NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
उत्पीड़न
नज़रिया
भारत
राजनीति
उत्तर प्रदेश चुनाव : हौसला बढ़ाते नए संकेत!
ज़्यादातर शूद्र, ओबीसी, दलित और आदिवासी जनता ने आरएसएस-भाजपा के हिंदुओं को एकजुट करने के झूठे दावों को संदिग्ध नज़र से देखा है। सपा के अखिलेश यादव जैसे नेताओं को इस असहमति को वोट में बदलने की ज़रूरत है।
कांचा इलैया शेफर्ड
12 Jan 2022
Translated by महेश कुमार
उत्तर प्रदेश चुनाव : हौसला बढ़ाते नए संकेत!

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का कार्यक्रम जारी हो गया है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम 2024 के संसदीय चुनावों को दिशा प्रदान करेंगे। किसानों से मोदी सरकार की हार के बाद उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा करने वाले होंगे। किसानों ने तीन कठोर कृषि कानूनों के खिलाफ सफलतापूर्वक आंदोलन लड़ा और मोदी सरकार को उनकी बिना शर्त वापसी के साथ नैतिक और राजनीतिक हार का सामना करना पड़ा।

भविष्य में, किसानों और खेतिहर किसानों की लगभग 14 महीने तक चली ऐतिहासिक लड़ाई, और उनके आंदोलन के दौरान लगभग 750 किसानों की मौत, मोदी शासन के दौरान की गई किसी भी सकारात्मक चीजों को संभावित रूप से कम कर सकती है। हाल ही में, मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक जाट, ने सात साल सत्ता में रहने के बाद मोदी के अधिकार क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण दरार का संकेत दिया है।

उत्तर प्रदेश जोकि चुनाव के मामले में एक महत्वपूर्ण प्रांत है और इस चुनाव को मोदी और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के बीच मुख्य लड़ाई के रूप में पेश किया जा रहा है। मान लीजिए कि मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चुनाव हार जाती है; तो ऐसी स्थिति में, एक युवा लेकिन अनुभवी और कुशल नेता राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरेगा और उसके बाद भारत एक नई दिशा में आगे बढ़ेगा।

खाद्य-उत्पादक तबके, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से वर्ण व्यवस्था में शूद्रों के रूप में जाना जाता है, अब मोदी के खिलाफ विद्रोही महसूस कर रहे हैं। उन्होंने महसूस किया है कि उनका 2014 का नारा, 'सबका साथ, सबका विकास- अब भरोसेमंद नारा नहीं है। उन्होंने कृषि आंदोलन के दौरान साबित कर दिया कि आरएसएस या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा के पूर्वज, खाद्य उत्पादकों के हितों के खिलाफ हैं। उनके आंदोलन ने प्रदर्शित किया कि आरएसएस और भाजपा बार-बार जोर देकर कहते हैं कि खाद्य उत्पादक एक छत्र हिंदू पहचान के अंतर्गत आते हैं, जबकि वे वास्तव में उन ताकतों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो किसानों के हितों के खिलाफ काम करती हैं।

आरएसएस-भाजपा सरकार के खिलाफ किसानों की लड़ाई ने दृढ़ता से दिखाया है कि इन संगठनों द्वारा प्रस्तावित और कई लेखकों और मुख्यधारा के मीडिया आउटलेट द्वारा प्रचारित बहुसंख्यकवाद का विचार व्यर्थ है। यहां यह याद रखने की जरूरत है कि मुख्य रूप से भारत के शूद्र या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) खाद्य उत्पादक हैं जिन्होंने मोदी को कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया है।

भारतीय किसानों ने दुनिया को दिखाया दिया है कि आरएसएस और भाजपा के शासक दो या तीन एकाधिकार वाले व्यापारिक घरानों के पक्ष में हैं, जो गुजराती बनिया समुदाय से निकले हैं, जहां से मोदी और उनके दूसरे-इन-कमांड, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी आते हैं। उन्होंने दिखाया कि आरएसएस के शीर्ष नेता मोहन भागवत और दत्तात्रेय होसबले ब्राह्मणवादी पुजारी वर्ग से आते हैं और उनके संगठन अभी भी उन ब्राह्मणवादी हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। शूद्र, ओबीसी, दलित और आदिवासी लोगों की जागरूक ताकतों के बीच यह अहसास भविष्य के राजनीतिक विकास के लिए बहुत महत्व रखता है। यह एक ऐसा अहसास है जिसे मतदान की  चेतना से सराबोर होना है। इन वर्गों को धनबल, राज सत्ता और बाहुबल को हराना चाहिए जिसे आरएसएस-बीजेपी शासक हर विपक्षी दल के खिलाफ खुलेआम इस्तेमाल कर रहे हैं-खासकर समाजवादी रैंकों के खिलाफ वे इसे बड़ी तेजी से कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश से अखिलेश यादव जैसे कुशल युवा शूद्र नेता के उदय से आरएसएस/भाजपा जैसी ताकतें डरी हुई हैं। उन्होंने राम मंदिर और 'राम राज्य' के मुद्दों के ज़रिए मतदाताओं के भीतर भावुकता लाने की कोशिश की है। लेकिन अखिलेश ने कुशलता से श्रीकृष्ण का आह्वान करना शुरू कर दिया है, जिन्हे शूद्र-ओबीसी द्वारा अधिक स्वीकार करने की संभावना है। वर्तमान स्थिति सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या पर दिए पूर्व फैसले से अलग है। अयोध्या मंदिर मुद्दे से मुस्लिम विरोधी भाप अब निकल गई है। सबसे गंभीर समस्या जनता की आजीविका है, विशेष रूप से किसान जो आरएसएस-भाजपा के "हम सब हिंदू हैं" के नारे पर विश्वास नहीं करते हैं। आरएसएस/भाजपा नेताओं ने दिल्ली की सीमाओं पर मरते हुए किसानों को अपने सबसे बड़े दुश्मन के रूप में देखा, जो उनके लिए पहले के तथाकथित मुस्लिम दुश्मनों से भी बदतर थे। उन्होंने दिखाया है कि कैसे 'राम राज्य' का उनका विचार भारत के खाद्य उत्पादकों के खिलाफ सनातन वर्ण धर्म की मानसिकता के साथ काम करता है।

इससे पहले, शूद्र-ओबीसी को यह एहसास नहीं था कि मजदूरों, जोतने वालों खेतिहरों और कारीगरों के हितों के खिलाफ जाना आरएसएस की मूल विचारधारा है। लेकिन कृषि कानूनों ने उन्हें उनकी अंतिम दिशा दी। अखिलेश यादव का नारा कि 'कृष्ण राज्य' समाजवादी (समाजवादी) राज्य है, राम राज्य की तुलना में शूद्रों/ओबीसी को अधिक मजबूत भावनाओं के साथ प्रेरित करने की संभावना है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पौराणिक कथाएं जनता के बीच भावनाओं का आह्वान करती हैं, और इस तरह की भावनाओं का इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन के बाद से राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है। जैसा कि भीनावेनी राम शेफर्ड ने लिखा है, "कृष्ण ने कभी ब्राह्मण गुरुओं के अनुयायी के रूप में काम नहीं किया, उन्होंने खुद को देवताओं का भगवान घोषित किया और महाभारत की कहानी में ब्राह्मण गुरुओं को उनका स्थान दिखाने  के लिए अपना विश्वरूपम दिखाया"। तो हम समझ सकते हैं कि आरएसएस ने कृष्ण की छवि को आगे क्यों नहीं बढ़ाया क्योंकि ऐसा कृष्ण के गोपालक के दावे और ब्राह्मणों से ऊपर रहने के कारण नहीं किया गया। यदि केवल शूद्र-ओबीसी को श्रीकृष्ण की स्वायत्त आध्यात्मिक एजेंसी का एहसास होता, तो वे उनके चारों ओर घूमते और अखिलेश यादव के नए कृष्ण राज्य के नारे के साथ जुड़ जाते।

मान लीजिए यादव बांसुरी धारण करने वाले श्रीकृष्ण को प्रतीक के रूप में मानते हैं, जिन्हें गोपालक या पशुपालक के रूप में जाना जाता है। ऐसे मामले में, लोगों को उनके 'कृष्ण राज्य' के विचार पर विश्वास करने की अधिक संभावना है, भाजपा के 'राम राज्य' के विचार के खिलाफ,  जिसने पशुपालकों और खाद्य उत्पादकों के खिलाफ कृषि कानून बनाए।

केंद्र में भाजपा के सात साल के शासन ने लोगों को 'राम राज्य' का स्वाद चखा दिया है, जो व्यवस्थित रूप से ग्रामीण गरीबों, किसानों और छात्रों के हितों के खिलाफ जाता है। वे सार्वजनिक धन को बड़े व्यापारिक घरानों और गैर-खाद्य उत्पादकों के स्वामित्व वाले स्टार्ट-अप को भेंट चढ़ा रहे हैं। वर्तमान सरकार ने एक भी शूद्र, ओबीसी, दलित या आदिवासी को बड़े व्यापार नेटवर्क में बढ़ावा नहीं दिया है। इनकी मंशा है दौलत पैदा करने वालों को लूटना और लुटेरों को दौलत का मालिक बनाना।

उत्तर प्रदेश के बेहद अलोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को समर्थन देने के लिए मोदी सरकार सीबीआई और आयकर अधिकारियों से लेकर पुलिस तक की सारी केंद्रीय मशीनरी को समाजवादी पार्टी समर्थकों के घरों पर छापेमारी के लिए भेज रही है। अब तक, हमने कभी नहीं सुना कि मोदी और शाह जैन व्यापारिक तबकों के पीछे गए हैं, क्योंकि वे ज्यादातर भाजपा समर्थक हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में, उन्होंने अखिलेश यादव का समर्थन करने वाले एक जैन व्यवसायी परिवार के मुखिया पर हमला किया। गलती से, उन्होंने अपने ही समर्थक पर भी छापा मारा, जिसके घर में बहुत सी नकदी मिली थी। वे नहीं जानते हैं कि अब उसका पैसा कैसे लौटाया जाए! बीजेपी-आरएसएस की कोशिश यही है कि किसी भी राज्य में उनका विरोध न हो और चुनाव जीतने के लिए आर्थिक मदद जुटाई जाए।

दुनिया कैसे भरोसा कर सकती है कि ऐसी पार्टी या संगठन लोकतंत्र में विश्वास करती है? वे दिन-ब-दिन दुनिया को दिखा रहे हैं कि एक विस्तृत संविधान के साथ भारत में स्थापित एक प्रणाली के रूप में लोकतंत्र उन्हें स्वीकार्य नहीं है। वे सिद्धांत और व्यवहार में पाकिस्तान के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रहे हैं! इसलिए, वहां लोकतंत्र अपरिभाषित रहा है। आरएसएस-बीजेपी चाहते हैं कि भारतीय लोकतंत्र भी अपरिभाषित हो जाए। दूसरे शब्दों में, वे खुद के लाभ के लिए लोकतांत्रिक चुनावों के सभी नियमों का आसानी से इस्तेमाल करना चाहते हैं। हालाँकि, यह पूरी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को नष्ट कर देगा। इससे लोकतांत्रिक दुनिया को क्या संदेश जाता है खासकर जब दिल्ली से देश पर शासन करने वाली सरकार एक महत्वपूर्ण चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं के घरों और कार्यालयों पर छापा मारती है? इस सब के खिलाफ सभी विपक्षी दलों को सामूहिक रूप से और राष्ट्रीय स्तर पर लड़ना होगा।

लेखक एक राजनीतिक विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक हैं। उनकी हालिया किताब द शूद्र-विज़न फ़ॉर ए न्यू पाथ, कार्तिक राजा करुप्पुसामी के साथ सह-संपादित है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
 

UP
BJP
BJP-RSS
Scheduled Caste

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

लखनऊ विश्वविद्यालय: दलित प्रोफ़ेसर के ख़िलाफ़ मुक़दमा, हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं!

सवर्णों के साथ मिलकर मलाई खाने की चाहत बहुजनों की राजनीति को खत्म कर देगी

जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी

अमित शाह का शाही दौरा और आदिवासी मुद्दे

रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट : डाडा जलालपुर में अभी भी तनाव, कई मुस्लिम परिवारों ने किया पलायन

यूपी: सफ़ाईकर्मियों की मौत का ज़िम्मेदार कौन? पिछले तीन साल में 54 मौतें

यूपी चुनाव परिणाम: क्षेत्रीय OBC नेताओं पर भारी पड़ता केंद्रीय ओबीसी नेता? 

अनुसूचित जाति के छात्रों की छात्रवृत्ति और मकान किराए के 525 करोड़ रुपए दबाए बैठी है शिवराज सरकार: माकपा

यूपी चुनाव में दलित-पिछड़ों की ‘घर वापसी’, क्या भाजपा को देगी झटका?


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License