NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
राजनीति
अथ टीका पुराण और इति वैक्सीन विरोधी मुहिम का कथा सार
वैक्सीन विरोधी अज्ञान और अवैज्ञानिकता के इस वायरस के दो कैरियर हैं; एक तो भोले भाले लोग हैं और दूसरे हैं धूर्त जो जानबूझकर ऐसा करते हैं ताकि महामारी से देश को बचाने के मामले में उनके आकाओं की नाकाबलियत और विश्वविख्यात हो चुकी अक्षमता को छुपाया जा सके।
बादल सरोज
08 Jun 2021
अथ टीका पुराण और इति वैक्सीन विरोधी मुहिम का कथा सार
फोटो साभार: HINDUSTAN TIMES

अपने बच्चे/बच्ची को नहला धुला कर माँ जब बाहर खेलने या स्कूल जाने के लिए भेजती है तो उसके ललाट, ठोड़ी या गाल पर काजल, काजल न मिले तो तवे या कढ़ाई से थोड़ी कालिख उधार लेकर एक टीका लगाना नहीं भूलती। उसे लगता है यह काला टीका उसकी संतान को काली नज़रों और अलाय बलाय से दूर रखेगा। हमारी माँ भी यही करती थी - मगर यहीं तक रुकती नहीं थी। बाद में अंगुली पकड़कर घर के नजदीक वाले जनकगंज के सरकारी अस्पताल में बाकी टीके लगवाने भी ले जाती थी।

सदियों से, शायद जब से माँ बनी है तभी से प्रचलित  माँ के इस टीके में ममत्व है, लाड़ है, वात्सल्य है, कामना है, सदिच्छा है, सदभावना है ; इन सब में जब अनुभवों से हासिल विवेक और तार्किकता , अध्ययनों से हासिल तकनीक और विज्ञान भी जुड़ गया तो उन्हें आधुनिक टीका, अंग्रेजी भाषा में वैक्सीन कहा जाने लगा। प्रसंगवश यह कि सबसे बड़ा टीकों का भी टीका होता है माँ का दूध - जो अपार इम्यूनाइजेशन करता है, लड़ने और जीतने की ढेर शक्ति देता है। जन्म देने के बाद का पहला स्तनपान हजारों वैक्सीन्स की ऐसी डोज होता है जिसकी पूर्ति अब तक हुयी चिकित्सा विज्ञान की खोजें भी नहीं कर पाईं हैं।

इस लिहाज से सारे टीके प्रकृति रूपी माँ के वे जिरहबख्तर हैं जो उसने अपनी मनुष्य रूपी सन्तानों के लिए दिए हैं। इसलिए इनका तिरस्कार असल में . . . . . . . .

आधुनिक टीके/वैक्सीन भी दुनिया भर की माताओं के संचित ज्ञान से लगातार विकसित होती चली आई उपलब्धि है। एक ब्रिटिश माँ थीं मैरी वोर्टले मोंटेगु । जब वे थीं तब चेचक की जानलेवा बीमारी ने पूरी पृथ्वी पर उत्पात मचाया हुआ था । उन्हें भी हुयी थी। वे नहीं चाहती थीं कि उनकी तरह उनकी बेटी के चेहरे पर भी चेचक के दाग हमेशा के लिए रह जाएं और उसकी सुंदरता खो जाए। मैरी ने अपनी तीन साल की बेटी की त्वचा पर एक बहुत छोटा-सा कट लगाया और इससे बने घाव पर बहुत थोड़ी मात्रा में चेचक का पस लगा दिया , ताकि उसके शरीर में इसका प्रतिरोध करने वाली एंटीबॉडी बन जाए। इस तरह उन्होंने ‘वैक्सीन’ बना दी। यह बात 1721 यानी अब से 300 साल पहले की है।

किन्तु यह आईडिया भी मैरी का ओरिजिनल नहीं था। वे यह तरीका तुर्की से सीखकर सीखकर आयी थीं । अपने तुर्की प्रवास में उन्होंने देखा था कि वहां लोगों को चेचक नहीं होता। इसकी वजह तलाशी तो उन्हें पता चला कि अनपढ़ और बूढ़ी ग्रीक व आर्मीनियाई माँयें अपने बच्चों को पस का ‘टीका’ लगाती हैं।  इतिहास में दर्ज है कि इसी तकनीक के आधार 12 अक्टूबर 1768 को रूस की महारानी कैटरीना का टीकाकरण डेसमेडेल ने किया था। मैरी के कोई 75 और डेसमेडेल के 28 साल बाद 1796 में इसी तरीके के आधार पर एडवर्ड जेनर ने छोटी चेचक के टीके का आविष्कार किया। जिससे आने वाले 200 वर्षों में दुनिया की जनता को जबरदस्त राहतें मिलीं - उनकी जिंदगियां बचाने के बाकी टीके खोजने के आधार बना बने ।

मगर यह आईडिया तुर्की का भी नहीं था वहां भी यह चीन से आया था। चीन में वर्ष 1000 में चेचक का टीका खोज लिया गया था। जो बाद में चीनी व्यापारियों के जरिये तुर्की से भारत और अफ्रीका तक फैला। लेकिन खुद चीन में इसका इतिहास और भी - कोई 1700 वर्ष - पुराना है। इस बात के लिखित प्रमाण मिलते हैं कि वहां सन 320 में ही चेचक का टीका जैसा कुछ खोज लिया गया था। इसके खोजकर्ता कौन थे/कौन थी उनका नाम नहीं मिलता। इसलिए वैक्सीन बिरादरी उन्हें मिस्टर या मिस एक्स के संबोधन से याद करती है।

उनकी समझदारी वही थी जो बाद में वैक्सीनेशन का आधार बनी। यह उनके अनुभवों से आयी थी। कई पीढ़ियों तक देखते देखते उन्होंने पाया कि जिसे एक बार महामारी हो जाती है और वह बच जाता है तो वह बाद में भले बीमारों के साथ रहे, उसके कितने भी नजदीक जाए, उसे दोबारा वही बीमारी नहीं होती। उन्होंने अनुमान लगाया कि जरूर उसके शरीर में कुछ ख़ास चीजें विकसित हो जाती होंगी - इन्हे ऐसी बीमारी के सीमित कीटाणु देकर बिना रोगी बनाये हुए भी विकसित किया जा सकता है। प्राचीन चीनी चिकित्सा शास्त्रों में इन मिस एक्स (अब तक के ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर यही मानकर चलना चाहिए कि वे महिला थीं) की इस तकनीक के लिए एक शब्द-समुच्चय मिलता जिसे चीनी भाषा में "यी तू कुंग तू" कहते हैं ; जिसका मतलब होता है जहर को जहर मारता है।

यही समझ बाद में टीके या वैक्सीन का मुख्य आधार बनी। जिस बीमारी की वैक्सीन होती है उसी के कुछ अहानिकारक कीटाणुओ से टीका बनता है जो शरीर में पहुंचाए जाते हैं। वे शरीर के डब्लूबीसी और आरबीसी से लड़ते हुए उसके अंदर एंटी बॉडीज पैदा कर देते  हैं - जब बाद में सचमुच की महामारी के कीटाणु बैक्टीरिया या वायरस आते हैं तो शरीर की ये एंटी बॉडीज उस संक्रमण को हरा देती हैं। इसीलिए ज्यादातर लोगो को टीका/वैक्सीन लगवाने के बाद एक दो दिन बुखार आता है। यह शरीर में जारी युद्ध और नई एंटी बॉडीज बनने की गरमाहट का नतीजा होता है। इसलिए घबराना नहीं चाहिए - एक पेरासिटामोल काफी है। एंटी बॉडीज एक तरह के सैनिक हैं। वैक्सीन उन्हें नए तरह के दुश्मनों को सीमित मात्रा में शरीर में पहुंचा उनसे लड़ने के लिए ट्रेंड करता है - शक्ति देता है।

वैक्सीन के आधुनिक इतिहास का आगाज 1885 में लुई पाश्चर द्वारा पागल कुत्ते की - रैबीज की - वैक्सीन खोजे जाने से होता है। इसके बाद जीवाणु विज्ञान (बैक्टीरियोलॉजी) में तेजी से हुए विकास के बाद बहुत जल्दी ही - 1930 तक - डिप्थीरिया, टिटनेस, गिल्टी रोग, हैजा, प्लेग और टीबी से लेकर बाकी टीके आ गए। इसी खोज का नतीजा था कि चेचक - जो सबसे पुरानी महामारी थी - को समाप्त किया जा सका।

इसी श्रृंखला में आयी 1955 में पहली बार इस्तेमाल की गयी डॉ जोनास साल्क द्वारा खोजी पोलियो की वैक्सीन जिसे डॉ अल्बर्ट साबिन ने ओरल वैक्सीन में बदलकर पहली बार 1961 में इस्तेमाल किया। आज पोलियो दुनिया से गायब होने को है।

वैक्सीन विरोधी मुहिम का वायरस

कोरोना महामारी, जिसका एकमात्र स्थायी समाधान टीका/वैक्सीन ही है उसकी दूसरी और अत्यंत जानलेवा लहर के बीच टीकाकरण/वैक्सीनेशन के खिलाफ बड़ी तेजी से मुहिम छेड़ी जा रही है।

गांव देहात के इलाके में एक अफवाह जोर से फैली कि लोग वैक्सीन लगाने के बाद मर जा रहे हैं। यह महज अफवाह के सिवाय और कुछ भी नहीं है। बेसिक और याद रखने वाली बात यह है कि लोगों के बीच इस्तेमाल होने से पहले वैक्सीन कई चरणों में, कई तरह की परीक्षाओं और स्वतंत्र परीक्षकों की निगरानी से होकर गुजरती है। लाखों लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है। उसके आधार पर ही इसे मान्यता दी जाती है।

यह भी अफवाह फैली है कि जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं वह वैक्सीन ना ले। जबकि हकीकत यह है कि ट्रायल के दौरान जिन लाखों लोगों पर वैक्सीन परीक्षण किया जाता है वे एक ही ढंग के लोग नहीं होते। उसमें सभी प्रकृति के लोग शामिल होते हैं। कई तरह की गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोग भी शामिल होते हैं।

वैक्सीन विरोधी अज्ञान और अवैज्ञानिकता के इस वायरस के दो कैरियर हैं; एक वे भोले भाले लोग हैं जो किसी भी चण्डूखाने की बात को प्रामाणिक मान आनन फानन सीधे छत पर खड़े होकर उसे जोर जोर से दोहराने लगते हैं या किसी झक्की के कहे असत्य को ब्रह्मसत्य मान त्रिपुण्ड की तरह अपने भाल पर सजा लेते हैं। इन्हे मूर्ख कहना इनकी भावनाओं को आहत कर सकता है इसलिए नहीं कहा जाना चाहिए।

दूसरे हैं धूर्त जो जानबूझकर ऐसा करते हैं ताकि महामारी से देश को बचाने के मामले में उनके आकाओं की नाकाबलियत और विश्वविख्यात हो चुकी अक्षमता को छुपाया जा सके। महामारी को फैलाने में उनके करामाती योगदान को भुलाया जा सके। जब देश को टीकों की जरूरत थी तब मुनाफे के लिए उनका निर्यात करवाने, समय पर वैक्सीन खरीदी का आर्डर न देने और अपने देश में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता का भरपूर उपयोग करने की बजाय सिर्फ दो कंपनियों को ही अनुमति देने की उनकी नरसंहारी आपराधिकता पर पर्दा डाला जा सके। दुनिया की 60 प्रतिशत वैक्सीन पैदा करने वाले देश  - भारत - को एक एक वैक्सीन के लिए गिड़गिड़ाते देश में बदल कर रख देने की घोर नालायकी दबाई जा सके। 

इसलिए भी कि वैक्सीन की कमी को छुपाने के लिए उसके स्वीकृत विज्ञान को उलट देने की हुक्मरानों की हरकत निगाह में न आये। जैसे कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लेने के बाद दूसरी डोज लेना जरूरी है। दोनों खुराकों की अलग अलग तासीर होती है। पहली डोज शरीर में एंटीजन यानी उस प्रोटीन का निर्माण करती है जिसकी वजह से शरीर के अंदर एंटीबॉडी बनते हैं। दूसरी डोज शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम की मेमोरी - याददाश्त - को कोरोना के खिलाफ मजबूत कर शरीर को और अधिक सुरक्षा प्रदान करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अभी तक का सुझाव यह है कि वैक्सीन के लिए जिस कंपनी की पहली डोज इस्तेमाल की गई हो, उसी कंपनी की दूसरी डोज भी इस्तेमाल की जाए। इस बिंदु पर आगे भी सुझाव आते रहेंगे। मगर टीके की कमी है इसलिए हमारे वालों ने कुछ तथाकथित वैज्ञानिकों के कहे के नाम पर दूसरा टीका ही टाल दिया है ।

इन सारे घपलों और धोखाधड़ियों  पर निगाह न जाए ठीक इसीलिए पूरे चिकित्सा विज्ञान के खिलाफ ही रामदेव जैसों को लगाकर टर्र टर्र मचा दी है। खुद के पापों का हिसाब देने की बजाय आयुर्वेद और एलोपैथी को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की चतुराई दिखाई जा रही है।

जरूरत इस बात की थी कि वैश्विक तथा घरेलू, सभी उपलब्ध स्रोतों से केंद्रीय रूप से टीके हासिल किए जाएं। फौरन देश भर में मुफ्त, सार्वभौम, जन टीकाकरण शुरू किया जाए। अनिवार्य लाइसेंसिंग का सहारा लेकर, घरेलू टीका उत्पादन का विस्तार किया जाए। 35,000 करोड़ रु. का जो आवंटन बजट में टीके के लिए रखा गया है, उसे खर्च किया जाए। मोदी महल वाले सेंट्रल विस्टा का निर्माण रोका जाए। इसके बजाए, इस आवंटित पैसे का उपयोग ऑक्सीजन, दवाइयां तथा टीके हासिल करने के लिए किया जाए। पीएम केअर्स फंड नाम के जांच से परे निजी ट्रस्ट फंड में जमा सारा पैसा जरूरी टीकों, आक्सीजन तथा चिकित्सकीय उपकरणों की और बड़ी संख्या खरीदने के लिए दिया जाए। मगर जिनका जमीर गंगा में डूबती उतराती हजारों लाशों को देख नहीं जागा, जिनके मुंह से लाखों भारतीयों की मौतों पर संवेदना का एक शब्द नहीं निकला वे इतनी आसानी से नहीं पसीजते।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा टीकों और उनके लिए बजट में आवंटित 35 हजार करोड़ रुपयों का हिसाब मांगे जाने के बाद भड़भड़ाई सरकार के प्रधानमंत्री ने कहा है कि 21 जून से मुफ्त टीकाकरण होगा। चूंकि खून में ही व्यापार है इसलिए इसमें भी 25% सप्लाई निजी अस्पतालों में पैसे देकर वैक्सीन लगाने के लिए आरक्षित कर दी गयी है। बाकी भी जुमला है या सचमुच का निर्णय इसके लिए अभी इन्तजार करना होगा क्योंकि यह सरकार अब तक की सबसे ज्यादा अविश्वसनीय सरकार है। इतनी अविश्वसनीय कि खुद इसके समर्थक और कार्यकर्ता भी अब इनकी घोषणाओं पर भरोसा करना बंद कर चुके हैं।

(बादल सरोज वरिष्ठ लेखक-पत्रकार और किसान नेता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

COVID-19
corona vaccine
Covid Vaccination
Allopathy
Ayurveda

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • CARTOON
    आज का कार्टून
    प्रधानमंत्री जी... पक्का ये भाषण राजनीतिक नहीं था?
    27 Apr 2022
    मुख्यमंत्रियों संग संवाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से पेट्रोल-डीज़ल के दामों पर टैक्स कम करने की बात कही।
  • JAHANGEERPURI
    नाज़मा ख़ान
    जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी
    27 Apr 2022
    अकबरी को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था न ही ये विश्वास कि सब ठीक हो जाएगा और न ही ये कि मैं उनको मुआवज़ा दिलाने की हैसियत रखती हूं। मुझे उनकी डबडबाई आँखों से नज़र चुरा कर चले जाना था।
  • बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    27 Apr 2022
    वाहनों में महिलाओं को बेहतर सुरक्षा देने के उद्देश्य से निर्भया सेफ्टी मॉडल तैयार किया गया है। इस ख़ास मॉडल से सार्वजनिक वाहनों से यात्रा करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होगी।
  • श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    प्रभात पटनायक
    श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    27 Apr 2022
    श्रीलंका के संकट की सारी की सारी व्याख्याओं की समस्या यह है कि उनमें, श्रीलंका के संकट को भड़काने में नवउदारवाद की भूमिका को पूरी तरह से अनदेखा ही कर दिया जाता है।
  • israel
    एम के भद्रकुमार
    अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात
    27 Apr 2022
    रविवार को इज़राइली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के साथ जो बाइडेन की फोन पर हुई बातचीत के गहरे मायने हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License