NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
स्वास्थ्य
विज्ञान
कोविड-19 : सेकेंडरी इन्फ़ेक्शन अब भी भारत में बड़ी चुनौती है
म्यूकोर्माइकोसिस कई तरह के द्वितीयक संक्रमणों में से सिर्फ़ एक ही संक्रमण है। ऐसे कई फंगल और जीवाणु संक्रमण मौजूद हैं, इन्हें एंटीबॉयोटिक्स और स्टेरॉयड का सही मात्रा में इस्तेमाल कर नियंत्रण किया जा सकता है।
संदीपन तालुकदार
09 Jun 2021
सेकेंडरी इन्फ़ेक्शन अब भी भारत में बड़ी चुनौती है

किसी भी बीमारी के दौरान द्वितीयक संक्रमण से बहुत ख़तरा होता है। कई बार यह द्वितीयक संक्रमण खुद बीमारी से ज़्यादा ख़तरनाक हो जाते हैं। हाल में भारत में कोविड मरीज़ों में म्यूकोर्माइकोसिस के मामलों में एकदम से उछाल आने से लोगों में काफ़ी दहशत छा गई थी। कोरोना संक्रमितों में म्यूकोर्माइकोसिस द्वितीयक संक्रमण का ही एक मामला था। इस संक्रमण में ऊंची मृत्यु दर होने के चलते, इसे भारत के कई राज्यों ने महामारी (एपिडेमिक) घोषित कर दिया था।

सिंतबर से दिसंबर 2020 के बीच पूरे देश के 16 अस्पतालों में एक अध्ययन किया गया। इन अस्पतालों में दिल्ली का एम्स, चंडीगढ़ का PGIMER (पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च) भी शामिल था। अध्ययन का नेतृत्व PGIMER के अरुनालोके चक्रबर्ती ने किया था। यह अध्ययन हाल में "इमर्जिंग इनफेक्शियस डिसीज़" नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ था।  

इससे पता चला कि अध्ययन की अवधि में म्यूकोर्माइकोसिस के मामलों में पिछले साल की तुलना में दोगुनी वृद्धि हुई। इस दौरान म्यूकोर्माइकोसिस के कुल मामलों में से 65.2 फ़ीसदी कोविड-19 से संबंधित केस थे। अध्ययन में यह भी पता चला कि कोविड से संबंधित हाइपोक्सिमिया (खून में ऑक्सीजन की कम मात्रा) और स्टेरॉयड के गलत इस्तेमाल (जैसे ग्लूकोकोर्टिकोइड) भी म्यूकोर्माइकोसिस से जुड़े थे।

चक्रबर्ती ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में मरीज़ पर "म्यूकोर" समूह के फंगस (कवक) हमले से जुड़े ख़तरे और आपात स्वास्थ्य स्थिति के बारे में चर्चा की। उन्होंने म्यूकोर के बैक्टीरिया और वायरस जैसे दूसरे सूक्ष्म जीवों के साथ संबंधों पर भी बात की। 

वे कहते हैं, "म्यूकोर फंगस इतनी आक्रामक होती है कि वो दूसरे जीवाणु या विषाणु को संक्रमण फैलाने का वक़्त ही नहीं देती। आमतौर पर म्यूकोर द्वितीयक जीवाणु संक्रमण का कारक नहीं बनता। दरअसल म्यूकोर रक्त वहिकाओं में प्रवेश करते हैं और "नेक्रोसिस" फैलाते हैं। नेक्रोसिस में जिंदा ऊतकों में स्थित कोशिकाएं वक़्त से पहले नष्ट हो जाती हैं। यह फंगस प्राथमिक तौर पर फेफड़ों को निशाना बनाती हैं, लेकिन रक्त वहिकाओं के ज़रिए वे हृदय, मस्तिष्क और किडनी जैसे दूसरे अहम अंगों को भी प्रभावित कर सकती है।"

उन्होंने आगे कहा, "फंगस से इन अहम अंगों में बड़े फोड़े हो जाते हैं। मतलब उनकी कोशिकाओं में मवाद भर जाता है। मतलब इस फंगस से हृद्य और मस्तिष्क में फोड़े हो सकते हैं। फिर किडनी में इन फोड़ों के चलते, खून की आपूर्ति ना होने से ऊतक नष्ट हो सकते हैं और किडनी काम करना बंद कर सकती है। इन फोड़ों में जीवाणु संक्रमण नहीं होता। दरअसल म्यूकोर्स द्वितीयक जीवाणु संक्रमण से संबंधित नहीं होते।"

चक्रबर्ती ने म्यूकोर्माइकोसिस के मामलों में उच्च मृत्यु दर के कारणों को भी बताया। उन्होंने कहा, "म्यूकोर्माइकोसिस में मुख्य चिंता यह है कि इसका जल्दी इलाज़ होना चाहिए, एक या दो दिन का इंतज़ार भी बहुत ख़तरनाक हो सकता है। हमारे पास मरीज़ देर से आते हैं, यही हमारी प्राथमिक चिंता है। आपको नेक्रोटिक संक्रमण को हटाने के लिए तेजी से सर्जरी करनी होती है।"

बतौर चक्रबर्ती इस संक्रमण के इलाज़ में सबसे बड़ी चुनौती हमारे देश में अनुभव और ज्ञान की कमी है। वे कहते हैं, "चाहे वह MBBS का पाठ्यक्रम हो या MD का, फंगल संक्रमण से निपटने में हमारे पास बहुत कम प्रशिक्षण है। हमारे एक सर्वेक्षण में पता चला कि एशिया के नौ देशों में जो लोग इस संक्रमण का इलाज़ कर रहे हैं, उनमें से 60 फ़ीसदी के पास इसके प्रबंधन का औपचारिक प्रशिक्षण ही नहीं है।"

प्रोफ़ेसर चक्रबर्ती ने इस बात पर जोर दिया कि म्यूकोर्माइकोसिस का इलाज़ उन डॉक्टरों द्वारा किया जाना चाहिए, जिन्हें इसका प्रशिक्षण मिला हुआ है। लेकिन एक अच्छी यह बात यह रही कि अब डॉक्टरों ने स्टेरॉयड का इस्तेमाल कम कर दिया है, जो म्यूकोर्माइकोसिस के मामलों में गिरावट की एक वज़ह हो सकती है। 

चक्रबर्ती ने सुझाव दिया कि पूरे देश में मानक लेबोरेटोरीज़ में जीवाणु विज्ञानियों को इस बीमारी के डॉयग्नोसिस पर दो दिन का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है। 

लेकिन म्यूकोर्माइकोसिस ही एकलौता द्वितीयक संक्रमण नहीं है, जो कोरोना मरीज़ों के इलाज़ में डॉक्टरों के सामने चुनौती पेश कर रहा है। हाल में जून से अगस्त 2020 के बीच देशभर के 10 कोविड अस्पतालों के 17,534 मरीज़ों पर द्वितीयक संक्रमण का एक और अध्ययन हुआ। 

इसमें पता चला कि इन मरीज़ों मे से 3.6 फ़ीसदी लोगों में द्वितीयक जीवाणु या फंगस संक्रमण मौजूद था। यह एक छोटा हिस्सा लग सकता है। लेकिन द्वितीयक संक्रमण से संक्रमित इन लोगों में मृत्यु दर 56.7 फ़ीसदी के बेहद उच्च स्तर पर थी। 

इस अध्ययन में 78 फ़ीसदी मरीज़ों में 'ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया' की उपस्थिति का भी पता चला। इनमें 'क्लेबसिएला न्यूोमोनी' (न्यूमोनिया फैलाने वाला बैक्टीरिया) मुख्य रोगाणु था, जो 29 फ़ीसदी लोगों में पाया गया। इसके अलावा 'एसिनटोबैक्टर बाउमान्नी' 21 फ़ीसदी लोगों में था। मरीज़ों में एंटीबॉयोटिक प्रतिरोधी जीवाणु भी पाया गया, जो कोविड मरीज़ों में द्वितीयक संक्रमण फैलाने के लिए जिम्मेदार होता है। 

न्यूज़क्लिक ने पुणे स्थित IISER के अनुबंधित शिक्षक और जाने-माने महामारी विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सत्यजीत रथ से भी बात की। द्वितीयक संक्रमण की संभावना पर रथ ने कहा, "संक्रमण फैलाने की कम क्षमता रखने वाले बहुत सारे सूक्ष्म रोगाणु संवाहकों को, फ़ेफड़ों की सूजन, न्यूमोनिया की स्थिति में खुद के प्रसार अनुकूल स्थितियां मिल जाती हैं। ऐसी कुछ वज़ह हैं जिससे लगता है कि 1918 की फ्लू महामारी में कई लोग ऐसे ही द्वितीयक जीवाणु संक्रमण की वज़ह से मारे गए होंगे। मौजूदा महामारी में भी, सिर्फ़ म्यूकोर्माइकोसिस ही द्वितीयक संक्रमण नहीं फैला रहा है, बल्कि दूसरे फंगल संक्रमण, जैसे 'एसपरजिल्लोसिस' और जीवाणु जनित द्वितीयक संक्रमण के मामले भी सामने आ रहे हैं।"

प्रोफ़ेसर रथ कहते हैं, "बल्कि मुझे लगता है कि म्यूकोर्माइकोसिस पर इतनी चर्चा इसलिए हो रही हैं क्योंकि इससे नाक और आंख के आसपास बेहद नाटकीय लक्षण दिखाई पड़ते हैं, जो दूसरे द्वितीयक संक्रमण के लक्षणों से अलग हैं, जबकि इनमें म्यूकोर्माइकोसिस से भी बदतर फेफड़ों की सूजन पैदा होती है।"

रथ ने दवाइयों के कुप्रबंधन और द्वितीयक संक्रमण से इसके संबंधों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा, "यह कुछ हद तक सही है कि संक्रमण की शुरुआत में ही स्टेरॉयड के इस्तेमाल, बहुत ज़्यादा मात्रा में या बहुत लंबे वक़्त तक स्टेरॉयड के इस्तेमाल से ना केवल म्यूकोर्माइकोसिस के मामलों में, बल्कि दूसरे द्वितीयक संक्रमणों में भी वृद्धि हुई है।"

स्टेरॉयड का इस्तेमाल बेहद गंभीर कोरोना मरीज़ों के इलाज़ के लिए किया जाता है, क्योंकि इन मरीज़ों में प्रतिरोधक तंत्र की प्रतिक्रिया बेहद सूजन पैदा करने वाली होती है। "लेकिन संक्रमण को रोकने के लिए प्रतिरोधक तंत्र की सूजन पैदा करने वाली प्रतिक्रिया जरूरी होती है। इसलिए इस व्यवस्था को स्टेरॉयड के ज़रिए दबाने की अपनी एक कीमत होती है, इसलिए स्टेरॉयड का इस्तेमाल बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए।"

एंटीबॉयोटिक्स के इस्तेमाल पर रथ ने कहा, "यह सही है कि कई तरह के एंटीबॉयोटिक्स के लंबे इस्तेमाल से फंगल संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है। लेकिन मुझे शक है शायद ही कोरोना के इलाज़ के दौरान एंटीबॉयोटिक्स के लंबे इस्तेमाल से द्वितीयक फंगल संक्रमण फैलता होगा।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

COVID19: Secondary Infections Still a Big Challenge in India

Secondary Infections in COVID
Mucormycosis
Arunaloke Chakrabarti
Steroid Use and Mucormycosis
Mismanagement in Medication

Related Stories


बाकी खबरें

  • भाषा
    अदालत ने कहा जहांगीरपुरी हिंसा रोकने में दिल्ली पुलिस ‘पूरी तरह विफल’
    09 May 2022
    अदालत ने कहा कि 16 अप्रैल को हनुमान जयंती पर हुए घटनाक्रम और दंगे रोकने तथा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में स्थानीय प्रशासन की भूमिका की जांच किए जाने की आवश्यकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,207 नए मामले, 29 मरीज़ों की मौत 
    09 May 2022
    राज्यों में कोरोना जगह-जगह पर विस्पोट की तरह सामने आ रहा है | कोरोना ज़्यादातर शैक्षणिक संस्थानों में बच्चो को अपनी चपेट में ले रहा है |
  • Wheat
    सुबोध वर्मा
    क्या मोदी सरकार गेहूं संकट से निपट सकती है?
    09 May 2022
    मोदी युग में पहली बार गेहूं के उत्पादन में गिरावट आई है और ख़रीद घट गई है, जिससे गेहूं का स्टॉक कम हो गया है और खाद्यान्न आधारित योजनाओं पर इसका असर पड़ रहा है।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: एक निशान, अलग-अलग विधान, फिर भी नया इंडिया महान!
    09 May 2022
    क्या मोदी जी के राज में बग्गाओं की आज़ादी ही आज़ादी है, मेवाणियों की आज़ादी अपराध है? क्या देश में बग्गाओं के लिए अलग का़ानून है और मेवाणियों के लिए अलग क़ानून?
  • एम. के. भद्रकुमार
    सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति
    09 May 2022
    सीआईए प्रमुख का फ़ोन कॉल प्रिंस मोहम्मद के साथ मैत्रीपूर्ण बातचीत के लिए तो नहीं ही होगी, क्योंकि सऊदी चीन के बीआरआई का अहम साथी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License