NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मांग की कमी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को ₹27 प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कमाई देने वाला कृषि क्षेत्र उबार सकता है?
अनाज जैसे महत्वपूर्ण माल का उत्पादन करने के बाद महज ₹27 प्रतिदिन की कमाई करने वाला कामगार अगर मेहनत की वाजिब कीमत हासिल करे तो भारत की अर्थव्यवस्था में घटती हुई मांग दर में भारी इजाफा हो सकता है, भारत की अर्थव्यवस्था भी आगे बढ़ेगी और भारत का आम आदमी भी आगे बढ़ेगा।
अजय कुमार
16 Sep 2021
मांग की कमी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को ₹27 प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कमाई देने वाला कृषि क्षेत्र उबार सकता है?
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

बखान करने और गला फाड़कर सतही अंदाज़ में मंच से भाषण देने से देश नहीं चलता है। ना ही विज्ञापनों से देश चलता है। देश उन नेताओं के बूते की बात भी नहीं जो खूब पैसा और सांप्रदायिकता झोंक कर चुनाव जीतते हैं। देश को सुचारु रूप से चलने के लिए सबकी जेब में ठीक-ठाक जिंदगी जीने लायक पैसा होनाआवश्यक है। पैसा कमाने के लिए रोजगार होना चाहिए। रोजगार पैदा करने के लिए समृद्ध अर्थव्यवस्था होनी चाहिए। अगर ठीक से भारत के नागरिकों की समृद्धि आंकी जाए तो भारत की क्रूर बदहाली ही सामने दिखती है।

अगर खर्चों के आधार पर भारत की जीडीपी को देखें तो भारत की जीडीपी का तकरीबन 55 से 60 फ़ीसदी हिस्सा प्राइवेट फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर से बनता है। तकरीबन 33 फ़ीसदी हिस्सा उद्योग धंधों में किए गए निवेश से बनता है। बचा-खुचा तकरीबन 10 से 11 फ़ीसदी हिस्सा सरकारी खर्चों से जुड़ा होता है।

कहने का मतलब यह कि अगर लोगों ने खर्च करना बंद कर दिया तो भारत की पूरी जीडीपी गड़बड़ा सकती है। अपनी रफ्तार गंवा सकती है। क्योंकि भारत की जीडीपी का तकरीबन 60 फ़ीसदी हिस्सा प्राइवेट कंजप्शन से जुड़ा हुआ है। यही हिस्सा उद्योग धंधे और कल कारखानों पर होने वाले निवेश को भी प्रभावित करता है। इसलिए भले ही कॉर्पोरेट टैक्स में कमी करके सरकार यह बताना चाहे कि उद्योग धंधों का विकास होगा, लेकिन यह फॉर्मूला काम नहीं करता। क्योंकि जब खरीदने वाले ही नहीं रहेंगे तो उत्पादन धरा का धरा रह जाएगा। निवेश धरा का धरा रह जाएगा। उद्योग धंधे धरे के धरे रह जाएंगे। यही हो रहा है। कॉरपोरेट को दिया गया प्रोत्साहन अर्थव्यवस्था को पटरी पर नहीं ला पा रहा है।

जाने-माने आर्थिक पत्रकार उदित मिश्रा इस पूरे खेल को समझाते हुए इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि साल 2004 -2005 की जीडीपी की कीमतों को आधार बनाते हुए देखें तो साल 2011-12 तक भारत की अर्थव्यवस्था में प्राइवेट फाइनल कंजप्शन की बढ़ने की दर 8.2 फ़ीसदी सालाना रही है। साल 2011-12 की कीमतों के आधार पर जीडीपी को देखें तो साल 2011-12 से लेकर साल 2020 तक भारत की अर्थव्यवस्था में प्राइवेट कंजप्शन में बढ़ने की दर घटकर 6.4 फ़ीसदी सालाना ही रह गई है।

साल 2017-18 के बाद भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में गिरावट शुरू हुई। साल 2020 में कोरोना की महामारी ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। इस तरह से देखें तो साल 2012 से लेकर साल 2021-22 से 1 वर्ष तक प्राइवेट कंजप्शन बढ़ने की दर महज 5 फ़ीसदी रही है। अगर 2017-18 की जीडीपी के आधार पर देखें तो प्राइवेट कंजप्शन बढ़ने की दर महज 3.2 फीसदी सालाना रही है। मतलब पिछले 5 साल की कहानी यह है कि लोगों ने खर्च करना कम कर दिया है। खर्च कम करने के पीछे तमाम कारण होते हैं। तमाम कारण यही बताते हैं कि लोगों का जीवन स्तर कमजोर हुआ है। लोगों की समृद्धि उनसे बहुत दूर चली जाती रही है।

आरबीआई के ऑर्डर बुक्स, इन्वेंटरी एंड कैपेसिटी यूटिलाइजेशन सर्वे के आंकड़े भी इसी तरफ इशारा करते हैं। इस सर्वे के मुताबिक कंपनियां और फर्म अपनी क्षमता का 75% भी इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं। अपनी कुल क्षमता से 25 फ़ीसदी कम माल बनाने के बाद भी माल बिक नहीं पा रहा है। मतलब कई छोटी-मोटी कंपनियां डूब गई होंगी। कई कंपनियां रोजगार देने से कतरा रही होंगी। कई कंपनियां कर्मचारियों को कम वेतन दे रही होंगी और कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की छंटनी कर दी होगी।

इस गणित के साथ भारत के कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति कमाई से जुड़े हाल फिलहाल के आंकड़े को देखना चाहिए। भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा सिचुएशन एसेसमेंट रिपोर्ट जारी किया है। इस सर्वे से पता चलता है कि साल 2018-19 में भारत के किसानों ने प्रतिदिन महज ₹27 की कमाई की। भारत के कृषि क्षेत्र में भारत के कार्यबल का तकरीबन 40 फ़ीसदी हिस्सा लगा हुआ है। कृषि क्षेत्र पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। लेकिन कमाई महज ₹27 प्रतिदिन की है।

सरकार कॉरपोरेट सेक्टर को प्रोत्साहन देने के बजाय, कॉरपोरेट टैक्स कम करने की बजाय, कृषि क्षेत्र से जुड़े कार्यबल को केवल वाजिब आमदनी देने की ईमानदार कोशिश करे तो भारत की पूरी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सकती है। अनाज जैसे महत्वपूर्ण माल का उत्पादन करने के बाद महज ₹27 प्रतिदिन की कमाई करने वाला कामगार अगर मेहनत की वाजिब कीमत हासिल करे तो आप खुद सोच कर देखिए कि भारत की अर्थव्यवस्था में घटती हुई मांग दर में कितना बड़ा इजाफा होगा। भारत की अर्थव्यवस्था भी आगे बढ़ेगी और भारत का आम आदमी भी आगे बढ़ेगा। यह सच्चाई कोई रॉकेट साइंस नहीं है। भारत के सभी अर्थशास्त्रियों को दिख रही होगी। लेकिन सवाल यही है कि आखिरकर सरकार कृषि क्षेत्र को फोकस कर नीतियां क्यों नहीं बनाती, जहां पर भारत की सबसे बड़ी आबादी अपनी जिंदगी का गुजारा करने के लिए लड़ रही है?

indian economy
economic crises
agricultural crises
Agriculture Sector
Agriculture workers
Poverty in India

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

बिहार: कोल्ड स्टोरेज के अभाव में कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर आलू किसान

ग्राउंड  रिपोर्टः रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के गृह क्षेत्र के किसान यूरिया के लिए आधी रात से ही लगा रहे लाइन, योगी सरकार की इमेज तार-तार

देशभर में घटते खेत के आकार, बढ़ता खाद्य संकट!

पूर्वांचल से MSP के साथ उठी नई मांग, किसानों को कृषि वैज्ञानिक घोषित करे भारत सरकार!

ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वांचल में 'धान का कटोरा' कहलाने वाले इलाके में MSP से नीचे अपनी उपज बेचने को मजबूर किसान

किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है कृषि उत्पाद का मूल्य

खेती गंभीर रूप से बीमार है, उसे रेडिकल ट्रीटमेंट चाहिएः डॉ. दर्शनपाल

लड़ाई अंधेरे से, लेकिन उजाला से वास्ता नहीं: रामराज वाली सरकार की किसानों के प्रति उदासीनता


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की वार्षिक बैठक में ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने " प्रोफिटिंग फ्रॉम पेन" नाम से रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में उन ब्यौरे का जिक्र है जो यह बताता है कि कोरोना महामारी के दौरान जब लोग दर्द…
  • bhasha singh
    न्यूज़क्लिक टीम
    हैदराबाद फर्जी एनकाउंटर, यौन हिंसा की आड़ में पुलिसिया बर्बरता पर रोक लगे
    26 May 2022
    ख़ास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बातचीत की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर से, जिन्होंने 2019 में हैदराबाद में बलात्कार-हत्या के केस में किये फ़र्ज़ी एनकाउंटर पर अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया।…
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   
    26 May 2022
    बुलडोज़र राज के खिलाफ भाकपा माले द्वारा शुरू किये गए गरीबों के जन अभियान के तहत सभी मुहल्लों के गरीबों को एकजुट करने के लिए ‘घर बचाओ शहरी गरीब सम्मलेन’ संगठित किया जा रहा है।
  • नीलांजन मुखोपाध्याय
    भाजपा के क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करने का मोदी का दावा फेस वैल्यू पर नहीं लिया जा सकता
    26 May 2022
    भगवा कुनबा गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का हमेशा से पक्षधर रहा है।
  • सरोजिनी बिष्ट
    UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश
    26 May 2022
    21 अप्रैल से विभिन्न जिलों से आये कई छात्र छात्रायें इको गार्डन में धरने पर बैठे हैं। ये वे छात्र हैं जिन्होंने 21 नवंबर 2021 से 2 दिसंबर 2021 के बीच हुई दरोगा भर्ती परीक्षा में हिस्सा लिया था
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License