NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भाजपा-आईपीएफ़टी चुनावी वादों को पूरा करने में रही नाकामयाब : माणिक सरकार
आज त्रिपुरा में नगर पालिका हो रहे हैं। इस दौरान सत्तारूढ़ बीजेपी-आईपीएफ़टी गठबंधन द्वारा विपक्षी उम्मीदवारों को बार-बार परेशान करने की ख़बरें आ रही हैं, जिस वजह से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होने के बारे में संदेह पैदा हो रहा है और इस मुद्दे पर मीडिया बहस हावी रही है। न्यूज़क्लिक ने सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो सदस्य और त्रिपुरा के चार बार रहे मुख्यमंत्री माणिक सरकार के साथ राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उभरते राजनीतिक परिदृश्य के बारे में बात की। साक्षात्कार के अंश नीचे दिए जा रहे हैं:
संदीप चक्रवर्ती
25 Nov 2021
Translated by महेश कुमार
Manik Sarkar

जैसे-जैसे त्रिपुरा में 25 नवंबर को होने वाले नगर पालिका चुनाव नज़दीक आ रहे हैं वैसे-वैसे सत्तारूढ़ बीजेपी-आईपीएफ़टी गठबंधन द्वारा विपक्षी उम्मीदवारों को बार-बार परेशान करने के कारण, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होने के बारे में संदेह ओइडा हो रहा है और इस मुद्दे पर मीडिया बहस हावी हो गई है। न्यूज़क्लिक ने सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो सदस्य और त्रिपुरा के चार बार रहे मुख्यमंत्री माणिक सरकार के साथ राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उभरते राजनीतिक परिदृश्य के बारे में बात की। साक्षात्कार के अंश नीचे दिए जा रहे हैं:

आप किसान आंदोलन की जीत को कैसे देखते हैं?

माणिक सरकार: आजाद भारत में इतने बड़े पैमाने का किसान-आंदोलन और उस पर जीत  दर करना एक एतिहासिक मिसाल है। उनके आंदोलन का महत्व इस तथ्य से और भी बढ़ जाता है कि देश की सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनें एकजुट होकर किसानों आंदोलन के साथ खड़ी हैं। वर्तमान परिस्थितियों में यह समय की जरूरत है। समाज के अन्य वर्गों जैसे छात्रों, युवाओं, महिलाओं और दलितों ने भी इस आंदोलन का स्वागत और समर्थन किया है। इससे जन-आंदोलन की ताकत भी बढ़ी है।

किसानों ने बड़े ही साहस से घोषणा की है कि उनका आंदोलन तब तक चलेगा जब तक वास्तविक अर्थों में उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता है, यानी तीनों काले कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए संसद में विधेयक पारित करना होगा। हालांकि, किसानों की सबसे महत्वपूर्ण मांग उचित एमएसपी, बिजली (संशोधन) विधेयक को वापस लेने की भी मांग है, जो खेती को घाटे का सौदा बनाते हैं। 

दूसरा मुद्दा लखीमपुर खीरी में हुई हत्या का भी है जहां एक केंद्रीय मंत्री के बेटे ने चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या कर दी थी, जिसमें सभी की मौत हो गई थी। केंद्रीय मंत्री आज भी पद पर बने हुए हैं। आंदोलन के दौरान सात सौ किसान भी मारे गए हैं। इसलिए जब तक दोषियों को कठघरे में खड़ा नहीं किया जाएगा, तब तक न्याय नहीं हो सकता है। केंद्र सरकार को इस संबंध में कानूनी कार्रवाई करनी होगी। इसलिए जब तक ये सभी मांगें पूरी नहीं हो जाती आंदोलन जारी रहेगा। किसानों के साथ-साथ उनके समर्थक और देश की आम जनता को भी अब इंतजार है कि सरकार इन मांगों को लेकर क्या कदम उठाती है

त्रिपुरा में भाजपा के 44 महीने के शासनकाल के दौरान एक औसत नागरिक का क्या अनुभव रहा है?

माणिक सरकार: भाजपा-आईपीएफटी शासन के तहत त्रिपुरा के लोगों को केवल कपटपूर्ण वादे मिले हैं, जोकि खालिस झूठे आश्वासनों का खेल है। त्रिपुरा जैसे राज्य में लोगों को इस तरह से राजी करना नामुमकिन है। लोग अब देख रहे हैं कि सरकार इन आश्वासनों को पूरा करने में विफल रही है। 2018 के चुनावों के दौरान, सत्तारूढ़ गठबंधन को शायद विश्वास नहीं हुआ था कि वह सत्ता में आ जाएगा। जब वे सत्ता में आने में सफल हो गए तो, उन्होंने महसूस किया कि वे देश के मौजूदा प्रशासनिक ढांचे को देखते हुए चुनावी आश्वासनों को पूरा नहीं कर पाएंगे। त्रिपुरा भाजपा सरकार को कोई तरजीह नहीं दी जाएगी और सत्तारूढ़ गठबंधन यह अच्छी तरह से जानता है।

इन परिस्थितियों में, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व में विपक्ष ने चुनावी वादों को लागू करने की मांग को लेकर लोगों को लामबंद किया है। लामबंदी से डर कर बीजेपी ने पूरे राज्य में फासीवादी आतंकी रणनीति अपनानी शुरू कर दी है। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या त्रिपुरा देश के भीतर है या सीमा से बाहर है, क्योंकि भाजपा सरकार स्पष्ट रूप से संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप काम नहीं कर रही है।

लोकतंत्र में लोकप्रिय वोट हारने वाली पार्टी विपक्ष में बैठती है। इसलिए विपक्ष की भूमिका अहम होती है। उससे सत्तारूढ़ दल की कमजोरियों पर निगरानी रखने और आम लोगों के कल्याण के लिए एक वैकल्पिक प्रस्ताव देने की अपेक्षा की जाती है। हालांकि, अब त्रिपुरा में लोगों के वोट देने के अधिकार को ही खत्म कर दिया गया है। बीजेपी का मकसद उन लोगों की आवाज पर लगाम लगाना है जो सरकार से उसके पिछले आश्वासनों के बारे में पूछ रहे हैं। त्रिपुरा में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भी ध्वस्त हो गया है। मीडिया जब लोगों की दुर्दशा को उजागर करने की कोशिश करता है, तो उसे लगातार हमलों का सामना करना पड़ता है।

अल्पसंख्यकों पर विशेष रूप से हमले हो रहे हैं। बांग्लादेश में जो हुआ उसका वहां की सरकार ने डटकर सामना किया। पूरे बांग्लादेश में कोहराम मच गया था। बांग्लादेश सरकार ने नरसंहार के दोषियों का पर्दाफाश किया और उनके साथ सख्ती से निपटा। बांग्लादेश की घटनाओं के जावाब में त्रिपुरा में आरएसएस ने राज्य के अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया। अल्पसंख्यक धार्मिक स्थलों पर हमले किए गए, बिजली के खंभे उखाड़ दिए गए, अजान के लिए इस्तेमाल होने वाले माइक के तार काट दिए गए, धार्मिक स्थलों पर आरएसएस के झंडे फहरा दिए गए। मस्जिदों के आस-पास बसे अल्पसंख्यकों के घरों को तबाह कर दिया गया। 

जब प्रधानमंत्री अगरतला आए थे तो उन्होंने अपने भाषणों में कहा था कि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ होने वाली हैं। उन्होंने यह भी वादा किया कि उनकी सरकार राज्य को हीरों से सजा देगी। उन्होंने मिस्ड कॉल द्वारा नौकरियों की बात की और कहा कि सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन मिलेगा। अब केंद्र सरकार कह रही है कि सरकारी कर्मचारियों का अनुपात पूर्वोत्तर राज्यों में त्रिपुरा में सबसे ज्यादा है। यह सरकारी कर्मचारियों का अनुपात वास्तव में पिछले वाम मोर्चा शासन के दौरान बढ़ा था क्योंकि त्रिपुरा एक सीमावर्ती राज्य है जहां उद्योगों के अवसर बहुत कम हैं।

राज्य में एक और निंदनीय घटना नौकरशाहों के तबादलों का लगातार खतरा है, जिसमें अच्छी पोस्टिंग के लिए मोटी रिश्वत ली जाती है। ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान सरकारी कर्मचारियों को हो रहा है। इस तरह सरकार कमाई कर रही है। त्रिपुरा में नशा मुक्ति अभियान के नाम पर सरकार असल में शराब की दुकानों को लाइसेंस दे रही है। कानून-व्यवस्था में आई टूटन का एक अन्य उदाहरण यह मिलता है कि दो पुलिसकर्मियों को एक ट्रक के पहियों के नीचे कुचल दिया गया था, क्योंकि पुलिसकर्मी को संदेह था कि ट्रक बांग्लादेश से ड्रग्स ला रहा था। प्रधानमंत्री जी के आशीर्वाद से आज प्रदेश में जंगल राज़ है।

आदिवासी समुदाय के अधिकारों के बारे में क्या विचार है?

माणिक सरकार: आजादी के ठीक बाद, आदिवासियों के बीच कम्युनिस्टों का बोलबाला था। तब एक कहावत आम थी कि गैर-आदिवासी कांग्रेस के साथ और आदिवासी कम्युनिस्टों के साथ।  लेकिन यह तथ्य सच नहीं है कि सभी आदिवासी या तो वामपंथी है या माकपा समर्थक हैं। उनमें एक ऐसा भी तबका था जो प्रकृति में कम्युनिस्ट विरोधी था। लेकिन आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग कम्युनिस्ट समर्थक था। वाम शासन के दौरान, आदिवासियों का बड़ा वर्ग अपनी पहले की दयनीय स्थिति से उठकर मध्यम वर्ग बन पाया था। जब 1980 के दशक में आदिवासी और गैर-आदिवासी एक साथ मिलने लगे, तो कांग्रेस ने त्रिपुरा उपजाती जुबा समिति (TUJS) का गठन किया, जो बाद में एक विद्रोह में बदल गई। तभी 'मुक्त त्रिपुरा' का नारा अस्तित्व में आया था। त्रिपुरा को विभाजित करने के लिए, त्रिपुरा की स्वदेशी राष्ट्रवादी पार्टी (आईएनपीटी) का गठन किया गया था जो बाद में स्वदेशी पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) में बदल गया। 2018 के चुनाव से ठीक पहले आईपीएफटी ने मुख्यमंत्री आवास का 18 दिनों तक घेराव किया था और एकमात्र राष्ट्रीय राजमार्ग को 13 दिनों तक बंद कर दिया था। ये दल नारा दे रहा था कि तीन महीने के भीतर नया राज्य बन जाएगा। उसके बाद अब, एक अन्य संगठन, त्रिपुरा मोथा, एक ग्रेटर त्रिपुरालैंड की मांग के साथ उभरा है।

वाम मोर्चा सरकार के दौरान, हमने आदिवासियों को 30 प्रतिशत नौकरियां आवंटित की थीं और गैर-आदिवासी क्षेत्रों की तुलना में आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए बजट का 1.5 गुना आवंटित किया था। अब, हम त्रिपुरा के गुमराह युवाओं को वाम मोर्चे में वापस लाने के मुद्दे को सक्रिय रूप से संबोधित कर रहे हैं।

आप मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आंकलन कैसे करते हैं?

माणिक सरकार: संविधान पर हमला हो रहा है, लोकतंत्र पर हमला हो रहा है, राष्ट्रीय संसाधन बिक रहे हैं, इजारेदार घरानों पर टैक्स नहीं लगाया जा रहा है। जब लोग सवाल पूछते हैं, तो मोदी फूट डालो और राज करो की नीति लागू करने लगते हैं। शोषक, देश पर राज कर रहे हैं। हम भी लोगों के विभिन्न वर्गों के बीच काम कर रहे हैं। धर्मनिरपेक्ष विपक्ष को मजबूत होना चाहिए। लोकसभा चुनाव के बाद से लोगों का सरकार पर से भरोसा उठ गया है। अब आम लोग ही मोदी की तक़दीर लिखेंगे। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

BJP-IPFT Unable to Materialise Poll Promises: Former CM Manik Sarkar

Tripura
Tripura Violence
communal violence
Tripura Municipal Elections
CPI(M)
BJP
Left Front
IPFT
Manik Sarkar

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • नाइश हसन
    मेरे मुसलमान होने की पीड़ा...!
    18 Apr 2022
    जब तक आप कोई घाव न दिखा पाएं तब तक आप की पीड़ा को बहुत कम आंकता है ये समाज, लेकिन कुछ तकलीफ़ों में हम आप कोई घाव नहीं दिखा सकते फिर भी भीतर की दुनिया के हज़ार टुकड़े हो चुके होते हैं।
  • लाल बहादुर सिंह
    किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़
    18 Apr 2022
    किसानों पर कारपोरेटपरस्त  'सुधारों ' के अगले डोज़ की तलवार लटक रही है। जाहिर है, हाल ही में हुए UP व अन्य विधानसभा चुनावों की तरह आने वाले चुनाव भी भाजपा अगर जीती तो कृषि के कारपोरेटीकरण को रोकना…
  • सुबोध वर्मा
    भारत की राष्ट्रीय संपत्तियों का अधिग्रहण कौन कर रहा है?
    18 Apr 2022
    कुछ वैश्विक पेंशन फंड़, जिनका मक़सद जल्द और स्थिर लाभ कमाना है,  ने कथित तौर पर लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति को लीज़ पर ले लिया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,183 नए मामले, 214 मरीज़ों की मौत हुई
    18 Apr 2022
    देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। दिल्ली में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 517 नए मामले सामने आए है |
  • भाषा
    दिल्ली में सीएनजी में सब्सिडी की मांग को लेकर ऑटो, टैक्सी संगठनों की हड़ताल
    18 Apr 2022
    दिल्ली में ऑटो, टैक्सी और कैब चालकों के विभिन्न संगठन ईंधन की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर सीएनजी में सब्सिडी और भाढ़े की दरों में बदलाव की मांग को लेकर सोमवार को हड़ताल पर हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License