NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बंगाल चुनावः मुद्दों की राजनीति का ख़ात्मा कर, ध्रुवीकरण की राजनीति पर मुहर लगाएगी भाजपा!
बात बोलेगी : संयुक्त मोर्चा के बैनर तले लड़ने वाले युवा प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार इस चिलचिलाते समर में ठंडी हवा के झौंके सा लगता है। यहां देश के सामने मुंह बाये सबसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा है। सपनों के भारत, सपनों के बंगाल पर बातचीत है।
भाषा सिंह
01 Apr 2021

पश्चिम बंगाल में दूसरे चरण के मतदान से पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मिलकर लड़ने की ज़रूरत पर बल देना—बेहद अहम घटनाक्रम है। जिस तरह से पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ा जा रहा है, वह दरअसल पूरे भारत और भारतीय लोकतंत्र के लिए परीक्षा की घड़ी साबित हो रहा है। बंगाल की धरती पर राजनीतिक पार्टियों के बीच तकरार निर्बाध रूप से सांप्रदायिक बनी हुई है।

इसमें संयुक्त मोर्चा के बैनर तले लड़ने वाले युवा प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार इस चिलचिलाते समर में ठंडी हवा के झौंके सा लगता है। यहां देश के सामने मुंह बाये सबसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा है। सपनों के भारत, सपनों के बंगाल पर बातचीत है। सीधे-सीधे भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारी वीरों की बात करते हैं, तो वहीं सुभाष चंद्र बोस, रविंद्रनाथ टैगोर की धधकती सांस्कृतिक विरासत का गहरा असर है और इस पर वे अपनी दावेदारी भी खूब जताते है।

नंदीग्राम से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता, संयुक्त मोर्चे की युवा उम्मीदवार मीनाक्षी----अपनी गहरी राजनीतिक समझ और धारदार भाषणों की वजह से इतने ध्रुवीकृत चुनावी माहौल में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई हैं। आज जिस समय नंदीग्राम सहित बाकी विधानसभाओं में दूसरे चरण के मतदान चल रहा है, उसमें इन तमाम पहलुओं पर बात करने की ज़रूरत है।

भाजपा और मोदी सरकार चुनावों को ज़मीनी मुद्दों से अलग करने में बहुत हद तक अलग करने में सफल हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या गृह मंत्री अमित शाह या फिर भाजपा के मुख्यमंत्री या कोई भी नेता—उन्हें अब इस बात का पूरा भरोसा हो चला है कि वे चुनाव से पहले ही पेट्रोल-डीजल के दाम आसामान पर पहुंचा सकते हैं, रसोई गैस को महंगा कर सकते हैं, वरिष्ठ नागरिकों की बचत पर मिलने वाली ब्याज दरों को कम कर सकते हैं, बचत दरों और पीपीएफ आदि की ब्याज दरों में कटौती कर आम नागरिक की जेब को प्रभावित कर सकते हैं (हालांकि हंगामा मचने पर फ़िलहाल ये फ़ैसला वापस ले लिया गया है)। और, देश भर के किसानों खासतौर से उत्तर भारत से लाखों की तादाद में देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे अन्नदाताओं की तीन किसान विरोधी बिलों को वापस लेने की मांग को चार महीने से पूरी तरह से अनदेखी करके भाजपा और मोदी सरकार बंगाल फतह का हौसला रखते हैं। एक तरह से मोदी सरकार ने यह ऐलान कर दिया है कि देश के किसान और उनके मुद्दों पर चुनाव नहीं होता और कम से कम वे नहीं होने देंगे। यह विश्वास भाजपा और संघ को बिहार चुनाव में नीतीश-भाजपा की डबल इंजन की सरकार की वापसी से भी और तगड़ा हो गया, क्योंकि लॉकडाउन में जिस तरह का हाहाकारी दृश्य देश की सड़कों पर मज़दूरों का नज़र आया था, जिसमें बड़ी संख्या में बिहारी श्रमजीवी थे, उससे यह लग रहा था कि चुनाव में इसका असर पड़ेगा। ऐसा ही नोटबंदी के समय हुआ। करोड़ों लोगों के रोजगार गये, अर्थव्यवस्था चौपट हो गई, लोग मारे गये, लेकिन भाजपा 2019 का आम चुनाव जीत गई। यह अलग बात है कि इस जीत में पाकिस्तान पर कराई गई सर्जिकल स्ट्राइक, युद्धोन्माद का बड़ा हाथ रहा।

पश्चिम बंगाल का चुनाव भी इसी तरह की राजनीति पर मुहर लगाने की कोशिश के साथ भाजपा लड़ रही है। इसके बारे में भाजपा नेता बोलते भी रहे हैं।

नंदीग्राम में खेती के काम से जुड़े सुदीप्तो मंडल कहते हैं, ये सब कोई मुद्दा नहीं। पहले हमें लगता था कि खेती-किसान, लोगों को परेशान करेगी। लेकिन पता नहीं क्यों लोग इस पर बात नहीं करते। मछुआरे समुदाय से जुड़ी शांति देवी कहती हैं, इतनी महंगाई हो गई है। गैस को भरवाना मुश्किल है। पेट्रोल-डीजल में आग लगी है। ममता दीदी के राशन से हम बच गये, लेकिन जिंदा रहना तो मुश्किल है। लेकिन कोई नेता इस पर बात नहीं करता। कमल छाप (भाजपा) सिर्फ  हिंदू-मुसलमान करती है। अब देखो हमारे घर—हम सब (हिंदू-मुस्लिम) अगल-बगल रहते हैं। नफरत बंगाल की जमीन में नहीं, लेकिन बाहर से आए नेताओं के दिमाग में है। वे हमारी जमीन में भी आग लगाएंगे—मुझे डर है।

यह डर बहुत से लोगों को है।            

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

West Bengal Elections 2021
BJP
TMC
Narendra modi
mamta banerjee
Nandigram
CPIM

Related Stories

राज्यपाल की जगह ममता होंगी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति, पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने पारित किया प्रस्ताव

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी: अयोध्या में चरमराई क़ानून व्यवस्था, कहीं मासूम से बलात्कार तो कहीं युवक की पीट-पीट कर हत्या
    19 Mar 2022
    कुछ दिनों में यूपी की सत्ता पर बीजेपी की योगी सरकार दूसरी बार काबिज़ होगी। ऐसे में बीते कार्यकाल में 'बेहतर कानून व्यवस्था' के नाम पर सबसे ज्यादा नाकामी का आरोप झेल चुकी बीजेपी के लिए इसे लेकर एक बार…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ट्रेड यूनियनों की 28-29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल, पंजाब, यूपी, बिहार-झारखंड में प्रचार-प्रसार 
    19 Mar 2022
    दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को सफल बनाने के लिए सभी ट्रेड यूनियन जुट गए हैं। देश भर में इन संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठकों का सिलसिला जारी है।
  • रवि कौशल
    पंजाब: शपथ के बाद की वे चुनौतियाँ जिनसे लड़ना नए मुख्यमंत्री के लिए मुश्किल भी और ज़रूरी भी
    19 Mar 2022
    आप के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान के सामने बढ़ते क़र्ज़ से लेकर राजस्व-रिसाव को रोकने, रेत खनन माफ़िया पर लगाम कसने और मादक पदार्थो के ख़तरे से निबटने जैसी कई विकट चुनौतियां हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    अल्ज़ाइमर बीमारी : कॉग्निटिव डिक्लाइन लाइफ़ एक्सपेक्टेंसी का प्रमुख संकेतक है
    19 Mar 2022
    आम तौर पर अल्ज़ाइमर बीमारी के मरीज़ों की लाइफ़ एक्सपेक्टेंसी 3-12 सालों तक रहती है।
  • पीपल्स डिस्पैच
    स्लोवेनिया : स्वास्थ्य कर्मचारी वेतन वृद्धि और समान अधिकारों के लिए कर रहे संघर्ष
    19 Mar 2022
    16 फ़रवरी को स्लोवेनिया के क़रीब 50,000 स्वास्थ्य कर्मचारी काम करने की ख़राब स्थिति, कम वेतन, पुराने नियम और समझौते के उल्लंघन के ख़िलाफ़ हड़ताल पर चले गए थे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License