NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
लैटिन अमेरिका
बोलिवियाः अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों ने 'इलेक्टोरल फ्रॉड' साजिश का खुलासा किया
अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों ने संकेत दिया है कि चुनाव परिणामों के दौरान दिखाए गए रुझान दुनिया भर में काफी सामान्य हैं। उन्होंने इस झूठ को दोहराने के लिए ओएएस, अमेरिकी सरकार और मीडिया की भी निंदा की है।
पीपल्स डिस्पैच
23 Nov 2019
bolivia

बोलिविया में 20 अक्टूबर को आए चुनाव नतीजे में हुई धांधली की आलोचना करते हुए दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों ने एक खुला पत्र लिखा है। इस चुनाव में ईवो मोरालेस फिर से सत्ता में वापस आए थे। इस तख्तापलट को वैध ठहराने के लिए कई लोगों द्वारा चुनावी धोखाधड़ी का तर्क दिया गया है जिसके चलते मोरालेस को सत्ता छोड़नी पड़ी है और बोलिविया के लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़क गई है। उनके द्वारा लिखा गया पत्र नीचे दिया गया है।

हस्ताक्षर करने वाले हम सभी यह मांग करते हैं कि बोलिविया के लोकतांत्रिक संस्थानों और प्रक्रियाओं का सम्मान किया जाए।

ट्रम्प प्रशासन ने 10 नवंबर के सैन्य तख्तापलट का खुलकर समर्थन किया जिसने राष्ट्रपति इवो मोरालेस की सरकार को उखाड़ फेंका। हर कोई इस बात से सहमत है कि मोरालेस को 2014 में लोकतांत्रिक रूप से चुना गया था और उनका कार्यकाल 22 जनवरी से पहले समाप्त नहीं हो सकता है; फिर भी ऐसा लगता है कि ट्रम्प प्रशासन के बाहर अभी भी कई लोग ट्रम्प-समर्थित सैन्य तख्तापलट को स्वीकार करते हैं।

फर्जी कहानी की एक समस्या रही है कि बोलिविया में 20 अक्टूबर को हुए राष्ट्रीय चुनाव में मोरालेस पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया। चुनावों के अगले दिन यानी 21 अक्टूबर को बोलिविया में ऑर्गनाइजेशन अमेरिकन स्टेट्स (ओएएस) इलेक्टोरल ऑब्जर्वेशन मिशन के एक प्रेस विज्ञप्ति में लिखा गया कि "चुनाव समाप्त होने के बाद शुरुआती नतीजे की प्रवृत्ति में अधिक और अस्पष्ट बदलाव को लेकर गहरी चिंता और आश्चर्य है"।

इससे पता चला कि किसी तरह की धोखाधड़ी हुई थी और हालांकि ओएएस ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया फिर भी प्रमुख मीडिया ने 21 अक्टूबर से लगभग हर दिन धोखाधड़ी के आरोपों की रिपोर्ट की है जिसमें ओएएस के निराधार बयानों का बार-बार हवाला दिया गया है।

वास्तव में, चुनाव के आंकड़ों के साथ दिखाना आसान है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है कि मोरालेस की बढ़त में परिवर्तन न तो "अधिक" था और न ही "अस्पष्ट"। जब 84 प्रतिशत वोट गिने जा चुके थे तो वोट परिणामों की "त्वरित गणना" धीमी हो गई और मोरालेस की बढ़त 7.9 प्रतिशत अंकों पर रही।

95 प्रतिशत तक उनका मार्जिन 10 प्रतिशत से अधिक हो गया जिसने मोरालेस को पहले राउंड में आखिरी गिनती तक पहुंचे बिना जीत दिला दिया। अंत तक, आधिकारिक गणना में 10.6 प्रतिशत की बढ़त देखी गई। (ओएएस द्वारा हवाला दिए गए "त्वरित गणना" के विपरीत आधिकारिक गणना कानूनी रूप से बाध्यकारी वोट गणना है और इसे रद्द नहीं किया गया था।)

चुनाव परिणामों को स्थान के हिसाब से तोड़-मरोड़ करना असामान्य नहीं है जिसका मतलब है कि विभिन्न क्षेत्रों के मतों की गणना के आधार पर परिणाम बदल सकते हैं। लुइसियाना के 16 नवंबर के चुनाव में धोखाधड़ी के मामले में किसी ने यह तर्क नहीं दिया जब डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जॉन बेल एडवर्ड्स ने पूरी रात पीछे रहने के बाद 2.6 प्रतिशत अंक की जीत हासिल की क्योंकि वह ऑरलियन्स काउंटी में 90 प्रतिशत वोट से जीते थे जो गिनती के आखिर में सामने आया।

और मोरालेस की बढ़त में परिवर्तन कोई "अधिक" नहीं था; यह रुकावट से पहले घंटों के भीतर मोरेलेस की बढ़त में एक स्थिर, निरंतर वृद्धि का हिस्सा था।
graph_0.JPG
ये ग्राफ दर्शाता है कि राष्ट्रपति इवो मोरालेस (हल्के नीले डॉट्स) और उनकी पार्टी द्वारा हासिल बढ़त संसदीय चुनावों में (गहरे नीले रंग के डॉट्स) किए गए मतगणना में स्थिर दर से बढ़ी है। उन्हें 10 प्रतिशत की सीमा से उपर पहुंचने के लिए अचानक कोई उछाल नहीं मिला था।

इसलिए मोरालेस के मार्जिन में वृद्धि के लिए स्पष्टीकरण काफी सरल था: बाद के रिपोर्टिंग क्षेत्र पूर्व-रिपोर्टिंग क्षेत्रों की तुलना में अधिक मोरालेस समर्थक थे।

वास्तव में सामने आए पहले 84 प्रतिशत मतों के आधार पर अंतिम परिणाम काफी अनुमानित था। यह सांख्यिकीय विश्लेषण के माध्यम से दिखाया गया है और बाद के और पूर्व-रिपोर्टिंग क्षेत्रों के बीच राजनीतिक प्राथमिकताओं में अंतर को सरल विश्लेषण द्वारा भी दिखाया गया है।

हम ओएएस से चुनाव के बारे में उसके भ्रामक बयानों को वापस लेने की मांग करते हैं जिसने राजनीतिक संघर्ष में मदद किया है और सैन्य तख्तापलट को सही ठहराया है। हम संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस से ओएएस के इस व्यवहार की जांच करने की मांग करते हैं और साथ ही सैन्य तख्तापलट जिसे ट्रम्प प्रशासन हमेशा मदद कर रही है और जारी हिंसा तथा मानवाधिकारों के उल्लंघन का विरोध करने के लिए कहते हैं।

मीडिया घरानों और पत्रकारों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे स्वतंत्र विशेषज्ञों की तलाश करें जो कम से कम चुनाव के आंकड़ों से परिचित हों ताकि जो कुछ हुआ उसका स्वतंत्र विश्लेषण कर सकें बजाय इसके कि ओएएस अधिकारियों के बयानों को लें जिन्होंने इस चुनाव के बारे में बार-बार गलत तरीके से आंकड़ों को दिखाया है।

हस्ताक्षर करने वालों में शामिल लोगों के नाम नीचे दिए गए हैंः

जेम्स गैलब्रेथ, टेक्सास विश्वविद्यालय, ऑस्टिन

डीन बेकर, संस्थापक, वरिष्ठ अर्थशास्त्री, सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड पॉलिसी रिसर्च

थिया ली, इकोनॉमिक पॉलिसी इंस्टिच्यूट

एलीन एपेलबौम, सह-निदेशक, सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड पॉलिसी रिसर्च

जॉन श्मित, इकोनॉमिक पॉलिसी इंस्टिच्यूट

बेन जिपरर, इकोनॉमिक पॉलिसी इंस्टिच्यूट

जेफ फॉक्स, संस्थापक, प्रतिष्ठित फैलो, इकोनॉमिक पॉलिसी इंस्टिच्यूट

मार्क वेइसब्रोट, संस्थापक, सह-निदेशक, सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड पॉलिसी रिसर्च

स्टेफ़नी सेगिनो, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ वरमोंट

डेविड रोसनिक, अर्थशास्त्री, सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड पॉलिसी रिसर्च

लारा मरलिंग, इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन कंफेड्रेशन

डब्ल्यू मेसन, जॉन जे कॉलेज, सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क

पंकज मेहता, भौतिकी के एसोसिएट प्रोफेसर, हरीरी इंस्टीट्यूट फॉर कंप्यूटिंग, बोस्टन विश्वविद्यालय

एंड्रिया कैलिफ़ानो, आईयूएसएस पाविया

जयति घोष, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली

क्रिश्चियन पेरेंती, जॉन जे कॉलेज, सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क

इसाबेल ऑर्टिज़, अध्यक्ष, ग्लोबल सोशल जस्टिस


साभार: पीपल्स डिस्पैच

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Economists and Statisticians Debunk ‘Electoral Fraud’ Conspiracy in Bolivia

bolivia
Right wing coup in Bolivia
Evo Morales
Coup in Bolivia
Donald Trump
Jeanine Añez
Movement for Socialism
Organization of American States
OAS
US backed coup in Bolivia

Related Stories

क्या चिली की प्रगतिशील सरकार बोलीविया की समुद्री पहुंच के रास्ते खोलेगी?

ईरान नाभिकीय सौदे में दोबारा प्राण फूंकना मुमकिन तो है पर यह आसान नहीं होगा

"यह हमारे अमेरिका का वक़्त है" : एएलबीए अर्जेंटीना में करेगा तीसरी महाद्वीपीय बैठक

पत्रकारिता एवं जन-आंदोलनों के पक्ष में विकीलीक्स का अतुलनीय योगदान 

एक साल पहले हुए कैपिटॉल दंगे ने अमेरिका को किस तरह बदला या बदलने में नाकाम रहा

2021 : चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका की युद्ध की धमकियों का साल

दुनिया क्यूबा के साथ खड़ी है

रिपोर्ट के मुताबिक सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की जलवायु योजनायें पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा कर पाने में विफल रही हैं 

बोलिवियाई लोगों को तख्तापलट करने वाली नेता जीनिन आनेज़ के जेल से भागने की आशंका

वे क्यूबा के बारे में क्या नहीं बताते हैं


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License