NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
अपराध
भारत
राजनीति
बिजनौर: क्या राष्ट्रीय स्तर की होनहार खिलाड़ी को चुकानी पड़ी दलित-महिला होने की क़ीमत?
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि अनुसूचित जातियों के साथ अपराध के मामलों में साल 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। राज्यों में सबसे ज़्यादा 2,378 मामले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज किए गए हैं।
सोनिया यादव
13 Sep 2021
बिजनौर: क्या राष्ट्रीय स्तर की होनहार खिलाड़ी को चुकानी पड़ी दलित-महिला होने की क़ीमत?
फ़ोटो साभार: अमर उजाला

उत्तर प्रदेश का बिजनौर जिला एक बार फिर हत्या और दुष्कर्म की खबरों को लेकर सुर्खियों में है। मामला इस बार एक राष्ट्रीय स्तर की पूर्व खो-खो खिलाड़ी की हत्‍या का है। परिजन हत्या के साथ ही बलात्कार की आशंका भी जता रहे हैं। लेकिन जांच के नाम पर फिलहाल पुलिस के हाथ खाली हैं। तीन दिन बीत जाने के बाद भी इस केस में अभी तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न ही पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग लगा है।

आपको बता दें कि लड़की का शव बिजनौर रेलवे स्टेशन पर बीते शुक्रवार दोपहर दो बजे के आस-पास पाया गया। इस घटना को लेकर कई घंटों तक स्थानीय सिविल थाना और रेलवे पुलिस आपस में मुकदमा दर्ज करने को लेकर सीमा विवाद में उलझी रहीं। आखिरकार जीआरपी यानी राजकीय रेलवे पुलिस थाने में मामला तब दर्ज हुआ जब स्थानीय लोगों के सब्र का बांध टूट गया और लोगों का गुस्सा भड़क पड़ा।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक मृतका 24 वर्षीय राष्ट्रीय स्तर की पूर्व खो-खो खिलाड़ी थी, जो शुक्रवार, 10 सितंबर की दोपहर घर से स्थानीय राजकीय इंटर कॉलेज में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने निकली थी। उसके बाद वो देर शाम तक घर नहीं लौटी। परिवार ने जब उसका नंबर डायल किया तो उसका फोन भी स्विच ऑफ था।

इसके बाद रेलवे स्टेशन के रास्ते से गुजर रही लड़की की पड़ोसी ने उसे अचेत अवस्था में देखा तो परिवारवालों को इसकी सूचना दी। पीड़िता का घर घटनास्थल से महज 30 मीटर की दूरी पर है। पीड़िता के गले में दुपट्टा बंधा हुआ था। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बाद में पुलिस जीआरपी और आरपीएफ की टीम मौके पर पहुंची।

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मृतका उत्तराखंड के श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल से बीपीएड में द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। कोरोना महामारी के दौरान कॉलेज बंद होने पर वह घर आई हुई थी। इसी दौरान उसे एक स्कूल में खेल शिक्षिका की नौकरी मिल गई थी। हालांकि अभी वो और बेहतर नौकरी की तलाश में थीं, इसलिए घटना वाले दिन वो इंटरव्यू देने के लिए एक स्कूल जाने की बात कहकर घर से निकली थी।

परिजनों के अनुसार मृतका शुरू से ही खेलों में शानदार थीं। उसने 10वीं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज बिजनौर से वर्ष 2011 और 2013 में पूरी की थी। इसके बाद स्नातक वर्धमान डिग्री कॉलेज से किया। उसने 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर खेला और 2017 में राज्य स्तरीय टूर्नामेंट में प्रदर्शन किया था।

पुलिस क्या कह रही है?

पुलिस के इस मामले में शव के पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि मृतका के साथ बलात्कार या अन्य कोई अपराध नहीं पाया गया है। मामले की जांच के लिए चार टीमें गठित कर दी गई हैं। हालांकि मुकदमे में धारा 376 के अलावा 354 भी शामिल है।

बिजनौर के एसपी डॉक्टर धर्मवीर ने मीडिया से कहा, ''पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण गला घोंटना पाया गया है। दो डॉक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया है। फ़ोटोग्राफ़ी, वीडियोग्राफी भी हुई है। इस पैनल में एक महिला चिकित्सक भी शामिल रही हैं।

होनहार खिलाड़ी को चुकानी पड़ी दलित-महिला होने की क़ीमत!

गौरतलब है कि मृतका दलित परिवार से ताल्लुक रखती थी। इससे पहले भी बीते सप्ताह बिजनौर से ही एक चार साल की मासूम दलित बच्ची के साथ गांव के एक जातिवादी गुंडे द्वारा घर में घुसकर रेप करने की खबर सामने आई थी। ये सिर्फ एक जिले का नहीं बल्कि प्रदेश के सभी 75 जिलों का हाल है। राज्य में दलित महिलाओं से हिंसा, कथित उत्पीड़न और उनके घरों में तोड़-फोड़ की घटनाएं लगातार सामने आती रही हैं।

इस घटना के बाद एक बार फिर दलितों के शोषण-उत्पीड़न पर सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि आज़ादी के सात दशकों बाद भी आज दलित सामनता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। साल दर साल की ऐसी कई घटनाओं का जिक्र होने लगा जो दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा की एक नई कहानी बयां करती हैं।

साल 2015 में राजस्थान के डंगावास में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा की खबर हो या 2016 में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या। इसी साल तमिलनाडु में 17 साल की दलित लड़की का गैंगरेप और हत्या राष्ट्रीय सुर्खी बना। 2017 में सहारनपुर हिंसा,  2018 में भीमा कोरेगांव हिंसा जिसकी जांच में कई नागरिक समाज और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी भी हुई। साल 2019 में डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या की पूरे देश में चर्चा हुई लेकिन सिलसिला फिर भी रुका नहीं। साल 2020 में हाथरस की घटना और आंदोलन को भला कौन भूल सकता है।

अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों की बात करें तो वो भी यही बयां करते हैं कि दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामले कम होने के बजाय बढ़े हैं।

एनसीआरबी के भारत में अपराध के साल 2019 के आँकड़े कहते हैं कि अनुसूचित जातियों के साथ अपराध के मामलों में साल 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जहां 2018 में 42,793 मामले दर्ज हुए थे वहीं, 2019 में 45,935 मामले सामने आए।

इनमें सामान्य मारपीट के 13,273 मामले, अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) क़ानून के तहत 4,129 मामले और रेप के 3,486 मामले दर्ज हुए हैं।

राज्यों में सबसे ज़्यादा मामले 2,378 उत्तर प्रदेश में और सबसे कम एक मामला मध्य प्रदेश में दर्ज किया गया है। अनुसूचित जनजातियों के ख़िलाफ़ अपराध में साल 2019 में 26.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जहां 2018 में 6,528 मामले सामने आए थे वहीं, 2019 में 8,257 मामले दर्ज हुए हैं।

UttarPradesh
bijnor
Casteism
Caste Violence
Dalits
Attack on dalits
Scheduled Caste
lower caste
Yogi Adityanath
crimes against women
women safety

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

बागपत: भड़ल गांव में दलितों की चमड़ा इकाइयों पर चला बुलडोज़र, मुआवज़ा और कार्रवाई की मांग

मेरे लेखन का उद्देश्य मूलरूप से दलित और स्त्री विमर्श है: सुशीला टाकभौरे


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    शहरों की बसावट पर सोचेंगे तो बुल्डोज़र सरकार की लोककल्याण विरोधी मंशा पर चलाने का मन करेगा!
    25 Apr 2022
    दिल्ली में 1797 अवैध कॉलोनियां हैं। इसमें सैनिक फार्म, छतरपुर, वसंत कुंज, सैदुलाजब जैसे 69 ऐसे इलाके भी हैं, जो अवैध हैं, जहां अच्छी खासी रसूखदार और अमीर लोगों की आबादी रहती है। क्या सरकार इन पर…
  • रश्मि सहगल
    RTI क़ानून, हिंदू-राष्ट्र और मनरेगा पर क्या कहती हैं अरुणा रॉय? 
    25 Apr 2022
    “मौजूदा सरकार संसद के ज़रिये ज़बरदस्त संशोधन करते हुए RTI क़ानून पर सीधा हमला करने में सफल रही है। इससे यह क़ानून कमज़ोर हुआ है।”
  • मुकुंद झा
    जहांगीरपुरी: दोनों समुदायों ने निकाली तिरंगा यात्रा, दिया शांति और सौहार्द का संदेश!
    25 Apr 2022
    “आज हम यही विश्वास पुनः दिलाने निकले हैं कि हम फिर से ईद और नवरात्रे, दीवाली, होली और मोहर्रम एक साथ मनाएंगे।"
  • रवि शंकर दुबे
    कांग्रेस और प्रशांत किशोर... क्या सोचते हैं राजनीति के जानकार?
    25 Apr 2022
    कांग्रेस को उसकी पुरानी पहचान दिलाने के लिए प्रशांत किशोर को पार्टी में कोई पद दिया जा सकता है। इसको लेकर एक्सपर्ट्स क्या सोचते हैं।
  • विजय विनीत
    ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?
    25 Apr 2022
    "चंदौली के किसान डबल इंजन की सरकार के "वोकल फॉर लोकल" के नारे में फंसकर बर्बाद हो गए। अब तो यही लगता है कि हमारे पीएम सिर्फ झूठ बोलते हैं। हम बर्बाद हो चुके हैं और वो दुनिया भर में हमारी खुशहाली का…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License