NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
विपक्षी एकता व क्षेत्रीय दलों को कमजोर करना चाहती है भाजपा
निश्चित रूप से अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियों में वैचारिक प्रतिबद्धता की कमी है और सत्ता हासिल करने के लिए वे किसी भी हद तक चली जाती हैं, लेकिन यह भी सच है कि अब उन्हें अपने अस्तित्व का खतरा नजर आ रहा है। उनका आधार सिकुड़ता जा रहा है और केंद्र की राजनीति में हैसियत कुछ भी नहीं रह गई है।
 अफ़ज़ल इमाम
25 Nov 2019
maharastra
Image courtesy: Clicknow

जब इस घटना को  इतिहास में जब दर्ज किया जाएगा कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने किस तरह से अजीत पवार के साथ मिलकर अचानक से सत्ता की दावेदारी पेश कर दी तो साथ में यह भी दर्ज किया जाएगा कि भाजपा अपने विपक्षी दलों की एकता को कुचलने के लिए किस तरह से काम कर रही थी।
 
एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार देर शाम तक महाराष्ट्र में वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं के साथ महत्वपूर्ण बैठक कर रहे थे, लेकिन अचानक वे वहां से निकल गए और सुबह पता चला कि राज्य में राष्ट्रपति शासन खत्म हो गया है और देवेंद्र फड़नवीस ने मुख्यमंत्री, जबकि उन्होंने उपमुख्यमंत्री की शपथ ले ली है।

बताया जा रहा है कि छोटे पवार भाजपा के संपर्क में तो काफी दिनों से थे, लेकिन डील रात में ही फाइनल हुई। इस आपरेशन को अंजाम देने के लिए पार्टी ने अपने दो बड़े नेताओं को काम पर लगाया था। प्रेक्षकों का कहना है कि भाजपा न तो यह चाहती है कि विपक्षी दल एकजुट हों और न ही एनडीए में शामिल क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हो सकें, लेकिन महाराष्ट्र में तो यह दोनों ही काम हो रहा है।

भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए एनसीपी और कांग्रेस शिवसेना की विचारधारा और उसके इतिहास को नजरअंदाज करते हुए गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि तीनों पार्टियों की यह योजना सफल हो जाती है तो इसका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा।

झारखंड में चुनाव प्रचार शुरू हो चुका है, जहां आजसू ने अपने तेवर दिखा दिए हैं। बिहार में भी वर्ष 2021 में चुनाव होना है, जहां जद(यू) के तमाम नेताओं को यह डर सता है कि जब शिवसेना काफी ताकतवर होते हुए भी ‘छोटा भाई’ बन गई है तो उनके साथ भी ऐसी सूरत पैदा हो सकती है।

निश्चित रूप से अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियों में वैचारिक प्रतिबद्धता की कमी है और सत्ता हासिल करने के लिए वे किसी भी हद तक चली जाती हैं, लेकिन यह भी सच है कि अब उन्हें अपने अस्तित्व का खतरा नजर आ रहा है। उनका आधार सिकुड़ता जा रहा है और केंद्र की राजनीति में हैसियत कुछ भी नहीं रह गई है। जिस तरह की बेचैनी व घुटन उद्धव ठाकरे महसूस कर रहे हैं, ठीक वैसा ही अनुभव टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू, यूपी की सुहैलदेव पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर और आरएलएसपी नेता उपेंद्र कुशवाहा को भी हुआ था।

इसका नतीजा यह हुआ कि इन सभी ने भाजपा से अपना पीछा छुड़ा लिया। एनडीए में रहते हुए यह सभी बेहद कमजोर हो चुके हैं और अब अपनी खोई जमीन हासिल करने के लिए जद्दोजेहद कर रहे हैं। अपना दल के नेताओं में भी बेचैनी है, लेकिन फिलहाल उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि मोदी और योगी सरकार के पास इतना बड़ा बहुमत हैं कि उनके एनडीए में रहने या नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

चुनावों से पहले नेताओं के पाला बदलने की परंपरा पुरानी है, लेकिन पिछले 6 वर्षों में दो  दिलचस्प चीजें देखने को मिली हैं। एक तो जिस राज्य में भी चुनाव हुआ है तो वहां के एक या दो बड़े कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। चाहे वे असम में हेमंत बिस्वा शर्मा हों, या कर्नाटक में एसएम कृष्णा या फिर महाराष्ट्र में नारायण राणे, राधाकृष्ण विखे पाटिल या कृपाशंकर सिंह।

तृणमूल कांग्रेस से तो थोक के हिसाब से नेताओं ने पाला बदला है। दूसरे यह कि ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों में नेतृत्व व नियंत्रण एक ही परिवार के लोगों के पास रहा है। चुनाव से पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के परिवार में फूट पड़ी तो हरियाणा में चौटाला परिवार में घमासान छिड़ गया। अब नतीजा सबके सामने है।  

उल्लेखनीय है कि पिछले 6 वर्षों में देश में तमाम बड़ी घटनाएं हुई हैं। उसमें विपक्षी पार्टियों की तरफ से जिस तरह का हस्तक्षेप होना चाहिए था, वह नजर नहीं आया। कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो संसद के भीतर और बाहर वह कमजोर व लाचार  दिखा। कई महत्वपूर्ण मुद्दों और विधेयकों पर तो आपसी मतभेद भी रहा। काफी लंबे ठहराव के बाद अब महाराष्ट्र में एक नई राजनीतिक हलचल शुरू हुई है, जो पूरे देश की राजनीति पर असर डालेगी।

यही कारण है कि सत्ताधारी भाजपा साम, दाम, दंड, भेद किसी भी सूरत में इस कोशिश को शुरूआत में ही कुचल देना चाहती है। उसे पता है कि यदि विपक्ष महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो गया तो इसका असर झारखंड विधानसभा और कर्नाटक के उपचुनावों पर पड़ सकता है। गोवा और कर्नाटक की तर्ज में महाराष्ट्र में भी उसका आपरेशन विपक्ष पर एक तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश है, ताकि भविष्य में न तो किसी तरह की एकजुटता बने और न नहीं कोई आवाज उठ सके।

Maharastra
Political Drama
BJP
Congress
NCP
Shiv sena
Narendra modi
Amit Shah
sonia gandhi
SHARAD PAWAR
Uddhav Thackeray
Devendra Fednavis
Ajit Pawar
jharkhand elections
TMC
left parties

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • Nisha Yadav
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    चंदौली: निशा यादव हत्या मामले में सड़क पर उतरे किसान-मज़दूर, आरोपियों की गिरफ़्तारी की माँग उठी
    14 May 2022
    प्रदर्शन के दौरान वक्ताओं ने कहा- निशा यादव का कत्ल करने के आरोपियों के खिलाफ दफ़ा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया जाए।
  • Delimitation
    रश्मि सहगल
    कैसे जम्मू-कश्मीर का परिसीमन जम्मू क्षेत्र के लिए फ़ायदे का सौदा है
    14 May 2022
    दोबारा तैयार किये गये राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों ने विवाद के लिए नए रास्ते खोल दिए हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि विधानसभा चुनाव इस पूर्ववर्ती राज्य में अपेक्षित समय से देर में हो सकते हैं।
  • mnrega workers
    सरोजिनी बिष्ट
    मनरेगा मज़दूरों के मेहनताने पर आख़िर कौन डाल रहा है डाका?
    14 May 2022
    "किसी मज़दूर ने 40 दिन, तो किसी ने 35, तो किसी ने 45 दिन काम किया। इसमें से बस सब के खाते में 6 दिन का पैसा आया और बाकी भुगतान का फ़र्ज़ीवाड़ा कर दिया गया। स्थानीय प्रशासन द्वारा जो सूची उन्हें दी गई है…
  • 5 वर्ष से कम उम्र के एनीमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, 67 फीसदी बच्चे प्रभावित: एनएफएचएस-5
    एम.ओबैद
    5 वर्ष से कम उम्र के एनीमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, 67 फीसदी बच्चे प्रभावित: एनएफएचएस-5
    14 May 2022
    सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में किए गए सर्वेक्षण में 5 वर्ष से कम उम्र (6-59 महीने) के 58.6 प्रतिशत बच्चे इससे ग्रसित थे जबकि एनएफएचएस-5 के 2019-21 के सर्वे में इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की…
  • masjid
    विजय विनीत
    ज्ञानवापी मस्जिद: कड़ी सुरक्षा के बीच चार तहखानों की वीडियोग्राफी, 50 फीसदी सर्वे पूरा
    14 May 2022
    शनिवार को सर्वे का काम दोपहर 12 बजे तक चला। इस दौरान ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के करीब आधे हिस्से का सर्वे हुआ। सबसे पहले उन तहखानों की वीडियोग्राफी कराई गई, जहां हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License