NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चुनाव में जा रही राज्य सरकारें रोज़गार के मोर्चे पर फेल
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के साल 2021 के दिसंबर माह के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि जिन चार राज्यों में चुनाव होने वाला है,उनमें से हर एक राज्य में पिछले 5 सालों में काम की तलाश में निकलने वाले लोगों की संख्या कम हुई है।
अजय कुमार
11 Jan 2022
unemployment

सरकार ने ढंग का काम किया या नहीं? इसे जांचने का सबसे बढ़िया पैमाना यह है कि यह पता लगाया जाए कि पिछले 5 सालों में जो रोजगार की तलाश में निकले उन्हें रोजगार मिला या नहीं? लेकिन इस पैमाने पर सरकारों से सवाल नहीं पूछा जाता। कोरोना की तीसरी लहर के प्रतिबंध की वजह से टीवी पर नेताओं खासकर भाजपा के नेताओं के तबाड़तोड़ इंटरव्यू आ रहे हैं लेकिन सवाल पूछने वाले उनसे नहीं पूछ रहे कि आपके राजकाज में रोजगार का क्या हाल रहा है?

पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहा है। इन पांच राज्यों में पिछले 5 सालों के रोजगार का हाल देखिए। एक सामान्य सी बात हम सब समझते हैं कि पिछले 5 साल में आबादी बढ़ी होगी। आबादी बढ़ने की वजह से काम की तलाश में निकलने वाले लोगों की संख्या भी बढ़नी चाहिए। अगर यह संख्या बढ़ती। लोगों को रोजगार मिलता तो हम यह कहते कि सरकार का कामकाज कमोबेश ठीक-ठाक रहा है। सरकार की आर्थिक नीतियां वैसी हैं जिससे लोग अगर रोजगार के लिए निकल रहे हैं तो उन्हें जीवन गुजारने के लिए काम मिल जा रहा है। लेकिन यही नहीं हो रहा है। आंकड़ों से निकला प्रमाण यह है कि इसका बिल्कुल उल्टा हुआ है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के साल 2021 के दिसंबर माह के आंकड़ों का विश्लेषण आर्थिक पत्रकार उदित मिश्रा ने किया है। इस विश्लेषण से पता चलता है कि जिन चार राज्यों में चुनाव होने वाला है,उनमें से हर एक राज्य में पिछले 5 सालों में काम की तलाश में निकलने वाले लोगों की संख्या कम हुई है।

उत्तर प्रदेश की हक़ीक़त

योगी आदित्यनाथ के सरकार के कामकाज का हाल देखिए। पिछले 5 साल में उत्तर प्रदेश में काम करने लायक जनसंख्या यानी 15 साल से ऊपर की आबादी तकरीबन 2 करोड़ बढ़ी है। यह आबादी 14.95 करोड़ से बढ़कर 17.07 करोड़ पर पहुंच गई है। इस बढ़ोतरी पर रोजगार में बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। लेकिन रोजगार में बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि 5 साल बाद रोजगार  की संख्या तकरीबन 16 लाख कम हो गई है। साल 2016 में 15 साल से ऊपर के तकरीबन 38.5% लोगों के पास उत्तर प्रदेश में रोजगार था। साल 2021 के दिसंबर में यह संख्या घटकर 32.8% हो गई है। अगर साल 2016 के हिसाब से ही उत्तर प्रदेश में साल 2021 में भी रोजगार दर होती तो कम से कम एक करोड़ अधिक लोगों को रोजगार मिला होता। इस एक आंकड़े पर कहने वाले कह सकते हैं कि योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव के सामने पूरी तरह से फेल साबित हुए हैं।

पंजाब का हाल

उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब को देखिए। पंजाब का हाल भी कुछ इसी तरह का है। 5 साल पहले पंजाब में काम करने लायक आबादी यानी 15 वर्ष से ऊपर की आबादी 2. 33 करोड़ थी। अब यह बढ़कर तकरीबन 2.58 करोड़ हो गई है। 5 साल पहले पंजाब में 98.37 लाख लोगों के पास रोजगार था। 5 साल बाद यह बढ़ा नहीं बल्कि रोजगार पाने वालों की संख्या में तकरीबन 3.21 लाख लोगों की कमी दर्ज की जा रही है। अब पंजाब में तकरीबन 95.16 लाख लोगों के पास रोजगार है।

गोवा की स्थिति

गोवा की स्थिति तो बेरोजगारी के मामले में बहुत अधिक खराब हुई है। गोवा में 5 साल पहले रोजगार करने लायक आबादी में से हर दूसरे व्यक्ति के पास रोजगार था। यानी गोवा का रोजगार दर 5 साल पहले 50% के आसपास था। 5 साल बाद यह घटकर के 32% हो गया है। यानी गोवा की काम करने लायक आबादी में 3 में से 1 लोग के पास रोजगार है।

उत्तराखंड

देव स्थान कहे जाने वाले उत्तराखंड को भी बेरोजगारी से राहत नहीं मिली है। पिछले 5 साल में 15 साल से ऊपर के काम करने लायक लोगों की संख्या में 14% की बढ़ोतरी हुई। यह संख्या 91 लाख पर पहुंच गई है। लेकिन रोजगार की संख्या में तकरीबन साढे चार लाख की कमी आई है। उत्तराखंड का रोजगार दर साल 2016 में तकरीबन 40% हुआ करता था। साल 2021 में यह घटकर 30% पर पहुंच गई है।

रोजगार दर के हिसाब से विश्लेषित किए गए यह सभी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 साल के दौरान सरकारी कामकाज बेरोजगारी की परेशानी को दूर करने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है। नाकामयाबी की यह तस्वीर बेरोजगारी दर से साफ तौर पर नहीं दिखाई देती। क्योंकि बेरोजगारी दर निकालने के लिए लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट का इस्तेमाल किया जाता है।

लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट काम करने लायक आबादी यानी 15 साल से ऊपर की वह आबादी होती है जो या तो किसी रोजगार में लगी होती है या रोजगार की तलाश कर रही होती है। इन दोनों को जोड़कर लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट निकाला जाता है। इसी लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट के आधार पर अनइंप्लॉयमेंट रेट निकाला जाता है। चूंकि ढेर सारे काम करने लायक लोगों ने काम की तलाश करना ही बंद कर दिया है। लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट कम हो रहा है। इसलिए बेरोजगारी दर से बेरोजगारी का ठीक-ठाक आकलन नहीं लग पाता।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के निदेशक महेश व्यास भी यही बात कहते हैं कि भारत में बेरोजगारी की हालत देखने के लिए यह देखना चाहिए कि पहले के मुकाबले इस समय कितने लोगों के पास रोजगार है? लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट क्या है?

भारत के मुकाबले खड़े दूसरे देशों में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट तकरीब 60% -70 प्रतिशत के आसपास है। लेकिन भारत में यह 40% के आसपास झूल रहा है। यह आंकड़ा बताता है कि दुनिया के दूसरे देशों में कुल काम करने लायक आबादी में तकरीबन 60 से 70% लोगों के पास या तो रोजगार है या वह रोजगार की तलाश में है। लेकिन भारत में यह आंकड़ा केवल 40% का है। यानी भारत में रोजगार भी कम लोगों के पास है और रोजगार की तलाश भी बहुत कम लोग कर रहे हैं। मतलब यह कि भारत में बहुत बड़ी आबादी रोजगार ना मिलने की उम्मीद छोड़ कर घर पर बैठी हुई है।

बेरोजगारी के मामले में भारत की स्थिति बहुत अधिक भयावह है। पिछले 5 साल में भारत में काम करने लायक लोगों की संख्या 96 करोड़ से बढ़कर तकरीबन 108 करोड़ तक पहुंच गई है। इस हिसाब से रोजगार पाने वालों की संख्या बढ़नी चाहिए थी। यह बढ़ने की बजाय 2% कम हो गई है। 5 साल पहले भारत की कुल आबादी में तकरीबन 41 करोड़ लोगों के पास रोजगार था। अब यह घटकर के 40 करोड़ हो गया हो गया है। भारत का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 5 साल पहले 46% के आसपास था। अब यह घटकर के 40% के आसपास आ गया है। 5 साल पहले रोजगार दर 43% के आसपास था। अब यह घटकर 37% के आसपास आ गया है।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके लिए केवल कोरोना को दोष नहीं दिया जा सकता है। आंकड़े पिछले 5 साल के राजकाज के बारे में बताते हैं। 5 साल पहले ही भारत का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 46% के आसपास था। जो भारत के समकक्ष खड़े दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम है। इसके लिए मोदी सरकार का पूरा राजकाज दोषी है। जिसके दायरे में मोदी सरकार की आर्थिक सोच आर्थिक नीतियां आर्थिक योजनाएं से लेकर वह तमाम घोषणाएं आती हैं जिसके बारे में मोदी सरकार ने कहा कि इससे जन कल्याण होगा। प्रमाण जनकल्याण से बिल्कुल विपरीत है।

बेरोजगारी के मुहाने पर भारत की जिस तरह से स्थिति है अगर यह सच भारत के लोगों तक टीवी और मुख्यधारा की मीडिया के तहत पहुंचता तो भारत की मौजूदा सरकार अपनी सत्ता गंवा चुकी होती। लेकिन अब भी मोदी सरकार धूमधाम से इसीलिए चल रही है कि उसने सबसे अधिक काम लोगों को सच से दूर रखने पर किया है। मोदी सरकार का सारा फोकस किसी भी तरह से लोगों को झूठ में उलझाए रखने का है। इतना सब होने के बावजूद टीवी वाले उससे कठिन सवाल नहीं पूछ रहे। ऊपर से हरियाणा के मुख्यमंत्री यहां तक कह देते हैं कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी बेरोजगारी के झूठे आंकड़े दे रही है। वह इस संस्था के खिलाफ कार्रवाई करेंगे!

Assembly Elections 2022
unemployment
UP Assembly Elections 2022
Punjab Elections
Goa elections 2022
Uttarakhand Elections

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

ज्ञानव्यापी- क़ुतुब में उलझा भारत कब राह पर आएगा ?

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License