों से आग्रह किया कि वे अमेरिका के साथ और अधिक संयुक्त सैन्य अभ्यासों में शामिल हों। उन्होंने अपने भाषण में चीन का स्पष्ट उल्लेख तो नहीं किया, लेकिन इसके बाद पत्रकारों से अपनी बातचीत में चीन का उल्लेख किया।

एक्विलिनो ने ख़बरदार भी किया,जिसका अर्थ है कि चीन को अपनी सीमाओं के आसपास भी सैन्य जमावड़ा करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि "देखिए चीनियों ने क्या कहा है। राष्ट्रपति शी [जिनपिंग] ने 2027 तक अपने बलों को संयुक्त राज्य अमेरिका की सैन्य बराबरी पर लाने का काम सौंपा है।"

अमेरिकी हिंद-प्रशांत कमान क्षेत्र का फैलाव 34 देशों तक है, जिनकी आबादी दुनिया की सकल आबादी का 60 फीसदी है। इसका मकसद एशिया/प्रशांत के 70 फीसदी क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य बलों के लिए बेस बनाना है।

2. शत्रुता में डूबी अमेरिका-चीन वार्ता

शीर्ष चीनी और बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों के बीच पहला बड़ा शिखर सम्मेलन मार्च में अलास्का के एंकोरेज में हुआ था। पर इस बातचीत को दोनों देशों के बीच मौजूदा तनाव को कम करने में काफी हद तक विफल माना गया। दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया और ताइवान की स्थिति पर दोनों ने दुगनी ताकत से परस्पर विरोध किया।

लंबे समय तक चीन के राजनयिक रहे यांग जिएची ने अमेरिका को अपने "सैन्य बल और वित्तीय प्रभुत्व के जरिए दूसरे देशों को अपने अधिकार क्षेत्र में लाने और उनका दमन करने के लिए फटकार लगाई।" उन्होंने "चीन के आंतरिक मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप" के प्रति आगाह किया और संकल्प लिया कि चीन इसका "कड़ी जवाबी कार्रवाई करेगा।" अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने यह कहते हुए शिखर सम्मेलन का समापन किया कि दोनों राष्ट्र के बीच "मौलिक अड़चनें हैं।"

इस शिखर सम्मेलन के लिए अमेरिका ट्रम्प-युग की एकतरफा नीति "अमेरिका फर्स्ट" के सुर को मद्धम करने के फेर में अमेरिका अतिरिक्त मील चला गया। बहुपक्षवाद के अपने आग्रह पर जोर देने के लिए अमेरिका ने चतुष्टय सुरक्षा वार्ता,जिसे "क्वाड" के रूप में भी जाना जाता है, के लिए एक आभासी शिखर सम्मेलन आयोजित किया। यह क्वाड अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के बीच एक ढीला-ढाला गठबंधन है। इसके पहले यह 2004 में हिंद महासागर में आए भूकंप और सूनामी से हुई मानवीय आपदा से निबटने के लिए एक गठबंधन भर था। क्वाड तो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में "एशिया की धुरी" की उनकी रणनीति के एक हिस्से के रूप में फिर से संयोजित किया गया। उनके उत्तराधिकारी डोनाल्ड ट्रम्प ने तो क्वाड को चीन पर नए शीत युद्ध का एक केंद्रीय हिस्सा ही बना दिया।

वार्त्ताओं के पहले सप्ताह में, बाइडेन प्रशासन ने जापान और दक्षिण कोरिया में वहां के उच्च-स्तरीय नेताओं के साथ बैठकें कीं, जिसका उद्देश्य चीन के खिलाफ अपने सहयोगियों को एक संयुक्त मोर्चे पर लाना था। ये दोनों देश चीन को सैन्य घेराव में लेने में अमेरिका के महत्त्वपूर्ण भागीदारों के रूप में कार्य करते हैं। जापान में लगभग 50,000 तो दक्षिण कोरिया में 30,000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। अमेरिका ने अलास्का शिखर सम्मेलन से पहले के हफ्तों में इन दोनों देशों के साथ सैन्य अभ्यास करने पर बात की है। उसने इस बातचीत के ठीक दो दिन पहले चीन के 24 शीर्ष स्तर के अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया।

3.वैश्विक शक्तियां युद्ध को खेल समझती हैं

चीन पर बहु-देशीय दृष्टिकोण कायम करने का मुद्दा G-7 शिखर सम्मेलन में और उसके बाद जून में आयोजित नाटो की बैठक में भी छाया रहा। G-7 दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का एक अनौपचारिक समूह है,उसमें अमेरिका ने चीन और रूस के प्रति अधिक शत्रुतापूर्ण अभिविन्यास पर जोर दिया। एक संयुक्त विज्ञप्ति में, G-7 राष्ट्रों ने चीन से आह्वान किया कि वह "चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा पत्र में उल्लिखित और मूल कानून में निहित हांगकांग के अधिकारों, स्वतंत्रता और उच्च स्तर की स्वायत्तता का सम्मान करे।" यह भी मांग की गई कि चीन "मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान करे,खासकर शिनजियांग में।"

इस बयान में हांगकांग में मानवाधिकारों का हनन होने के दावे भी किए गए और इस पागल सिद्धांत की जांच का आह्वान किया गया कि कोरोना वायरस चीनी प्रयोगशाला में मानव निर्मित था। G-7 के देशों ने "ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की, और जलडमरूमध्य के पार के मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान निकाले जाने पर बल दिया।" बयान में कहा गया है, "हम पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में स्थिति को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं और वहां की यथास्थिति को बदलने और क्षेत्र में तनाव बढ़ाने के किसी भी एकतरफा प्रयास का कड़ा विरोध करते हैं।"

इस बयान के जवाब में, ब्रिटेन स्थित चीनी दूतावास ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी मानदंड संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों पर आधारित हैं, न कि कुछेक देशों द्वारा तैयार किए गए तथाकथित नियमों पर।"

नाटो शिखर सम्मेलन में, उन्हीं नेताओं ने इस बात पर जोर देते हुए कि चीन की "कथित महत्वाकांक्षाएं और दबंग व्यवहार विश्व के समक्ष प्रणालीगत चुनौतियां पेश करते हैं", अपने उक्त आदेश के लिए इसी "नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था" के बारे में अपने बयान दिए थे।

ऐसा लगता है कि यह आदेश केवल नाटो देशों के विरोधियों के पालन करने के लिए है, क्योंकि वे दक्षिण चीन सागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं। शिखर सम्मेलन के समय, ब्रिटेन ने अपने सबसे बड़े विमानवाहक पोत को दक्षिण चीन सागर में सैन्य अभ्यास में भाग लेने के लिए भेजा। इसके कुछ ही हफ्ते पहले, अमेरिका के सातवें बेड़े के कमांडर ने दक्षिण चीन सागर में चीन को घेरने के लिए और अधिक विमानवाहक पोतों को बुलाया।

4. शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन के आरोपों का खुलासा

चीन सरकार के प्रति शिनजियांग प्रांत में उइगरों मुसलमानों से जबरिया मजदूरी कराने और उनका संहार करने सहित उनके मानवाधिकारों का हनन करने के इस संदिग्ध दावों को बाइडेन प्रशासन के तहत एक जबरदस्त मंच प्रदान किया गया है। इस आरोप को एक तथ्य के रूप में पेश किया जाता है और अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा द्वारा चीनी के उच्चस्तरीय अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने, उनकी संपत्ति को फ्रीज करने और उनकी यात्रा पर प्रतिबंध लगाने में इस्तेमाल किया गया है। अमेरिकी विदेश विभाग ने धुर दक्षिणपंथी धार्मिक कट्टरपंथी एड्रियन ज़ेनज़ के काम पर भरोसा किया है, जो मानते हैं कि उन्हें "भगवान के नेतृत्व में" चीनी सरकार का खात्मा करने के लिए एक "मिशन" पर भेजा गया है, जबकि पाया गया है कि उनके काम में डेटा में हेराफेरी की गई है और वह सांख्यिकीय त्रुटियों से भरा हुआ है।

शिनजियांग की स्थिति पर मार्च में जारी पहली "स्वतंत्र" रिपोर्ट में ज़ेनज़ के काम के साथ-साथ कई अन्य अमेरिका-समर्थित लॉबिंग संस्था और दुष्प्रचार करने वाली इकाइयों का उल्लेख किया गया था। यह रिपोर्ट न्यूलाइन्स इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजी एंड पॉलिसी द्वारा प्रकाशित की गई थी, जिसका नेतृत्वकर्ताओं की एक लंबी सूची में अमेरिकी विदेश विभाग के कई पूर्व अधिकारियों, सैन्य सलाहकारों और खुफिया विशेषज्ञ शामिल हैं। न्यूलाइन्स इंस्टीट्यूट की मूल संस्था फेयरफैक्स यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका ( FXUA) है, जिसे पहले वर्जीनिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी कहा जाता था, और कई घोटालों की वजह इसकी कुख्याति हुई जो इसको बंद कराने के प्रयासों के लिए जिम्मेदार है। अमेरिकी शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि शैक्षणिक वर्ष 2020-2021 में केवल 153 छात्र ही FXUA में पंजीकृत हुए थे।

चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने नरसंहार के आरोपों को "पूरी तरह से झूठ" करार दिया और दावा किया कि शिनजियांग प्रांत की जनसंख्या पिछले चार दशकों में दोगुनी हो गई है और इसी अवधि में क्षेत्र की जीडीपी में 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। यी ने इसे देखने शिनजियांग आने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पैनल के प्रतिनिधि समेत तमाम विदेशी प्रतिनिधियों को बार-बार आमंत्रित किया।

आरोपों की तुच्छता और चीनी सरकार की पारदर्शिता के बावजूद, अमेरिका में दोनों सत्ताधारी दल शिनजियांग में जबरन श्रम कराए जाने के आरोपों की बुनियाद पर वहां से कंपनियों को हटाने पर अमादा हैं। पिछले हफ्ते, व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव ने पुष्टि की कि राष्ट्रपति बाइडेन शिनजियांग क्षेत्र से आने वाले माल पर कानूनी प्रतिबंध लगाने के दस्तावेज पर दस्तखत करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि व्हाइट हाउस ने शिनजियांग में स्थित विशिष्ट सौर पैनल निर्माण कंपनियों द्वारा बनाए गए उत्पादों पर भी प्रतिबंध लगाया था।

जैसा कि पहले के पीपल्स डिस्पैच में बताया गया है , दुनिया के उपयोग का एक तिहाई टेक्सटाइल्स और कपड़े चीन से आते हैं। शिनजियांग चीन के कपास उत्पादन का बहुत बड़ा हब है, जिसका अधिकांश उत्पाद पश्चिमी परिधान कंपनियों को बेचा जाता है। शिनजियांग के सरकारी अधिकारियों ने कपास उत्पादन उद्योग में जबरन श्रम के दावों को विवादित बताते हुए कहा है कि ज्यादातर श्रम क्षेत्रों को मशीनों से बदल दिया गया है, जिसे बड़े पैमाने पर अमेरिकी कंपनी जॉन डीरे से खरीदा गया है।

5. AUKUS: चीन का मुकाबला करने का गठबंधन

अमेरिका और उसके सहयोगियों-ब्रिटेन एवं आस्ट्रेलिया-ने सितम्बर में बहुपक्षीय दृष्टिकोण को AUKUS के गठन के साथ "एक नई बढ़ी हुई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी" को अगले स्तर पर ले जाने का निर्णय लिया। इसकी घोषणा में चीन के नाम का स्पष्ट उल्लेख नहीं करने के बावजूद, इंडो-पैसिफिक पर जोर दिया गया था, जिसको चीन के लिए झीने आवरण में लिपटे एक संकेतक के रूप में माना जाता है। ऐसा मालूम होता है कि इस समझौते का केंद्रीय सिद्धांत ऑस्ट्रेलियाई हथियारों का सौदा है। इसके प्रधान मंत्री मॉरिसन ने कहा है कि "ऑकस की पहली बड़ी पहल ऑस्ट्रेलिया के लिए परमाणु-संचालित पनडुब्बी बेड़ा दिलाना होगा।" इसने फ्रांस के साथ ऑस्ट्रेलिया को डीजल-ईंधन वाली पनडुब्बियों की आपूर्ति के पहले के ऑर्डर को प्रभावी ढंग से रद्द कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया को अब अपना वांछित बेड़ा प्राप्त करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के निर्माताओं पर निर्भर रहना होगा। हालांकि यह ब्रिकी परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के उल्लंघन के दायरे में आ सकती है।

आस्ट्रेलिया ने ऐसा दिखाया है कि वह अमेरिका के शीत युद्ध के एजेंडे में उसके कनिष्ठ भागीदार के रूप में कदमताल करने के लिए तैयार है। उसने 16 सितम्बर 2021 को एक संयुक्त बयान जारी किया था, जिसमें अमेरिका के साथ शिनजियांग, हांगकांग और ताइवान का भी उल्लेख किया गया था। इसके दो दिन बाद, ऑस्ट्रेलिया के रक्षा खुफिया संगठन में चाइना डेस्क के प्रमुख ने ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख समाचार पत्र में एक लेख लिखा था। उसमें कहा गया था कि ऑस्ट्रेलिया को "चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर तख्तापलट का सरंजाम मुहैया करनी चाहिए।" उनके जुझारू शब्द AUKUS के कपटी मिजाज को बयां करते हैं।

6. ताइवान की विस्फोटक स्थिति

अमेरिका ने "ताइवान की स्वतंत्रता" का समर्थन करने और ताइवान के जलडमरूमध्य के साथ अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने के अपने रास्ते पर बढ़ना जारी रखा है। पिछले साल, अमेरिका ने ताइवान के साथ कुल 2.4 बिलियन डॉलर के दो हथियारों के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। इस कदम ने चीन को अपने यहां अमेरिकी हथियार निर्माताओं की मंजूरी के लिए प्रेरित किया। ताइवान के सैन्यीकरण और जलडमरूमध्य पर युद्ध के खेल खेलने के अमेरिका के प्रयास अभी भी जारी हैं। अमेरिका और ब्रिटेन ने इस गर्मी में ताइवान के जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर में अपने युद्धक विमानवाहक पोतों की संख्या में वृद्धि कर दी है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अक्टूबर 2021 में इसका खुलासा किया कि कैसे अमेरिकी विशेष अभियान बल और नौ सेना गुप्त रूप से ताइवानी सैनिकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। इस रहस्योद्घाटन से पहले, अमेरिका ने ताइवान को "बचाव" करने के अपने अधिकार का दावा करते हुए एक बयान जारी किया था। फिर 9-10 दिसम्बर 2021 को अमेरिका ने लोकतंत्र पर आयोजित शिखर सम्मेलन में ताइवान को आमंत्रित करके तनाव को और भी अधिक भड़का दिया है। इस सम्मेलन में चीन और रूस को आमंत्रित नहीं किए जाने पर सबका ध्यान गया था। इस शिखर सम्मेलन में, अमेरिका ने 2022 में पेइचिंग में आयोजित होने वाले शीतकालीन ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार की घोषणा की।

यह विचार कि चीन और ताइवान एक ही भूभाग हैं, जिसे एक चीन नीति के रूप में जाना जाता है, देश के राजनयिक संबंधों के लिए बुनियादी मुद्दा बना हुआ है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ब्रिटिश और जापानी उपनिवेशवाद के दौर को "शताब्दी के अपमान" का जिक्र करते हुए अपने अलग हुए क्षेत्रों के पुनर्मिलन को महत्त्वपूर्ण मानती है। चीनी संविधान में कहा गया है, "ताइवान पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के पवित्र क्षेत्र का हिस्सा है। यह सभी चीनी लोगों का उच्च कर्त्तव्य है कि वे ताइवान में हमारे हमवतन को मूल चीनी मातृभूमि को फिर से जोड़ने के महान कार्य को पूरा करें।”

1911 की क्रांति की 110वीं वर्षगांठ मनाने के लिए अक्टूबर में आयोजित सभा में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान उत्तराधिकार के मुद्दे पर अपने प्रशासन के रुख को स्पष्ट किया। उन्होंने जोर देकर कहा, "ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारों के हमवतन को इतिहास के सही पक्ष की ओर खड़ा होना चाहिए और चीन के पूर्ण एकीकरण और चीनी राष्ट्र के कायाकल्प को प्राप्त करने के लिए हाथ मिलाना चाहिए।"

जैसे-जैसे साल खत्म हो रहा है, दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच तनाव जल्द ही शांत होने की संभावना नहीं है। अमेरिका खुद को लोकतंत्र और निष्पक्षता के वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है, जबकि इसकी नीतियां इसके ठीक विपरीत प्रदर्शित होती रहती हैं। इस नए शीत युद्ध के गर्म होने की आशंका है जिससे पृथ्वी ग्रह के अस्तित्व के लिए खतरा है। अमेरिका और चीन के बीच और अधिक तनाव बढ़ने का विरोध करना वैसे सब लोगों का अनिवार्य कर्त्तव्य है, जो वैश्विक शांति और स्थिरता को महत्त्व देते हैं।

(लेखिका मोनिका क्रूज़ अमेरिका स्थित मीडिया संस्थान ब्रेकथ्रू न्यूज़ की रिपोर्टर हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

2021: A year of US warmongering against China

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