NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
बंगाल चुनाव : मुस्लिम ‘इंफ़्लुएंसर्स’ सिद्दीक़ी फ़ैक्टर पर विभाजित, लेकिन इसका एहसास कि ‘2021, 2016 नहीं है’
बढ़ते धार्मिक ध्रुवीकरण के बीच राजनीतिक माहौल में बड़ा बदलाव, और नए चुनाव के इस दौर में नए कारक हैं, जैसे कि संयुक्त मोर्चा मुस्लिम मतदाताओं को "बहुत ही विवेकपूर्ण" विकल्प के तौर पर पेश कर रहा है।
रबींद्र नाथ सिन्हा
08 Apr 2021
Translated by महेश कुमार
बंगाल चुनाव : मुस्लिम ‘इंफ़्लुएंसर्स’ सिद्दीक़ी फ़ैक्टर पर विभाजित, लेकिन इसका एहसास कि ‘2021, 2016 नहीं है’

कोलकाता: पश्चिम बंगाल के मुस्लिम मतदाताओं का राजनीतिक और सामाजिक रूप से जागरूक तबका यानी मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग और नागरिक समाज के सदस्य पिछले छह-सात हफ्तों से मुस्लिम मतदाताओं को कुछ बेहतर परामर्श देने में कामयाब नज़र आ रहे है। काउंसलिंग करने वालों को उम्मीद है कि लाभार्थी मतदाता ’उनके संदेश को मुस्लिम मतदाताओं के बड़े हिस्से तक पहुंचाएंगे।

सामाजिक-धार्मिक संगठन के नेताओं और उत्तर बंगाल के आधा दर्जन जिलों में इनसे जुड़े संगठन इस तरह की काउंसलिंग कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल चुनाव जिसे अभी आठ चरणों का मतदान पूरा करना है।

उनकी काउंसलिंग की सामग्री पर नज़र डालें तो विभिन्न परामर्शदाताओं द्वारा किए जा रहे प्रचार के बीच कुछ समानताएं या असमानताएं हो सकती हैं, लेकिन सबका विचार एक ही है - कि 2021 का साल 2016 नहीं है जब पश्चिम बंगाल में आखिरी विधानसभा चुनाव हुए थे।

सूत्रों से मिली प्रतिक्रिया और हालात का अवलोकन करने के बाद न्यूज़क्लिक को तीन प्रमुख अनुमान नज़र आते है। 

सबसे पहला, कि मुस्लिम मतदाताओं को परामर्श देने वाले समूह ने निम्न प्रमुख बिंदु पर गौर  किया हैं: कि मताधिकार के अधिकार का इस्तेमाल बहुत विवेकपूर्ण ढंग से करें और निर्णय लेने से पहले यथासंभव लंबे समय से बदलते राजनीतिक हालत पर नज़र रखें।

दूसरा, वाम मोर्चा-कांग्रेस-इंडियन सेकुलर फ्रंट (ISF) से बने संयुक्त मोर्चा के भीतर से स्वच्छ छवि वाले अच्छे उम्मीदवार का समर्थन करें फिर चाहे वे जिस भी सीट से लड़ रहे हों। 

यदि यह मानदंड पूरा नहीं होता है, तो समर्थन तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों को दिया जाना चाहिए।

काउंसलर्स के दूसरे समूह ने जिस बात को मुख्य आधार माना है और जिन्होने इस दौरान प्रस्तावित नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ अपनी चिंताओं को भी चिन्हित किया है, उनके मुताबिक: किसी भी हालत में ऐसी राजनीतिक ताकत के उम्मीदवारों को समर्थन नहीं करें जो धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती हैं।। इसका संदर्भ स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है, लेकिन उन्होंने इसका स्पष्ट उल्लेख करने से परहेज किया है। हालांकि, प्रस्तावित एनआरसी के संदर्भ में, वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नाम का उल्लेख करते हैं क्योंकि "जो इस मुहिम के अग्रणी दूत है"।

न्यूज़क्लिक ने जब उनकी प्राथमिकता के बारे में पूछा तो जवाब था: कि “हम तृणमूल कांग्रेस का समर्थन करते रहे हैं और अब अलग तरीके से कार्य करने का कोई कारण नहीं देखते हैं। हम ऐसे संगठनों का समर्थन करते हैं जो समाज को धर्म और जाति के आधार पर विभाजित करने के प्रयास को रोकते हैं और सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देने का काम करते हैं।

न्यूजक्लिक ने कुछ मुस्लिम ‘इन्फ़्लुन्सर्स’ से बात की और सिर्फ एक सवाल पर चर्चा की शुरूवात की: 2016 में में हुए विधानसभा चुनाव से 2021 चुनाव कैसे अलग है। स्वाभाविक रूप से इस सवाल पर प्रतिक्रिया आईएसएफ और इसके वास्तुकार फुरफुरा शरीफ पिरजादा अब्बास सिद्दीकी के आस-पास थी।

सैफुल्ला शमीम, जो अलिया विश्वविद्यालय में बंगाली पढ़ाते हैं, ने कहा: कि जब हम “2016 के विधानसभा चुनावों का मूल्यांकन करते हैं तो तब से अब तक जमीनी हक़ीक़त में बड़ा बदलाव आया है। भाजपा तब एक बड़ी शक्ति नहीं थी। अब वह पार्टी केंद्र में दूसरी बारा सत्ता में आ गई है। और, उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 सीटों में से 18 सीटें जीतकर (बंगाल में) उम्मीदों से बढ़कर प्रदर्शन किया है। अब, दलबदलुओं के साथ, इसकी टैली 22 पर पहुँच गई है, जोकि टीएमसी की मूल टैली थी।"

2016 और 2021 के बीच दूसरा बड़ा बदलाव टीएमसी नेतृत्व द्वारा वाम मोर्चा और कांग्रेस को, खत्म करने के लिए उन पर बढ़ते हमले हैं विशेष रूप से वर्तमान कार्यकाल के दौरान ये भोंडे प्रयास बढ़े है। इसके परिणाम, वाम मोर्चा और कांग्रेस दोनों के लिए खतरनाक रहे हैं, लेकिन निश्चित रूप से वाम मोर्चा के लिए परिणाम गंभीर रहे हैं, जो अपने कैडर और हमदर्दों की रक्षा करने की स्थिति में नहीं थे, जो काफी निराश थे और "वाम के लिए राम की घटना" के सुराग को इस परिदृश्य में मिलते है। इसके अलावा, उनमें राज्य सरकार की नाकामयाबी के खिलाफ असंतोष है साथ ही वे टीएमसी कैडरों के गलत कामों और दुर्भावनाओं से किए कामों से भी नाराज़ है।

संयुक्ता मोर्चा को बदलाव के रूप में देखा जा सकता है और एक अर्थ में जनता के सामने इस बार एक नया विकल्प मौजूद है।

इसलिए हम मतदाताओं को एक ही संदेश दे रहे हैं कि जहां भी संभावना दिखे, वहां मोर्चा के उम्मीदवार को वोट दें। तीसरे मोर्चे का उदय बहुत जरूरी है। जहां यह विकल्प कमजोर है, वहां सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों का समर्थन कर सकते है। शमीम के मुताबिक हो सकता है, हमें पाँच वर्षों तक इंतजार करना पड़े।” 

आईएसएफ के संबंध में शमीम का मानना है कि शुरू में यह अव्यवस्थित दिख रहा था लेकिन हाल के हफ्तों में यह कुछ हद तक संगठित हुआ है। सिद्दीकी को समाज के वंचित तबकों की दयनीय हालात और उनके अधिकारों के बारे में बात करते सुना है। यह पूछे जाने पर कि क्या वे ‘राम’ शिविर से मूल वाम समर्थकों और हमदर्दों की वापसी की संभावना देखते हैं, उन्होंने कहा:" संभव है, देखते हैं"।

न्यूज़क्लिक ने, काउंसलर्स के दूसरे समूह कूच बिहार के मुख्यालय महोबाब अली से बात की, जो उत्तर बंग इमाम मोअज़ीन मुस्लिम बुद्धिजीवी ऐक्य मंच के सचिव हैं। 

एनआरसी के खिलाफ हमारा विरोध सभी विभाजनकारी ताकतों को खारिज करने की हमारी दृढ़ नीति से उपजा है और हमें लगता है कि यह समाज को विभाजित करने का एक उपकरण होगा। हमने देखा है कि असम में क्या हुआ है। इसके अलावा, दस्तावेज मुहैया कराने में समस्या होगी और तय कागजात प्रस्तुत करने में नाकामयाब होने पर परेशान और दंडित किया जाएगा”, उन्होंने कहा।

अली ने मुस्लिम मतदाताओं को मुश्किल हालात के बारे में बताने और पिछले दो विधानसभा चुनावों में वरीयता से वोट करने की सलाह दी थी। जब स्पष्ट रूप से बताने का आग्रह किया,  तो उन्होंने कहा: "हां, हम सत्ताधारी पार्टी का समर्थन करते रहे हैं"।

आईएसएफ और सिद्दीकी के बारे में अली ने बताया कि, वे विभाजनकारी ’सिद्धांत को अपना कर चल रहे हैं और कहा:“ यदि आप ध्यान से देखें, तो सिद्दीकी मुस्लिम वोटों को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं; हम इस सब इसके के खिलाफ हैं”। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे अपने अभियान में, वंचित तबकों के अधिकारों के मुद्दे उठा रहे हैं और क्या खैरात आधारित तुष्टिकरण के बजाय नौकरी के अवसरों की मांग कर रहे हैं, तो अली ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मोइदुल इस्लाम जो शहर के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोशल साइंसेज में पढ़ाते हैं ने कहा: 2016 में, भाजपा कहीं नहीं थी। वामपंथी और कांग्रेस ने टीएमसी विरोधी वोट लेने की भरसक कोशिश की लेकिन वे कामयाब नहीं हुए थे। 2017 के बाद से, ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रचारकों ने चुपचाप अन्य पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तबकों के बीच काम करना शुरू कर दिया था और धीरे-धीरे भाजपा ने इन तबकों पर पकड़ बना ली थी। इससे 2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा को लाभ हुआ।”

इस्लाम ने कहा कि उस समय, टीएमसी के खिलाफ भाजपा का तुष्टिकरण का आरोप काम कर गया लेकिन इसका नेतृत्व हालत को गंभीरता से समझ नहीं पाया। टीएमसी को अम्फन चक्रवात के बाद राहत और कल्याण कार्यों में भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ा। इन धीमे राजनीतिक बदलावो से 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। 

2020 के मध्य के बाद और लॉकडाउन के दौरान और अम्फान के राहत कार्यों के साथ जुड़ने से वामपंथियों की गतिविधियां नज़र आने लगी। और इन बदलते राजनीतिक हालत में, टीएमसी का "विपक्षी दलों को खत्म कम करने" का निरंतर अभियान कमजोर हो गया था। इसके बाद, वाम मोर्चा और कांग्रेस ने आपसी मुद्दों को सुलझाने में सफल रहे और आखिरकार हाथ मिला लिया। इस प्रक्रिया में आईएसएफ को भागीदार बनाने के निर्णय ने राजनीतिक गति हासिल कर ली। 

सिद्दीकी कारक पर बात करते हुए इस्लाम ने कहा: "उनके बारे में अभी भी समझ साफ नहीं है लेकिन हाल के दिनों में, उनके अभियानों में, उनके दृष्टिकोण के बारे काफी कुछ स्पष्टता देखने को मिली है। वे केवल मुस्लिम समर्थक नहीं है। इसके विपरीत, वे गरीब और पिछड़े वर्गों की आजीविका के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे है। उनकी सभाओं में युवा बड़ी संख्या में निकल कर आ रहे हैं।”

इस्लाम का मानना है कि वामपंथियों ने “सिद्दीकी” को तैयार किया है। “अगर वे वंचित तबकों के मुद्दों को उजागर करते हैं और वे इस एजेंडे से चिपके रहते हैं और सिर्फ मुस्लिम समर्थक होने के दबाव को झेल जाते हैं तो वे पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज़ कर पाएंगे।”, उन्होंने कहा।

यह पूछे जाने पर कि क्या वे पिछले दो वर्षों में बीजेपी को वामपंथी समर्थकों के मिले समर्थन को वापस आता देख रहे हैं, इस्लाम ने कहा कि अब यह संभव है, "यहां तक कि 2-5 प्रतिशत की वापसी भी काफी सार्थक होगी।"

जमायत उलेमा-ए-हिंद की पश्चिम बंगाल इकाई के महासचिव अब्दुफ़ सलाम के अनुसार, ऐसा लगता है कि भाजपा पिछले कुछ समय से राज्य के अंदरूनी इलाकों में काफी चतुराई से काम कर रही है और इस चुनावी मौसम में वह सत्ता हथियाने के अपने एजेंडे को आक्रामक रूप से आगे बढ़ा रही है। वे यह भी सोचते हैं कि सामान्य रूप से संजुक्त मोर्चा और विशेष रूप से आईएसएफ कोई बड़ा कारक नहीं हो सकता है।

"मुझे संदेह है कि जो लोग बड़ी संख्या में सिद्दीकी की सभाओं में भाग ले रहे हैं वे मतदाता हैं",। यहाँ इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि सामाजिक कल्याण संगठन जमायत,  टीएमसी को अपना समर्थन देती रही है और इसकी राज्य इकाई के अध्यक्ष सिद्दीकुल्लाह चौधरी राज्य के मंत्री हैं।

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि क्या सिद्दीकी टीएमसी के मुस्लिम समर्थन में सेंध लगाने में सफल होंगे और क्या इससे बीजेपी को अनजाने में मदद मिलेगी। इस मामले में यह कहना काफी होगा कि पिछले तीन-चार दिनों से टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी आईएसएफ संस्थापक को निशाना बना रही हैं और उन्हें "गद्दार" कह रही हैं, जो उनकी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक को विभाजित करने के लिए काम कर रहे हैं।

इस बीच, रिकॉर्ड के लिए, 6 अप्रैल के द हिंदू में वर्गीज के जॉर्ज के छपे संपादित-उद्धरण इस तरह से हालत का निष्कर्ष निकालते हैं: कि "किसी एक चुनाव की तुलना दूसरे चुनाव से करना हमेशा समस्याओं से भरा होता है, लेकिन पश्चिम बंगाल की स्थिति 2016 के असम से काफी तुलनीय है - एक घिरी हुई सत्ताधारी पार्टी, कुछ क्षेत्रों में त्रिकोणीय लड़ाई, और अन्य दलों के दलबदलुओं के नेतृत्व वाली भाजपा।”

लेखक कोलकाता के एक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bengal Elections: Muslim ‘Influencers’ Split on Siddiqui Factor but Realise ‘2021 is not 2016’

Bengal Elections
West Bengal Polls
Assembly elections
Muslim voters
sanyukt morcha
Left Front
Congress
ISF
TMC
BJP
Abbas Siddiqui

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

NEP भारत में सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने के लिए भाजपा का बुलडोजर: वृंदा करात

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें


बाकी खबरें

  • सत्यम् तिवारी
    वाद-विवाद; विनोद कुमार शुक्ल : "मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था, कि मैं ठगा जा रहा हूँ"
    16 Mar 2022
    लेखक-प्रकाशक की अनबन, किताबों में प्रूफ़ की ग़लतियाँ, प्रकाशकों की मनमानी; ये बातें हिंदी साहित्य के लिए नई नहीं हैं। मगर पिछले 10 दिनों में जो घटनाएं सामने आई हैं
  • pramod samvant
    राज कुमार
    फ़ैक्ट चेकः प्रमोद सावंत के बयान की पड़ताल,क्या कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार कांग्रेस ने किये?
    16 Mar 2022
    भाजपा के नेता महत्वपूर्ण तथ्यों को इधर-उधर कर दे रहे हैं। इंटरनेट पर इस समय इस बारे में काफी ग़लत प्रचार मौजूद है। एक तथ्य को लेकर काफी विवाद है कि उस समय यानी 1990 केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी।…
  • election result
    नीलू व्यास
    विधानसभा चुनाव परिणाम: लोकतंत्र को गूंगा-बहरा बनाने की प्रक्रिया
    16 Mar 2022
    जब कोई मतदाता सरकार से प्राप्त होने लाभों के लिए खुद को ‘ऋणी’ महसूस करता है और बेरोजगारी, स्वास्थ्य कुप्रबंधन इत्यादि को लेकर जवाबदेही की मांग करने में विफल रहता है, तो इसे कहीं से भी लोकतंत्र के लिए…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये
    16 Mar 2022
    किसी भी राजनीतिक पार्टी को प्रश्रय ना देने और उससे जुड़ी पोस्ट को खुद से प्रोत्सान न देने के अपने नियम का फ़ेसबुक ने धड़ल्ले से उल्लंघन किया है। फ़ेसबुक ने कुछ अज्ञात और अप्रत्यक्ष ढंग
  • Delimitation
    अनीस ज़रगर
    जम्मू-कश्मीर: परिसीमन आयोग ने प्रस्तावों को तैयार किया, 21 मार्च तक ऐतराज़ दर्ज करने का समय
    16 Mar 2022
    आयोग लोगों के साथ बैठकें करने के लिए ​28​​ और ​29​​ मार्च को केंद्र शासित प्रदेश का दौरा करेगा।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License