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राजनीति
बिहार चुनाव: व्यापक विपक्षी एकता में देरी और महागठबंधन में वाम दलों की उपेक्षा से हो सकता है नुकसान!
“बिहार में कोई भी बदलाव का नज़ारा वामदलों के बिना संभव ही नहीं है और यह समय की मांग भी है कि विपक्षी महागठबंधन के अन्य दल इन्हें साथ लेकर चलें।”
अनिल अंशुमन
21 Sep 2020
बिहार चुनाव

यह लगभग तय है कि बिहार में तमाम मुश्किलों के बाद भी चुनाव तय समय ही होंगे। विपक्षी दलों की मांग को चुनाव आयोग अनसुना कर चुका है। सत्तारूढ़ भाजपा और जदयू लगभग रोज़ ही धड़ाधड़ वर्चुअल रैली कर रहे हैं। प्रधानमंत्री आचार संहिता लागू होने से पहले बिहार के लिए लुभावनी योजनाओं की ताबड़तोड़ घोषणाएं कर रहे हैं।

इस बीच विपक्ष ने भी कमर कस ली है लेकिन अभी भी महागठबंधन की सूरत साफ नहीं हो पाई है। वाम दलों ने इसी पर चिंता भी जताई है। वाम दलों का कहना है कि वर्तमान की जनविरोधी भाजपा–जदयू गठबंधन सरकार को चुनावी शिकस्त देने के सवाल पर बिहार के सभी वाम दल पूरी मजबूती से एकजुट हैं। फिर भी हम पूरी कोशिश कर रहें हैं कि विपक्षी महागठबंधन और वामदलों का कारगर मोर्चा बन सके।

“मौजूदा हालत में बिहार विधानसभा चुनाव को एक बड़े राजनीतिक–सामाजिक आन्दोलन में तब्दील करने की ज़रूरत है!”, यह कहना है बिहार के प्रमुख वामपंथी दल भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का। गत 17 सितम्बर को पटना में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अतिवृष्टि – बाढ़ से त्रस्त और क़र्ज़ माफ़ी के लड़ रहे बिहार के किसानों, ध्वस्त शैक्षिक स्थिति झेल रहे छात्र – अभिभावकों, रोज़गार से वंचित बदहाल युवा, लॉकडाउन भत्ता व काम मांग रहे हजारों हज़ार प्रवासी मजदूर, सरकार का विश्वासघात और दमन झेल रहे सारे स्कीम वर्कर्स व शिक्षक, छोटे क़र्ज़ माफ़ी को लेकर आन्दोलन कर रहीं गरीब महिलाओं समेत कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण से परेशान हाल सभी लोगों और बिहार को बर्बादी से उबारने के लिए संघर्षरत सभी ताकतों को एक साथ आना होगा।

उन्होंने कहा कि चुनाव में विश्वासघाती भाजपा–जदयू की नीतीश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए ‘ऊपर की एकता’ का इंतज़ार किये बिना नीचे के स्तर पर आन्दोलनों का वृहत मोर्चा बनाने की ज़रूरत है।

दीपंकर ने प्रेस वार्ता के माध्यम से बिहार विधान सभा चुनाव के मद्देनज़र विपक्षी महागठबंधन की कारगर एकता में जारी मतभेद को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि वर्तमान की जन विरोधी सरकार की हार सुनिश्चित करने के लिए विपक्ष की व्यापक और कारगर एकता हो ये बिहार की जनता की चाहत है।

विगत लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन के हुए तालमेल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन की भारी पराजय के अनुभव ने स्पष्ट कर दिया कि वामपंथी दलों को उचित जगह दिए बिना बिहार में कोई भी कारगर विपक्षी एकता नहीं सफल हो सकती। इसलिए इस चुनाव में वामपंथी दलों को साथ किये बगैर कोई निर्णायक गोलबंदी संभव ही नहीं है।

महागठबंधन के मुख्य घटक दल राजद द्वारा दिये जा रहे प्रस्ताव से असहमति जताते हुए कहा उन्होंने कि यह बिहार की व्यापक जन भावना और बिहार की राजनितिक ज़रूरत से कत्तई मेल नहीं खाता है। हम चाहते हैं कि राजद इस पर गंभीरता से विचार करे ताकि सभी विपक्षी दलों में कारगर एकता का निर्माण हो सके।

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि विगत लोकसभा चुनाव के समय विपक्ष द्वारा अपनाई गयी विलंबित और जटिल प्रक्रिया का भारी नुकसानदेह नतीजा हम सभी देख और भुगत चुके हैं। इसलिए हमारी मांग है कि जल्द से जल्द विपक्ष के सभी दलों के बीच तालमेल की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और सम्मानजनक बनायी जाए।

बिहार के दूसरे प्रमुख वामपंथी दल भाकपा के राज्य सचिव ने भी स्पष्ट कहा कि बिहार में कोई भी बदलाव का नज़ारा वामदलों के बिना संभव ही नहीं है और यह समय की मांग भी है कि विपक्षी महागठबंधन के अन्य दल इन्हें साथ लेकर चलें। क्योंकि हम वामपंथी दलों के लोग महज मौसमी राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं हैं जो चुनाव आने पर ही सक्रिय दिखें,  बल्कि साल के 365 दिन हम जनता के सवालों पर ज़मीनी रूप से लगातार संघर्षरत रहते हैं।

वहीं सीपीएम नेता अरुण मिश्रा ने भी विपक्षी एकता में गतिरोध पर चिंता जताते हुए कहा कि बिहार का यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके नतीजे कई राज्यों के होनेवाले विधानसभा चुनावों पर सीधे तौर से असर डालने वाले होंगे। वर्तमान की जनविरोधी भाजपा–जदयू गठबंधन सरकार को चुनावी शिकस्त देने के सवाल पर बिहार के सभी वाम दल पूरी मजबूती से एकजुट हैं। फिर भी हम पूरी कोशिश कर रहें हैं कि विपक्षी महागठबंधन और वामदलों का कारगर मोर्चा बन सके।

दुर्भाग्यपूर्ण सच है कि देश की राजधानी से लेकर प्रायः सभी प्रदेशों की भांति बिहार की भी गोदी मीडिया चुनाव के समय वामपंथी दलों की छवि विशेष रूप से हमेशा कमज़ोर और हास्यास्पद बनकर पेश करती रही है।

लेकिन यह भी इतिहास प्रमाणित है कि दशकों से बिहार में वामपंथी राजनीति की अपनी सतत प्रभावकारी ज़मीनी सक्रियता रही है। प्रदेश का शायद ही ऐसा कोई इलाका हो जहां जनता के विवध सवालों पर वामपंथी पार्टियों और उनके संगठनों के आन्दोलनों से अछूता रहा हो। एक समय ऐसा भी था जब बिहार विधानसभा में दर्ज़नों वामपंथी विधायक हुआ करते थे। यहाँ तक कि लालू प्रसाद यादव की पहली सरकार भी वामपंथी विधायकों के समर्थन से ही बन सकी थी।’80 के दशक में तो नक्सलवादी राजनीति के नेतृत्व में हुए गरीब–भूमिहीन किसानों के जुझारू आन्दोलनों से लगभग पूरा मध्य बिहार ‘धधकते खेत – खलिहान’ में तब्दील हो गया था, जिसने तत्कालीन प्रदेश की राजनीति को न सिर्फ गहरे रूप से प्रभावित किया बल्कि कई नई सामाजिक उथल पुथल को भी जन्म दिया।

उक्त चर्चा का सार यही है कि पूरे हिंदी पट्टी के प्रदेशों में बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां वामपंथी राजनीति और उसके आन्दोलनों की मजबूत ज़मीनी सामाजिक उपस्थिति हमेशा से रही है और आज भी इसे कम करके नहीं आंका जा सकता। जिसने कई बार राज्य औए केंद्र तक की सत्ता सियासत को गहरे तौर से प्रभावित किया है। वर्तमान विधानसभा में वामपंथी दल के रूप में भाकपा माले के तीन विधायकों की उपस्थिति बनी हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में कई स्थानों पर वामपंथी उम्मीदवारों द्वारा प्रतिद्वंदी दलों के उम्मीदवारों को दी गई कड़ी टक्कर को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता।

इस चुनाव में वामपंथी दलों का साफ़ कहना कि उनका चुनावी अभियान महज किसी तात्कालिक चुनावी जोड़तोड़ अथवा तथाकथित ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की बैसाखी पर ही नहीं टिका है।

सनद हो कि पिछले मार्च महीने से ही कोविड–19 महामारी के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन बंदी से मची तबाही और दुर्दशा के बीच भी जनता के विवध सवालों को लेकर सिर्फ वामपंथी दलों व संगठनों के कार्यकर्ता ही सबसे अधिक ज़मीनी तौर पर निरंतर सक्रिय नज़र आये। जबकि अन्य बड़े विपक्षी दल लगभग गायब ही रहे। बिहार के सभी वामपंथी दल सरकार और केन्द्रीय चुनाव आयोग से निरंतर मांग करते रहें हैं कि कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण और बाढ़ से त्रस्त जनता को अभी तत्काल हर स्तर पर सहायता की सख्त ज़रूरत है न कि चुनाव की। बावजूद इसके राज्य में विधानसभा चुनाव हर हाल में कराये जाने को लेकर सरकार व चुनाव आयोग पूरी तरह से आमादा है। जिसमें कई कर्मचारी कोरोना संक्रमित होकर अकाल मौत का शिकार हो चुके हैं।

देखना है कि आदर्श लोकतांत्रिक मर्यादाओं के तहत बिहार के विपक्षी महागठबंधन के प्रमुख घटक दल वामपंथी दलों को कितना सम्मानजनक भागीदारी सुनिश्चित करते हैं और राज्य की संघर्षरत शक्तियों को अपने साथ एकजुट करते हैं!

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