NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार: नीतीश-मोदी की डबल इंजन वाली सरकार ने राज्य को ख़राब वित्तीय हालत में ला खड़ा किया
लोगों को मदद की ज़बरदस्त दरकार के बावजूद राज्य सरकार पैसा ख़र्च करने में असमर्थ है, और सरकार के खुद का कर-राजस्व गिरता जा रहा है।
सुबोध वर्मा
27 Oct 2020
बिहार
प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गठबंधन को एक ऐसे 'डबल इंजन' वाला गठबंधन बताया है, जो राज्य को समृद्धि की राह पर ले जायेगा। लेकिन,राज्य की वित्तीय स्थिति पर एक नज़र डालने पर जो तस्वीर दिखती है, वह अक्षमता और अनदेखी की परेशान करने वाली तस्वीर है। यह सब और ज़्यादा चौंकाने वाला इसलिए है, क्योंकि बिहार लंबे समय से व्यवस्थागत ग़रीबी और पिछड़ेपन से पीड़ित है, और मोदी और नीतीश कुमार, दोनों ही कुछ वर्षों से एक हसीन सपने का वादा कर रहे हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक ओर से प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक़, इस परेशान करने वाली स्थिति का पहला और सबसे अहम लक्षण तो यही है कि यह राज्य एक ऐसे राजस्व अधिशेष का दावा करता है, जिसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। (नीचे दिया गया चार्ट देखें) इसका मतलब यह है कि राज्य साल-दर-साल जितना ख़र्च कर रहा है, उससे ज़्यादा अर्जित कर रहा है। उदाहरण के लिए, पिछले साल 21,517 करोड़ रुपये का भारी भरकम राजस्व अधिशेष था।

image1_0.png

यह बात हैरत पैदा करती है कि, बड़े पैमाने पर कृषि पर आधारित, भूख, अशिक्षा, पुरानी बीमारी की व्यापकता और औद्योगिकीकरण के निम्न स्तर और देश के सबसे ग़रीब राज्यों में से एक इस राज्य का प्रशासन उगाहे गये धन को ख़र्च करने का तरीक़ा नहीं खोज पा रहा है।

देश के कुछ अन्य ग़रीब राज्यों में भी राजस्व अधिशेष हैं,लेकिन यहां तो पिछड़ेपन या शायद नीति निर्माण के दिवालियेपन का एक लक्षण प्रतीत होती है। अजीब बात है कि यहां पैसे तो हैं, लेकिन राज्य सरकार इसे ख़र्च नहीं कर पा रही है।

ख़ुद का गिरता कर-राजस्व

इस बीच, इस विकट स्थिति का एक और पहलू यह है कि 2013-14 से राज्य के कुल कर-राजस्व के स्वयं के हिस्से में गिरावट आ रही है। (नीचे चार्ट देखें) 2019-20 में यह हिस्सा घटकर महज़ 20% रह गया है, जो कि 15 साल पहले की ही तरह है, जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री का पद संभाला था। 2013-14 में अपने उच्चतम बिन्दु पर पहुंचते हुए यह हिस्सा 29% तक बढ़ गया था।

image2_0.png

राज्य सरकारें उन कई करों और शुल्कों के ज़रिये अपने राजस्व का संग्रह करती हैं, जिन्हें वे निर्धारित करती हैं। इनमें आय कर (जैसे पेशेवर लोगों पर लगने वाला कर), संपत्ति कर (जैसे भूमि, टिकट और पंजीकरण शुल्क), वस्तु और सेवा कर (जैसे बिक्री कर, उत्पाद शुल्क, परिवहन, मनोरंजन, राज्य जीएसटी आदि) शामिल हैं। इसके बाद, उनके पास केंद्रीय करों की हिस्सेदारी की वैधानिक प्राप्तियां होती हैं।

2017 में मोदी सरकार की ओर से जीएसटी लागू करने के बाद से ज़्यादातर राज्यों के ख़ुद के कर-राजस्व में गिरावट आयी है। उस उपकर के लिए आंशिक रूप से मुआवज़ा दिया जाता था,जिसे केंद्र सरकार ने इसी उद्देश्य के लिए लगाया था।

लेकिन, उद्योग और आधुनिक सेवा क्षेत्र के नहीं होने और आर्थिक विकास के निम्न स्तर, कर सृजन के निम्न होने के चलते बिहार में ख़ुद के कर-राजस्व में गिरावट आना असल में एक बड़ी समस्या का प्रतिनिधित्व करता है। यह तो हमेशा से ही एक समस्या रही थी, लेकिन डबल इंजन की सरकार में हालात ख़ासतौर पर बदतर हुए हैं।

इस निराशाजनक स्थिति के परिणामस्वरूप नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार बकाया देनदारियों के साथ उधारी पर चल रही है, जो 1.86 लाख करोड़ रुपये की हो गयी है, और जो पिछले पांच वर्षों में 71% तक बढ़ गयी है।

इस बोझ का वहन लोग करते हैं

जदयू-भाजपा सरकार द्वारा प्रदर्शित इस कुप्रबंधन और लकवाग्रस्त स्थिति का असर यह है कि सरकार द्वारा गहन हस्तक्षेप की ज़रूरत वाले प्रमुख क्षेत्रों में भी लगातार गिरावट जारी है। चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय कुल राजस्व व्यय का लगभग 4% पर स्थिर बना हुआ है, जिसकी स्थिति महामारी के चलते शर्मनाक रूप में सामने आयी है। जल आपूर्ति और स्वच्छता का आलम यह है कि इसका प्रचार नीतीश कुमार इस चुनाव अभियान में नये सिरे से कर रहे हैं, लेकिन जब से नीतीश मुख्यमंत्री बने हैं, यानी 2005 से लेकर अब तक इस पर कुल ख़र्च का लगभग 1% ही किया जा रहा है। सिर्फ़ पिछले तीन सालों में ही इस महत्वपूर्ण क्षेत्र पर ख़र्च थोड़ा बढ़कर तक़रीबन 4% हो गया है।

जेडीयू-भाजपा गठबंधन ने ख़ुद को अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) और 'महादलितों' के मसीहा के रूप में चित्रित किया है, लेकिन दलितों और आदिवासियों के कल्याण पर किये जाने वाले ख़र्च पर एक नज़र डालने से दिखता है कि यह पहले पांच वर्षों के कुल ख़र्च के लगभग 1% पर ही स्थिर रहा है, अगले पांच वर्षों में लगभग 4% औसत हो गया और पिछले पांच वर्षों में लगभग 2% तक गिर गया है।

ख़ास तौर पर बच्चों और शिशुओं के बीच व्यापक रूप से मौजूद भूख और कुपोषण को लेकर यह उम्मीद की जाये कि बिहार सरकार सबसे ज़्यादा जरूरतमंद वर्गों को ज़रूरी पोषण मुहैया कराने पर कुछ और पैसा ख़र्च करे। हालांकि, पिछले 15 वर्षों के जदयू-भाजपा शासन के पोषण पर ख़र्च तक़रीबन 1-2% के आस-पास रहा है।

इस तरह की उदासीनता दिखाने और अनदेखी करने वाले नीतीश कुमार ख़ुद को भले ही ‘सुशासन बाबू’ के तौर पर पेश करते हों,लेकिन वे पूरी तरह से नाकाम हो गये हैं। और, बीजेपी इस नाकामी में नीतीश कुमार के साथ रही है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bihar: Ni-Mo Double Engine Leaves State Finances in Mess

Bihar Assembly Polls
Sushasan Babu
jdu
BJP
RJD
Nitish Kumar
Malnutrition in Bihar

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    जम्मू-कश्मीर परिसीमन से नाराज़गी, प्रशांत की राजनीतिक आकांक्षा, चंदौली मे दमन
    07 May 2022
    हफ़्ते की बात के इस अंक में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश बात कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर के परिसीमन की। साथ ही वे नज़र डाल रहे हैं प्रशांत किशोर की राजनीतिक सियासत की।
  • रवि शंकर दुबे
    तीन राज्यों में उपचुनाव 31 मई को: उत्तराखंड में तय होगा मुख्यमंत्री धामी का भविष्य!
    07 May 2022
    चुनाव आयोग ने तीन राज्यों की तीन सीटों पर विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित कर दी है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तराखंड की चंपावत सीट को माना जा रहा है। क्योंकि यहां से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी…
  • पीपुल्स डिस्पैच
    पाकिस्तान में बलूच छात्रों पर बढ़ता उत्पीड़न, बार-बार जबरिया अपहरण के विरोध में हुआ प्रदर्शन
    07 May 2022
    राष्ट्रीय राजधानी इस्लामाबाद में पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) के परिसर से दिन दहाड़े एक बलूच छात्र बेबाग इमदाद को उठाए जाने के बाद कई छात्र समूहों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया।
  • राहुल कुमार गौरव
    पिता के यौन शोषण का शिकार हुई बिटिया, शुरुआत में पुलिस ने नहीं की कोई मदद, ख़ुद बनाना पड़ा वीडियो
    07 May 2022
    पीड़ित बेटी ने खुद अपने पिता की गंदी करतूत का वीडियो बनाया और फिर उसे लेकर थाने पहुंची। पीड़ित की शिकायत के बाद पुलिस ने गुरुवार को 50 वर्षीय आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन पीड़िता को अपने…
  • सुबोध वर्मा
    ओडिशा: अयोग्य शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित होंगे शिक्षक
    07 May 2022
    शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उपलब्ध 8 कॉलेजों में 62 फैकल्टी हैं, जिनमें से सिर्फ 20 रेगुलेटरी बॉडी की योग्यता के मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License