NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
नज़रिया
भारत
राजनीति
ज़रा सोचिए… जब बाबरी मस्जिद गिरी ही नहीं तो किसे और कैसी सज़ा!
आज यह साबित करना आसान है कि त्रेता युग में अयोध्या में उसी स्थान पर राम का जन्म हुआ था, जहां आरएसएस और बीजेपी के लोग दावा करते हैं, लेकिन यह साबित करना मुश्किल है कि 16वीं शताब्दी से यहां कोई बाबरी मस्जिद थी, जिसे 6 दिसंबर, 1992 को विहिप-बीजेपी नेताओं के अभियानों और उपस्थिति में ढहा दिया गया।
मुकुल सरल
30 Sep 2020
बाबरी मस्जिद

आप ऊपर की तस्वीर में साफ़ देख सकते हैं कि बाबरी मस्जिद कैसी शान से अपनी जगह खड़ी है। जब ये गिरी ही नहीं तो फिर किसे सज़ा दी जाए और क्यों दी जाए!, जी हां, तस्वीरों की बातें हैं, तो तस्वीरों में तो बाबरी मस्जिद आप देख ही रहे हैं। और तस्वीरों में देखकर खुश भी रहिए। आपसे किसने कहा कि अयोध्या में जहां भव्य राममंदिर बनने जा रहा है वहां कभी कोई बाबरी मस्जिद भी थी। अगर होती तो उसे गिराये जाने का कोई गवाह होता। क्या कहा बाबरी मस्जिद गिराये जाते समय अयोध्या में हज़ारों लोगों ने देखा। आपने भी टीवी पर, तस्वीरों में देखा, अख़बारों में पढ़ा। यकीन जानिए वह सब काल्पनिक था। और उन लोगों की या आप लोगों की गवाह में कोई गिनती थोड़ी होती है। और तस्वीरें, वीडियो इन्हें कोई सुबूत थोड़ी माना जा सकता है। आप मेरी बातों पर हंस रहे हैं। आपको यकीन नहीं आ रहा है तो आज सीबीआई की विशेष अदालत का फ़ैसला पढ़ लीजिए।

लखनऊ की सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अपना ऐतिहासिक फ़ैसला देते हुए लिखा- ऐतिहासिक पर विशेष ध्यान दें, आजकल हमारे देश में सबकुछ ऐतिहासिक और अभूतपूर्व हो रहा है - हां तो विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी, यह एक आकस्मिक घटना थी।

अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले, बल्कि आरोपियों ने उन्मादी भीड़ को रोकने की कोशिश की थी।

अब ये बात अलग है, कि इस उन्मादी भीड़ को तैयार ही इन नेताओं के अभियानों ने किया था। 80 और 90 के दशक की बातें अब किसे याद हैं। किसे याद है विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी के बाबरी मस्जिद के खिलाफ उग्र अभियान। आपको मालूम हो कि भाजपा की ही तरह विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) आरएसएस से जुड़ा संगठन है। और मंदिर आंदोलन की बागडोर इसी संगठन ने संभाल रखी थी। जिसमें भाजपा राजनीतिक तौर पर सक्रिय थी।

अब कौन कहे कि रामशिला पूजन, राम ज्योति यात्रा से लेकर लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा ने इन उन्मादी भीड़ को तैयार करने में कोई भूमिका नहीं निभाई। जैसे आज मॉब लिंचिंग लोग अचानक उत्तेजित होकर कर देते हैं उस समय भी मस्जिद को भी अचानक उत्तेजित होकर लोगों ने गिरा दिया। उसके पीछे कोई धार्मिक और राजनीतिक मुहिम तो थी ही नहीं! और उस दिन 6 दिसंबर 1992 को भी हज़ारों-लाखों की भीड़ अयोध्या में अपने आप ही जुट गई थी। इन्हें जमा किसी भी नेता या पार्टी-संगठन ने नहीं किया था। रस्सी, फावड़े और कुदाल तो बिल्कुल भी नहीं दिए गए थे। सब अपने घरों से लेकर आए थे। पुलिस से छुपते-छुपाते। क्योंकि उस समय के मुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ ली थी कि वे मस्जिद की हर हाल में सुरक्षा करेंगे और उन्होंने की भी। उन्होंने कहा कि उन्होंने मस्जिद की त्रि-स्तरीय सुरक्षा सुनश्चित की थी। अब लोग इतने चतुर-चालक तीन स्तर की सुरक्षा को भी धता बताते हुए न केवल दूर-दूर से अयोध्या में इकट्टा हो गए, बल्कि कुदाल, फावड़े भी साथ ले आए।

ख़ैर इसी सुरक्षा के लिए कल्याण सिंह को अदालत की अवमानना का दोषी माना गया था और एक दिन जेल की भी सज़ा सुनाई गई थी। यह अलग बात है कि बाद में बीजेपी ने उन्हें राजस्थान के राज्यपाल की पदवी से नवाज़ा।

सीबीआई की विशेष अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि सीबीआई ने इस मामले की वीडियो फुटेज की कैसेट पेश की, उनके दृश्य स्पष्ट नहीं थे और न ही उन कैसेट्स को सील किया गया। घटना की तस्वीरों के नेगेटिव भी अदालत में पेश नहीं किये गये।

वाकई! 27 साल में वीडियो फुटेज धुंधले तो पड़ ही गए होंगे। हालांकि हमारी स्मृति अभी तक धुंधली नहीं पड़ी है। इस देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर लगे घाव अभी तक ताज़ा हैं। हम साफ़ देख पा रहे हैं कि कैसे बाबरी मस्जिद के सामने पंडाल में नेता जमा हैं, कैसे भजन-कीर्तन हो रहा है, कैसे जय श्रीराम के नारे लग रहे हैं। कैसे लोग मस्जिद की तरफ़ दौड़ रहे हैं। कैसे गुंबदों पर चढ़ गए हैं, कैसे “एक धक्का और दो सारी मस्जिद तोड़ दो” का नारा गूंज रहा है। कैसे उमा भारती प्रसन्न होकर लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के गले लग रही हैं। अब इन सब तस्वीरों के नेगेटिव थोड़े हैं, और पॉजिटिव से थोड़ा कुछ साबित होता है। क्या पता फोटो बदल दिए गए हों।

आज यह साबित करना आसान है कि त्रेता युग में अयोध्या में उसी स्थान पर राम का जन्म हुआ था, जहां आरएसएस और बीजेपी के लोग दावा करते हैं, लेकिन यह साबित करना मुश्किल है कि 16वीं शताब्दी से यहां कोई बाबरी मस्जिद थी, जिसे 6 दिसंबर, 1992 को विश्व हिन्दू परिषद-बीजेपी नेताओं के अभियानों और उपस्थित में ढहा दिया गया।

जैसे अलवर के पहलू खान को किसी ने नहीं मारा था, उसी तरह बाबरी मस्जिद को भी किसी ने नहीं ढहाया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भूमि विवाद के अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में- ऐतिहासिक पर लगातार ध्यान दें, फ़ैसले पर नहीं - मंदिर के लिए भूमि देते हुए भी माना कि बाबरी मस्जिद गिराना एक आपराधिक कृत्य था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह एकदम स्पष्ट है कि 16वीं शताब्दी का तीन गुंबदों वाला ढांचा हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे। यह ऐसी ग़लती थी, जिसे सुधारा जाना चाहिए था।” लेकिन यह ग़लती नहीं सुधारी गई। न सुप्रीम कोर्ट ने सुधारी, न सीबीआई की विशेष कोर्ट ने। और एक जांच एजेंसी के तौर पर सीबीआई के तो क्या कहने, उसके लिए तो सुप्रीम कोर्ट ‘मधुर वचन’ कह चुका है। 2013 में मनमोहन काल में ही सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि सीबीआई तो पिंजरे में बंद तोते जैसी है। अब तोते से क्या उम्मीद की जा सकती है। हालांकि मोदी जी के ‘स्वर्ण काल’ में दावा है कि सीबीआई बिल्कुल आज़ाद हो चुकी है। तभी तो सुशांत की आत्महत्या की निष्पक्ष जांच उसे सौंपी गई है।

ख़ैर, हमारे एक मित्र अब बड़े पसोपेश में हैं- वे पूछते हैं कि न मस्जिद ढहाने में बीजेपी नेताओं का कुछ रोल साबित हुआ और न राम मंदिर बनवाने में बीजेपी की कोई भूमिका है, क्योंकि वो तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बन रहा है और कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर शक नहीं करते। तो फिर बीजेपी और उसके नेता किस बात का श्रेय लेते हैं। फिर उन्हें क्यों वोट दिया जाए!

इसे पढ़ें : बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में सभी आरोपी बरी, अदालत ने कहा- पूर्व नियोजित नहीं थी घटना

इसे भी पढ़ें : बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला: बाहर जो 'श्रेय' लेते हैं अदालत में क्यों मुकर जाते हैं!

babri masjid
Babri Demolition
Babri Masjid-Ram Mandir
Babri Masjid demolition
ayodhya
Lucknow
cbi court
lal krishna advani
L K Advani
murli manohar joshi
kalyan singh
uma bharti
Vinay Katiyar
Babri Case verdict
lucknow court

Related Stories

यूपी: अयोध्या में चरमराई क़ानून व्यवस्था, कहीं मासूम से बलात्कार तो कहीं युवक की पीट-पीट कर हत्या

यूपीटीईटी पेपर लीक मामले में दो और गिरफ़्तार

यूपी: उन्नाव सब्ज़ी विक्रेता के परिवार ने इकलौता कमाने वाला गंवाया; दो पुलिसकर्मियों की गिरफ़्तारी

ये नेता आख़िर महिलाओं को समझते क्या हैं!

अयोध्या विध्वंस की गवाह उनकी गलियां, उनकी सड़कें

बाबरी विध्वंस फ़ैसला : नो कमेंट... नो कमेंट...प्लीज़

बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में सभी आरोपी बरी, अदालत ने कहा- पूर्व नियोजित नहीं थी घटना

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला: बाहर जो 'श्रेय' लेते हैं अदालत में क्यों मुकर जाते हैं!

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फ़ैसले के लिए समयसीमा 30 सितंबर तक बढ़ाई

हैदराबाद के बाद उन्नाव को लेकर ग़म और गुस्सा, लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सियासी पारा चढ़ा


बाकी खबरें

  • आज का कार्टून
    आम आदमी जाए तो कहाँ जाए!
    05 May 2022
    महंगाई की मार भी गज़ब होती है। अगर महंगाई को नियंत्रित न किया जाए तो मार आम आदमी पर पड़ती है और अगर महंगाई को नियंत्रित करने की कोशिश की जाए तब भी मार आम आदमी पर पड़ती है।
  • एस एन साहू 
    श्रम मुद्दों पर भारतीय इतिहास और संविधान सभा के परिप्रेक्ष्य
    05 May 2022
    प्रगतिशील तरीके से श्रम मुद्दों को उठाने का भारत का रिकॉर्ड मई दिवस 1 मई,1891 को अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरूआत से पहले का है।
  • विजय विनीत
    मिड-डे मील में व्यवस्था के बाद कैंसर से जंग लड़ने वाले पूर्वांचल के जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल के साथ 'उम्मीदों की मौत'
    05 May 2022
    जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल की प्राण रक्षा के लिए न मोदी-योगी सरकार आगे आई और न ही नौकरशाही। नतीजा, पत्रकार पवन जायसवाल के मौत की चीख़ बनारस के एक निजी अस्पताल में गूंजी और आंसू बहकर सामने आई।
  • सुकुमार मुरलीधरन
    भारतीय मीडिया : बेड़ियों में जकड़ा और जासूसी का शिकार
    05 May 2022
    विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय मीडिया पर लागू किए जा रहे नागवार नये नियमों और ख़ासकर डिजिटल डोमेन में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों की एक जांच-पड़ताल।
  • ज़ाहिद ख़ान
    नौशाद : जिनके संगीत में मिट्टी की सुगंध और ज़िंदगी की शक्ल थी
    05 May 2022
    नौशाद, हिंदी सिनेमा के ऐसे जगमगाते सितारे हैं, जो अपने संगीत से आज भी दिलों को मुनव्वर करते हैं। नौशाद की पुण्यतिथि पर पेश है उनके जीवन और काम से जुड़ी बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License