NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
बन रहा है सपनों का मंदिर मगर ज़िंदगी का असली संघर्ष जारी
अपनी जीवन, भविष्य और आजीविका पर हो रहे अत्याचारों से जूझने के लिए लाखों कामगार पिछले कुछ महीनों से ताक़त इकट्ठा कर रहे हैं।
सुबोध वर्मा
07 Aug 2020
बन रहा है सपनों का मंदिर मगर ज़िंदगी का असली संघर्ष जारी
(बाएं) 21 अप्रैल को हुए एक देशव्यापी प्रदर्शन में प्रवासी मज़दूरों के लिए वित्तीय सहायता और सूखे राशन की मांग करते हुए तख्ती उठाए प्रदर्शनकारी। (फाइल फोटो) (दाएं) पीएम नरेंद्र मोदी का 5 अगस्त को अयोध्या में हुआ "भूमि पूजन" कार्यक्रम। (तस्वीर: फायनेंशियल)

मध्यमवर्ग के ज़्यादातर भारतीय नहीं जानते कि इस वक़्त एक ऐसा तूफान अपने बनने के क्रम में है, जो देर-सवेर हमारी दुनिया में पहुंचेगा। दरअसल मध्यमवर्गीय लोग टीवी चैनल और सोशल मीडिया की अपने बुलबुले में ही मशगूल रहते हैं।

इस आने वाले तूफान की एक तस्वीर 9 अगस्त में देखने को मिलेगी। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सुनहरे वस्त्रों में अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन करने के महज पांच दिन के भीतर ही इसकी झलक दिखेगी। आपको याद होगा कि 9 अगस्त को '1942 के आंदोलन की याद में भारत छोड़ो दिवस' के तौर पर मनाया जाता रहा है। उस आंदोलन में भारतीय लोगों ने औपनिवेशिक शासकों को भगाने के लिए अंतिम जोर लगाया था। इस साल 9 अगस्त को लाखों कामग़ार, कर्मचारी, कृषि कामग़ार, असंगठित क्षेत्र के कामग़ार, सरकारी योजनाओं से जुड़े कामग़ार औऱ किसान पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करेंगे। उनकी मांग आर्थिक मदद, ज़्यादा अनाज, ज़्यादा नौकरियां, निजीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचे जाने की प्रवृत्तियों और प्रावधानों के खात्मे के साथ-साथ इसी तरह की मांगे हैं। इन मांगों का संबंध उनकी आजीविका और भविष्य से है। यह लोग बीजेपी और आरएसएस द्वारा फैलाई जाने वाले धार्मिक विभाजन के खिलाफ़ कामग़ार वर्ग की एकजुटता भी दिखाएंगे।

मंदिर निर्माण आंदोलन के पुरोधा जैसा कहते आए हैं, भूमि पूजन के ज़रिए एक सपना सच हुआ है। बल्कि इस आंदोलन ने कई लोगों को सत्ता दिलवाई है, जो किसी भी सपने के परे थी। लेकिन यह उन लोगों को बेचा जाने वाला सपना भी है, जो इस महामारी में जिंदा रहने के लिए छटपटा रहे हैं, इस महामारी में रिकॉर्ड बेरोज़गारी बढ़ी है, आय में भी काफ़ी कमी आई है, अर्थव्यवस्था बेहद धीमी हो चुकी है और कृषि लगातार घाटे का काम बनती जा रही है, जिससे लाखों किसान तबाही की कगार पर आ गए हैं। फिर इस साल कोरोना वायरस का हमला भी हुआ। चार महीनों में करीब़ 20 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 40,000 की मौत भी हो चुकी है। यह एक अभूतपूर्व आपदा है, जो मोदी सरकार की नेतृत्व के रुग्ढ़ रवैये से और भी ज़्यादा अभूतपूर्व हो गई। यह एक ऐसी सरकार है, जिसने खुद को मजबूत और फैसले लेने वाली सरकार दिखाना चाहा, लेकिन इसी सरकार ने कोरोना महामारी को पूरे भारत में अपने पर फैलाने का मौका दिया।

यह जो तूफान उमड़ रहा है, उसका मतलब है कि लोगों ने न केवल मंदिर निर्माण की राजनीति और धार्मिक कट्टरपन को नकार दिया है, बल्कि अब वे बेहतर और सम्मानपूर्वक जिंदगी की मांग भी कर रहे हैं। आखिर यह तूफान खड़ा क्यों हुआ? आखिर यह उन विरोध प्रदर्शनों जैसा क्यों नहीं है, जो अकसर एक निश्चित समय बाद होते रहते हैं। देश में मौजूद गुस्से और असंतोष को समझने के लिए पिछले कुछ महीने में अलग-अलग हिस्सों में हो रही घटनाओं पर नज़र डालिए। 

अप्रैल-मई 2020: "भाषण नहीं, खाना चाहिए"

24 मार्च को मोदी द्वारा अचानक घोषित किए गए लॉकडाउन से कामग़ारों और कर्मचारियों की नौकरियां चली गईं, उनकी आय खत्म हो गई। कई परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ गई और महामारी के काले बादल चारों तरफ छा गए, जिनसे हर कोई खतरे में था। सरकार ने पर्याप्त मात्रा में अनाज और दूसरी चीजें जरूरतमंदों को बांटने से इंकार कर दिया, परिवारों को एक जरूरी आय सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी से भी सरकार ने मुंह मोड़ लिया। सरकार ने उन लाखों प्रवासी मज़दूरों की भी परवाह नहीं की, जो दूर-दराज के इलाकों में फंस गए थे।

21 अप्रैल को पहली बार पूरी दुनिया में इस तरह की नीतियों के खिलाफ़ पहला प्रदर्शन हुआ। इस प्रदर्शन में चार लाख लोगों ने अपने घर के बाहर प्रदर्शन करते हुए राहत की मांग की। इस प्रदर्शन को सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU) ने आयोजित करवाया था, जो भारत की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियनों में से एक है। इस प्रदर्शन का मुख्य नारा "भाषण नहीं, राशन चाहिए" था।

14 मई को कोरोना से जंग लड़ रहे पहली पंक्ति के करीब तीन लाख कर्मियों ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें बेहतर सुरक्षा उपकरणों और नौकरी शर्तों की मांग की गई थी। सरकार द्वारा जरूरी सेवाओं में लगे कर्मियों पर फूल बरसाने की अपील करने के विरोध में इस प्रदर्शन का मुख्य नारा "फूल नहीं, सुरक्षा चाहिए" था। 

16 मई को किसान सम्मान दिवस के दिन हजारों किसानों ने अपने उत्पादों के लिए बेहतर मूल्यों की मांग करते हुए प्रदर्शन किए। यह प्रदर्शन किसान संगठनों के दो बड़े समन्वय मंचों- अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन द्वारा आयोजित करवाए गए थे।

22 मई को 11 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और दर्जनों स्वतंत्र संघों ने एक साथ आकर एक दिन का विरोध दिवस मनाया, इसमें नौकरियों की मांग, लॉकडाउन के दौरान भत्तों की मांग, सुरक्षा उपकरणों, आय सहायता, परिवारों के लिए ज़्यादा अनाज और अन्य मांग की गईं थीं। लगभग सभी बड़ी औद्योगिक पट्टियों में करीब़ सात लाख कर्मियों ने इस बड़े विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

27 मई को AIKSCC ने एक दूसरे प्रदर्शन का आयोजन किया, जिसमें किसानों की मांगे उठाई गईं थीं, इनमें हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया।

जून-जुलाई: संघर्ष की शुरुआत

लॉकडाउन को स्तरीकृत ढंग से सरल कर दिया गया और महामारी का फैलना भी जारी रहा, इस दौरान सरकार ने ऐसी नीतियों की भरमार कर दी, जिनमें कृषि उत्पादों और व्यापार के निजीकरण और मुनाफ़ाखोरी का खूब प्रबंध किया गया, इन नीतियों के ज़रिए श्रम कानूनों को ख़त्म किया गया, उन्हें कमजोर बना दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि शोषण बढ़ाया जा सके, मुनाफ़ा देने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचा जा सके और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों में विदेशी निवेश को आमंत्रण दिया जा सके। इस बीच सरकार ने नौकरी खो चुके लाखों कर्मचारियों और कामग़ारों को किसी भी तरह की राहत देने से इंकार कर दिया। इस निर्दयता के खिलाफ़ प्रतिरोध ज़्यादा बड़े स्तर तक फैला।

एक जून को 50,000 से ज़्यादा महिलाओं ने ऑल इंडिया डिमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन (AIDWA) की अपील पर जरूरतमंद परिवारों को आर्थिक सहायता और ज़्यादा अनाज दिए जाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किए।

चार जून को ऑल इंडिया एग्रीकल्चर वर्कर्स यूनियन (AIAWU) के नेतृत्व में हजारों भूमिहीन मज़दूरों और छोटे किसानों ने बेहतर भत्तों, अनाज और आर्थिक मदद की मांगों को लेकर प्रदर्शन किए। कृषि कार्य में लगे कामग़ारों के भत्ते, व्यवहारिक तौर पर पिछले दो साल से स्थिर हैं।

25 जून को करीब़ एक लाख आशा कर्मियों ने अलग-अलग राज्यों में बेहतर सुरक्षा उपकरणों, बेहतर वेतन और सेवा शर्तों की मांग पर प्रदर्शन किए। बता दें फिलहाल आशाकर्मी और ग्रामीण स्तर के स्वास्थ्यकर्मी ही कोरोना महामारी के फैलाव पर नज़र बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार हैं।

26 जून को मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम में काम करने वाले 50,000 से ज़्यादा कर्मियों ने अपना पैसा न मिलने और काम की खराब स्थितियों के खिलाफ़ प्रदर्शन किए।

2 जुलाई से 4 जुलाई के बीच 5 लाख कोयला कामग़ारों ने तीन दिन की ऐतिहासिक हड़ताल की। इसमें सरकार को चेतावनी दी गई कि वे कोयला खनन में विदेशी निवेश के फैसले पर आगे न बढ़ें।

3 जुलाई को पूरे देश में एक बड़ी हड़ताल का आयोजन किया गया, जिसमें 10 लाख से ज़्यादा कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। इस हड़ताल का आयोजन 11 ट्रेड यूनियन और स्वतंत्र संघों की अपील पर किया गया था। यह यूनियन बेहतर भत्तों और जरूरतमंद परिवारों को आर्थिक मदद के साथ-साथ निजीकरण को बंद करने और श्रम कानूनों को कमजोर करने वाली कोशिशों को खत्म करने की अपील कर रही थीं।

10 जुलाई को करीब 2 लाख आंगनवाड़ी कर्मियों और सहायकों ने ICDS फंड में कटौती और लॉकडाउन में आंगनवाड़ियों को बंद किए जाने, जिससे बच्चों में कुपोषण काफ़ी बढ़ गया है, इन कदमों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया।

13 जुलाई को निर्माण क्षेत्र में लगे दो लाख से ज़्यादा कामग़ारों ने सरकार के उस कदम के खिलाफ़ प्रदर्शन किया, जिसमें निर्माण कर्मियों को विशेष तौर पर सुरक्षा देने वाले कानून का विलय किया गया है। इस प्रदर्शन में उस सरकारी कदम का भी विरोध किया गया, जिसके ज़रिए विशेष कानून में इन कर्मियों के लिए बनाए गए फंड का पैसा किसी दूसरे काम के लिए स्थानांतरित किया जा रहा है।

16-17 जुलाई को CITU के नेतृत्व में 700 रेलवे स्टेशनों पर विरोध प्रदर्शन किए गए, ताकि मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे रेलवे के निजीकरण का विरोध किया जा सके।

23 जुलाई को किसान-कामग़ार संयुक्त मांग दिवस मनाया गया, जिसमें दो लाख से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। इसका आह्वान CITU, AIKS और AIAWU ने किया था, यह लोग कृषि उत्पादों के निजीकरण वाले अध्यादेश का विरोध कर रहे थे। इन संगठनों ने श्रम कानूनों को कमजोर किए जाने के खिलाफ भी आवाज मुखर की और जरूरतमंदों को बुनियादी चीजें उपलब्ध कराए जाने की मांग भी अपने प्रदर्शन में शामिल की।

अगस्त: प्रदर्शनों की मात्रा में वृद्धि

इस महीने कई बड़े प्रदर्शनों की योजना है। पिछले महीनों हुए बहुआयामी संघर्ष अब मजबूत हो रहे हैं। इस बीच नाराज़ लोगों द्वारा, महामारी के बावजूद कई छोटे-छोटे संघर्ष भी पूरे देश में चलाए जा रहे हैं।

4 अगस्त को 80,000 से ज़्यादा रक्षा उत्पाद में लगे कर्मियों ने अपनी उत्पादन ईकाईयों के मुख्य दरवाजों पर प्रदर्शन किए। यह प्रदर्शन "राष्ट्रभक्त" मोदी सरकार द्वारा इन ईकाईयों के निजीकरण के आदेशों के खिलाफ़ किए गए थे।

5 अगस्त को हजारों ट्रांसपोर्ट कर्मियों ने पूरे भारत में प्रदर्शन किए। यह प्रदर्शन सेंट्रल ट्रेड यूनियन की मांग पर हुए थे। यह लोग उन कानूनों को वापस लिए जाने की मांग कर रहे थे, जिनसे बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनियों को फायदा मिलता है। ऐप-आधारित ट्रांसपोर्ट कर्मचारियों ने भी इसमें हिस्सा लिया।

आने वाले दिनों में दो बड़े प्रदर्शनों की योजना बनाई जा चुकी है और इनकी तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं। 7-8 अगस्त को सभी योजनाओं में लगे कर्मियों द्वारा एक अभूतपूर्व हड़ताल होने वाी है, जिसमें 60 लाख से ज़्यादा लोग शामिल होंगे। इसका आयोजन केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के एक साझा मंच ने किया है। 9 अगस्त को इसी साझा मंच की अपील पर एक और प्रदर्शन होगा, जिसे AIKSCC का समर्थन हासिल होगा। इसके तहत एक बड़ा जेल भरो सत्याग्रह आयोजित किया जाएगा।

लोगों की नाराज़गी से बनने वाला तूफान इसी तरीके से खड़ा हो रहा है। यह तूफान मोदी सरकार को सीधे चुनौती दे रहा है। यह तूफान हमारे समय की बुनियादी लड़ाई है, जो मौजूदा सत्ता की सभी बुराईयों के खिलाफ संघर्षरत् है। यह लड़ाई भारत के लिए एक वैकल्पिक रास्ते मांग कर रही है। यही चीज भारत का भविष्य बनाएगी, ना कि मंदिरों के निर्माण वाले सपने हमारा भला करेंगे।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

The Real Struggle for Life Goes On, As a Temple of Dreams Rises

COVID-19
indian economy
Pandemic
BJP
Narendra modi
Farm ordinances
Labour Laws
CITU
AIKSCC
scheme workers
Health workers
Workers’ Protests
ram temple
ayodhya

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License