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लॉकडाउन में महिलाओं की अनदेखी पर ऐपवा ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर लॉकडाउन के बीच देशभर में महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा पर रोक लगाने की मांग की है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
16 Apr 2020
lockdown
Image courtesy: MediaVigil

कोरोना वायरस लॉकडाउन के चलते महिलाएं दोहरी चुनौती का सामना कर रही हैं। वे बीमारी के खतरे से जूझने के साथ ही उत्पीड़न का भी शिकार हो रही हैं और हैरानी की बात ये है कि सरकार इस पर लगातार चुप्पी साधे हुए है। महिलाओं की समस्या पर सरकार की अनदेखी को लेकर अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है। पत्र के माध्यम से ऐपवा ने लॉकडाउन के बीच देशभर में महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा पर रोक लगाने की मांग की है।

ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी और राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन की ओर से संयुक्त रूप से लिखे इस पत्र में पीसी-पीएनडीटी (PC-PNDT) एक्ट  (भ्रूण निर्धारण परीक्षण) को कमज़ोर करने यानी परीक्षण पर लगी रोक को जून तक हटा लेने संबंधी फैसले को तत्काल वापस लेने की बात कही गई है।

बुधवार, 15 अप्रैल को पटना में जारी एक प्रेस बयान में ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा, “कोरोना महामारी को रोकने के लिए 3 मई तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की गई। हमें उम्मीद थी कि बीते 21 दिनों के लॉकडाउन में महिलाओं को हुई परेशानियों को ध्यान में रख कर उसके समाधान के लिए उचित कदम उठाये जायेंगे। लेकिन, अफसोस कि प्रधानमंत्री के भाषण में ऐसा कुछ नहीं था और जो गाइडलाइन जारी हुई है, उसमें महिलाओं की अनदेखी की गई है।”

क्या है ऐपवा की मांगे?

1. पीसी-पीएनडीटी (PC-PNDT) एक्ट के प्रावधानों में ढील खत्म हो

केंद्र सरकार ने जून महीने तक के लिए पीसी-पीएनडीटी एक्ट के कुछ प्रावधानों में ढील दे दी है। ऐपवा के अनुसार, 'अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो भ्रूण निर्धारण परीक्षण पर लगी रोक को हटा दिया है।' इस निर्णय के पीछे लॉकडाउन के दौर में अल्ट्रासाउंड कराने वाली महिलाओं, डाक्टरों, अस्पतालों, प्राइवेट क्लिनिकों का समय बचाने जैसा हास्यास्पद तर्क दिये गए हैं। ऐपवा ने तत्काल इस फैसले को वापस लेने के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय से पीसी-पीएनडीटी (PC-PNDT) एक्ट के प्रावधानों को विशेष निगरानी में कड़ाई से लागू रखने के निर्देश की मांग की है।

नोट: हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय का तर्क है कि कोरोना के चलते सिर्फ कुछ नियमों में ढील दी गई है, लिंग जांच अभी भी गैरकानूनी है।

2. घरेलू हिंसा से बचाव और राहत के लिए 24×7 हॉटलाइन

लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की शिकायतों में लगभग दोगुनी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। महिला आयोग के मुताबिक अभी सिर्फ ऑनलाइन शिकायतें ही आ रही हैं। इस संबंध में ऐपवा ने मांग की है कि महिलाओं के साथ हो रही घरेलू हिंसा को रोकने के लिए हर ज़िले में 24×7 काम करनेवाली हॉटलाइन बनाई जाए और मदद चाहने वाली महिलाओं तक पहुंचने के लिए विशेष टीमें गठित की जाएं। ज़रूरत हो तो महिला संगठनों के प्रतिनिधियों की मदद भी ली जा सकती है।

इसे भी पढ़ें: लॉकडाउन के बीच भी नहीं थम रही यौन हिंसा, ललितपुर में नाबालिग़ से दुष्कर्म की कोशिश

3. आंगनबाड़ी केन्द्रों से दोगुने पोषाहार का वितरण

ऐपवा का कहना है कि 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने वक्तव्य में कहा था कि देश में अन्न और दवा की कमी नहीं है फिर लोग भूख से क्यों मर रहे हैं? यहां तक कि आंगनबाड़ी केन्द्रों से जिन बच्चों, गर्भवती और धात्री माताओं को पोषण आहार मिलता था, आधा अप्रैल बीत जाने के बाद भी अधिकांश जगहों पर उन्हें पोषाहार नहीं मिला है।

कुछ राज्यों में (उदाहरण के लिए बिहार) में सरकार ने आहार के बदले लाभार्थियों के खाते में राशि देने की बात की है और आंगनबाड़ी सेविकाओं को इनकी सूची बनाने के लिए इनका खाता नंबर, मोबाइल नंबर, आधार नंबर जमा करने के काम में लगाया गया है। आंगनवाड़ी केन्द्रों से सबसे बदतर हालत में रहने वाली महिलाओं, बच्चों को पोषाहार मिलता है। तब सरकार कैसे उम्मीद कर रही है कि इनके पास ये सारे नंबर मौजूद होंगे?  

भोजन और पोषाहार की जरूरत तत्काल होती है। इन्हें अन्न के बदले सरकारी दर पर राशि मिलेगी और बाज़ार से इन्हें महंगा खरीदना पड़ेगा। इसलिए हम मांग करते हैं कि तत्काल पोषाहार का वितरण हो और पहले जितना दिया जाता था उससे दोगुना दिया जाए क्योंकि अभी इनका परिवार इनकी देखभाल के लिए कुछ भी खर्च करने की स्थिति में नहीं है।

4. सरकारी सामुदायिक भोजनालय की तत्काल शुरुआत

प्रधानमंत्री ने आम लोगों से अपील की है कि वे गरीबों को भोजन दें। बहुत सारे लोग, सामाजिक कार्यकर्ता, संगठन इस काम में पहले से ही लगे हुए हैं। (हालांकि प्रशासन द्वारा अब इन्हें कुछ जगहों पर रोका जा रहा है ) लेकिन ज़रूरी है कि अब सरकार अपना कर्तव्य निभाए। गोदामों में अनाज को सड़ाने के बदले हर गरीब बस्ती में सरकारी सामुदायिक भोजनालय अगले तीन महीने तक के लिए तत्काल शुरू किया जाए और इसे प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर रखा जाए।

5. सरकारी राशन दुकानों में मुफ्त सैनेटरी पैड और बच्चों के लिए दूध की सुविधा

लॉकडाउन के दौरन महिलाओं को महावारी की समस्या के समय सुरक्षित रखने और बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकारी राशन दुकानों से सैनेटरी पैड और बच्चों के लिए दूध मुफ्त देने का इंतजाम किया जाए।

6. आशा-आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य-सफाई कर्मियों को बीमा और सम्मान राशि

ऐपवा के मुताबिक ‘कोरोना योद्धाओं’ को सम्मानित करने की बात मज़ाक सी लगती है जब हम देखते हैं कि आशा, रसोइया और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को सरकार मास्क तक उपलब्ध नहीं करवा पा रही है। ‘गमछा चैलेंज’ घर में रहने वाले लोगों के लिए तो ठीक है लेकिन कार्यक्षेत्र में जूझ रहे लोगों के लिए कारगर नहीं है। इसी तरह आंगनबाड़ी कर्मियों को कोरोना बचाव के काम में लगाया गया है लेकिन उन्हें बीमा से बाहर रखा है। हम मांग करते हैं कि आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सफाई कर्मियों को 3 महीने के वेतन के समतुल्य अतिरिक्त राशि या दस हजार रुपए सम्मान राशि के रूप में दिया जाए। आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स का स्वास्थ्य बीमा किया जाए। अन्य योद्धाओं -डाक्टर्स, नर्सेज, पुलिसकर्मियों आदि को उनके पद के अनुसार सम्मान राशि प्रदान की जाए।

7. देश में साम्प्रदायिक विभाजनकारी ताकतों और लूटतंत्र पर रोक लगाई जाए। 

ऐपवा का कहना है कि महामारी से बचाव और महिलाओं-बच्चों का अत्याचार व भुखमरी से बचाव एक दूसरे से अलग नहीं हैं। लॉकडाउन में बीते दिनों महिलाओं की भयावह जीवन स्थिति की कई घटनाएं सामने आई हैं। बिहार के जहानाबाद में इलाज और एम्बुलेंस के अभाव में एक मां बेबस होकर अपने बच्चे को मरते हुए देखती रही। बिहार के ही गया जिले में पंजाब से लौटी और क्वारंटाइन वार्ड में भर्ती एक टीबी की मरीज महिला का बलात्कार और उसकी मृत्यु (जांच में कोरोना निगेटिव पाई गई) की ख़बर आई। ‘कोरोना योद्धा’ महिलाओं पर हमले की खबर तो देश भर से आती रही है।

इसे भी पढ़ें: 'ये कैसा सुशासन है जहां महिलाएं अस्पताल में भी सुरक्षित नहीं हैं!’

गौरतलब है कि कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन की अवधी 3 मई तक बढ़ा दी गई है। 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को संबोधित करते हुए अर्थव्यवस्था, उद्योग, गरीब किसान-मजदूर और तमाम समस्याओं की बातें कहीं लेकिन इस देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी देश की आधी आबाधी यानी महिलाओं को भूल गए। लॉकडाउन काल में उनके खिलाफ तेजी से बढ़ते ग्राफ को पीएम नज़रअंदाज़ कर गए। जबकि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा बार-बार लॉकडाउन के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ोत्तर पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुकी हैं। इतना ही नहीं महिला आयोग द्वारा इस संबंध में शिकायत और सहायता के लिए 7217735372 एक व्हाट्सएप नंबर भी जारी किया गया है। लेकिन बावजूद पीएम और महिला एवं बंल विकास मंत्रालय महिलाओं की इस गंभीर स्थिति पर सख़्त कार्रवाई के बजाय चुप है।

इसे भी पढ़ें: लॉकडाउन के चलते घरेलू हिंसा के मामले बढ़े, महिला उत्पीड़न में यूपी सबसे आगे

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