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कार्टून क्लिक: मोदी जी की लोकप्रियता घटी...ये तो बहुत नाइंसाफ़ी है!
नेताओं की लोकप्रियता के सर्वे, चुनावी ओपिनियन पोल या चैनलों की टीआरपी से ज़्यादा कुछ नहीं हैं। जिसमें हेरफेर और घोटाला भी होता रहता है। मगर इसके बाद भी इंडिया टुडे के सर्वे ‘मूड ऑफ द नेशन’ को पढ़ना ज़रूरी तो लगता है क्योंकि ये काफी दिलचस्प बातें बताता है।
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17 Aug 2021
कार्टून क्लिक: मोदी जी की लोकप्रियता घटी...ये तो बहुत नाइंसाफ़ी है!

नेताओं की लोकप्रियता के सर्वे, चुनावी ओपिनियन पोल या चैनलों की टीआरपी से ज़्यादा कुछ नहीं हैं। जिसमें हेरफेर और घोटाला भी होता रहता है। यानी ओपिनियन लेने के नाम पर ओपिनियन बनाने का भी खेल रहता है। शुरुआती गिरावट के बाद सही मौके पर बढ़त भी दिखाने की तैयारी रहती है। यानी ओपिनियन से एग्ज़िट तक काफी कुछ बदल जाता है और उसके बाद एग्ज़िट भी बदल जाने की पूरी संभावना रहती है।

इस खेल में बहुत विश्वास न करते हुए और साथ ही किसी के सर्वे को सही या ग़लत भी न कहते हुए इंडिया टुडे के हालिया सर्वे मूड ऑफ द नेशन को पढ़ना ज़रूरी तो लगता है क्योंकि ये काफी दिलचस्प बातें बताता है। जैसे यही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज की गई है।

इंडिया टुडे के हालिया सर्वे ‘मूड ऑफ द नेशन’ में कई तरह के सवाल पूछे गए थे। जैसे कि भारत के अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री कौन? इत्यादि। सर्वे के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में भारी गिरावट दर्ज की गई है। साल 2020 के सर्वे में 66 फीसदी लोग नरेंद्र मोदी को देश का अगला प्रधानमंत्री देखना चाहते थे। जबकि हालिया सर्वे में 24 फीसदी लोगों ने ही नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगाई है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में एक फीसदी का इजाफा हुआ है। नरेंद्र मोदी के बाद अगले प्रधानमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ को 11 फीसदी लोगों ने पसंद किया। जबकि जनवरी 2021 में 10 फीसदी लोग पसंद करते थे। इस घटत और बढ़त की राजनीति को पढ़ते हुए यहां आपको याद रखना होगा कि अब यूपी के चुनाव आने वाले हैं।

इसके अलावा विपक्ष के नेता राहुल गांधी को 10 फीसदी, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी को 8-8 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री के तौर पर पसंद किया है। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार की विफलताओं में महंगाई, बेरोजगारी और कोरोना महामारी प्रबंधन, किसान आंदोलन और नोटबंदी को लोगों ने सबसे बड़ी विफलता बताया। इससे यह भी पता चलता है कि लोग सबकुछ भूले नहीं हैं।

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