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भारत
राजनीति
चुनाव में जा रही राज्य सरकारें रोज़गार के मोर्चे पर फेल
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के साल 2021 के दिसंबर माह के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि जिन चार राज्यों में चुनाव होने वाला है,उनमें से हर एक राज्य में पिछले 5 सालों में काम की तलाश में निकलने वाले लोगों की संख्या कम हुई है।
अजय कुमार
11 Jan 2022
unemployment

सरकार ने ढंग का काम किया या नहीं? इसे जांचने का सबसे बढ़िया पैमाना यह है कि यह पता लगाया जाए कि पिछले 5 सालों में जो रोजगार की तलाश में निकले उन्हें रोजगार मिला या नहीं? लेकिन इस पैमाने पर सरकारों से सवाल नहीं पूछा जाता। कोरोना की तीसरी लहर के प्रतिबंध की वजह से टीवी पर नेताओं खासकर भाजपा के नेताओं के तबाड़तोड़ इंटरव्यू आ रहे हैं लेकिन सवाल पूछने वाले उनसे नहीं पूछ रहे कि आपके राजकाज में रोजगार का क्या हाल रहा है?

पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहा है। इन पांच राज्यों में पिछले 5 सालों के रोजगार का हाल देखिए। एक सामान्य सी बात हम सब समझते हैं कि पिछले 5 साल में आबादी बढ़ी होगी। आबादी बढ़ने की वजह से काम की तलाश में निकलने वाले लोगों की संख्या भी बढ़नी चाहिए। अगर यह संख्या बढ़ती। लोगों को रोजगार मिलता तो हम यह कहते कि सरकार का कामकाज कमोबेश ठीक-ठाक रहा है। सरकार की आर्थिक नीतियां वैसी हैं जिससे लोग अगर रोजगार के लिए निकल रहे हैं तो उन्हें जीवन गुजारने के लिए काम मिल जा रहा है। लेकिन यही नहीं हो रहा है। आंकड़ों से निकला प्रमाण यह है कि इसका बिल्कुल उल्टा हुआ है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के साल 2021 के दिसंबर माह के आंकड़ों का विश्लेषण आर्थिक पत्रकार उदित मिश्रा ने किया है। इस विश्लेषण से पता चलता है कि जिन चार राज्यों में चुनाव होने वाला है,उनमें से हर एक राज्य में पिछले 5 सालों में काम की तलाश में निकलने वाले लोगों की संख्या कम हुई है।

उत्तर प्रदेश की हक़ीक़त

योगी आदित्यनाथ के सरकार के कामकाज का हाल देखिए। पिछले 5 साल में उत्तर प्रदेश में काम करने लायक जनसंख्या यानी 15 साल से ऊपर की आबादी तकरीबन 2 करोड़ बढ़ी है। यह आबादी 14.95 करोड़ से बढ़कर 17.07 करोड़ पर पहुंच गई है। इस बढ़ोतरी पर रोजगार में बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। लेकिन रोजगार में बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि 5 साल बाद रोजगार  की संख्या तकरीबन 16 लाख कम हो गई है। साल 2016 में 15 साल से ऊपर के तकरीबन 38.5% लोगों के पास उत्तर प्रदेश में रोजगार था। साल 2021 के दिसंबर में यह संख्या घटकर 32.8% हो गई है। अगर साल 2016 के हिसाब से ही उत्तर प्रदेश में साल 2021 में भी रोजगार दर होती तो कम से कम एक करोड़ अधिक लोगों को रोजगार मिला होता। इस एक आंकड़े पर कहने वाले कह सकते हैं कि योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव के सामने पूरी तरह से फेल साबित हुए हैं।

पंजाब का हाल

उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब को देखिए। पंजाब का हाल भी कुछ इसी तरह का है। 5 साल पहले पंजाब में काम करने लायक आबादी यानी 15 वर्ष से ऊपर की आबादी 2. 33 करोड़ थी। अब यह बढ़कर तकरीबन 2.58 करोड़ हो गई है। 5 साल पहले पंजाब में 98.37 लाख लोगों के पास रोजगार था। 5 साल बाद यह बढ़ा नहीं बल्कि रोजगार पाने वालों की संख्या में तकरीबन 3.21 लाख लोगों की कमी दर्ज की जा रही है। अब पंजाब में तकरीबन 95.16 लाख लोगों के पास रोजगार है।

गोवा की स्थिति

गोवा की स्थिति तो बेरोजगारी के मामले में बहुत अधिक खराब हुई है। गोवा में 5 साल पहले रोजगार करने लायक आबादी में से हर दूसरे व्यक्ति के पास रोजगार था। यानी गोवा का रोजगार दर 5 साल पहले 50% के आसपास था। 5 साल बाद यह घटकर के 32% हो गया है। यानी गोवा की काम करने लायक आबादी में 3 में से 1 लोग के पास रोजगार है।

उत्तराखंड

देव स्थान कहे जाने वाले उत्तराखंड को भी बेरोजगारी से राहत नहीं मिली है। पिछले 5 साल में 15 साल से ऊपर के काम करने लायक लोगों की संख्या में 14% की बढ़ोतरी हुई। यह संख्या 91 लाख पर पहुंच गई है। लेकिन रोजगार की संख्या में तकरीबन साढे चार लाख की कमी आई है। उत्तराखंड का रोजगार दर साल 2016 में तकरीबन 40% हुआ करता था। साल 2021 में यह घटकर 30% पर पहुंच गई है।

रोजगार दर के हिसाब से विश्लेषित किए गए यह सभी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 साल के दौरान सरकारी कामकाज बेरोजगारी की परेशानी को दूर करने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है। नाकामयाबी की यह तस्वीर बेरोजगारी दर से साफ तौर पर नहीं दिखाई देती। क्योंकि बेरोजगारी दर निकालने के लिए लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट का इस्तेमाल किया जाता है।

लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट काम करने लायक आबादी यानी 15 साल से ऊपर की वह आबादी होती है जो या तो किसी रोजगार में लगी होती है या रोजगार की तलाश कर रही होती है। इन दोनों को जोड़कर लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट निकाला जाता है। इसी लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट के आधार पर अनइंप्लॉयमेंट रेट निकाला जाता है। चूंकि ढेर सारे काम करने लायक लोगों ने काम की तलाश करना ही बंद कर दिया है। लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट कम हो रहा है। इसलिए बेरोजगारी दर से बेरोजगारी का ठीक-ठाक आकलन नहीं लग पाता।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के निदेशक महेश व्यास भी यही बात कहते हैं कि भारत में बेरोजगारी की हालत देखने के लिए यह देखना चाहिए कि पहले के मुकाबले इस समय कितने लोगों के पास रोजगार है? लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट क्या है?

भारत के मुकाबले खड़े दूसरे देशों में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट तकरीब 60% -70 प्रतिशत के आसपास है। लेकिन भारत में यह 40% के आसपास झूल रहा है। यह आंकड़ा बताता है कि दुनिया के दूसरे देशों में कुल काम करने लायक आबादी में तकरीबन 60 से 70% लोगों के पास या तो रोजगार है या वह रोजगार की तलाश में है। लेकिन भारत में यह आंकड़ा केवल 40% का है। यानी भारत में रोजगार भी कम लोगों के पास है और रोजगार की तलाश भी बहुत कम लोग कर रहे हैं। मतलब यह कि भारत में बहुत बड़ी आबादी रोजगार ना मिलने की उम्मीद छोड़ कर घर पर बैठी हुई है।

बेरोजगारी के मामले में भारत की स्थिति बहुत अधिक भयावह है। पिछले 5 साल में भारत में काम करने लायक लोगों की संख्या 96 करोड़ से बढ़कर तकरीबन 108 करोड़ तक पहुंच गई है। इस हिसाब से रोजगार पाने वालों की संख्या बढ़नी चाहिए थी। यह बढ़ने की बजाय 2% कम हो गई है। 5 साल पहले भारत की कुल आबादी में तकरीबन 41 करोड़ लोगों के पास रोजगार था। अब यह घटकर के 40 करोड़ हो गया हो गया है। भारत का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 5 साल पहले 46% के आसपास था। अब यह घटकर के 40% के आसपास आ गया है। 5 साल पहले रोजगार दर 43% के आसपास था। अब यह घटकर 37% के आसपास आ गया है।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके लिए केवल कोरोना को दोष नहीं दिया जा सकता है। आंकड़े पिछले 5 साल के राजकाज के बारे में बताते हैं। 5 साल पहले ही भारत का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 46% के आसपास था। जो भारत के समकक्ष खड़े दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम है। इसके लिए मोदी सरकार का पूरा राजकाज दोषी है। जिसके दायरे में मोदी सरकार की आर्थिक सोच आर्थिक नीतियां आर्थिक योजनाएं से लेकर वह तमाम घोषणाएं आती हैं जिसके बारे में मोदी सरकार ने कहा कि इससे जन कल्याण होगा। प्रमाण जनकल्याण से बिल्कुल विपरीत है।

बेरोजगारी के मुहाने पर भारत की जिस तरह से स्थिति है अगर यह सच भारत के लोगों तक टीवी और मुख्यधारा की मीडिया के तहत पहुंचता तो भारत की मौजूदा सरकार अपनी सत्ता गंवा चुकी होती। लेकिन अब भी मोदी सरकार धूमधाम से इसीलिए चल रही है कि उसने सबसे अधिक काम लोगों को सच से दूर रखने पर किया है। मोदी सरकार का सारा फोकस किसी भी तरह से लोगों को झूठ में उलझाए रखने का है। इतना सब होने के बावजूद टीवी वाले उससे कठिन सवाल नहीं पूछ रहे। ऊपर से हरियाणा के मुख्यमंत्री यहां तक कह देते हैं कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी बेरोजगारी के झूठे आंकड़े दे रही है। वह इस संस्था के खिलाफ कार्रवाई करेंगे!

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