NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पुस्तकें
‘शाहीन बाग़; लोकतंत्र की नई करवट’: एक नई इबारत लिखती किताब
दिल्ली में पत्रकार भाषा सिंह की नई किताब ‘शाहीन बाग़ : लोकतंत्र की नई करवट’ का विमोचन और चर्चा। वक्ताओं ने कहा, "यह किताब एक ज़िन्दा दस्तावेज़ है, जो शाहीन बाग़ को हमेशा ज़िन्दा रखेगी।"
राज वाल्मीकि
31 Dec 2021
Shaheen Bagh : Loktantra Ki Nai Karavat
नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में किताब ‘शाहीन बाग़; लोकतंत्र की नई करवट’ का लोकार्पण। 

“हम सबने शाहीन बाग़ को जिया है। पर मेरे लिए शाहीन बाग़ को लिखना अपने वतन और जम्हूरियत को महसूस करना था"। ये कहना है “शाहीनबाग़ : लोकतंत्र की नई करवट” की लेखिका और वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह का। उन्होंने कहा कि “मैंने वहां संविधान का preamble लिखा देखा। वहां गांधी, आंबेडकर, सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख़ की तस्वीरों को देखा। वहां नानियों, दादियों और बच्चियों की ताकत को महसूस किया। नागरिक होने का क्या मतलब है, अपने अधिकारों के लिए कैसे लड़ा जाता है। यह शाहीन बाग़ ने हमें सिखाया"।

यह बातें उन्होंने अपनी पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर कहीं। पुस्तक का लोकार्पण 30 दिसम्बर 2021 को नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में किया गया।

इस मौके पर योजना आयोग की पूर्व सदस्य डॉ. सईदा हमीद ने कहा कि "मैंने 1997 में मुसलमान औरतों पर काम किया। राष्ट्रीय महलिया आयोग में काम करते समय मैंने “बेआवाज़ों की आवाज़” नाम से जनसुनवाई की। मैं शाहीन बाग़ में रहती हूँ। पहली बार मुसलमान औरतों को इस तरह सुना। वहां औरतों की ताक़त का पता चला। वहां मुसलमान औरतों ने प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए कहा –“हम तुम्हें क्यों बताएं कि हमारे दादा-पिता कहां से आए।क्या हमने तुमसे पूछा कि तुम और तुम्हारे पुरखे कहां से आए?”

उन्होंने भाषा सिंह की इस पुस्तक के लिए सराहना करते हुए कहा कि ये किताब एक ज़िन्दा दस्तावेज़ है। पुस्तक शाहीन बाग़ को हमेशा ज़िन्दा रखेगी।

वरिष्ठ पत्रकार और 'द वायर' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि मौजूदा हालात में इस तरह की किताब प्रकाशित करना साहस का काम है। उन्होंने कहा कि हिंदुत्ववादी ताक़तों ने पूरी कोशिश की थी शाहीन बाग़ आंदोलन को हिंसा में बदलने की। कुछ हद तक वे सफल भी हुए, लेकिन इसे तोड़ नहीं पाए। लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होने के लिए इस पुस्तक के रूप में भाषा जी का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए इस किताब पर जगह-जगह चर्चा की जानी चाहिए।

इस अवसर पर वरिष्ठ लेखक और कवि अजय सिंह ने कहा कि "किताब बहुत ज़िन्दादिली से, मन से, लगन से, संवेदना और जुड़ाव से लिखी गई है। शाहीन बाग़ से हम सब का जुड़ाव रहा है। यह नए भारत की खोज का आंदोलन था। लोकतंत्र की नई परिभाषा शाहीन बाग़ ने दी। जिसका प्रतिबिम्ब किसान आंदोलन में दिखा। शाहीन बाग़ ने एक नवजागरण खड़ा किया जिसने पितृसत्ता और फ़ासीवाद को चुनौती दी। यह स्त्रियों द्वारा संचालित पूरे भारत के लिए आंदोलन था। इसने लोकतंत्र की नई करवट ही नहीं ली बल्कि लोकतंत्र की नई इबारत भी लिखी।"

शाहीन बाग़ की ही रहने वालीं डॉ. जरीन हलीम ने अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि "शाहीन बाग़ में मेरा नर्सिंग होम है। मैंने शाहीन बाग़ आंदोलन को करीब से देखा है। यह आन्दोलन सबके लिए फ़ख़्र की बात है। यहाँ मुसलमान औरतों ने यह साबित किया कि हम मुस्लिम हैं लेकिन इस देश के हैं। ये देश हमारा है।" उन्होंने पुस्तक की लेखिका की तारीफ़ करते हुए कहा कि "मैंने देखा है कि भाषा सिंह ने बहुत बहादुरी से शाहीन बाग़ आंदोलन को बतौर पत्रकार कवर किया। उनकी कवरेज काबिले-तारीफ़ रही। शाहीन बाग़ को सत्ता की तरफ से काफी डराने–धमकाने का प्रयास किया पर शाहीन बागी औरतों ने यह साबित कर दिया कि अपने हक़ के लिए कभी डरना नहीं चाहिए"। इस अवसर पर उन्होंने शाहीन बाग़ की औरतों की प्रशंसा में एक कविता भी सुनाई।

वैज्ञानिक और शायर गौहर रज़ा ने अपनी नज़्म से बात शुरू की– “जब सब ये कहें कि खामोश रहो, जब सब ये कहें कि कुछ न कहो, ...तब उनको कहो अल्फ़ाज़ अभी तक ज़िन्दा हैं, तब उनको कहो आवाज़ उठाना लाज़िम है... ।" उन्होंने कहा कि भाषा सिंह पत्रकार के रूप में देश में घूम-घूम कर सच्चाई सबके सामने लाती रही हैं और यही इस किताब में किया है।

उन्होंने कहा कि शाहीन बाग़ का सबसे अच्छा सन्देश है कि बिना हिंसा किए सत्ता को झुकाया जा सकता है। भाषा सिंह ने किसान आंदोलन को भी बहुत खूबसूरती से कवर किया है। इस कड़ी में वे किसान आंदोलन पर भी पुस्तक लिखें। उन्होंने किताब की ज़बान की तारीफ़ करते हुए कहा कि किताब की भाषा ऐसी है कि दिल से निकले और दिल में उतरे।

यह पुस्तक राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने भी अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन राजकमल की ओर से धर्मेंद्र सुशांत ने किया।

पुस्तक का आवरण फोटो पत्रकार सर्वेश का है। पुस्तक में आंदोलन के दौरान की कई तस्वीरें और पोस्टर दिए गए हैं, जो अपने आप में एक पूरी कहानी कह देते हैं।

ग़ौरतलब है कि दिसंबर, 2019 में शाहीन बाग़ आंदोलन नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में शुरू हुआ था और क़रीब 101 दिन चला।

सरकार पर सीधा आरोप है कि इस अधिनियम के माध्यम से वह मुसलमानों के अपने ही देश में बेगाना बनाना चाहती है। असहमति और विरोध के स्वरों को कुचलना चाहती है। यह क़ानून वास्तव में आरएसएस-बीजेपी की हिंदू राष्ट्र परियोजना का ही एक हिस्सा है।

एक ऐतिहासिक आंदोलन को दर्ज करती हुई यह पुस्तक वास्तव में एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ बन जाती है और पाठकों को लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों को बचाने के लिए प्रेरित करती है।

किताब के लोकार्पण कार्यक्रम में सीपीआई महासचिव डी राजा, वरिष्ठ लेखिका अरुंधति राय, एनएफआईडब्लू की महासचिव एनी राजा, राजद के राज्यसभा सदस्य मनोज झा, सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के संयोजक बेजवाड़ा विल्सन, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक देबाशीष मुखर्जी, टेलीग्राफ अख़बार की पूर्व स्थानीय संपादक मानिनी चैटर्जी, कवि-संस्कृतिकर्मी शोभा सिंह, पुरानी दिल्ली लाइब्रेरी के मो. तकी, नाटककार राजेश कुमार, शाहीन बाग मंच संचालन से जुड़ी ऋतु कौशिक, अर्थशास्त्री नवशरण, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक अतुल सूद, लखनऊ के पत्रकार असद रिज़वी, जनचौक के संपादक महेंद्र मिश्र, लेखक रचना त्यागी, सामाजिक कार्यकर्ता सना सुल्तान व पूनम डिंगवाल के साथ बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित पत्रकार और सामाजिक संगठनों से जुड़े गणमान्य लोग शामिल हुए।

Shaheen Bagh : Loktantra Ki Nai Karavat
Book
Shaheen Bagh

Related Stories

किताब: यह कविता को बचाने का वक़्त है

'नथिंग विल बी फॉरगॉटन' : जामिया छात्रों के संघर्ष की बात करती किताब

लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्याप्त खामियों को उजाकर करती एम.जी देवसहायम की किताब ‘‘चुनावी लोकतंत्र‘‘

2021 : महिलाओं ने की लेखन, कविता, फ़्री स्पीच और राजनीति पर बात

पृथ्वी पर इंसानों की सिर्फ एक ही आवश्यक भूमिका है- वह है एक नम्र दृष्टिकोण की

सतत सुधार के लिए एक खाका पेश करती अंशुमान तिवारी और अनिंद्य सेनगुप्ता की किताब "उल्टी गिंनती"

रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य पुरस्कार 2021, 2022 के लिए एक साथ दिया जाएगा : आयोजक

तरक़्क़ीपसंद तहरीक की रहगुज़र :  भारत में प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन का दस्तावेज़

समीक्षा: तीन किताबों पर संक्षेप में

मास्टरस्ट्रोक: 56 खाली पन्नों की 1200 शब्दों में समीक्षा 


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License