NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
रूस और चीन के साथ संपर्क बनाए रखना चाहते हैं बाइडेन
अगर पिछले चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों को एकसाथ भी मिला दिया जाए, तो भी बाइडेन ओवल ऑफ़िस में उनसे ज़्यादा अनुभव लेकर आए हैं।
एम. के. भद्रकुमार
29 May 2021
रूस और चीन के साथ संपर्क बनाए रखना चाहते हैं बाइडेन

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच जेनेवा में 16 जून को बैठक होने वाली है। बाइडेन प्रशासन के मौजूदा और प्रत्याशित अधिकारियों के हालिया बयानों के आधार पर बैठक में होने वाली संभावित चीजों का अंदाजा लगाने की कोशिश करने वाले अब तक समझ चुके होंगे कि उन वक्तव्यों में प्रदर्शित सहज ज्ञान और आयामों से कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
यह सामान्य समझ है कि बाइडेन की प्राथमिकताओं और उन्हें आगे बढ़ाने में उनकी प्रभावोत्पादकता के ज़रिए ही उनकी रूस नीति तय होगी। बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप- अगर पिछले चार राष्ट्रपतियों का सारा अनुभव एक साथ मिला दें, तो भी बाइडेन सबसे उन सबसे ज़्यादा अनुभव ओवल ऑफ़िस में लेकर आए हैं। 

साधारण शब्दों में कहें तो बाइडेन का नेतृत्व, मौजूदा प्रशासन में अमेरिका की विदेश नीति को तय करने में सबसे अहम किरदार निभा रहा है और निभाएगा।

इसलिए बुधवार को स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समन्वयक कर्ट कैंपबेल द्वारा चीन पर की गई टिप्पणी से सबकी भौहें तन गई हैं। 

कैंपबेल ने अपनी टिप्पणी में कहा, "अब आपसी संपर्कों और व्यवहार का वक़्त ख़त्म हो चुका है।" उन्होंने अनुमान लगाया कि चीन के प्रति अमेरिकी नीति अब "नए कूटनीतिक पैमानों" से संचालित होगी, जिसमें सबसे अहम आपसी प्रतिस्पर्धा होगी।

अमेरिकी नीति में बदलाव के लिए कैंपबेल ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ज़िम्मेदार ठहराया। इसके लिए उन्होंने चीन पर, भारतीय सीमा पर सैन्य टकराव, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ आर्थिक अभियान और कथित "वोल्फ वॉरियर" कूटनीति का आरोप लगाया। वोल्फ़ वॉरियर कूटनीति के तहत चीन के कूटनीतिज्ञों ने अंधाधुंध, युद्धरत और उकसाने वाली अमेरिकी भाषणबाजी के खिलाफ़ अभियान चलाया था।

कैंपबेल के मुताबिक़, बीजिंग का व्यवहार कड़ाई वाला रहा है, लगता है अब चीन ज़्यादा दृढ़ किरदार निभाने की तैयारी कर चुका है।

पिछले साल अलास्का में गृह सचिव एंटनी ब्लिंकेन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सल्लिवेन की चीन के पोलित ब्यूरो के सदस्य यांग जिची और स्टेट काउंसलर व विदेश मंत्री वांग यी से हुई बैठक के दौरान कैंपबेल भी उपस्थित थे। साफ़ है कि यह कैंपबेल का ही मत था कि ब्लिंकेन को एक युद्धरत रवैया अपनाना चाहिए और एंकोरेज में वार्ता की शुरुआत के साथ आक्रामक हो जाना चाहिए।

लेकिन इसका उल्टा प्रभाव हुआ। अब कैंपबेल इसका दोष राष्ट्रपति शी पर मढ़ रहे हैं, जिन्हें कैंपबेल ने "विचारधारा से गहराई तक प्रभावित, लेकिन भावनाओं रहित" बताते हुए कहा था कि उनका "अर्थशास्त्र की तरफ रुझान नहीं है"। साफ़ है कि कैंपबेल अलास्का की आड़ में चालाकी दिखा रहे हैं और टीवी कैमरों की मौजूदगी में शी, यांग और वांग पर बरस रहे थे। 

क्या यह बेकार की भाषणबाजी किसी महाशक्ति की दूसरी महाशक्ति के लिए नीति बन सकती है? सबसे अहम, क्या यह बाइडेन के मत को दर्शाती है? बाइडेन का दावा है कि अतीत में अमेरिका और चीन में उनकी शी के साथ हुई औपचारिक और अनौपचारिक बैठकों के चलते, वे चीन के राष्ट्रपति को बहुत बेहतर ढंग से जानते हैं।

कैंपबेल ने लगभग उसी तरीके से बात की, जैसे ब्लिंकेन हाल तक यूरोपीय देशों में रूस के बारे में बात करते थे। लेकिन ब्लिंकेन ने हाल में तब यह तरीका छोड़ दिया, जब उन्हें महसूस हुआ कि बाइडेन जल्द पुतिन के साथ बैठक कर सकते हैं और उन्होंने सल्लिवेन को जल्द सम्मेलन कराने का निर्देश दे दिया। 

दिलचस्प है कि जिस दिन कैंपबेल शी जिनपिंग पर बरस रहे थे, उस दिन अमेरिका की नई व्यापारिक प्रतिनिधि कैथरीन ताई ने चीन के उपप्रधानमंत्री लियू हे के साथ आभासी बैठक की थी, जिसका विषय चीन और अमेरिका के बीच "व्यापारिक संबंधों की अहमियत पर चर्चा" था।
बैठक के बाद जारी अमेरिकी दस्तावेज कहता है कि दोनों के बीच बैठक काफ़ी स्पष्ट रही। ग्लोबल टाइम्स ने अपनी टिप्पणी में कहा कि "बैठक से एक सकारात्मक संदेश गया है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं तमाम अनिश्चित्ताओं के बावजूद, फिर से संचार कर रही हैं और कई मुद्दों के ऊपर मतभेद सुलझा रही हैं।" अख़बार ने कहा कि बातचीत काफ़ी "स्पष्ट, व्यवहारिक और रचनात्मक" रही और तय हुआ कि दोनों देश आपस में बातचीत जारी रखेंगे।
व्हाइट हॉउस की अफ़सरशाही में कैंपबेल ऊंचे पायदान पर हैं। शी जिनपिंग पर आरोप लगाने के कुछ ही घंटों के भीतर, बाइडेन के कैबिनेट मंत्री ने उन मुद्दों पर गेंद चीनी के पाले में डाल दी, जो अमेरिका-चीन के द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ, बाइडेन की अमेरिकी मध्यवर्ग के लिए बनाई जाने वाली नीतियों के लिए भी अहम हैं।

यहां पुराना 'रूसी सिंड्रोम' सामने आ रहा है। क्रेमलिन (या बीजिंग से भी) अमेरिकी व्यवहार में आंतरिक एकरूपता नहीं है। व्लादिमिर वासिलयेव, मॉस्को की रशियन एकेडमी में इंस्टीट्यूट फॉर यूएस एंड कनेडियन स्टडीज़ में काम करने वाले वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं। उन्होंने हाल में कहा, "बाइडेन का मानना है कि पुतिन के साथ बैठक से उन्हें फायदा होगा, इसके ज़रिए वे यह दिखा सकेंगे कि ना सिर्फ़ ट्रंप, बल्कि वे भी अमेरिका के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाले विदेशी नेताओं के साथ साझा ज़मीन खोज सकते हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "लेकिन लगता है कि ब्लिंकेन आने वाली बातचीत को ज़्यादा संशय की दृष्टि से देख रहे हैं। ऐसी धारणा बन गई है कि रूसी-अमेरिकी संबंधों को अब वाशिंगटन में कई लोग निर्देशित करते हैं। इससे बातचीत में बाधा आ सकती है या यह बातचीत बेनतीज़ा भी ख़त्म हो सकती है।"

रूस पर नज़र रखने वाले अनुभवी और पूर्व अमेरिकी कूटनीतिज्ञ रोस गोट्टेमोएलर स्पष्ट अनुमान लगाते हैं कि जेनेवा सम्मेलन में दोनों नेता द्वारा आपस में काम करने के लिए जरूरी संबंध को विकसित करने की संभावना है, जिससे भविष्य में अमेरिका और रूस के सहयोग की ज़मीन तैयार होगी। गोट्टेमोएलर पहले नाटो में डेप्यूटी सेक्रेटरी जनरल और गृह विभाग में 'अंडर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड इंटरनेशनल सिक्योरिटी' के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं।

वे कहते हैं, "मैं इस सम्मेलन को 1985 में जेनेवा में हुई रीगन और मिखाइल गोर्बाचेव की बैठक की तरह देखता हूं। उन दोनों नेताओं के बीच बहुत सीधी और कठिन बातचीत हुई, लेकिन दोनों ने एक ऐसा काम करने वाला संबंध स्थापित करने में कामयाबी पाई, जिससे बाद में प्रगति के लिए जगह बनी।"

एक बार सुशान सोंटाग ने कहा था, "सोचना औ मारना एक साथ, एक वक़्त पर नहीं किया जा सकता।" रूस और चीन के संबंध में बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों के साथ यही दुविधा नज़र आती है। अमेरिकी विदेश नीति के कुलीनों में चीन और रूस से बहुत डर और घृणा हावी है। बाइडेन का एजेंडा रहेगा कि वे इन अहम संबंधों को स्थिर और अनुमान योग्य बनाएं।

बाइडेन बता चुके हैं कि उनकी विदेश नीति का दृष्टिकोण अमेरिकी मध्यवर्ग से जुड़ा और संचालित होगा। मतलब इसका मक़सद रोज़गार निर्माण, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, इंफ्रास्ट्रक्चर का आधुनिकीकरण और अमेरिकी समाज में समता को निश्चित करना होगा।
इसलिए, एक ऐसे वक़्त में जब अमेरिका के किसान चीन का बाज़ार खो चुके हैं, तब अमेरिका की चीन के साथ व्यापारिक मुद्दों पर बातचीत की पहल को समझा जा सकता है। एक वक़्त यह बाज़ार 24 बिलियन डॉलर का हुआ करता था। चीन और अमेरिका के बीच बाद में होने वाली बातचीत में टैरिफ़ को ख़त्म करना अहम मुद्दा होगा। अनुमान है कि दोनो देश कम से कम टैरिफ़ के वृद्धिशील निष्कासन (इंक्रीमेंटल रिमूवल) पर तो सहमत होंगे। इतना कहना पर्याप्त होगा कि चीन के साथ व्यवहार और संपर्क को अब टाला नहीं जा सकता। 

दूसरी तरफ हाल के सालों में अमेरिकी प्रभुत्व में कमी आई है और रूस व चीन के खिलाफ़ अमेरिकी दबाव ने दोनों देशों को सिर्फ़ एक साथ लाने का ही काम किया है। ना तो चीन और ना ही रूस यह मानता है कि अमेरिका उनसे ताकतवर स्थिति में रहकर बात करने योग्य है। यांग ने मार्च में अलास्का में ब्लिंकेन से यह बात कह दी थी, इसके बाद रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने भी तुरंत यही बात दोहराई थी।

बल्कि बाइडेन के साथ वार्ता के बाद पुतिन चीन जा सकते हैं। 16 जुलाई को चीन-रूस की मित्रता संधि के 20 साल होने वाले हैं। वहीं 1 जुलाई को चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की 100 वीं वर्षगांठ को भी वहां के मीडिया ने दोनों देशों के लिए "दोस्ती भरा मौका" बताया है।

कैंपबेल भूल गए कि अब अमेरिका, रूस और चीन का त्रिभुज अब हेनरी किंसगर के बताए रास्ते पर नहीं चलता। वाशिंगटन की ताकत और वैश्विक प्रभुत्व में आई गिरावट से तय हो गया है  कि अब यूरेशिया, केंद्रीय एशिया, पश्चिमी एशिया और एशिया-प्रशांत जैसे क्षेत्रों में बीजिंग और मॉस्को द्वारा नई क्षेत्रीय व्यवस्थाएं तय करने की घटनाएं बढ़ेंगी।

चाहे उत्तर कोरिया का मामला हो या ईरान का, इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद हो या अफ़गानिस्तान और सीरिया में चल रही जंगों का, अब रूस-चीन के साथ बाइडेन प्रशासन का कूटनीतिक संचार-व्यवहार इसलिए भी जरूरी हो गया है ताकि निष्क्रिय पड़ी और बेहद प्राचीन 'पैक्स अमेरिकाना' वाली वैश्विक व्यवस्था की जगह आने वाली नई व्यवस्था सुचारू ढंग से चल सके।

साभार: इंडियन पंचलाइन

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Biden Wants to Remain Engaged with Russia, China

Joe Biden
China-Russia
Bill Clinton
George W. Bush
Barack Obama
Donald Trump
Chinese President Xi Jinping
US

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

नाटो देशों ने यूक्रेन को और हथियारों की आपूर्ति के लिए कसी कमर


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License